कृषि की दशा और दुर्दशा
देविन्दर शर्मा
सन् २००८ मेंविश्वव्यापी खाद्यान्न संकट हुआ था । ३७ देशों में इसके गंभीर असर दिखाई दिए थे तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारतीयों ने ज्यादा खाना शुरू कर दिया है इसलिए दुनिया में खाद्यान्न पदार्थोंा की कमी हुई है । वास्तविकता यह है कि अमेरिका मे ६५ प्रतिशत लोग मोटापे से पीड़ित हैं जबकि भारत की इतनी ही जनसंख्या कुपोषण से पीड़ित है । अनुवांशिक बदलाव का यह खेल बहुत खतरनाक है । इससे स्वास्थ्य पर पड़ने वाले परिणामों का अंदाजा लगाना कठिन है । बी.टी. बैंगन को मानव के लिए सुरक्षित बताना धोखा है यह तर्क आधारहीन है कि क्षारीय पेट वाले कीड़ों पर ही बीटी जीन का प्रभाव पड़ेगा जबकि अम्लीय पेट वाले मनुष्यों पर इसका कोई प्रभाव नहीं होगा । पेट के अलावा पूरा मानव शरीर क्षारीय होता है और बीटी जीन को शरीर में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता है । प्रधानमंत्री का वह बयान भी बेमानी है, जिसमें उन्होंने आनुवाशिंक बदलाव वाली फसलों से उत्पादन बढ़ने की बात कही थी । बीटी बैंगन के समर्थन में जड़ और तना छेदक इल्ली (रूट एण्ड शूट बोअरर) से नुकसान को बढ़ाचढ़ा कर बताया जा रहा है । जबकि इससे १० प्रतिशत से भी कम नुकसान होता है । अब इस बात का राज खुल गया है कि रासायनिक और मशीनीकृत खेती को बढ़ावा सिर्फ इनसे जुड़े उद्योगों को फायदा पहुँचाने के लिए किया गया था । लेकिन उसका खामियाजा हमारी उन्नत खेती और हमारे किसानों भुगतान पड़ा । भारतीय कृषि की दुर्दशा की असली वजह इसका अमेरीकी मॉडल है । १९६० के दशक में देश में कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना अमेरिकी अनुदान दाता संस्था यूएसएड द्वारा की गई थी । पाठ्यक्रम भी अमेरिका से ही आया। हमारे कृषि वैज्ञानियों ने इसे पढ़ा और बाद में हमें यही सिखाया गया कि भारत की खेती पिछड़ी है और हमें अमेरिकन मॉडल के अनुरूप ही खेती करनी चाहिए । लेखक द्वय बैकमेन और बैरी द्वारा लिखित भूमि विज्ञान की एक पाठ्य पुस्तक, जो कि अमेरिकी मिट्टी के हिसाब से लिखी गई है लेकिन करीब ४ दशकों तक इस पुस्तक को ही हमारे देश में पढ़ाया गया । हमारे कृषि वैज्ञानिक इसी के आधार पर कृषि में प्रयोग करते रहे जबकि अमेरिकी और भारत की मिट्टी में जमीन आसमान का अंतर है । अमेरिकी मॉडल की असफलता के बाद अब जब जैविक खेती की बात कही जा रही है तो वर्मीकम्पोस्ट के लिए भी अफ्रीका, चीन, फिलीपिंस और आस्ट्रेलिया से केंचुए मँगवाए जा रहे हैं । खेती की तरह हमने अपनी पशु प्रजातियों को भी अच्छा नहीं माना । गाय, बकरी, भेड़, ऊँट, गधा, खरगोश आदि को विदेशी नस्लों से संकरित कर हमने अपनी नस्लें ही खत्म कर दीं । अब हमें यह भी पता नहीं की हमारे पास किस नस्ल के पशु हैं। देश में गायों की ३० नस्लें थीं और ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों के लिए उम्दानस्लें थीं । खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट के हवाले से यह कहा जा सकता है कि ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है । वहाँ भारतीय नस्ल की गायें होल्सटन फ्रिजीयन (एचएफ) और जर्सी गाय के बराबर दूध देती है । आजकल खेती के मशीनीकरण की बात जोर-शोर से