जलमग्न हो गया न्यू मूर द्वीप
बंगाल की खाड़ी में स्थित न्यू मूर नामक छोटा-सा द्वीप पूरी तरह जलमग्न हो चुका है, जिसने इस आशंका को फिर से जन्म दे दिया है कि समुद्र जल स्तर बढ़ने से एक दिन कहीं मॉरीशस, लक्षद्वीप और अंडमान द्वीप समूह ही नहीं, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे मुल्कों का भी अस्तित्व समाप्त् न हो जाए । न्यू मूर को भारत में पुरबाशा और बांग्लादेश में दक्षिण तलपट्टी के नाम से भी जाना जाता है । इस द्वीप के स्वामित्व को लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच विवाद भी रहा है हालाँकि यह द्वीप निर्जन ही रहा है । भारत ने १९८१ में नौ सेना का जहाज और फिर बीएसएफ के जवानों को वहाँ तैनात करके वहाँ तिरंगा झंडा फहराया था । अब जैसे प्रकृति ने खुद हस्तक्षेप करके विवाद का अंतिम हल कर दिया है । इससे पहले १९९६ में सुंदरवन में लोहाछरा नामक द्वीप समुद्र में डूब गया था । घोड़ामार ऐसा दूसरा द्वीप है जिसका करीब आधा हिस्सा जलमग्न हो चुका है। जलमग्न द्वीप के लोगों को शरणार्थी का दर्जा दिया जाता है भारतीय बाघ के लिए मशहूर संुदरवन डेल्टा के अनेक द्वीप, जिनमें कुछ निर्जन तो कुछ मनुष्य बस्तियों वाले हैं, २०२० तक पूरी तरह जलमग्न हो जाएँगे । जलवायु परिवर्तन के कारण मालद्वीप के नए राष्ट्रपति मोहम्मद नशीर ने भावी खतरे को पहचानकर अपने द्वीप देश को नई जगह बसाने के लिए जमीन खरीदने की बात कही थी, जिसने सबको चौंका डाला था। दरअसल, कई द्वीप देशों के लिए यह एक वास्तविक समस्या बनने वाली है । दुनिया में अब तक १८ द्वीप पूरी तरह जलमग्न हो चुके है । अकेेले २००७ में २ करोड़ ५० लाख लोग द्वीपों के डूबने के कारण विस्थापित हुए जिनमें १० हजार की आबादी वाला भारत का लोहाचार द्वीप भी शामिल है । यहीं नहीं, तुवालू नामक देश सहित ४० मुल्कोंं में समुद्र का जल स्तर बढ़ने से हजारों लोगों के बेघर होने का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। मानवीय प्रयत्नों से इसे अब रोका नहीं जा सकता लेकिन मनुष्य को अपने सामूहिक भविष्य के लिए जलवायु परिवर्तन की समस्या को रोकने के लिए तत्काल कदम तो उठाने ही पड़ेंगे ।भारत ने खोजे प्लास्टिक नाशक जीवाणु उत्तराखंड राज्य में पंतनगर स्थित गोविंद वल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के कचरे को विघटित (सड़ाने) करने वाले जीवाणुआें की खोज की है । इस खोज से दुनिया के लिए खतरा बनते जा रहे प्लास्टिक कचरे से निजात पाने में वैज्ञानिकों को आशा की किरण दिखाई दे रही है । विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों ने इन जीवाणुआें की खोज केन्द्र सरकार की एक परियोजना के तहत की है । वैज्ञानिकों के मुताबिक प्लास्टिक न तो नष्ट होता है न सड़ता है । वहीं प्लास्टिक के कचरे को जलाने से ऐसी गैसें निकलती हैं जो फेफड़े के कैंसर का कारण बन सकती हैं । विश्वविद्यालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की प्रमुख डॉ. रीता गोयल और डॉ. एमजीएच जैदी ने इस विषय पर कई सालों तक शोध किया। इस दौरान इन वैज्ञानिकों ने मिट्टी में पाए जाने वाले ७८ ऐसे जीवाणुआें की खोजें कीं, जिनके