पुराने परमाणु बिजलीघरों का क्या होगा ?
नरेन्द्र देवांगन
परमाणु ऊर्जा का उपयोग चाहे मानव कल्याण हेतु किया जाए या विनाशक अस्त्रों के निर्माण के लिए, यह बात निर्विवाद रूप से सिद्ध होती जा रही है कि इसका प्रयोग मानव के अस्तित्व के लिए एक गंभीर खतरा है । परमाणु शक्ति की खोज के पश्चात् पिछले ६० वर्षोंा में लगभग ५०० परमाणु बिजलीघर सक्रिय हुए हैं । इनमें से कई तो अपनी आयु पूर्ण कर बंद पड़े हैं । अब समस्या यह है कि बंद पड़े परमाणु संयंत्रों का क्या किया जाए । उनके दूषित अवयवों तथा परमाणु अपद्रव्यों को कहां ठिकाने लगाया जाए ? वैज्ञानिक इस संकट से उबरने का प्रयास कर रहे हैं। तथापि यह हम सभी के सोचने का विषय है कि यदि रेडियोधर्मी तत्वों एवं परमाणु कचरे की वृद्धि ऐसे ही होती रही तो हमारी भावी पीढ़ियों का क्या होगा ? परमाणु संयंत्रों को उनके कार्यकाल की समािप्त् पर ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता । परमाणु बिजलीघरों की कार्यावधि वढ़ने के साथ-साथ इसके अवयवों एवं उपकरणों की रेड़ियोधर्मिता बढ़ती जाती हैं । अत: इस तरह रेडियोधर्मिता से दूषित हुए उपकरणों एवं हिस्सों को निरापद विधि द्वारा वातावरण एवं जनसमुदाय से अलग करना चाहिए । इसके रेड़ियोधर्मी अवयव कई हज़ारों वर्षोंा तक जन समुदाय के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकते है । परमाणु संयंत्र के प्रत्येक अवयव में दूषित रेडियोधर्मी तत्व रहता है। इन दूषित तत्वों का स्त्रोत सक्रिय इंर्धन का विघटन होता है, तब कुछ न्यूट्रॉन भटक जाते हैं । ये न्यूट्रॉन अपने चारों ओर उपस्थित पदार्थोंा के नाभिकों से टकराते हैं और संयंत्र के कोर एवं कांक्रीट के सुरक्षा कवच में ट्रेस एलीमेंट उत्पन्न कर इन्हें रेडियोधर्मी कर देते हैं । न्यूट्रॉन से प्रभावित ये अवयव नष्ट इंर्धन से करीब एक हज़ार गुना अधिक रेडियोधर्मी होते हैं । इन्हें साधारण विधि से साफ नहीं किया जा सकता । परमाणु संयंत्र के रेडियोधर्मी पदार्थोंा की मात्रा और क्रियाशीलता को आंकना एक कठिन काम है । परमाणु संयंत्र की आयु पूरी हो जाने के बाद क्या करना है, यह तुरन्त ही तय करना चाहिए । संदूषण को नष्ट कर इसके अवयवों को नष्ट करना आवश्यक है । कई दशकों तक इसको ऐसे ही बंद पड़े रहने देना चाहिए, जिससे कि इसमें उपस्थित रेडियोधर्मी तत्व विघटित होकर खतरनाक स्थिति मेंे दूर हट जाए या फिर इसके आवरण अथवा गुंबज को स्थायी रूप से वैसे ही छोड़ दिया जाना चाहिए । परमाणु संयंत्र को नष्ट करने हेतु किसी भी विधि को चुना जाए, वास्तव में संयंत्र रद्द करना एवं नष्ट करना एक जटिल कार्य है क्योंकि बंद पड़े परमाणु संयंत्र में उपस्थित रेडियोधर्मी पदार्थ सफाई करने वालों के लिए खतरनाक होते हैं । इन लोगों को दोनों प्रकार के विकिरणों का सामना करना पड़ता हैं । चाहे वे दूषित तत्व से हों अथवा सक्रिय तत्व से हो । बड़े पैमाने पर अपद्रव्यों की उत्पत्ति तो परमाणु ऊर्जा के उत्पादन के दौरान