गुरुवार, 9 जुलाई 2009

१३ लोक चेतना

भारत में होम्योपैथी - चुनौतियां एवं सम्भावनाएं
डॉ. अनुरूद्र वर्मा
विश्व की महानतम चिकित्सा पद्धति होम्योपैथी ने लगभग दो सौ वर्ष के अंतराल मेंजन सामान्य में अपनी उपयोगिता सिद्घ कर दी है । मानव को पूर्ण रूप से रोग मुक्त करने के उद्देश्य से परिपूर्ण इस पद्धति का आविष्कार जर्मनी में १० अप्रेल १७५५ को जन्मे डॉ. हैनीमैन द्वारा १७९० में किया गया थ । डॉ. हैनीमैन एलोपैथिक चिकित्सा पद्घति में एम.डी. उपाधि प्राप्त् थे और उन्होंने तत्कालीन प्रचलित उपचार पद्धति में व्याप्त् कमियों को दूर करने के लिए होम्योपैथी का आविष्कार किया था । जर्मनी से भारत तक की होम्योपैथी की यात्रा बहुत लम्बी नहीं है । डॉ. हैनीमैन के जीवनकाल में ही सन् १८१० में यह पद्धति बंगाल में प्रारंम हो गई थी । प्रारम्भिक काल में लोग शौकिया भाव से मुफ्त में होम्योपैथी से उपचार करते थे । धीरे-धीरे होम्योपैथी के प्रभाव एवं विशिष्टताओं से प्रभावित होकर देश के अनेक भागों में कुछ एलोपैथिक चिकित्सक होम्योपैथी के द्वारा उपचार करने लगे । यह होम्योपैथी की विशिष्टता ही कही जाएगी कि तमाम विरोधों, असहयोग एवं सरकारी संरक्षण के अभाव में भी उसने लम्बे समय तक अपनी यात्रा सफलता पूर्वक तय की है । होम्योपैथी की ओर लोगों का झुकाव एवं उसकी उपयोगिता को देखते हुए भारत सरकार द्वारा सन् १९४५ में गठित समिति ने सन् १९४९ में होम्योपैथी को मान्यता प्रदान करने की अनुशांसा कर दी थी । भारत सरकार ने सन् १९५१ में होम्योपैथी को स्वतंत्र चिकित्सा पद्घति के रूप में मान्यता प्रदान कर दी । होम्योपैथी के माध्यम से देश की एक बड़ी आबादी को कम खर्च में प्रभावी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है । इसलिए भारत सरकार द्वारा होम्योपैथी को राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में शामिल किया गया है । इस समय देश में लगभग ३ लाख पंजीकृत होम्यापैथिक चिकित्सक हैं जो देश के विभिन्न भागों में चिकित्सा कार्य कर रहे हैं । वैसे तो इन पंजीकृत चिकित्सकों को अन्य चिकित्सा पद्घतियों के चिकित्सकों की भांति अधिकार एवं सुविधाएँ प्राप्त् हैं परन्तु सरकारी सेवा में उन्हें ऐलोपैथी के चिकित्सकों के समान सुविधाएँ नहीं मिल रही हैं । विभिन्न पंचवर्षीय योजनाआें मे ंहोम्योपैथी की शिक्षा शोध एवं गुणवत्ता आदि के लिए ठोस कदम उठाए गए हैं । सरकारी मान्यता मिलने के पश्चात् शुरूआत में अनुभव के आधार पर चिकित्सकों का पंजीकरण किया गया । बाद में निजी क्षेत्र में अनेक मेडिकल कॉलेज स्थापित हुए । मान्यता मिलने के बाद केन्द्र सरकार ने होम्यापैथी की शिक्षा के मानकीकरण , चिकित्सकों के पंजीकरण एवं चिकित्सकों की व्यावसायिक आचार संहिता तैयार करने के लिए सन् १९७३ में केन्द्रीय होम्योपैथी परिषद् का गठन किया । परिषद ने लगभग ३० वर्ष के अपने कार्यकाल में होम्योपैथी शिक्षा में एकरूपता लाने के लिए अनेक प्रावधान किए । वर्षोंा से देश में भिन्न- भिन्न नामों से विभिन्न अवधियों के पाठ्यक्रम चल रहे थे । परंतु कठिन परिश्रम के बाद परिषद ने इस विसंगति को दूर करने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त् की है और अब देश मे केवल साढ़े पांव वर्षीय डिग्री (बी.एच.एम.