मंगलवार, 27 फ़रवरी 2007

जहरीली हवाओं से बचने के रास्ते

वातावरण


विवेक चट्टोपाध्याय

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अक्टूबर 2006 में विश्वभर की सरकारों को चेतावनी देते हुए उनके शहरों में शुध्द वायु उपलब्ध करवाने हेतु नए पैमाने स्थापित करते हुए दिशा निर्देशक सिध्दांत जारी किये हैं। इसकी अनुशंसाओं के अंतर्गत पी.एम. 10, ओजोन

और सल्फर डाईआक्साईड की मात्रा को नियंत्रित करने की सलाह दी गई है। प्रस्तावित मानक विश्व के विभिन्न हिस्सों में वर्तमान प्रचलित मानकों की तुलना में कहीं अधिक कठोर हैं। साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह भी मानना है कि इससे जन स्वास्थ्य संगठन का यह भी मानना है कि इससे जन स्वास्थ्य के स्तर में काफी सुधार होगा। इन मानकों के संबंध में एक अन्य गौरतलब तथ्य है कि पूर्व में जहां यह मानक मात्र यूरोप के लिये बनाये गये अब इन दिशा निर्देशों को विश्वव्यापी स्तर पर लागू किया जाएगा।

कुछ शहरों को इन दिशा निर्देशों को लागू करने हेतु अपने यहां व्याप्त प्रदूषण को तीन गुना तक कम करना होगा। कुछ शहरों में पीएम 10 प्रदूषण प्रति क्यूबिक मीटर 70 माईक्रोग्राम से भी ज्यादा हो गया हैजबकि नए दिशा निर्देशों के अनुसार इसे घटाकर 20 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के स्तर तक लाना है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि इस स्तर तक अगर प्रदूषण घटा लिया गया तो प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों में 15 प्रतिशत कमी आ जाएगी। दिशा निर्देशों में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि वायु प्रदूषण घटाने से विश्वभर में श्वास, हृदय रोग व फेफड़ों के कैन्सर से होने वाली मौतों में भी कमी आएगी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 80 वैज्ञानिक से सलाह मशविरे एवं विश्वभर में इस विषय पर छपे हजारों शोधपत्रों की समीक्षा करने के बाद ही उसने इन दिशा निर्देशों को बनाया हैं। संगठन का अनुमान है कि वायु प्रदूषण के परिणाम स्वरुप प्रतिवर्ष 20 लाख से ज्यादा असामयिक मौतें विश्वभर में हो जाती हैं। साथ ही यह भी अनुमान लगाया गया है कि इनमें से आधे से अधिक का भार विकासशील देशों पर पड़ता है।

नवीन दिशा निर्देशों की अन्य मुख्य प्रावधान हैं ः-

1. ओजोन की सीमा प्रतिदिन 120 माइक्रोग्राम प्रतिमीटर प्रतिदिन से घटाकर 100 माइक्रोग्राम प्रतिदिन तक लाना।

2. सल्फर डाई आक्साईड के संबंध में इसमें दिशा निर्देश है कि इसे 125 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से घटाकर 20 माइक्रोग्राम के स्तर पर लाया जाये।

3. नाइट्रोजन डाईआक्साइड की सीमा के संबंध में दिशा निदर्ेशों में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है।

4. दिशा निर्देशों का मुख्य उद्देश्य प्रगतिशील तात्कालिक लक्ष्यों को प्राप्त करना एवं बेहतर वायु प्रदान करने के संबंध में मील का पत्थर सिध्द होना है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन अब सभी देशों के साथ इस तरह से सहयोग करने का इच्छुक है जिससे कि इस संबंध में प्रत्येक राष्ट्र के स्वयं से राष्ट्रीय कानून बन सकें। वैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन इस बात को भी स्वीकार करता है कि यह बात राष्ट्रों की सरकारों के विवेक पर छोड़ देना चाहिये कि वे स्वविवेक से परिस्थितिजन्य राष्ट्रीय मानक स्थापित कर सकें। परंतु इस संबंध में उन्हें यह तो ध्यान रखना ही चाहिये कि स्वास्थ्य पर न्यूनतम प्रतिकूल प्रभाव पड़े।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के यूरोप स्थित आंचलिक कार्यालय के क्षेत्रीय सलाहकार माइकल क्रजीजेनोवस्की ने वायु की गुणवत्ता की ओर इशारा करते हुए कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो नए लक्ष्य स्थापित किए हैं उस हेतु सदस्य देश अपनी नीति बनाने में इन दिशा निर्देशों का सहारा ले सकते हैं। देशों को स्वयं ही तय करना होगा कि वे इन उद्देश्यों से कितने दूर हैं। प्रदूषण के वर्तमान स्तर से उनके नागरिकों के स्वास्थ्य को कितनी हानि पहुंच रही है एवं इससे होने वाली बीमारियों को किस प्रकार कम किया जा सकता है।

इन दिशा निर्देशों को लागू करने हेतु भारत एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। भारत ने वायु प्रदूषण हेतु तो पैमाना बना दिया है परंतु ओजोन, पीएम-5 और अन्य जहरीली गैसों के लिये कोई पैमाना तय नहीं किया है। अगर हम विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित दिशा निर्देशों से तुलना करें तो पाएंगे कि सल्फर डाई आक्साईड, नाईट्रोजन डाई आक्साईड और पीएम 1010 के मामलों में यह स्तर तय किये गये मानकों से 1.5 से 4 गुना तक अधिक है।

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