होती है, परंतु चिकित्सालयों एवं प्रयोगशालाआें द्वारा भी काफी मात्रा में कम तीव्रता वाले रेडियोधर्मी अपद्रव्य तो कुछ दशकों में ही विघटित हो जाते हैं, किंतु कुछ हज़ारोंवर्षोंा तक खतरनाक बने रहते हैं । पृथ्वी पर ही अपद्रव्यों को नष्ट करने के लिए इनके मलबे एवं टुकड़ों की पैकिंग करके या तो उन्हें परमाणु संयंत्र के पास ही रखा जाता है या विशेष प्रकार के संग्राहकों में अन्य स्थान पर रखा जा सकता है । जापान और कनाडा में यह विधि अधिक प्रचलित है । कई युरोपीय देश भी कम तीव्रता वाले परमाणु कचरे को पृथ्वी के अंदर या विशेष प्रकार के गारे से बनी खाइयों में डाल देते हैं । अमरीका में भी यही प्रक्रिया अपनाई जाती थी, किन्तु कमज़ोर अनुरक्षण के कारण पानी प्रदूषित होने लगा था । अत: यह विधि बंद कर दी गई । पृथ्वी के अंदर खाई में फेंकने के पूर्व उसमें एक्स-किरणें प्रवाहित की जाती हैं, ताकि उसमें रेडियोधर्मिता का स्तर ज्ञात होसके ।उसके पश्चात कचरे का चूरा बनाकर उसे कैप्सूलों में भरा जाता है और कांक्रीट की खाइयों में दबा दिया जाता है । स्पेन, जापान तथा ब्रिटेन ने इस तकनीक को अपनाया है । अंतरिक्ष में फेंके जाने वाले कचरे में युरेनियम से भी अधिक रेडियोधर्मी पदार्थ होते हैं, जिनकी अर्द्ध आयु बहुत अधिक होती है । इसलिए इन्हें हज़ारों वर्षोंा तक जैवमंडल से अगल रखना पड़ता है । अब ऐसे कचरे को परमाणुघरों में संग्रह करके रखा जाता है । अर्द्ध आयु अधिक होने के कारण इन्हें पृथ्वी के अंदर दबाया जाना खतरनाक सिद्ध हो सकता है । उच्च् तीव्रता वाले परमाणु कचरे को नष्ट करना परमाणुघर को बंद करने से अधिक महत्वपूर्ण है । संयंत्र के एक चौथाई इंर्धन को प्रति वर्ष बदल देना चाहए । चला हुआ इंर्धन मूल युरेनियम से अधिक रेडियोधर्मी होता है जो कि लगभग तीन लाख वर्ष तक प्रभावी रहता है । अत: इस इंर्धन को हटाने के लिए सुरक्षा कवच होना अति आवश्यक है । साथ ही इसे दूर संचालन विधि द्वारा हटाया जाना चाहिए । अभी तक ऐसे उपयुक्त स्थान नहीं मिले हैं, जहां इस इंर्धन को फेंका जा सके । अन्य रसायनों की भांति परमाणु कचरे एवं इंर्धन को नष्ट नहीं किया जा सकता है । स्वास्थ्य संबंधी खतरे से बचा जा सकता है, बशर्ते कि परमाणु कचरे को जैवमंडल से तब तक दूर रखा जाए, जब तक कि इसकी रेडियोधर्मिता खतरे से नीचे न हो जाए । कई देशों के वैज्ञानिकों ने निश्चय किया है कि वे इस रेड़ियोधर्मी कचरे को पृथ्वी की सतह से ७०० मीटर से २००० मीटर तक अंदर ले जाकर गाड़ देंगे । इसके उपयुक्त स्थल के चुनाव में निम्न बातों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है । पहला, वहां पर खनिजों का अभाव हो जिससे भविष्य में वहां खुदाई की संभावना न रहे । दूसरा, जल प्रदूषण की संभावना न हो अन्यथा जल प्रदाय पर प्रभाव पड़ेगा । तीसरा, वहां कम से कम भूकंप आने की संभावना हो । इस तरह के स्थल चुनाव में जनता की सहमति प्राप्त् करना भी आवश्यक है । कुछ दशक पूर्व चीन पश्चिम जम्रनी का कुछ परमाणु कचरा अपने यहां इस शर्त पर रखने को तैयार हुआ था कि जर्मनी उसे दो परमाणु संयंत्र की कीमत के बराबर कऱ्ज देगा । सोवियत रूस का व्यवहार इस मामले में उदार है क्योंकि वह उन देशों का परमाणु कचरा अपने यहां रखने को तैयार हो गया है, जिन्हें उसने परमाणु संयंत्र बेचा था । इन तथ्यों से भी यही निष्कर्ष निकलता है कि यदि किसी देश को परमाणु कचरे के लिए स्थान सुलभ हो जाता है तो उसे परमाणु संयंत्र बंद करने में बहुत आसानी हो जाएगी । अन्यथा कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा । अनुपयुक्त इंर्धन इंर्धन एवं परमाणु कचरे को हटाने के बाद परमाणु संयंत्र एवं परमाणुघर को नष्ट करने की प्रक्रिया को जितना महत्व दिया जाना चाहिए, उतना अभी नहीं दिया जा रहा है । परमाणु संयंत्र बंद होने के पश्चात तेज़ी से विघटित होने वाले तत्व अधिक समस्यामूलक हैं । इनमें कोबाल्ट और सीज़ियम के आइसोटोप बहुतायत में रहते हैं । परमाणु उद्योग को जीवित बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि संयंत्र के रद्द हुए ईधन एवं पुराने संयंत्र को हटाने की तकनीक का विकास किया जाए । आज स्थिति यह हो रही है कि पुराने संयंत्रों को हटाने की तकनीक के अनुसंधान कार्य ने परमाणु संयंत्र विकास की धारा को गतिहीन बना दिया है । जब तक पुराने परमाणुघरों को उखाड़ने एवं रद्द इंर्धन को हटाने की तकनीक का विकास नहीं हो जाता, तब तक यही कहा जा सकता है कि करोड़ों रूपयों की लागत वाला यह उद्योग अधूरे ज्ञान पर आधारित है । जब तक किसी विस्तृत तकनीक का विकास संयंत्रों को नष्ट करने के लिए तथा उपयुक्त स्थान की खोज रद्द इंर्धन के फेंकने के लिए नहीं हो जाती, परमाणु ऊर्जा की उपयोगिता अधूरी ही रहेगी । ***
समुद्र मेंे कचरा डालने पर खैर, नहीं
अब औद्योगिक इकाइयों का हानिप्रद तरल कूड़ा (कैमिकल युक्त पानी) समुद्र में गिराने वालों को कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। उद्योगों के दूषित रसायनिक पानी से समुद्री पर्यावरण बचाने की दिशा में की अनदेखी करने वाले दोषी उद्योगों के खिलाफ फौजदारी कानून के तहत कार्रवाई हो सकती है । राज्य के समुद्र तटीय क्षेत्रों में स्थित अधिकांश औद्योगिक इकाईयां अपने उद्योगों का तरल कूड़ा समुद्र में गिरा देती है । उनमें से कैमिकल उद्योगों का तरल कूड़ा समुद्र में गिरा देती हैं । उनमें से कैमिकल उद्योगों का तरल रसायनिक कूड़ा समुद्री जीव प्रकृति पर काफी विपरीत असर छोड़ता है । गुजरात प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड ने अमल करते हुए विस्तृत मार्गदर्शिका तैयार की है, जिसमें उद्योगों का हानिप्रद रसायनिक कूड़ा सीधे समुद्र में गिरा देने वालों के खिलाफ अन्य कानूनी के तहत भी कार्रवाई करने के लिए विभागीय आदेश दिए है । हानिप्रद ठोस (सॉलिड वेस्ट) कूड़े की निर्धारित स्थलों पर ही निकासी करें ।
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