हमारा भूमण्डल
कनग राजा
अंतरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सन् 1995 के मध्य 15 से 24 वर्ष के बेरोजगार युवाओं की संख्या में 14.8 प्रतिशत की वृध्दि हुई हैं, जबकि 30 करोड़ कामजाजी युवा 2 डॉलर प्रतिदिन (करीब 100 रु. प्रतिदिन) की गरीबी रेखा से नीचे अपनी जिन्दगी बिता रहे हैं।
युवाओं के लिए रोजगार के वैश्विक रुझान 2006 शीर्षक से हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट मे अनुमान है कि वर्तमान में युवाओं की पूर्ण क्षमता को उत्पादक कार्य में लगाने के लिए कम से कम 40 करोड़ उत्पादक रोजगार के अवसरों की आवश्यकता होगी।
रिपोर्ट कहती है कि प्रौढ़ों की तुलना में 3 गुना अधिक युवा बेरोजगार हैं और विकासशील देशों में जहां विकसित देशों की तुलना में युवाओं का अनुपात अधिक है, इससे होने वाले नुकसान और भी अधिक स्पष्ट नजर आते हैं। जिन युवाओं को किसी तरह काम मिल भी जाता है, उनकी स्थिति गरीबी रेखा से बहुत नीचे है। अधिकांश युवाओं के काम के घण्टे अधिक हैं उन्हें कम वेतन पर अल्पकालिक या अघोषित ठेके पर काम मिलता है। सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती । काम का प्रशिक्षण भी नहीं मिलता और उनकी आवाज भी दबाई जाती है।
अन्तरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय की महानिदेशक जुआन सोमाविया कहतीं हैं, आर्थिक विकास में वृध्दि के बावजूद उपयुक्त एवं उत्पादक रोजगार उत्पन्न करने में अर्थव्यवस्थाओं की नाकामी विशेष रुप से युवाओं को खल रही है। उनका कहना है हमें उपयुक्त रोजगार की कमी और आर्थिक अस्थिरता स्पष्ट नजर आ रही है, साथ ही यह विश्व की एक महत्वपूर्ण धरोहर- युवा शक्ति की भावी आर्थिक संभावनाओं को भी नुकसान पहुंचा रही है।
अन्तरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय की यह रपट विश्व में युवाओं के लिए रोजगार के रुझानों का पता लगाने एवं युवा श्रम बाजार के संकेतकों के नवीनीकरण करने के प्रयासों की दूसरी कड़ी है। पहली रिपोर्ट सन् 2004 में प्रकाशित हुई थी। वर्तमान रिपोर्ट कहती है कि युवा ही देश की अर्थव्यवस्था को दिशा देते हैं, इसलिए उन पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। वर्ष 2004 की रिपोर्ट में युवाओं की बेराजगारी दर को आधा करके उसे प्रौढ़ दर के आसपास होने का अनुपात लगाया गया था। रिपोर्ट में एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह उभर कर आया कि समूचे विश्व में 15 से 24 वर्ष के 1.1 अरब युवा अपने लिए रोजगार तलाश करने मे नाकाम रहे हैं, या हार कर उन्होंने काम ढूंढना ही बंद कर दिया है या फिर 2 डॉलर प्रतिदिन से भी कम में काम कर रहे हैं। सन् 1995 से 2005 के मध्य रोजगार में लगे और बेरोजगार युवाओं को जोड़ने से प्राभावित युवा श्रम-शक्ति 60.2 करोड़ से बढ़कर 63.3 करोड़ (अर्थात् 5.2 प्रतिशत अधिक) हो गयी है। सन् 2015 तक यह आंकड़ा 65.7 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।
सन् 2005 में रोजगार में लगे युवाओं की संख्या 54.8 करोड़ थी, जिसमें पिछले दस वर्षो में केवल 2.01 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है। रोजगार की तुलना में युवाओं की संख्या तेजी से बढ़ी है, इसलिए कुल युवा आबादी में रोजगार प्राप्त युवाओं के हिस्से (युवा रोजगार बनाम जनसंख्या अनुपात) में सन् 1995 से 2005 के दौरान 51.6 प्रतिशत से घटकर 47.3 प्रतिशत रह गई है। सन् 2005 में युवा बेरोजगारी दर 13.5 प्रतिशत थी (जबकि समूचे विश्व में बेरोजगारी दर 6.5 प्रतिशत और प्रौढ़ बेरोजगारी दर 4.5 प्रतिशत थी)। विश्व में काम करने योग्य कुल आबादी में 15 वर्ष और उससे अधिक के युवाओं की आबादी 25 प्रतिशत होने के बावजूद विश्व के कुल बेरोजगारों में उनका योगदान 44 प्रतिशत है।
एक अनुमान के अनुसार सन् 2005 में विश्व में 12.5 करोड़, अर्थात् 20 प्रतिशत कामकाजी युवा घोर गरीबी में जीवनयापन कर रहे थे। उनकी आय 1 डॉलर प्रतिदिन से भी कम थीं इसी वर्ष लगभग 30 करोड़ कामकाजी युवा यानि कामकाजी व्यक्तियों की आधी आबादी साधारण गरीबी अर्थात् 2 डॉलर प्रतिदिन से कम के स्तर पर जी रहे थे। गौरतलब है कि सन् 2005 में विश्व के लगभग 89 प्रतिशत युवा विकासशील देशों में रह रहे थे।
रिपोर्ट कहती है कि अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र, दक्षिण पूर्व एशिया और प्रशान्त क्षेत्र एवं मध्य पूर्व तथा उत्तरी अफ्रीकी क्षेत्र में युवा श्रम-शक्ति की वृध्दि की जारी रहेगी। इस क्षेत्र में आर्थिक तंगी के कारण पहले ही बेरोजगारी दर बहुत अधिक है। सन् 1995 से 2005 के दौरान इन तीनों क्षेत्रो में युवा श्रम बाजार में क्रमशः 2.4 करोड़ 1.1 करोड़ एवं 8,65,000 युवाओं के बढ़ने की संभावना है।