की जा रही है जबकि ट्रेक्टर का खर्च १० एकड़ या उससे अधिक बड़ी जोत वाले किसान ही वहन कर पाते हैं । लेकिन दिखावे के लिए पंजाब में छोटे किसानों ने भी फायनेंस पर ट्रेक्टर खरीद लिए । वहाँ हर दूसरे किसान के पास ट्रेक्टर है । आँकड़ों के मुताबिक इस समय पंजाब में जरूरत से ७० प्रतिशत अधिक ट्रेक्टर उपलब्ध है । अमेरिकी पद्धति की खेती में अधिक कृषि निवेश और उपज में कमी से आज पंजाब का किसान भी बदहाल है । देश के आम किसान परिवार की औसत मासिक आय २०१५ रूपए है जिसमें ९०० रूपये उसके श्रम की कीमत है । अमेरिका में मात्र ७ लाख किसान बचे हैं वहीं हमारे देश में ७० करोड़ लोग किसान परिवारों से हैं । अमेरिकी पेटर्न पर अब हमारी सरकार ७० प्रतिशत किसानों को खेती से बाहर निकालना चाहती है । रोजगार के कारण हो रहे विस्थापन से समाज में अशांति होगी । पिछले ६ वर्षोंा में जबरदस्त आर्थिक विकास के बावजूद नक्सलवाद प्रभावित जिलों की संख्या १६१ से बढ़कर २३० को चुकी है । इसका संबंध कृषि क्षेत्र की उपेक्षा से भी है। अगर हम विकल्प की बात करें तो आंधप्रदेश के २३ जिलों में से २१ में जैविक खेती हो रही है । बीते खरीफ मौसम में १४ लाख एकड़ में जैविक खेती हुई जो चालू रबी मौसम में बढ़कर २० लाख एकड़ हो गई है तथा ३ लाख किसान इससे जुड़ें हुए हैं । महिला किसानों के स्वयं सहायता समूहों ने वहाँ ५ हजार करोड़ की बचत की है । वास्तव में यह है नई कृषि नीति । इससे धरती का तापमान नियंत्रित होगा, हमारा स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और नक्सलवाद भी खत्महोगा । लेकिन हमारे देश के कृषि वैज्ञानिक इस प्रकार की खेती के खिलाफ हैं क्योंकि इसका समर्थन करने से उनकी अमेरिका की यात्राएँ और कंपनियों से मिलने वाले लाभ बंद हो जएंगे । तथाकथित आधुनिक खेती ने किसानों को चक्रव्यूह में फँसा दिया है । इससे बाहर निकलने का रास्ता अमेरिकी पेटर्न की खेती के समर्थकों ने बताया ही नहीं । हम आत्मकेन्द्रित हो गए है । हमें अपनी गिरेबान में झाँकना चाहिए । खुद को बदल कर हम समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं । यह हैरानी की बात है कि छठे वेतन आयोग के लिए राज्य और केन्द्र सरकार द्वारा १ लाख ५० हजार करोड़ का भार वहन कर लिया जाता है, उद्योगपतियो को ४ लाख १८ हजार करोड़ रूपए की टेक्स में छूट पर कोई सवाल नहीं उठाता लेकिन राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना पर ४० हजार करोड़ खर्च करने की बात पर काफी हो हल्ला किया जाता है । यह उस स्थिति में हो रहा है जब अर्जुन सेनगुप्त समिति के रिपोर्ट के अनुसार देश की ७७ प्रतिशत आबादी २० रूपए प्रतिदिन की आय पर जिंदा है ।***
रेडियो कॉलर देगा बाघों का पता
तेजी से विलुप्त् होते बाघों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए सुंदरवन प्रशासन ने अब बाघों पर रेडियों कॉलर लगाने का फैसला किया है । बाघों के व्यवहार और गतिविधियों के वैज्ञानिक अध्ययन के लिए यह फैसला किया गया है । प.बंगाल के संुन्दरवन बायोस्फीयर रिजर्व के निदेशक प्रदीप व्यास के मुताबिक पिछले दिनों दक्षिणी २४ परगना जिले के गोसाबा इलाके में एक बाघिन पर कॉलर लगाया गया है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें