जलवायु परिवर्तन का शिकार होते बच्च्े
लिडिया बेकर
यह कटू सच्चई है कि आज प्रतिवर्ष ९० लाख बच्च्े ५ वर्ष की उम्र तक पहुंचने से पहले ही काल कवलित हो जाते हैं । इसमें से ९७ प्रतिशत बच्च्े न्यून या मध्यम आय वाले देशों के गरीब समुदायों एवं परिवारों के होते है । इनमें से अधिकांश बच्च्े कुछ ही बीमारियों एंव स्थितियों जैसे कुपोषण, निमोनिया, चेचक, उल्टी दस्त, मलेरिया, एच.आई.वी., एवं एड्स व नवजात के उपचार मेंलापरवाही जैसी परिस्थितियों के कारण असमय मारे जाते हैं । इस पृष्ठ भूमि में देखे तो हम पाएँगे की जलवायु परिवर्तन इक्कीसवी शताब्दी में वैश्विक स्वास्थ्य हेतु सबसे बड़ा खतरा है । जल वायु परिवर्तन विभिन्न प्रकार से बच्चें के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करेगा । यह स्वास्थ्य सेवाआें की कार्यप्रणाली महिला शिक्षा एवं सशक्तिकरण, खाद्य सुरक्षा, साफ पानी और साफ सफाई जैसे साधनों पर विपरीत असर करेगा । जो कि बच्चें के स्वास्थ्य के आधार स्तम्भ हैं । वैसे जलवायु परिवर्तन सभी को प्रभावित करेगा । लेकिन गरीब परिवारों के बच्च्े इससे सर्वाधिक प्रभावित होंगे । जलवायु परिवर्तन से ५ वर्ष तक के बच्च्े सर्वाधिक प्रभावित होंगे और ये कई देशों में कुल जनसंख्या के १० से २० प्रतिशत तक हैं । इस उम्र के बच्चें की प्रतिरोधक क्षमता भी कम होने से जोखिम का खतरा भी अधिक है । उल्टी और दस्त का उदाहरण लें इससे प्रतिवर्ष ५ वर्ष से कम उम्र के २० लाख बच्चें की मृत्यु होती है । पानी और सेनिटेशन की कमी इनमें से ९० प्रतिशत मोतों के लिए जिम्मेदार है । जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप पानी की कमी ब़़ढेगी । अतएव अनुमान हैं कि २०२० तक इस बीमारी में २ से १० प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है । कुपोषण से विश्व भर में प्रतिवर्ष ३२ लाख बच्चें की मृत्यु होती है और १७.८ करोड़ बच्च्े इससे प्रभावित हैं । जिन देशों में सर्वाधिक कुपोषण व्याप्त् है उनमें से कुछ हैंबांग्लादेश, इथियोपिया, भारत एवं वियतनाम तथा जलवायु परिवर्तन से इन देशों के सर्वाधिक प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है । इसी के साथ खाद्यान्न की उपलब्धता में कमी आएगी और उनकी कीमतें भी बढ़ेगी। इससे भी सर्वाधिक प्रभावित गरीब परिवारों के बच्च्े होंगे । आज गरीब परिवार अपनी आय का ८० प्रतिशत तक खाद्य पदार्थो पर खर्च कर रहे है । इसके बावजूद उन्हे पोषण आहार नहीं मिल पा रहा है । इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदाएँ भी प्रतिवर्ष करोड़ो लोगों को प्रभावित कर रही है ओर इनकी निरंतरता से बच्चें के स्वभाव पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है । इस प्रवृति में आगामी २० वर्षोंा में ३२० प्रतिशत की वृद्धि की आशंका है । इसके परिणाम स्वरूप प्रतिवर्ष ११.५० करोड़ बच्च्े प्रभावित होंगे । वर्तमान में पूर्वी अफ्रीका में सूखे से २.५ करोड़ व्यक्ति प्रभावित है । वहीं दक्षिण पूर्व एशिया में बाढ़ के कारण बच्चें की मौतें हो रही है । अफ्रीका में सूखे के कारण अब पशु पालन भी नहीं हो पा रहा है । ऐसे में बच्च्े सर्वाधिक कुपोषित हो रहे हैं । अस्पताल में भर्ती कर अस्थाई रूप से तो उन्हें ठीक कर लिया जाता है लेकिन दीर्घावधि में वे पुन: पूर्ववत स्थिति में पहुँच जाते हैं । पिछले दशक में पृथ्वी का १ से ३ प्रतिशत तक का भू भाग सूखे जैसी स्थितियों का शिकार हुआ है । सन् २०२० तक इसके २० प्रतिशत तक में फैल जाने की आशंका है ओर इस सदी के अंत तक यह ३० प्रतिशत तक पहुँच सकता है। इससे परिवारों की आर्थिक क्षमतापर विपरीत प्रभाव पड़ेगा । इसलिए जोखिम नियंत्रण पर विशाल निवेश के बिना यह समस्या विकराल रूप ले लेगी । अनेक शोधों से यह सिद्ध हो रहा है कि अंतरराष्ट्रीय राष्ट्रीय एवं स्थानीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन से बच्चें की मृत्युदर बढ़ रही है । इस समस्या से निपटने के लिए आवश्यक है कि बच्चें पर जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों का आकलन हो । इस तारतम्य में एक समाधान तो यह हो सकता है कि बच्चें की भलाई के लिए नगद वाउचर जारी किए जाएं जिससे की उनका ठीक से लालन पालन हो सके। इसी के साथ हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन में बच्चें की कोई भूमिका नहीं है । परंतु वे इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं । साथ ही हमें यहाँ सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में प्रत्येक बच्च्े को जीवित रहने के अधिकार को जलवायु परिवर्तन न छीन पाए ।***
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