गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

८ जैव विविधता वर्ष

जैव विविधता का संरक्षण जरूरी
नवनीत कुमार गुप्त
पृथ्वी ही ऐसा ज्ञात ग्रह है जहां जीवन के असंख्य रूप विद्यमान हैं । जीवन की यही विविधता जैव विविधता कहलाती है । जैव विविधता में पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त जीव-जंतु, वनस्पतियां और सूक्ष्मजीव शामिल हैं । इसके आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व को ध्यान मेंे रखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष २०१० को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष घोषित किया है । जीवन के अनगिनत रूप जीवाणु, शैवाल जैसे एक कोशिकीय जीवों से लेकर फूलधारी पौधों तथा सभी जानवरों यानी केंचुए से लेकर व्हेल और हाथी तक पृथ्वी पर जीव-जंतुआें एवं वनस्पतियों की असीम प्रजातियां पाई जाती हैं । वहां चम्पा, चमेली, कनेर, कमल एवं गुलाब जैसे सुंदर फूलदार पौधे और नागफनी व खेजड़ी जैसे रेगिस्तानी पौधे पृथ्वी पर जीवन की विविधता को बनाए रखते हें, वहीं नीम, पीपल और वट जैसे विशाल वृक्ष जीवन के अनेक रूपों को आश्रय प्रदान कर जैव विविधता को बनाए हुए हैं। दूसरी ओर, हिरण, खरगोश और मोर जैसे सुंदर जीवों के साथ शेर एवं बाघ जैसी हिंसक जीव प्रजातियां भी उपस्थित हैं जो पृथ्वी पर जीवन की विविधता की परिचायक हैै। मोर, कबूतर, मैना, गौरैया, आदि पक्षियों की प्रजातियां जीवन को रंग-बिरंगा बनाती हैं । चाहे रेगिस्तान हो या महासागर या हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्र या फिर बर्फीली धरती, जीवन सभी दूर अपने अनगिनत रूपों में खिलखिला रहा है । ज़मीन से कहीं अधिक जैव विविधता महासागरों में मिलती है । यहां प्रवाल भित्तियों यानी कोरल रीफ की अनोखी रंग-बिरंगी दुनिया उपस्थित है । महासागरों में पाई जाने वाली हज़ारों किस्म की मछलियां और अनेक जीव जीवन की विविधता का अनुपम उदाहरण हैं । अब तक पृथ्वी पर जीवों एवं वनस्पतियों की करीब १८ लाख प्रजातियोंे की पहचान हो चुकी है और अनुमान है कि इनकी वास्तविक संख्या इससे दस गुना अधिक हो सकती है । सूक्ष्मजीव पृथ्वी पर दिखाई देने वाले जीव जगत से कहीं अधिक तादाद तो सूक्ष्म जीवों की है जिन्हें हम नंगी आंखों से नहीं देख सकते हैं । एक ग्राम मिट्टी में करीब १० करोड़ जीवाणु और पचास हज़ार फफूंद जैसे जीव होते हैं । अत्यंत छोटे होने के बावजूद जीवन के स्थायित्व में सूक्ष्मजीव अपशिष्ट पदार्थोंा को सरल पदार्थोंा में तोड़कर पृथ्वी को अपशिष्ट पदार्थोंा से मुक्त रखते हैं । यदि सूक्ष्मजीव न हों तो पृथ्वी पर कूड़े-कचरे का ढेर इतना बढ़ जाएगा कि यहां जीवन संभव नहीं रहेगा । छोटे-छोटे सूक्ष्मजीव खाद्य सुरक्षा का आधार होते हैं । सूक्ष्मजीवों की विभिन्न प्रजातियां मिट्टी से विभिन्न पोषक तत्वों को फसलों तक पहुंचाती हैं जिससे फसल की पोषण आवश्यकताएं पूर्ण होती हैं । इतना ही नहीं, भूमि से नाइट्रोजन को वायुमंडल में पहुंचाने की क्रिया में भी सूक्ष्मजीवों का महत्वपूर्ण योगदान है । इस प्रकार हम समझ सकते हैं कि पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में सूक्ष्मजीवों की अहम भूमिका है। जैव विविधता के स्तर प्रकृति में जीव-जंतुआें व वनस्पति प्रजातियों की सही-सही संख्या का अनुमान लगाना संभव नहीं है ।अनेक जीव आज जीवित हैं तो अनेक आज से पहले समाप्त् हो चुके हैं । जीवों में आकार-प्रकार, रंग-रूप, आवास एवं स्वभाव मेंे बहुत भिन्नता पाई जाती है । यह विविधता इनकी उप प्रजातियों, आबादियों एवं आवास में भी देखी जाती है । जैव विविधता का अध्ययन प्राय: जीन, प्रजाति और परितंत्र के स्तर पर किया जाता है । जीन स्तर की विविधता को समझने के लिए हम आम का उदाहरण ले सकते हैं । हमारे देश में आम की लगभग एक हज़ार किस्में पाई जाती हैं । हर आम का स्वाद, बनावट व खुशबू, यहां तक कि रंग भी भिन्न होता है । इस अंतर का कारण यह है कि हर किस्म में कुछ भिन्न जीन्स