गुरुवार, 9 जुलाई 2009

२ हमारा भू-मण्डल

दक्षिण एशिया में ताजे पानी का संकट
- यूएनईपी की रिपोर्ट
भौतिकवाद के इस दौर में हम यह भूल रहे हैं कि मनुष्य प्रकृति का एक हिस्सा है, नियंता नहीं । पूरी पृथ्वी पर मीठे या ताजे पानी की उपलब्धता अत्यंत सीमित है परंतु सबसे ज्यादा दुरूपयोग भी इसी प्राकृतिक संसाधन का हो रहा है । दक्षिण एशिया की तीन महत्वपूर्ण नदी घाटियों पर संयुक्त राष्ट्र संघ का अध्ययन स्थानीय समुदाय पर यह आरोप लगा रहा है कि वे जल का अत्यंत दोहन कर रहे हैं । परंतु वह इस बात को रेखांकित नहंी कर रहा है कि विकास का जौ भौतिकवादी स्वरूप हमने अपनाया है उसमें ऐसी परिस्थितियों का निर्माण अवश्यंभावी है । अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन और संबंधित राष्ट्रों के मध्य अपर्याप्त् सहयोग के कारण दक्षिण एशिया में स्थित विश्व की महानतम नदीघाटियां (बेसिन) आज संकट में है । गौरतलब है कि इनके आसपास ७५ करोड़ से अधिक लोग निवास करते है । ये निष्कर्ष संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण र्काक्रम (यूएनईपी) और एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एआईटी) द्वारा अपनी रिपोर्ट `दक्षिण एशिया: ताजा पानी संकट में' की बानगी भर है । रिपोर्ट में दक्षिण एशिया की चुनिंदा महत्वपूर्ण नदीघाटियों में स्थित ताजे जल के स्त्रोतों का अध्ययन किया गया है । इस रिपोर्ट में जल संसाधन विकास और इसके प्रबंधन पर पड़ने वाले प्रमुख संकटों की पहचान और इससे निपटने में आने वाली मुश्किलों का आकलन भी किया गया है । दक्षिण एशिया में दुनिया की एक तिहाई आबादी निवास करती है जिसमें से कुछ दुनिया के सबसे गरीब लोग भी शामिल हैं जिन्हें पृथ्वी के ताजा पानी के स्त्रोतों में से ५ प्रतिशत से भी कम उपलब्ध है । रिपोर्ट में दक्षिण एशिया की निम्न तीन अंतरदेशीय नदीघाटियों का अध्ययन किया गया है ये हैं गंगा, ब्रह्मपुत्र, मेघना (जीबीएम) नदीघाटी (जिसका फैलाव बांग्लादेश, भूटान, चीन , भारत और नेपाल) सिंधु नदी घाटी (अफगानिस्तान, चीन , भारत, नेपाल व पाकिस्तान और हेलमण्ड नदीघाटी (जो कि अफगानिस्तान, इरान व पाकिस्तान में बहती है ।) संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव एवं यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक अचिम स्टेनर का कहना है कि ये नदी प्रणालियां केवल महत्वपूर्ण आर्थिक शिराएं भर नहंी है बल्कि ये दक्षिण एशिया की सामाजिक एवं पर्यावरणीय सम्पत्ति भी है। इनके टिकाऊ प्रबंधन में निवेश एशिया की वर्तमान व भविष्य की समृद्धि में निवेश है और संसाधन से भरपूर टिकाऊ हरित अर्थव्यवस्था हेतु इसकी एक केन्द्रीय एवं निर्णायक भूमिका है ।' दिल्ली टिकाऊ विकास सम्मेलन में इस रिपोर्ट को जारी करने वाले यूएनईपी के क्षेत्रीय संचालक एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र के प्रतिनिधि यंग वू पार्क का कहना है कि `दक्षिण एशिया में जहां ये तीन अंतर्देशीय नदीघाटियां स्थित है और जिसके आसपास इस क्षेत्र के आधे अर्थात करीब १.