जोड़ों से प्लास्टिक का विघटन हो सकता है । हिमालयी क्षेत्र की मिट्टी में पाए जाने वाले स्यूडोमोनास, एसिटीनों वैक्टर बेसिकल जैसे जीवाणु इसमें सहायक हो सकते हैं । वैज्ञानिकों ने ७८ जीवाणुआें से इस काम के लिए २८ कंसोर्टियम (जीवाणु का मिश्रण) तैयार किए हैं । डॉ. गोयल कहती हैं कि प्लास्टिक के परमाणुआें के बीच बंधन इतना मजबूत होता है कि उसे खत्म करना मुश्किल है। लेकिन उसे इन जीवाणुआें का मिश्रण नष्ट कर देता है । इसके लिए शर्त यह है कि इन जीवाणुआें क्का एक निश्चित अनुपात में ही मिलाया जाए । डॉ. गोयल ने बताया कि हमने जीवाणुआें के जो मिश्रण (वैक्टिरियल कंसोर्टियम) तैयार किए हैं, वे सभी तरह के प्लास्टिक परमाणुआें के बंधनों को तोड़कर नष्ट कर सकते हैं । जीणुआें के इस मिश्रण की डॉ. एमजीएच जैदी ने प्रयोगशाला में जाँच-पड़ताल की है । शोध मेें यह सिद्ध हो गया है कि प्लास्टिक के साथ मिश्रण जमीन मेंे गाड़े जाने के बाद तीन सप्तह में यह २४ फीसदी तक विघटित कर देते हैं । विवि प्रशासन अब इस शोध का पेटेंट कराने में जुट गया है । उनका कहना है कि इस कंसोर्टियम की जानकारी तभी सार्वजनिक की जाएगी, जब इस शोध का पेटेंट हो जाएगा । दुनिया के प्रदूषण में प्लास्टिक के कचरे का योगदान ३० फीसदी तक है। कुलपति प्रो. वीएस बिष्ट ने बताया कि यह शोध दुनिया की कई वैज्ञानिक पत्र-पत्रिकाआें में प्रकाशित हुआ है । शोध को देश के कई प्रमुख शोध संस्थाआें ने अपनी जाँच में सही पाया है । इनमें लखनऊ स्थित सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, आईआईटी रूकड़ी और नेशनल सेंटर ऑफ सेल्यूलर साइंस पूणे के नाम शामिल है ।शराब में डुबाई जा रही हैं सब्जियां पहले सब्जियों में सुई के माध्यम से दवाई और रासायनिक पदार्थ डालकर उसका आकार बड़ा दिया जाता था । लौकी,कद्दू, बैंगन,परवल आदि में इसका अधिक उपयोग होता था । इसी क्रम में अब देशी शराब छिड़ककर सब्जियों का उत्पादन बढ़ाने का नया सिलसिला शुरू हुआ है । किसान अब अधिक उत्पादन के लिए सब्जियों पर देशी शराब का छिड़काव कर रहे हैं जिससे कम लागत में अधिक उत्पादन हो जाता है और किसानों को अधिक आय हो रही है । कीटनाशक के छिड़काव की भी जरूरत नहीं होती है । खेती में प्रतिदिन नई - नई तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है । बाजारों में सब्जियों में दिख रहा ज्यादा हरापन संभवत: इसी तकनीक का परिणाम है । गोरखपुर जिले के खजनी तहसील के भिटहा गांव में कुछ किसान वर्तमतान समय में बड़ी मात्रा में हरी सब्जियों का उत्पादन करके अच्छी आय प्राप्त् कर रहे हैं, लेकिन ये सब्जियां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रही हैं । भिटहा गांव के शिवमंगल नामक किसान ने बताया कि बैंगन, लौकी, भिण्डी आदि हरी सब्जियों के पौधों को लगाने के बाद उसके उपर देशरीशराब का छिड़काव किया जाता है उसने कहा कि पौधों में फूल आने के बाद शराब का छिड़काव करना जरूरी हो जाता है । देशी शराब का छिड़काव करने से सब्जियां जल्द बड़ी हो जात हैं और उनका उत्पादन भी अधिक होता है । इस संबंध में कृषि विशेषज्ञ डॉ. एसपी सिंह ने बताया कि शराब में निकोटीन अधिक