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ध्रुवीय वर्ष की शुरुआत
ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवों की बर्फ पिघलने और समुद्र का जलस्तर बढ़ने के नए प्रमाणों के बीच दुनिया के 60 देशों ने आर्कटिक और अंटार्कटिक क्षेत्र का सबसे बड़ा वैज्ञानिक अनुसंधान शुरु किया है।
वैज्ञानिकों ने 1 मार्च से 2007-2008 को अंतरराष्ट्रीय ध्रवीव वर्ष (आईपीवाय) के रुप में घोषित किया है। इसकी शुरुआत के मौके पर ओस्लो में करीब 3000 बच्चों मे हिममानव की आकृतियाँ बनाई और नारे लगाए कि हमें सर्दियाँ वापस करो।
नॉर्वे के प्रधानमंत्री जेन्स स्टोल्टेन बर्ग ने कहा कि हम ध्रुवों पर जलवायु में परिवर्तन बहुत स्पष्ट देख रहे हैं तथा इस अनुसंधान से हमें ग्लोबल वार्मिंग से निपटने में निर्णायक समझ प्राप्त हो सकती है। पूर्व में जारी ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित रिपोर्ट के बाद संयुक्त राष्ट्र ने 2007-08 को ध्रुवीय वर्ष घोषित किया ताकि दो वर्षो की समय सीमा के भीतर पर्यावरण के बारे में हर एक देश की रुचि जागृत हो सके और धरती के बढ़ते तापमान को कम करने के लिए कुछ किया जा सके। ध्रुवीय वर्ष के लिए बनाई गई 228 अनुसंधान परियोजना में लगभग पचास हजार विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे।
नॉर्वे के ध्रुवीय संस्थान ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आर्कटिक में
म.प्र. के 140 पक्षियों की जानकारी सीडी में कैद
खग प्रेमियों और खग विशेषज्ञों के लिए खुशखबरी है। प्रदेश में पाए जाने वाले 140 पक्षियों के स्वर, चित्र व उनसे संबंधित वैज्ञानिकों एवं आधारभूत जानकारी एक पीयू नामक सीडी में संकलित की गई है।
जैव-विविधता बोर्ड ने भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के सहयोग से इस सीडी को तैयार किया है। सीडी में पक्षियों के आवास, पाए जाने वाले स्थान और प्रत्येक पक्षी की ध्वनि स्पेक्टोग्राफ का विवरण है, जिसकी मदद से एक समूह के विभिन्न पक्षियों की ध्वनि की तुलना भी की जा सकती है। इसके अतिरिक्त बोर्ड द्वारा प्रदेश में फारेस्ट आउलेट कासफल सर्वेक्षण किया गया है।
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