विकास के केन्द्र में महिलाएं
वीरेन्द्र पैन्यूली
विकास की आधुनिक अवधारणा मानव व प्रकृति के अधिकाधिक शोषण पर आधारित है । इस शोषण का सर्वाधिक शिकार महिलाएं ही हैं । आवश्यकता इस बात की है कि अब विकास महिलाआें को केन्द्र में रखकर ही किया जाए । महिला केन्द्रित विकास व महिला आधारित विकास में भिन्नता है । मानवीय विकास की यात्रा मुख्यत: महिला आधारित विकास यात्रा ही थी । महिला, विकास की धुरी जरूर थी, परंतु विकास के केन्द्र मेंे नहीं थी । बल्कि कई बार विकास ने महिला का बोझ, तनाव एवं असुरक्षा बढ़ाई है । वैश्वीकरण से कृषि या गृह उद्योग जैसे क्षेत्रों में काम करतीं महिलाएं ज्यादा बेरोजगार हुई हैं । आज कई सरकारी व गैरसरकारी संस्थाएं कहती हैं कि महिलाएं खाली समय में कई कार्योंा को कर अपनी आय बढ़ा सकती हैं परंतु महिलाआें के पास खाली समय ही नहीं है । यदि वो एक काम को खत्म कर, घर में दूसरा काम शुरू करने लगे, तब तो उनके पास स्वयं के लिए समय ही नहीं रहेगा । वास्तव में महिला केन्द्रित विकास का सबसे बड़ा संकेतक यही होगा कि महिलाआें को ऐसा खाली समय मिले जिसे वह अपने हिसाब से बिता सकें । महिला केन्द्रित विकास में महिला को कोई दूसरा केन्द्र में रखे, इससे ज्यादा आदर्श स्थिति यह होगी कि महिलाएं खुद को केन्द्र में लाने में सक्षम हों । जिस तरह विकास परियोजना का प्रभावितों पर प्रभाव का आकलन होता है ठीक वैसे ही महिलाआें पर भी यही बात लागू होना चाहिए । यह वैसी ही कसौटी है, जैसे बापू कहते थे कि यदि कभी तुम्हारे मन में अपने किसी कार्य को लेकर संशय हो, तो आंख बंद कर ध्यान करो और सोचो कि तुम्हारी कार्यवाही से अंतिम छोर पर खड़े, व्यक्ति पर क्या असर पड़ रहा है। महिला आधारित व महिला केन्द्रित विकास के बीच के अंतर को इससे भी समझा जा सकता है । मीडिया में शेविंग क्रीम के विज्ञापन में महिला की उपस्थिति । ऐसा विज्ञापन महिला आधारित तो है किंतु वास्तव में यह पुरूष केन्द्रित विज्ञापन है । महिला केन्द्रित विकास यह भी नहीं है कि आपने महिलाआें के लिए विशेष सिगरेट, शराब, साबुन या क्रीम बना दी । यह तो व्यावसायिक घरानों का व्यवसाय लाभ केन्द्रित उत्पादन विकास ज्यादा हुआ । वास्तव में यदि ईमानदारी से महिला केन्द्रित विकास किया जाए तो उसका भी कई गुना लाभ अंतत: परिवार व समाज के विकास को मिलता है । जबकि यह आवश्यक नहीं है कि पुरूष के विकास का अनिवार्य लाभ परिवार को ही मिलेगा । कई बार महिलाआें का जो परोक्ष विकास हुआ भी है वह भी मजबूरियों में से ही हुआ है । इसे सोचा समझा नियोजित महिला केन्द्रित विकास नहीं कहा जाएगा । यहां तक की राजनीति में भी कई बार परिवार ने व पुरूषों ने महिलाआें को अपने लाभ के लिए जैसे आरक्षित चुनावी सीटों पर परिवार का राजनीतिक दबदबा बनाए रखने के लिए ढकेला । इसी तरह परिवार के उपक्रमों, प्रतिष्ठानों में भी कई बार मजबूरी वश उनको बैठाया गया । यहां तक कि जहां महिलाआें का स्वत: स्फूर्त विकास आंदोलनकारी नेताआें के रूप में हुआ है, वह भी मुख्यत: सामाजिक व पर्यावरणीय विषयों को लेकर हुआ है चाहे वे शराबबंदी के आंदोलन हुए हो,ं या नदियों व जंगलों को बचाने के आंदोलन । युवको व पुरूषों को रोजगार देने के समर्थन में व पुलिसिया ज्यादातियों के विरूद्ध भी उन्होंने आंदोलन किया है । इस तरह महिलाआें में नेतृत्व विकास से भी समाज के विकास को ही लाभ मिला है । अब सवाल है कि महिला केन्द्रित विकास कैसे हो ? महिला केन्द्रित विकास के स्त्रोतों और पूरे कार्यान्वयन के मूल में इस