औद्योगिक पशु पालन से पैदा होती महामारियां
-सुनील
दुनिया में अचानक एक नया आतंक पैदा हो गया है । स्वाइन फ्लू या सुअर - ज्वर नामक एक नई संक्रामक बीमारी से पूरा विश्व आतंकित दिखाई दे रहा है । कई देशोंमें हाई अलर्ट घोषित कर दिया गया है । हवाई अड्डों पर विशेष जांच व निगरानी की जा रही है । यह बीमारी मेक्सिको से शुरू हुई थी, जहंा २०० मौतें हो चुकी हैं । वहां के राष्ट्रपति ने पूरे देश में ५ दिन का आर्थिक बंद घोषित कर दिया था और लोगों को घरों में रहने की सलाह दी थी। स्कूल-कॉलेज, सिनेमाघर, नाइट क्लब बंद कर दिए गए हैं और फुटबाल मैच रद्द कर दिए गए हैं । बगल में संयुक्त राज्य अमेरिका में भी दशहत छााई है और राष्ट्रपति ओबामा ने स्थिति से निबटने के लिए संसद से १५० करोड़ डॉलर मांगे हैं । अमरीका के अलावा कनाडा, स्पेन, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैण्ड, इस्राइल, ऑस्ट्रिया, स्विट्जलैण्ड, नीदरलैण्ड आदि में भी यह संक्रमण फैल चुका है । बाकी दुनिया में भी खलबली मच गई है । मिस्र ने तो सावधानी बतौर ३ लाख सुअरों को मारने के आदेश जारी कर दिए हैं । भारत के सारे हवाई अड्डों पर बाहर से आने वाले यात्रियों की जांच की जा रही है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि स्वाइन फ्लू एक महामारी बन सकता है । पहले यह बीमारी सिर्फ सुअरों में होती थी, अब इंसानों में फैल रही है। एच१एन१ नामक नया वायरस बन गया है, जिसकी प्रतिरोधक शक्ति इंसानों के शरीर में नहीं है । इसलिए मौतें हो रही हैं। इसका कोई टीका भी नहीं है और टैमीफ्लू नाम की एक ही दवाई है । पिछले कुछ दशकों में पालतु पशुआें के जरिए इंसानों में बीमारी फैलने का यह चौथा- पांचवा मामला हे । इसके पहले एन्थ््रेाक्स, सार्स, बर्ड फ्लू, मैडकाऊ डिसीज़ आदि से अफरा-तफरी मची थी। इंसान इन बीमारियों से इतना आतंकित है कि इनकी ज़रा भी आशंका होने पर हज़ारों - लाखों मुर्गियों, गायों, सुअरों को मार दिया जाता है । बर्ड फ्लू के डर से भारत, में असम, पं. बंगाल, महाराष्ट्र आदि में पिछले कुछ वर्षोंा में लाखों मुर्गियों को मौत के घाट उतारा गया है । मैड काऊ रोग के चक्कर में ब्रिटेन व अन्य देशों में लाखों गाय - बछड़ों का कत्ल कर दिया गया। आखिर ऐसे हालात पैदा कैसे हुए ? इनका सीधा संबंध आधुनिक ढंग से औद्योगिक पशुपालन से है, जिसमें बड़े - बड़े फार्मोंा में छोटे-छोटे दड़बों या पिंजरों में हजारों-लाखों पशुआें को एक जगह पाला जाता है । उनको घूमने -फिरने की कोई जगह नहंी होती है । अक्सर काफी गंदगी होती है । काफी रसायनयुक्त आहार खिलाकर, दवाइयां एवं हार्मोन देकर,कम से कम समय में उन्हंे ज्यादा से ज्यादा बढ़ाने की कोशिश होती हैं । इन्हें फार्म के बजाए फैक्टरी कहना ज्यादा सही होगा । पालतू मुर्गियों व बतखों में बर्ड फ्लू की बीमारी काफी समय से चली आ रही है । किंतु नए हालात में इसका रोगाणु एच५एन१ नामक नए घातक रूप में बदल गया है , जो प्रजाति की बाधा लांघकर इंसानों को प्रभावित करने में सक्षम है । विश्व खाद्य संगठन ने इसकी उत्पत्ति को चीन और दक्षिण - पूर्व एशिया में मुर्गी पालन के तेज़ी से विस्तार और औद्योगीकरण से जोड़ा है । पिछले पंद्रह वर्षोंा में चीन में मुर्गी उत्पादन दुगुना हो गया है । थाईलैण्ड, वियतनाम और इण्डोनेशिया में मुर्गी उत्पादन अस्सी के दशक की तुलना में तीन गुना हो गया है।संभव है कि बर्ड फ्लू का यह नया रोगाणु इंसान से इंसान को संक्रमित करने लगेगा तब यह एक महामारी का रूप धारण कर सकता है । विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इससे निपटने की व्यापक तैयारी की ज़रूरत बताई है । मैड काऊ रोग का किस्सा तो और भयानक है । गायों की इस बीमारी (बीएसई) में मस्तिष्क को काफी क्षति पहुंचती है , इसलिये इसे पागल गाय रोग कहा गया है । यह इसलिए फैल रहा है क्योंकि गायों को उन्हीं की हडि्डयों, खून और अन्य अवशेषों का बना हुआ आहार खिलाया जा रहा है । आधुनिक बूचड़खानों में गायों आदि को काटने के बाद मांस को तो पैक करके बेच दिया जाता है किन्तु बड़े पैमाने पर हडि्डयां, आंतड़ियां, खून आदि का कचरा निकलता है , जिसको ठिकाने लगाना एक समस्या होता है । इस समस्या से निपटने का एक तरीका यह निकाला गया है कि इस कचरे का चूरा करके पुन: गायों