एस.) पाठ्यक्रम चलरहे हैं । सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि परिषद् ने होम्योपैथी से संबंधित विभिन्न विषयों में एम.डी. आरम्भ करने की अनुमति प्रदान की है तथा कुछ अन्य विषयों में एम.डी. पाठयक्रम प्रारम्भ करने की तैयारी चल रही है । परिषद ने कॉलोजों के लिए न्यूनतम मापदण्ड भी निर्धारित किए हैं । इस समय देश में १८३ होम्योपैथिक कॉलेज चल रहे हैं । होम्योपैथी की शिक्षा ज्यादातर निजी संस्थाआें के हाथ में है । केवल ३० कॉलेज ही राज्य सरकारों द्वारा संचालित हैं जो विभिन्न विश्वविद्यालयों से संबंद्ध हैं । अभी तक देश के होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेजों में शिक्षण एवं चिकित्सालय की सुविधाएँ पर्याप्त् नहीं है जिससे होम्योपैथी में जिस स्तर की गुणात्मक शिक्षा की आवश्यकता है वह छात्रों को नहीं उपलब्ध हो पा रही है । होम्योपैथी कॉलेजों के सुदृढ़ीकरण के लिए और प्रयास आवश्यक हैं । इसके लिए सरकार, निजी प्रबंधन तंत्र एवं परिषद को ठोस कदम उठाना पड़ेगा । भारत सरकार ने होम्योपैथी के विकास की जरूरत को समझते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत आयुष विभाग का गठन किया है । इसके फलस्वरूप भारतीय चिकित्सा पद्धतियों एवं होम्योपैथी के प्रचार - प्रसार में तेजी आई है । भारत सरकार ने होम्योपैथी में उच्च् स्तरीय शिक्षा के लिए सन् १९७५ में कोलकाता में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी की स्थापना की थी, जो तमाम शैक्षिक कठिनाईयों के बावजूद भी कार्य कर रहा है । किसी भी चिकित्सा पद्घति की विशिष्टताआें एवं उसके उपचारक गुणों को उजागर करने के लिए शोध महत्वपूर्ण साधन होता है । होम्योपैथी मेंशोध के लिए भारत सरकार ने सन् १९७८ में केन्द्रीय होम्योपैथिक अनुसंधान परिषद् की स्थापना की जिसने देश भर में स्थापित अपने ३० शोध केन्द्रों के माध्यम से क्लीनिकल रिसर्च, ड्रग रिसर्च, लिटरेरी रिसर्च आदि क्षेत्रों में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की है । परंतु होम्योपैथी में जिस तेज़ी से शोध कार्य होने चाहिए वह नहंी हो पा रहा है । होम्योपैथी में शोध कार्योंा में गति न आ पाने का प्रमुख कारण शोध सुविधाआें की कमी है । पशु चिकित्सा के क्षेत्र में होम्योपैथी के प्रभाव पर शोध किया जाना आवश्यक है । वातावरण में बदलाव ने भी रोगों की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है । विगत वर्षोंा में मनुष्य ज़्यादा विषैले पदार्थोंा के सम्पर्क मेंआया है । इसके कारण रोगों में वृद्धि हुई है । इसके अतिरिक्त आधुनिक औषधियों ने अनेक रोग उत्पन्न किए हैं , अनेक रोग रूप बदलकर सामने आ रहे हैं । इनके उपचार में होम्योपैथी की भूमिका के सम्बंध में शोध किया जाना आवश्यक है । राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में अभी होम्योपैकी को अपनी पूरी उपायेगिता सिद्ध करनी है तथा सरकार को स्वास्थ्य कार्यक्रमों में होम्योपैथी को पूरी भूमिका देनी चाहिए । किसी चिकित्सा पद्धति की सफलता उसकी औषधियों की गुणवत्ता पर आधारित होती है । औषधियों की गुणवत्ता की जांच एवं मानक निर्धारण के लिए भारत सरकार ने सन् १९७५ में आधुनिक सुविधाआें से युक्त होम्योपैथिक फार्मोकोपिया लेबोरेटरी की स्थापना गाज़ियाबाद में की थी । जिसने इस क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण