शनिवार, 11 जुलाई 2009

९ प्रदेश चर्चा

उ.प्र. : धरती के गर्भ में हलचल
- डॉ.सुनील कुमार अग्रवाल
ग्लोबल वॉर्र्मिंगं एवं जलवायु परिवर्तन का मुद्दा सुर्खियों में चल ही रहा है । अब मौसम का मिजाज बदल गया और ऋतुचक्र्र गड़बड़ा गया । बादल भी ज्यादा ही झमाझम बरसे तो टूट गये कई दशकों के रिकार्ड । सूखी धरती में जब अत्यधिक मात्रा में पानी पहुँचा तो उसके आँचल में पड़ने लगी है दरार । उत्तर प्रदेश के कईजिलो में जमीन दरकने की अनेक घटनाएं प्रकाश में आई । कही-कही तो दरारें इतनी अधिक चौड़ी हो गई कि वे खाई बन गई। प्रभावित क्षेत्रो के लोग भयभीत हो उठे तथा अपने क्षेत्रों से पलायन करने लगे । बुंदेलखण्ड इलाके में दरारें कुछ अधिक गहरी हैं ।इसके अलावा हमीरपुर, इटावा, जालौन, लखनऊ, इलाहाबाद , रायबरेली तथा कानपुर के देहाती परिक्षेत्रों मे भी यह भू-धंसान हुआ है । अब जिला मुरादाबाद की तहसील चन्दौसी से सटे बदायूँ जिले के गाँव में जाफरपुर के मजरा धीमरपुरा में धरती फट गई जहाँ गेहूँ की फसल से खाली हुए खेत पर ६२ फुट लम्बी तथा एक फुट से तीन फुट तक चो़ड़ी दरार बन गई है । दरार की गहराई १० फुट से भी अधिक है । यद्यपि कुछ लोग घटना को दैवीय आपदा समझ कर मनौती मना रहे है । किन्तु वैज्ञानिक तथ्य कुछ और ही बयाँ करते हंै । धरती धंसने की घटनाआें से उत्पन्न चिंता में उत्तर प्रदेश सरकार ने आपात बैठक बुलाकर स्थिति पर विचार विमर्श किया क्योंकि भू-धंसान की घटनाओ के कारण दिल्ली-हावड़ा रेल टै्रक तथा उसके साथ-साथ डली बरौनी तेल पाइप लाइन भी खतरे की सीमा में आ गई हैं । यद्यपि सरकार की तरह से कोई प्रतिकिया तत्काल ही नही मिली है किन्तु इस भू-गभीर्य समस्या पर गहन चर्चा एवं चितां चल रही है । यद्यपि कोई भी प्राकृतिक हलचल एवं आपदा वस्तुत: प्रकृति की स्वनियामक सत्ता अथवा उसकी विवश्ता के रूप में ही सामने आती है, फिर भी उन तथ्यों की अनदेखी नहीं की जा सकती है, जो ऐसी विकट समस्याआें के कारण बनते है। धरती धंसने और जमीन दरकने की इन घटनाओ के पीछे भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन ही मुख्य है । हाल के वर्षो में लगातर सूखा पड़ने और जल ससंाधनो के अतिशय दोहन से भूजल का स्तर काफी नीचे चला गया है जो एक से तीन फुट प्रतिवर्ष की दर से नीचे जा रहा है । शासन की तरफ से आकलन कर अनेक इलाको को ``डार्क जोन'' घोषित भी किया जा रहा है फिर भी चोर्यवृत्ति से भूजल का दोहन जारी है । यही तो हमारी धरती की लाचारी है । भू-जल निचले स्तर पर पहुँचन के कारण धरती का रस रूपी जल सूख जाता है । मिट्टी की नमी खत्म होती है वह कही भुर भुरा उठती है तो कहीं अतिशय सख्त होती है । मिट्टी में मृदा कणों को जोड़े रखने की ताकत भी कम हो जाती है । सामान्य स्थिति में जहाँ सरसता रहती थी वहॉ अब जल के अभाव मेें जहरीली गैसे भर जाती है । धरती को जहरीली बनाया है अंधाधु्रंध इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरको ने तथा कीटनाशको ने । जब वर्षा का जल धरती में पहुँचा तो गैस उसका भार सह नहीे पाई और धरती तोड कर बाहर आईं। कुछ ऐसा ही बयाँ किया है भूगोल विद् एवं कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा । दरअसल धरती फटने की धटनाआें के पीछे कुछ कारणों का सम्मिलित प्रभाव परिलक्षित लगता है । जो कुछ आपदा जनित कारण प्रकाश में आये है उनमें भू-कंपीय लहरों का उठना तथा भू-गर्भीय प्लेटों का विवर्तन भी है क्योकि प्रभावित क्षेत्र भू-कम्प की दृष्टि से भी अत्यधिक संवेदनशील है । जलवाष्प गैसों का दबाव भी एक बड़ा कारण है तथा धरती पर भारी निमार्ण और भूस्खलन भी इसके कारकों मेंे शुमार हैं ।