के आहर में मिला दिया जाए । रोग के व्यापक प्रकोप के बाद ब्रिटेन ने इस पर पाबंदी लगाई है। मगर उत्तरी अमेरिका सहित कुछ स्थानों पर यह प्रथा चालू है । इस तरह के रोग से ग्रस्त गाय का मांस खाने वाले इंसानों को भी यह रोग हो सकता है । इसी तरह भोजन से फैलने वाले कुछ अन्य संक्रमित रोगों का सम्बंध भी आधुनिक फैक्टरीनुमा पशुपालन से जोड़ा जा रहा है । मांसाहार शुरू से मनुष्य के भोजन का हिस्सा रहा है और भोजन के लिए पशुपालन हजारों सालों से चला आ रहा है । किंतु आधुनिक औद्योगिक पशुपालन एक बिल्कुल ही अलग चीज़ है , जो काफी अप्राकृतिक, बर्बरतापूर्ण, प्रदूषणकारी और पूंजी प्रधान है । इसने लालच व क्रूरता की सारी मर्यादाएं तोड़ दी हैं । इसमें पशुआें को खुले चारागाहों या खेतों में नहीं चराया जाता और न ही उन्हें कुदरती भोजन दिया जाता है । ये परिवर्तन खास तौर से पिछली शताब्दी के उत्तरार्ध में हुए हैं । इस अवधि में दुनिया में मांस का उत्पादन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तेज़ी से बढ़ा है । फैक्टरीनुमा पशुपालन पहले मुर्गियां का शुरू हुआ, उसके बाद सुअरों का नंबर आया । मिडिकिफ नामक एक अमरीकी लेखक ने कंपनियों के आधुनिक मांस कारखानों पर अपनी किताब में इन्हें `पीड़ा और गंदगी का निरंतर फैलता हुआ दायरा ' कहा है । एम.जे. वाट्स ने इनकी तुलना `उच्च् तकनीकी यातना गृहों से की है । टोनी वैस ने अपनी ताज़ा पुस्तक में सुअर फार्मोंा का वर्णन इस प्रकार किया है- `` इन फैक्टरी फार्मोंा में मादा सुअर अपना पूरा जीवन धातु या कांक्रीट के फर्श पर बने छोटे-छोटे खांचों में बच्च्े जनते और पालते बिता देती है । ये खांचे इतने छोटे होते हैं कि वे मुड़ भी नहीं पातीं । शिशुआें को तीन-चार सप्तह में मां से अलगकर मादा सुअरों को फिर से गर्भ धारण कराया जाता है । शिशुआें को अलग कोठरियों में रखकर एन्टी-बायोटिक दवाईयों और हारमोन युक्त जीन परिवर्तित आहार दिया जाता है ताकि उनका वज़न तेजी से बढ़े। इस कैद के कारण होने वाले रोगों और अस्वाभाविक व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए काफी दवाईयां दी जाती हैं । उनकी पूंछ काट दी जाती है और इससे होने वाली गंदगी व दूषित कचरे को नदियों या समुद्री खाड़ियों में बहा दिया जाता है ।'' ए.कॉकबर्न ने दुनिया के मांस के इतिहास पर अपने एक पर्चे में संयुक्त राज्य अमरीका के एक प्रमुख सुअर - मांस उत्पादक राज्य उत्तरी कैरोलीना के बारे में भी ऐसे ही हालात बयान किए हैं । बर्ड फ्लू, स्वाईन फ्लू और मैड काऊ रोग दरअसल एक बड़ी और गहरी बीमारी के ऊपरी लक्षण हैं । वह बीमारी है भोग, लालच व गैर बराबरी पर आधारित पूंजीवादी सभ्यता की , जिसमें शीर्ष पर बैठे थोड़े से लोगों ने अपने मुनाफे एवं विलास के लिए बाकी लोगों, प्राणियों तथा प्रकृति पर अत्याचार करने को अपना करोबार बना लिया है । आप यह भी कह सकते हैं कि ये नयी महामारियां उन निरीह प्राणियों या प्रकृति के प्रतिशोध के तरीके हैं । ***
एचआईवी वायरस से बनेगी एड्स की दवा !
एड़स खत्म करने के लिए इस बीमारी के लिए जिम्मेदार एचआईवी वायरस से ही दवा तैयार किए जाने की तैयारी है । इस शोध कार्य में ब्रिटेन के विश्वस्तरीय वैज्ञानिकों के साथ म.प्र. में सागर के डॉ. हरिसिंह गौर विवि के पूर्व छात्र डॉ. प्रेमनारायण गुप्त भी शामिल रहेगें । दवा तैयार करने का कार्य वैज्ञानिकों का दल ब्रिटेन की क्वींस यूनिवर्सिटी में करेगा । एड्स वैक्सीन की खोज में लगे में लगे हुए अंतरराष्ट्रीय संगठन ने डॉ. गुप्त का चयन पोस्ट डॉक्टरल कार्य के लिए किया है । डॉ. गुप्त ने बताया कि एड्स की रोकथाम के लिए होने वाली इस रिचर्स वर्क में इस रोग के लिए जिम्मेदार एचआईवी वायरस के एलीमेट को लेकर नैनो पार्टिकल किया जाएगा, जो एक बार फिर एड्स से पीड़ित मरीज की प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करेगा । डॉ. गुप्त ने फार्मेसी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसपी व्यास के निर्देशन में पीएच-डी. की है । उन्हें लक्ष्यभेदी हेपेटाइटिस वैक्सीन पर कार्य करने के लिए रैनवैक्सीन पर कार्य करने के लिए रैनवैक्सीन साइंस फाउंडेशन द्वारा युवा वैज्ञानिक का पुरस्कार दिया जा चुका है ।
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