गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

प्रसंगवश
नर्मदा को गंगा-यमुना होने से बचाये
मेधा पाटकर, नर्मदा बचाओ आंदोलन, बड़वानी (म.प्र.)
नर्मदा भक्ति की ऊर्जा (मध्यप्रदेश) में नर्मदा किनारे के गांवों में देखते ही बनती है । नर्मदा की परिक्रमा से पंचकोसी यात्रा तक, हर पारंपरिक कार्य में नदी और समाज का जुड़ाव अहम माना गया है । ऐसी पैदल यात्राएं नर्मदा भक्तों को केवल नदी की पूजा करने के बदले गांव-गांव पहुंचने की प्रेरणा देती हैं और हजारों हजार महिला-पुरूष उन्हीं के द्वारा नदी घाटी के गांवों की स्थिति, संस्कृति और प्रवृत्ति को जानते हुए, उनसे रिश्ते बनाते हुए आगे बढ़ते है । 
इन सबके बीच मुझ्े महसूस हो रही है एक विडंबना । कल-कल बहती नर्मदा जब आज जगह-जगह खाली है ओर उसका पानी प्रदूषित हो रहा है । कहीं सरदार सरोवर, कहीं इंदिरा सागर तो कहीं रानी दुर्गाबाई - इन बड़े बांधों के जलाशयों में डाली गई नर्मदा न अपने किनारे बसे बच्चें को, न अपनी जुडवां बहन जैसी भूमि को और न ही अपने पानी को बचा सकती है । लाखों-लाख पेड़, मकान, आवासों के साथ यहां के दसवीं से बारहवीं सदी तक के मंदिर, घाट और धर्मशालाएं, मस्जिदें - ये सब डुबाए जाएंगे तो खेती और फलोद्यान भी इस सबसे ऊपजाऊ भूखंड के साथ-साथ खत्म होंगे । 
सबसे गंभीर हकीकत है सरदार सरोवर की । आज भी १२२ मीटर की ऊंचाई वाले बांध के डूब क्षेत्र में हजारों परिवार बसे हैं । वजह है पूनर्वास में हुआ भ्रष्टाचार । करीबन १२००० लोग जमीन के साथ पुनवर्सित होने थे । ऐसे परिवारों में से केवल५० परिवारों को राज्य (मध्यप्रदेश) में जमीन दी गई है । जमीन के बदले पैसा बांटने की योजना में भी कम गड़बड़ियां नहीं हैं । १५०० परिवारों को आधा ही पैसा मिला और इसलिए वे जमीन नहीं खरीद पाए हैं । कुछ हजार परिवारों को गुजरात में जमीन मिली है, लेकिन उनमें से भी सैकड़ों डूब क्षेत्र में ही हैं । आज बांध की पूरी ऊंचाई तक गेट लगाने वाला शासन अच्छी तरह जानता है कि २.५ लाख लोगों वाले जीवित गांवों को डुबोना न केवल जलवायु परिवर्तन लाएगा । किसानी संस्कृति पर बांध के रूप मेंहुआ यह बाजार का हमला घातक और हिंसक ही साबित हो रहा है । 
सवाल है कि नर्मदा की पूजा करते हुए उससे अपनी संस्कृति बांध कर सादगी भरी जिंदगी जीने वालों को क्या मां नर्मदा मौत से बचाएगी ? विकास केनाम पर जिन की बलि चढ़ाने का फैसला कर लिया गया है । 

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