गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

सामयिक
विदेशी निवेश की मृग मरीचिका 
भारत डोगरा 
भारत में विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए अकल्पनीय प्रयास किए जा रहे हैं । इस दौड़ में हमारे प्रधानमंत्री स्वयं को एक रॉकस्टार के रूप में स्थापित करने का जोखिम तक उठा रहे हैं । हमें याद रखना होगा कि आर्थिक जगत का मनोरंजन से कोई लगाव नहीं है क्योंकि उसके लिए मनोरंजन आज का सबसे बड़ा व्यवसाय है ।
भारत सरकार ने हाल ही में ऐसे कई बदलाव लाने के लिए निर्देश दिए हैं जिससे विभिन्न विदेशी कंपनियांे को लगे कि देश में व्यवसाय करने की स्थितियां अधिक आकर्षक हो गई हैं । विश्व बैंक द्वारा एक ऐसी सूची तैयार की जाती है कि विभिन्न देशांे में कंपनियों के लिए कितनी बेहतर स्थितियां उपलब्ध हैं । भारत सरकार चाहती है कि इस सूची में भारत का स्थान काफी आगे आ जाए। 
इसके लिए वित्त मंत्रालय को पन्द्रह कार्य दिए गए हैं जो उसे ३१मार्च २०१५ तक पूरे करने हैं । साथ में कार्पोरेट मंत्रालय को भी २२ कार्य दिए गए हैं जो उसे ३० अप्रैल २०१५ तक पूरे करने हैं । इनमें से कुछ कार्य वास्तव में जरुरी भी हो सकते हैं । परंतु कुल मिलाकर स्थितियां ऐसी बन रही हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए अधिक सुविधाएं जुटाने को विशेष महत्व दिया जाएगा । 
विदेशी निवेश को लुभाने के लिए पर्यावरण की रक्षा के लिए जरुरी कई नियमों को बदला जा रहा है और भूमि अधिग्रहण कानून को भी कार्पोरेट हितों के अधिक अनुकूल बना दिया गया है । श्रम कानूनों में भी बदलाव किये गए हैं । इस संदर्भ में यह सवाल उठाना जरूरी है कि   भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियोंका आगमन व विदेशी निवेश को बढ़ावा देना क्या इतना जरूरी है कि उसके लिए हम अपने मूलभूत नियम-कानून तक बदल दें ? हाल में जारी विज्ञापनों में केन्द्र सरकार ने दावा किया है कि पिछले ४ वर्षों में ही भारत में १७५ अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ है । इसके अतिरिक्त यह जानकारी भी दी गई है कि भारत को अब तक जितना प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ है उसका ९४ प्रतिशत पिछले एक दशक में यानि वर्ष २००३-२०१३ के दौरान प्राप्त हुआ है ।
इस जानकारी से इतना तो स्पष्ट है कि भारत में हाल के वर्षों मेंविदेशी निवेश तेजी से बढ़ा है । परंतु यह सवाल भी है कि इस तेजी से बढ़ते विदेशी निवेश का देश पर जो असर हुआ है वह हमारे देश के लोगों के कितने हित में है या उनके हित में है भी या नहीं । इस प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए हमें अधिक विस्तार से यह जानना पड़ेगा कि देश में किस तरह का विदेशी निवेश हुआ है, किस तरह की परियोजनाओं में निवेश हुआ है और यह परियोजनाएं क्षेत्र के विकास को किस दिशा में ले जा रही हंै ?
ऐसी परियोजनाएं विशेष चिंता का विषय हैं जो स्थानीय, खासकर ग्रामीण व आदिवासी समुदायों के प्राकृतिक संसाधन के आधार को छीनती हैं या उन्हें क्षतिग्रस्त कर देती हैं। अधिकांश आदिवासी समुदायों के जीवन व आजीविका का आधार उनके आसपास के प्राकृतिक संसाधन हैं। जल्दबाजी में व ऊंची प्राथमिकता देकर लाया गया विदेशी निवेश जिनमें खनन संबंधी व औद्योगिक परियोजनाएं शामिल हैं,यदि जल, जंगल, जमीन व समुदायों के        अधिकार छीन लें या इन प्राकृतिक संसाधनों को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करती हैंतो ऐसे विदेशी निवेश को देशहित में कैसे माना जा सकता है? 
इसके अतिरिक्त  हमें यह देखना पड़ेगा कि इसे आकर्षित करने के लिए कैसी सुविधाएं दी जा रही हैंऔर उन्हें क्या आकर्षण दिया जा रहा है । कहीं ऐसा तो नहीं है कि विदेशी निवेशकों को खनिज या कच्च्े माल बहुत सस्ते में दिए जा रहे हैं। या उन्हें खुश करने के लिए उन्हें बहुत कर माफी दी जा रही है, जिससे देश के खजाने को क्षति पहंुच रही   हो ? विदेशी कंपनियों की कर चोरी या अन्य भ्रष्टाचार की ओर से आंखें तो नहीं मूंदी जा रही हैं? उन्हें तुष्ट करने के लिए मजदूरों के अधिकारों को कम किया जा रहा है व पर्यावरण के नियमों की अवहेलना की जा रही है । 
यदि यह सब हो रहा है तो निश्चय ही इसमें देश की भलाई नहीं अपितु क्षति है । साथ-साथ यह भी देखना होगा कि विदेशी निवेश से कुल कितना मुनाफा देश के बाहर भेजा जा रहा है । एक अन्य विचारणीय सवाल यह है कि विदेशी निवेश में जो तकनीकें व तौर-तरीके अपनाए जाते हैं उनमें कितने व किस प्रकार के रोजगार सृजित होते हैं। श्रम-सघन तकनीकों की जो प्राथमिकता हमारे देश में है, विदेशी निवेश उसके अनुकूल हैंकि नहीं ? साथ ही साथ इस पर भी पैनी नजर रखने की जरूरत है कि जिन क्षेत्रों में विदेशी निवेश हो रहा है वह अधिक प्रदूषण फैलाने मंे तो नहीं जुटे हैं।
अंत में यह भी ध्यान में रखना जरूरी है कि कथित विदेशी पूंजी से देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती या स्थिरता मिल रही है, या `हाट मनी` की प्रवृत्ति बढ़ रही है। यानि विदेशी निवेश यदि सिर्फ मुनाफे की तलाश में तेजी से आ जा रहा है तो इससे अर्थव्यवस्था में मजबूती नहीं आती है अपितु उसकी अस्थिरता बढ़ती है । इन सब मुद्दों को ध्यान में रखकर ही कहा जा सकता है कि विदेशी निवेश का चरित्र क्या है एवं ऐसा निवेश देश के हित में है या   नहीं । 

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