५ अरब लोग निवास करते हों और उनमें से कुछ दुनिया के सबसे गरीब लोग भी हैं , के लिए पानी स्वास्थ्य एवं जीविका का महत्वपूर्ण स्त्रोत है । एआईटी के डॉ. मुकुन्द बाबे का कहना था कि इस महत्वपूर्ण स्त्रोत को जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि , उपभोग, के गैर जिम्मेदाराना तरीकों, उपलब्ध जलस्त्रोतों का दोषपूर्ण प्रबंधन , अधोसंरचना में अपर्याप्त् निवेश के साथ ही साथ पर्यावरणीय परिवर्तन खासकर जलवायु परिर्वन से गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है । उनका यह भी कहना था कि यह स्थिति इस क्षेत्र में व्याप्त् गरीबी के कारण और भी बदतर हो सकती है । रिपोर्ट में स्त्रोतों पर पड़ने वाले भार, विकास का दबाव, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और प्रत्येक नदीघाटी में दोषपूर्ण प्रबंधन को भी एक चुनौती बताया गया है। इस रिपोर्ट के निष्कर्षोंा में बताया गया है कि`जलवायु परिवर्तन से घाटियों के क्षेत्र में लम्बी अवधि में पानी की भयंकर कमी आ जाएगी क्योंकि हिमालय के ६७ प्रतिशत ग्लेशियर पिघल रहे हैं जो कि इन नदियों के पानी की पूर्ति करते हैं । सिंधु और हेलमण्ड नदीघाटी के जलस्त्रोत भी संकट में हैं इसकी मुख्य वजह है क्षेत्र में वनस्पति का कम होना और जल की गुणवत्ता में गिरावट आना । सिंधु नदीघाटी में स्त्रोतों पर सर्वाधिक दबाव पड़ रहा है । इस नदीघाटी में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता के हिसाब से सर्वाधिक दोहन हो रहा है । जीबीएम और हेमलेण्ड नदीघाटियों में अभी बहुत अधिक दबाव नहीं है पर असमान दोहन को रोकने के लिए पूरे धाटी क्षेत्र में विकास और प्रबंधन की प्रक्रिया को सुधारने की आवश्यकता है । जीबीएम घाटी मे ंजल प्रबंधन अब सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने आ रहा है । जीबीएम और सिंधु नदीघाटी के अनेक क्षेत्रामें नलकूप के माध्यम से अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल स्तर प्रतिवर्ष २ से ४ मीटर की रफ्तार से नीचे गिर रहा है जिससे मिट्टी और पानी की गुणवत्ता को खतरा पैदा हो गया है । इतना ही नहीं इसके परिणामस्वरूप भू-जल में खारे पानी का मिश्रण भी हो गया है । रिपोर्ट में कहा गया है कि भविष्य में जल संबंधित गंभीर संकटों से बचने के लिए नीतिगत ध्यान देना और जलस्त्रोतों पर जलवायु परिवर्तन से पढ़ने वाले प्रभावों के हेतु किए जा रहे शोध में तेजी लाना एवं अधोसंरचना और प्रबंधन तकनीकों पर विचार करना आवश्यक है । रिपोर्ट में संबंधित देशों के मध्य बेहतर सहयोग और सम्मिलित घाटी प्रबंधन पर जोर दिया गया है । `फ्रेश वाटर अण्डर थ्रेट : साउथ एशिया' यूएनईपी द्वारा इस क्षेत्र के तीन उप अपंचलों क्रमश: उत्तर पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया पर किया जाने वाला श्रृंखलाबद्ध अध्ययन है जिसकी प्रथम कड़ी के रूप में यह रिपोर्ट जारी हुई है । अफ्रीका की चुनी हुई नदीघाटियों पर भी इस तरह का अध्ययन पूर्ण हो चुका है । इस अध्ययन का उद्देश्य एशिया में सरकारों, गैर सरकारी संगठनों एवं विकास एजेंसियों के माध्यम से जल प्रणाली को बेहतर बनाना है । इसके अतिरिक्त ये संबंधित देशों को पानी की मांग की पूर्ति हेतु जानकारी भी उपलब्ध करवाएेंगें । ***
पर्यावरण संरक्षण की नयी पहल
मध्यप्रदेश प्रदेश के धार नगर के हटवाड़ा क्षेत्र के नागरिकोंने रक्तदान को पेड़-पौधों के लिए जलदान से जोड़कर पर्यावरण के प्रति प्रेम का ऐसा अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है । यहाँ के लोग जरूरतमंद लोगों के जीवन रक्षा के लिए वर्षोंा से रक्तदान करते आ रहे है । रक्तदान अपने आप में बड़ा काम है, लेकिन हटवाड़ा निवासियों के दिल में मानव जीवन के साथ-साथ वनस्पति के जीवन के प्रति भी करूणा गहरे तक पैठी है । इस तपती धूप और भीषण जलसंकट के मौसम में पेड़-पौधों का जीवन बचाने के लिए उन्होंने तय किया कि रक्तदान के बदले जलदान के लिये सहयोग राशि स्वेच्छा से देने के लिए लोगों को प्रेरित किया जाए ।

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