लक्ष्य व उद्देश्य को प्राप्त् करना होना चाहिए कि महिलाआें के विरूद्ध किसी तरह के भेदभाव को समाप्त् किया जाएगा । अब शिक्षा का ही उदाहरण लें । शिक्षा, महिला विकास व सशक्तिकरण का मुख्य जरिया है । भले ही सबके लिए शिक्षा के समान अवसर हों, किंतु यदि स्कूलों में शौचालय नहीं है या स्कूल तक पहंुचने के लिए महिलाआें को सुरक्षित वातावरण नहीं मिलता है, तो लड़कियों में पढ़ाई बीच में ही छोड़ने की दर बढ़ जाती है । किंतु जब हम महिला केन्द्रित विकास की बात शिक्षा के संदर्भ में करेंगे तो हमें इन समस्याआें को निपटाने के लिए भी योजना बनानी पड़ेगी । महिला केन्द्रित नियोजन में लड़कियों को अबाध शिक्षा देने के लिए परिवारों को आर्थिक पैकेज देना होगा। इसी प्रकार महिला केनिद्र स्वास्थ्य परियोजनाआें में महिला डॉक्टरों, महिला स्वास्थ्यकर्मियों, संस्थागत प्रसवों आदि पर ज्यादा ध्यान देना होगा । विशेष महिला पुलिस थानों को भी महिलाआेंे के द्वारा पुलिस की सहायता लेने को आसान बनाने के लिए स्थापना करना होगा । केन्द्र व राज्य सरकारें एवं व्यवसायिक संस्थानों द्वारा महिला केन्द्रित विकास की नीति बनाने हेतु अपने-अपने स्तर पर संवेदनशील होना होगा । व्यावसायिक संस्थानों व शासकीय कार्यालयों को महिलाआें को घर से काम करने या कार्यालय में भी अपने काम के लचीले घंटे का विकल्प देना होगा । महिला केन्द्रित विकास में आयु के विभिन्न सोपानों की जरूरतों के अनुरूप अलग-अलग जरूरतें होती है । उदाहरणत: किशोरियों और वृद्ध महिलाआें की जरूरतों व परित्यक्तता महिलाआें के विकास के अवरोधों को दूर करने के लिए अलग तरीकों की जरूरत पड़ सकती है । महिला केन्द्रित विशेष वैधानिक प्रावधानों की भी आवश्यकता है । महिलाआें को सम्पत्ति में अधिकार व महिला घरेलू हिंसा कानून भी महिला केन्द्रित विकास यात्राआें में सहायक हैं । महिला केन्द्रित विकास के ही एक अंग के रूप में आज कल जैण्डर बजटिंग की बात भी की जा रही है । इसमें हर विभाग या सरकार खास ध्यान रखती है कि व्यय की कौन-कौन सी व कितनी मदें महिलाआें के कल्याण के लिए खर्च हो रही हैं । इससे महिलाआें के विकास एक मानक बन जाता है । महिला केन्द्रित विकास से पूरे विश्व में पुरूष व महिलाआें के बीच लिंग भेद से लेकर आर्थिक भागीदारी और अवसर, शिक्षा प्रािप्त्, राजनैतिक सशक्तिकरण, और स्वास्थ्य व जीवित बच सकने के चार क्षेत्रों में जो खाई बनी है उसको पाटने के प्रयास किए जा सकते हैं । महिला केन्द्रित विकास की दर तब ज्यादा बेहतर होगी जब विभिन्न क्षेत्रों में अपनी महिला की मदद करने की स्थिति में होगी । महिला केन्द्रित विकास की चर्चा पिछले महिला विकास दशक में ही शुरू हो गई थी । परंतु अभी भी इसक बारे में समझ बनाने की बहुत जरूरत है । इसी के साथ-साथ अब बाल केन्द्रित विकास की बात भी की जा रही है । कुछ लोग महिला और बाल विकास को भी जोड़कर देखते हैं । आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में या हाशिये में पहंुची महिलाआें के बीच यह सुनने को मिल जाएगा कि हमारे बजाए हमारे बच्चें के लिए कुछ कीजिए । महिला केन्द्रित विकास में एक अहम मुद्दा महिला व तकनीक एवं अविष्कारों का है । हमें प्रयास करना होगा कि वह उन्हें आक्रान्त करने वाली न होें। महिला केन्द्रित विकास को हर हालत में महिला केन्द्रित हिंसा व महिला केन्द्रित भेदभाव को पछाड़ना होगा व लैंगिक असंतुलन को समाप्त् करने की दिशा में काम करना होगा । ***
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