गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

विशेष रिपोर्ट 
देश में बाघों की संख्या बढ़ी
विशेष संवाददाता 
  बाघों की संख्या पर जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक २०१० मेंहुई गणना के बाद देश मेंबाघों की संख्या में ३० प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है और अब इनकी संख्या बढ़कर २,२२६ हो गई है । वर्ष २०१० में बाघों की कुल संख्या करीब १,७०६ आंकी गई थी । वहीं २००६ में इनकी संख्या चिंताजनक रूप से १,४११ के आंकड़े पर पहुंच गई थी लेकिन तब से बाघों की संख्या में लगातार सुधार देखा जा रहा है । 
वर्ष २०१४ में देश भर में बाघों की संख्या पर रिपोर्ट जारी करते हुए पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इसे सफलता की गाथा करार दिया और रेखांकित किया कि दुनिया में जहां बाघों की संख्या घट रही है वहीं भारत में इनकी संख्या बढ़ रही है । पर्यावरण मंत्री ने कहा कि दुनिया में जितने बाघ मौजूद हैं उनमें से अधिकतर भारत में पाए जाते हैं । 
अब भारत में दुनिया के ७० प्रतिशत बाघ मौजूद हैं । हमारे यहां दुनिया के बेहतरीन व्यवस्थित बाघ अभयारण्य हैं । पिछली बार हमने इनकी संख्या १,७०६ दर्ज की थी । ताजा आंकड़े में इनकी संख्या २,२२६ है । इस पर हमें गर्व होना चाहिए । आखिरी बार से इनमें ३० प्रतिशत  की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है जो एक     बड़ी कामयाबी की दास्तान है । उन्होंने कहा कि भारत के पास ८० प्रतिशत बाघों की दुर्लभ तस्वीरें हैं जबकि इनके आकलन के लिए ९,७३५ कैमरो का प्रयोग किया   गया । 
वर्ष २०१४ की रिपोर्ट के मुताबिक बाघों की संख्या १,९४५-२,४९१ (२,२२६) के करीब आंकी गई है जबकि २०१० क्की रिपोर्ट में इनकी संख्या १,५२०-१,९०९ के बीच थी । अधिकारियों ने बताया कि देश के बाघ बहुल १८ राज्यों में कुल ३,७८,११८ वर्ग किलोमीटर वनक्षेत्र में बाघों का सर्वेक्षण हुआ, जिसमें बाघों की कुल १,५४० दुर्लभ तस्वीरें कैमरे में कैद की गई । अधिकारियों ने बताया कि कर्नाटक, उत्तराख्ंाड, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बाघों की संख्या में वृद्धि हुई है । बाघों की संख्या में वृद्धि के लिए श्री जावड़ेकर ने अधिकारियों, वन्यकर्मियों, सामुदायिक भागीदारी और वैज्ञानिक सोच को श्रेय दिया । उन्होंने कहा, यही वजह है कि हम अधिक बाघ अभयारण्य बनाना चाहते हैं । यह भारत की विविधता का प्रमाण है और यह दिखाता है कि हम किस तरह से जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर है । 
मानव-पशु संघर्ष के बारे में बात करते हुए पर्यावरण मंत्री ने कहा कि इस संबंध में प्रभावी कदम उठाए जा रहे हैं । जहां तक हाथियों की बात हे तो यह समस्या और विकट हो जाती है । बाघों के साथ संघर्ष में जहां सात लोग मारे जाते हैं वहीं हाथियों के संदर्भ यह संख्या १०० के करीब पहुंच जाती है । श्री जावड़ेकर ने कहा कि पशुआें के रहने के लिए हम अधिक हरित क्षेत्र और जल क्षेत्र का निर्माण कर रहे हैं ताकि पशु वहां रह सकें । 
मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिलना तो दूर, उल्टे वह दूसरे से तीसरे पायदान पर चला गया । यह स्थिति तब है जब मप्र में देश के सबसे अधिक ६ टाइगर रिजर्व हैं । हालांकि पिछले सेंसेक्स की तुलना    में संख्या बढ़ी है । वर्ष २०१० में  प्रदेश में जहां टाइगर की संख्या २५७ थी, वह चार साल बाद नई गणना   में ३०८ है । नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी की नई रिपोर्ट के हिसाब से देश में ३० प्रतिशत टाइगर बढ़े हैं । २०१० में जहां १७०६ टाइगर थे, वह अब बढ़कर २२२६ हो गए   हैं । 
उल्लेखनीय है कि वर्ष २००६ पहले तक मप्र में बाघों की संख्या सबसे अधिक होने से टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार था । ऐसा भी मौका आया जब मप्र में करीब ७०० टाइगर थे । वाइल्ड इंस्टीट्यूट देहरादून ने वर्ष २००६ में टाइगर की संख्या ३०० बताई थी, जो २०१० में २५७ रह  गई । दरअसल वर्ष २००७ से ०९ के टाइगर का बड़ी संख्या में शिकर  हुआ । पन्ना नेशनल पार्क तो बाघविहीन हो गया । मामला गंभीर होने पर केन्द्र ने जांच दल भेजा था । जांच में वन्य प्राणी मुख्यालय के आला अफसरों सहित तत्कालीन प्रमुख सचिव वन को लापरवाही के लिए जिम्मेदार भी ठहराया गया था । मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन वन मंत्री सरताज सिंह ने सीबीआई जांच कराने का लिखा था, लेकिन बाद में इसमें कोई पहल नहीं हुई । 
मध्यप्रदेश मेंबाघ सरंक्षण के अनेक जरूरी कार्य नहीं हो पाये, इस कारण राज्य का टाइगर स्टेट का दर्जा छिन गया है । वन्य जीवों पर     काम करने वाले अजय दुबे ने प्रदेश के वनमंत्री से इस्तीफे की मांग की है । श्री दुबे ने कहा कि सरकार ने इस क्षेत्र में कोई खास काम    नहीं किया । वन मंत्री ने भी गंभीरता से इस क्षेत्र में ध्यान नहीं दिया, नहीं तो ऐसी स्थिति नहीं आती । इसके जिम्मेदारी लेते हुए प्रदेश के वन मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए । 

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