कार्य किये हैं । परंतु अकेलेएक संस्था के माध्यम से सारे देश में मानकों एवं गुणवत्ता को बनाए रखना कठिन कार्य है । इसलिए इस संस्था को और विस्तार देने की जरूरत है । केन्द्र सरकार ने होम्योपैथिक औषधियों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए अच्छी उत्पादन प्रक्रिया व्यवस्था लागू की है और औषधियों के लेबल पर एक्सपायरी तारीख अंकित करने का प्रावधान किया है । देश में होम्योपैथी की लोकप्रियता का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि देश के विभिन्न भागों में चिकित्सा कार्य कर रहे लगभग ३ लाख चिकित्सक करोडों रोगियों का उपचार करते हैं । देश में लगभग १० हजार सरकारी दवाखाने, २५० से अधिक होम्योपैथिक चिकित्सालय जनता को स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध करा रहे हैं । आई.सी.एम.आर. के एक सर्वेक्षण के अनुसार १४ प्रतिशत से अधिक लोग होम्योपैथी से उपचार कराने में विश्वास रखते हैं । इस संस्था के अनुमान के अनुसार होम्योपैथी की लोकप्रियता एलोपैथी के बाद दूसरे नम्बर पर है तथा होम्योपैथी लगभग ८० प्रतिशत रोगों का उपचार एवं बचाव मुहैया कराती है । देर से ही सही, भारत सरकार के आयुष विभाग ने जच्च-बच्च स्वास्थ्य के क्षेत्र में होम्योपैथी की संभावनाआें को देखते हुए र्राष्ट्रीय अभियान प्रारम्भ किया है । इससे जच्च - बच्च मृत्युदर में कमी आएगी तथा शिशुआें एंव माताआें के स्वास्थ्य की बेहतर देखभाल हो सकेगी । केन्द्र एवं राज्य सरकारों द्वारा होम्योपैथी के लिए उपलब्ध कराई जा रही सेवाआें के अतिरिक्त कुछ निजी एवं स्वायत्तशासी संस्थाआें ने भी अपने यहां होम्योपैथी चिकित्सा की सुविधा उपलब्ध कराने की व्यवस्था की है । इनमें एन.टी.पी.सी., रेल्वे, राज्य बीमा कर्मचारी निगम प्रमुख हैं । कुछ राज्य सरकारों ने अपने प्रदेश में शासकीय होम्योपैथिक चिकित्सालयों की स्थापना की है । कुछ राज्यों में पंचायत राज, ज़िला परिषद्, नगर पालिका आदि में भी होम्योपैथिक चिकित्सालय स्थापित किए गए हैं परंतु अभी होम्योपैथी की सुविधाआें को और बढ़ान की आवश्यकता है । राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत कुछ राज्यों में तो सामुदायिक एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर होम्योपैथिक चिकित्सा अधिकारियों की नियुक्ति कर ली गई है परंतु कई राज्य अभी पीछे हैं । इस काम में तेज़ी लाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे एक छत के नीचे सभी पद्धतियों की सुविधाएं ज़रूरतमंद लोगों को उपलब्ध हो सकेगी । राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में होम्योपैथी को जो स्थान मिलना चाहिए वह नहंी मिल पा रा है जबकि होम्योपैथिक चिकित्सक एवं उसकी औषधियां राष्ट्रीय कार्यक्रमों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं तथा सबको स्वास्थ्य का संकल्प पूरा करने में सहयोग कर सकते हैं। होम्योपैथी आज विश्व में ९० से अधिक देशों मेंे लोकप्रिय है । होम्योपैथी ओषधियों का वर्तमान विश्व बाजार १३५ अरब रूपये से अधिक का है, तथा इसमें वार्षिक वृद्धि दर २५ प्रतिशत है । इस प्रकार इसकी लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है । ***

1 टिप्पणी:

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

पोस्ट के लिये आभार !!