मंगलवार, 27 फ़रवरी 2007

पेयजल - अमीरों की बपौती

सामयिक


प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव

सामान्य तौर पर देखने से ऐसा लगता है कि भारत में पानी की कमी नहीं है। एक व्यक्ति को प्रतिदिन 140 लीटर जल उपलब्ध है। किन्तु यह तथ्य वास्तविकता से बहुत दूर है। संयुक्त राष्ट्र विकास संघ (यूएनडीओ) की मानव विकास रिपोर्ट 2006 कुछ दूसरे ही तथ्यों को उद्घाटित करती हे। रिपोर्ट जहां एक ओर चौंकाने वाली है, वहीं दूसरी ओर घोर निराशा जगाती है।

इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय आंकड़ा भ्रामक हैं वास्तव में जल वितरण में क्षेत्रों के बीच, विभिन्न समूहों के बीच, निर्धन और धनवान के बीच, गांवों और नगरों के लोगों के बीच काफी विषमता है।

यहां विकासशील देशों की बातें न करके यदि सम्पन्न देश ब्रिटेन की बात करें तो वहां भी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन जल की उपलबधता मात्र 150 लीटर ही हैं। यह भारतीय आंकड़े से कुछ ही अधिक है। यही नहीं पड़ौसी बांग्लादेश की स्थिति तो और भी बद्तर है। प्रत्येक बांग्लादेशी के लिए प्रतिदिन की जल उपलब्धता मात्र 50 लीटर ही है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जल की उपलब्धता पर यदि हम विहंगम दृष्टि डालें तो ज्ञात होता है कि बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां जल की उपलब्धता अत्यंत निराशाजनक है। लाखों ऐसे लोग हैं जिन्हें प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति की दर से 20 लीटर साफ पानी भी उपलब्ध नहीं है।

यदि मुम्बई नगर के सरकारी आंकड़ों पर विश्वास करें तो 90 प्रतिशत लोगों को सुरक्षित जल उपलब्ध है, किंतु मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार मुम्बई नगर की लगभग आधी आबादी गंदी बस्तियों में निवास करती है और अधिकांश आंकड़े सुचीबध्द भी नहीं हैं। इन गंदी बस्तियों के लोग पानी के लिए कुआेंं, टैंकरों और असुरक्षित जल-स्त्रोतों पर निर्भर हैं। गरीब लोगों को लोहे के पाइपों, रिसती हुई अथवा टूटी टोटियों या गंदी हो चली टंकियों के जल से ही काम चलाना पड़ात हैं।

इस रिपोर्ट के अनुसार 15 परिवारों को मात्र एक नल से ही काम चलाना पड़ता है और इस नल से एक दिन में मात्र दो घंटे ही जल आपूर्ति होती है।

चेन्नई में औसत जल आपूर्ति एक दिन में 68 लीटर हैं किंतु टैंकरों पर निर्भर व्यक्ति प्रतिदिन मात्र 8 लीटर जल ही प्राप्त कर पाता है। अहमदाबाद की रिपोर्ट तो और भी चौंकाने वाली है। यहां के 25 प्रतिशत निवासी 90 प्रतिशत जल का इस्तेमाल करते हैं। पानी की अनुपलब्धता की चरम स्थिति तो अधिकांश नगरों में कभी-कभार ही समस्या के रुप में खड़ी होती है। किंतु यह समस्या जल के वितरण की कुव्यवस्था के कारण अधिक होती है।

रिपोर्ट में गुजरात के जल स्वामियों की भी चर्चा की गई है। कुछ ऐसे भू-स्वामी हैं जिन्होें जमीन में गहरे कुएं खोद रखे हैं, इससे आस-पास के गांवों के कुओं का जल सूख गया है। फिर गहरे कुओं के स्वामी आस-पास के गांवों के लोगों को अधिक मूल्य पर जल का विक्रय करते हैं।