सन् 1995 से 2005 के मध्य दुनिया के सभी क्षेत्रों में युवा बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। दक्षिण-पूर्व एशिया और प्रशांत क्षेत्र में यह वृध्दि 85.5 प्रतिशत थी, उसके बाद 34.2 प्रतिशत की वृध्दि अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में हुई, लातिनी अमरीका और कैरिबिया क्षेत्र में 23 प्रतिशत मध्य-पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका में 18.2 प्रतिशत तथा दक्षिण एशिया में 16.1 प्रतिशत की वृध्दि हुई है। गत् एक दशक में विकसित राष्ट्र तथा यूरोपीय संघ एकमात्र ऐसा समूह था जिसमें युवा बेरोजगारों की दर में कमी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार इसका कारण सफल रोजगार नीतियां नहीं, बल्कि श्रम-शक्ति में युवाओं की संख्या में कमी आना है।
दक्षिण एशिया में अत्यधिक गरीबी एक व्यापक समस्या है। वहां रोजगार में लगे 10 युवाओं में से 4 गरीब हैं। किंतु रिपोर्ट कहती है कि इस क्षेत्र का दीर्घकालीन रुझान थोड़ा सुधार दर्शा रहा है। गत् दशक में यहां 10 में से 6 युवा 1 डॉलर प्रतिदिन से भी कम पाते है।
रिपोर्ट बताती है कि युवा महिलाओं को श्रम-बाजार में अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि काम करने और काम की तलाश करने वाली महिलाओं की संख्या बहुत कम है। विकाशशील देशों में यह अंतर ज्यादा है, उदाहरण के लिए दक्षिण एशिया में यह ंअंतर 35 प्रतिशत है, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में यह 29 प्रतिशत, लातिनी अमेरीका व कैरीबिया में 19 प्रतिशत एवं दक्षिण-पूर्व एशिया तथा प्रशान्त क्षेत्र में अफ्रीका के उप-सहारा क्षेत्र में यह अंतर 16 प्रतिशत का है। महिलाओं एवं पुरुषों में यह विभेद सांस्कृतिक परंपराओं की वजह से है। जिससे उन्हें घरेलू कामकाज करते हुए बाहर काम करने के अवसर कम ही मिल पाते हैं। जहां रोजगार के अवसर ही कम हों, वहां महिलाएं वैसे भी पिछड़ जाती हैं।
श्रम बाजार में युवाओं के समक्ष उपस्थित चुनौतियों को चिह्नित करने के अलावा यह रिपोर्ट युवा श्रम बाजार के विषय में फैली भ्रान्तियों को भी दूर करने का प्रयास करती है। रिपोर्ट के अनुसार श्रम बाजार की जानकारी के अनुचित विश्लेषण से गलतफहमी उत्पन्न होती है। जैसे - माना जाता है कि बच्चों के लिए अब शिक्षा सर्वसुलभ है। जबकि अन्तरराष्ट्रीय श्रम कार्यालय के अनुसार विकासशील देशों में अनेक बच्चे अब भी स्कूल से दूर हैं और वहां निरक्षरता एक स्थायी समस्या है। यद्यपि यह भी सच है कि अनेक युवा और कई समुदाय बेहतर शिक्षा का लाभ उठा रहे हैं। तथापि यह याद रखा जाना चाहिए कि यह उपलब्धि सर्वव्यापक नहीं है और जिन देशों में शिक्षा महंगी है, वहां मुफ्त और समान शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार कृषि के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र विश्व के कुल रोजगार का 40 प्रतिशत प्रदान करता है और अनेक देशों में यह क्षेत्र प्रमुख रोजगार प्रदाता है। गांवों से शहरों की ओर पलायन बढ़ने के बावजूद युवओं को रोजगार देने वाली नीतियां बनाने और गरीबी उन्मूलन में यह क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता है। मजदूरी की दर बढ़ा कर और ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी कम करके ग्रामीण युवाओं का शहरों की ओर पलायन कम किया जा सकता है।
युवाओं पर निवेश करने की बात तो बार-बार दोहराई जाती है, मगर रिपोर्ट कहती है कि यह कोरी लफ्फाजी भर है, और इस पर अमल नहीं किया जाता है। किंतु अब सरकारों के साथ-साथ रोजगार प्रदाता संगठनों, श्रमिक संगठनों, अन्तरराष्ट्रीय विकास संस्थाओं और अन्य नागरिक संस्थाओं के समक्ष चुनौती है कि वे इस व्यापक उत्पादक क्षमता का उपयोग किस प्रकार करती हैं। इसके लिए रिपोर्ट एकीकृत और केन्द्रित नीतियों तथा कार्यक्रमों पर जोर देती है और साथ ही उन्हें अन्तरराष्ट्रीय सहयोग देने की वकालत भी करती है, ताकि सर्वाधिक संकट में फंसे युवाओं तक पहुंच कर उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके।
सुश्री सोमाविया कहतीं है, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ-साथ अन्य अन्तरराष्ट्रीय संगठन तथा सरकारें भी अब यह मानने लगी हैं कि युवाओं को सम्मानजनक रोजगार प्रदान करके ही उन्हें गरीबी की दलदल से बाहर निकाला जा सकता है। सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में युवाओं को रोजगार देने की नीति महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
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