होने के कारण हरी सब्जियां तेजी से विकास करती है जिसके कारण किसान इसका इसतेमाल कर रहे हैं । दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विवि के वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रवक्ता मालविका श्रीवास्तव ने बताया कि देशी शराब डालने से पौघे जल्दी बड़े हो जाते हैं और उत्पादन भी अधिक होता है , लेकिन शराब डाली गई सब्जी के इस्तेमाल से स्वास्थ्य को नुकसान भी पहुंचता है । कोकाकोला कंपनी पर जुर्माना कोकाकोला और पेप्सी कोला जैसे शीतल पेयों की बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ हमेशा किसी-न-किसी विवाद में फँसी रहती हैं । जिस तरह कोकाकोला देश में दोबारा लौटी और जिस तरह उसने स्थानीय रूप से कोला बनाने वाली कंपनियों को खरीदा तथा उनके लोकप्रिय ब्रांडों का उत्पादन खुद शुरू किया, उस पर ही काफी विवाद रहा है । ये कंपनियाँ इतनी बड़ी हैं कि इनकी पैसे की ताकत इनके बारे में उठे सारे विवादों को ठंडा कर देती हैं । भारत में भी यह बार-बार हुआ । केरल का एक विवाद जरूर अभी भी कोकाकोला का पीछा कर रहा है, जिसमें उसे २१६.२६ करोड़ रूपए का मुआवजा देने के लिए कहा गया है । भारत में भूमिगत जल का स्तर लगातार गिरते जाने की समस्या लगभग राष्ट्रीय है। उसमें अगर कोला कंपनी का संयंत्र कहीं लग जाए तो उसकी पानी की जरूरत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है । यही केरल के पलक्कड़ जिले के प्लाचिमाड़ा स्थित कोकाकोला के संयंत्र बनने पर हुआ । इस संयंत्र ने बड़े पैमाने पर भूमिगत जल का दोहन शुरू किया और पानी के उपयोग के बाद जो कीचड़ पैदा हुआ, उसे किसानों को खाद के रूप में दिया । इस तथाकथित खाद से फसल को नुकसान ही हुआ कयोंकि इसमें कैल्शियम तथा सीसे की मात्रा खतरनाक हद तक थी । संयंत्र के कारण गाँव में जल का स्तर घटा, पेयजल प्रदूषित हुआ, खेती को नुकसान हुआ और लोगों का स्वास्थ्य भी बिगड़ा । प्लाचिमाड़ा पंचायत के जागरूक लोगों ने इसे लगभग राष्ट्रीय महत्व का मसला बना दिया तो केरल की सरकार ने एक अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में नौ सदस्यीय समिति बनाई जिसने अपनी रिपोर्ट में इस कंपनी पर २१६.२६ करोड़ का दावा ठोका है । २००४ से यह संयंत्र बंद है । बहरहाल कोकाकोला कंपनी इन आरोपों को स्वीकार करने को तैयार नहीं है । इसी तरह पेप्सी कोला का भी पलक्कड़ जिले में स्थित संयंत्र विवादित है । इसे अपना उत्पादन ६० प्रतिशत तक घटा देने को कहा गया है । पेप्सी कंपनी लिमिटेड ने भी इन आरोपों से इंकार किया है । बहरहाल लगता है कि कंपनियाँ लंबी लड़ाई लड़ेंगी । बहरहाल स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे मेंे अनेक विवाद है, उन्हें किसी किस्म का प्रोत्साहन देकर आखिर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? उन्हें किसी किस्म का प्रोत्साहन देकर आखिर हम क्या सिद्ध करना चाहते हैं ? देश की युवा पीढ़ी को नुकसान पहुँचाने वाला ऐसा पेय राष्ट्रीय हित में तो किसी भी तरह नहीं हैं फिर इसे हमेशा के लिए बंद क्यों नहीं किया जा रहा है ।***
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