आंध्रप्रदेश में दलित महिलाओं को उच्च जाति के लोगों के कुओं से जल की अनुमति तो मिली हुई है किंतु वे स्वयं उन कुओं से जल नहीं खींच सकती हैं। इसके लिए उन्हें दूसरों अर्थात उच्च जाति के लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है और इसके लिए लम्बे समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।

अर्जेन्टाईना, बोलिविया और लेटिन अमेरिका के अनुभवों से पता चलता है कि गैर सरकारी संस्थानों के पास ऐसी जादुई छड़ी नहीं है जिससे कि वे समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकें और सभी के लिए जल वितरण की उचित व्यवस्था कर सकें । अनेक देशों में इन उद्यमों की स्थिति निराशापूर्ण हैं। रिपोर्ट यह भी सूचित करती है कि निर्धनतम व्यक्तियों तक पानी के लिए दी गई सहायता राशि उन तक नहीं पहुंच पाती हैं । उदाहरण के लिए बंगलोर में सबसे धनी 20 प्रतिशत घरों के लिए जल की आर्थिक सहायता राशि उपलब्ध राशि का 30 प्रतिशत जल सहायता राशि ही मिलती है। यह रिपोर्ट संस्तुति करती है कि जल और सफाई के लिए व्यय की दी जाने वाली राशि में वृध्दि की जानी चाहिए क्योंकि इससे स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में और मृत्यु दर में कमी आयेगी जिसके फलस्वरुप लाभांश में बढ़ोतरी होगी।

इस रिपोर्ट में निष्कर्ष के रुप में यह कहा गया है कि स्वच्छ पेय जल और सफाई सभी नागरिकों के लिए मूलभूत आवश्यकता के रुप उपलब्ध होना चाहिए। भारतीय संदर्भो के देखे तो ये कुछ आंकड़ें है जिन पर गौर करने से स्थितियां और भी स्पष्ट होती हैं।

1. यह विडम्बना है कि सैन्य व्यवस्था पर होने वाला खर्च सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 3 प्रतिशत है जबकि जल और सफाई पर मात्र 0.5 प्रतिशत खर्च किया जाता है।

2. भारत में मात्र अतिसार (दस्त की बीमारी) से 4 लाख 50 हजार व्यक्ति प्रतिवर्ष काल के गाल में समा जाते हैं।

3. भारत में महिलाओं की एक संस्था सेवा (सेल्फ ईम्प्लायड वीमेन्स एसोसिएशन) ने शोध के पश्चात् यह पाया कि जल का संग्रह करने वाली महिला यदि अपने जल-संग्रह के समय में मात्र एक घंटे कम कर दे, तो वर्षभर में 100 डॉलर या 4500 रुपयों की अतिरिक्त आय कर सकती हैं।

4. दिल्ली, कराची और काठमाण्डू में 10 प्रतिश से भी कम घर ऐसे हैं जिन्हें प्रतिदिन 24 घंटे जल की आपूर्ति प्राप्त होती है। वैसे आमतौर पर यहां मात्र दो या तीन घंटे प्रतिदिन ही जल उपलब्ध है।

5. यदि दक्षिण एशिया की समस्त आबादी को कम कीमत वाली मूलभूल जल और स्वच्छता की टेक्नोलॉजी उपलब्ध हो जाये तो इसे इससे क्षेत्र में 34 अरब रुपये की बचत होगी।

उपरोक्त तथ्यों के प्रकाश में हम निःसंदेह यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि वर्तमान में जल जो हमारी मूलभूत आवश्यकता है, उसकी हम किस कदर उपेक्षा कर रहे हैं। अब आवश्यकता है कि जल वितरण की अच्छी व्यवस्था की जाए ताकि प्रत्येक भारतीय नागरिक को उसकी प्रतिदिन की आवश्यकता के अनुसार साफ पानी उपलब्ध हो सके, विशेष रुप से पीने के साफ पानी की तो अविलंब नितांत आवश्यकता है।

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