अधिकतम जल दोहन से विशिष्ट प्रकार की भूगर्भीय हलचलें धरती मेंे पैदा होती है । रेडियो धर्मी तत्वों से बनी संवहनी धाराआें के साथ-साथ धरती की गर्भीय ताप जनित ज्वाला भी जिम्मेदार है जो विस्फोटक स्थिति में आने से पूर्व अपने पार्श्व प्रभाव दिखलाती है । जानकारो के अनुसार पहले केवल काली मिट्टी वाले खेतो में जमीन फटने की घटनाआेंे की पुनरावृत्ति होती थी किन्तु अब तो यह भयाभय धटनाएं हर प्रकार की मिट्टी वाली धरती पर व्यापकता से हो रही है । यद्यपि धरती धंसाव की घटनाआें के कारणां को आवश्यक जाँच के बाद ही खुलासा होगा किन्तु पुनरावृत्ति रोकने के उपाय केे रूप में भूजल ्रदोहन पर तत्काल रोक लगानी होगी क्योकि यदि हम लोग अभी न चेते है तो परेशानियाँ और भी बढ़ जायेंगी । ``डार्क जोन'' में घोषित आपदाग्रस्त इलाको में सरकारी नलकूपों के लगाये जाने पर तो रोक लग चुकी है किन्तु निजी स्तर पर बोरिगं पर अभी तक कारगर अंकुाश नहीं लगा हैं। बोरिंग कम करने के बजाये उसे और भी गहराई तक किया जा रहा है तथा मशीन की लम्बाई बढने लगे हंै । जल का पुर्नभरण काफी कम है तथा मशीन की लम्बाई बढानें लगे हैं । जल का पुर्नभरण काफी कम है यदि वाटर रीचार्ज हो तो परिक्षेंत्र ड्राई एण्ड डार्क से बाहर निकले । एक बात और जो भू-धंसाव के सम्बध में दिखलाई दे रही है कि यह घटनाएं नदियों के आसपास अधिक हो रही है । बदायू जिले के धीमरपुरा की घटना चन्दौसी के पास सोत नदी के समीपवर्ती खेत में हुई तथा इसके आलवा बादयूँ का ही एक और क्षेत्र जो चन्दौसी के समीप है और अरिल नदी के किनारे है वह है आसफपुर जहाँ गन्ने के खाली खेत में भूगर्मिक हलचलों से १० वर्ग फुट ओर ३० वर्ग फुट के ग े बन गये इन ग ों के आसपास के दर्जन भर से अधिक यूकिलिप्टस के पेड़ भी धराशायी हो गए । सोत नदी एवं अरिल नदी दोनों ही अपनें अस्तित्व बनाये रखने को संघर्ष कर रही हैं इनमें जल स्त्रोत सूख जाने के कारण सोत नदी लगभग सुप्त् हो चुकी है तो अरिल नदी प्रदूषण की झेलती हुई खेतों में ही समा कर दम तोड़ रही है। एक अन्य और घटना जिला मुरादाबाद के कंुदरके रायब नगला गाँव में मक्का के खेत में प्रकाश में आई हैं जहाँ आधा दर्जन स्थानों पर दो से तीन फिट गहरे ग े दिखलाई पड़े है यहाँ भी यूकेलिप्टिस ही इन ग ो के आसपास खड़ा है । धरती के अंदर बहुत कुछ घटित होता है । जब प्रवेशित चट्टानों में भरा जल सूख जाता है तो भूगर्भ में रिक्तता उत्पन्न होती है जमीन खोखली एवं पोली होने लगती है। इस दरम्यान अधिक वर्षा तथा ऊपरी दबाव एवं गैसीय रिसाव से धरती धंस जाती है और प्रलय आती है । धरती धंसाव के आसन्न संकट के संदर्भ में निष्कर्षत: यही कहा जा सकता है कि हम प्रकृतिपरक बनें । प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में संयम बरतें । धरती एवं प्रकृति से अन्य उपादानित उपहारों को त्याग के साथ ग्रहण करें अन्यथा यूँ बारम्बार धरती के फटने से हमारी श्री समृद्धि भी धरती में समा जायेगी। ***

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