होते हैं जो उसे विशेष खुशबू, रंग व स्वाद प्रदान करते हैं । इस विविधता को हम जीन यानी वंशाणु स्तर की जैव विविधता कहते हैं । यह जीन स्तर की विविधता कुछ प्राकृतिक तथा कुछ मनुष्य के प्रयासों से विकसित हुई है। वैसे यदि आम में यह जैव विविधता न होती तो हमें केवल एक ही किस्म के आम मिलते । इसी प्रकार नागफनी की सैकड़ों प्रजातियां सामान्य तापमान वाले स्थानों पर उगती हैं तो कुछ रेगिस्तान जैसे गर्म इलाकों में । इसका एक और उदाहरण हम स्वयं का ले सकते हैं । सारे मनुष्य होमो सेपियन्स प्रजाति के हैं । हममें न केवल दूसरे देश के अन्य मनुष्यों से यहां तक कि अपने भाई-बहनों से भी कई भिन्नताएं होती हैं, जो स्वाभाव, रंग-रूप, आंख, नाक की बनावट में देखी जा सकती है । यानी हर मनुष्य दूसरे मनुष्य से भिन्न है। यह जीन स्तर की विविधता का ही परिणाम है । आप अपने भाई बहनों में अन्य विविधताएं खोज सकते हैं, जैसे नाखूनों की बनावट, बालों व आंखों के रंग । ये सभी जीन स्तर की विविधताएं हैं। प्रजाति स्तर की विविधता को हम मानवों और चिम्पैंज़ी के उदाहरण से समझ सकते हैं । चिम्पैंज़ी मनुष्य जाति का सबसे निकट रिश्तेदार है । चौंकने की बात नहीं है, असल में हमारे और उनके डीएनए में सिर्फ १.५ प्रतिशत का अंतर है यानी हमारा ९८.५ प्रतिशत डीएनए एक जैसा है । परंतु उस अंतर के कारण चिम्पैंजी मुनष्य से कई मामलों में अलग हैं । डीएनए में सिर्फ १.५ प्रतिशत अंतर से ही उनमें और हममें इतना अंतर आ जाता है कि चिम्पैंजी एक अलग प्रजाति है । हमारे देश में हिमालय की ठंडी जलवायु से लेकर दक्षिण की कटिबंधीय जलवायु तक तमाम विविधता मौजूद हैं । यहां राजस्थान के मरूस्थल से लेकर असम व बंगाल तक की नम भूमियां पाई जाती हैं । जलवायु की इस विविधता के कारण भारत में कई सथानों पर कुछ विशेष प्रकार के परितंत्रों (इकोसिस्टम) का विकास हुआ है । विभिन्न परितंत्रों ने कई जीवों को आश्रय दिया है । विभिन्न जलवायु के कारण विशेषकर भारत व अन्य ऊष्ण कटिबंधीय व अर्थ ऊष्ण कटिबंधीय देशों में वनस्पतियों एवं जीव-जंतुआें पर काफी प्राकृतिक दबाव पड़ता है तथा उनका जीवन काफी चुनौतीपूर्ण होता है । परिणामस्वरूप इन वनस्पतियों में नाना प्रकार की आत्मरक्षक विधियां विकसित हो जाती हैं । ये विधियां प्राय: कई प्रकार के रसायनों के रूप में होती हैं । उदाहरण के लिए हिमालय क्षेत्र में ऊंची-ऊंची पर्वतमालाएं एक विशेष जलवायु के परिणामस्वरूप एक विशिष्ट परितंत्र की द्योतक है । अनुमान है कि भारत में ५०० प्रजातियों के जो दोबीजपत्री पेड़-पौधे मिलते हैं, उनमें से ३०० ऐसे हैं जो केवल हिमालय क्षेत्र में ही पाए जाते हैं और इस क्षेत्र के अलावा दुनिया में कहीं नहीं मिलते। ऐसी प्रजातियों को स्थानबद्ध (एण्डेमिक) प्रजातियां कहा जाता है । ऐसी विविधता को इकोसिस्टम स्तर की विविधता कहते हैं । ऑस्ट्रेलिया के बाद भारत ही ऐसा देश है जहां दुनिया की सर्वाधिक एण्सडेमिक वनस्पति प्रजातियां मिलती हैंं। प्रकृति की अनोखी सौगात जैव विविधता प्रकृति की अनोखी सौगात है । धरती पर जीवन के लिए जैव विविधता बहुत महत्वपूर्ण है । जीवन के लिए अनेक आवश्यकताआें की पूर्ति में जैव विविधता की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अहम भूमिका होती है । हमारे खाद्यान्न में पाई जाने वाली विविधता के उदाहरण से हम जैव विविधता के महत्व को समझा सकते हैं । प्रकृति ने हमें फलों की करीब ३७५ किस्में, सब्जियों की लगभग २८० किस्में, ८० तरह के कंदमूल और करीब ६० तरह के खाए जाने वाले फूल, बीज और मेवे आदि प्रदान किए हैं । इस विविधता के चलते हर मौसम में हमारी भोजन आवश्यकता की पूर्ति होती रहती है । अलग-अलग मौसम के अनूकूल होने के साथ ही विभिन्न प्रजातियां अलग-अलग मौसम के अनुकूल होने के साथ ही विभिन्न प्रजातियां अलग-अलग कीट-पंतगों और रोगों से भी बची रहने में सक्षम होती हैं । इससे पूरी फसल के एक साथ रोगग्रस्तहोने का खतरा नहीं होता । इस प्रकार अनाजो की विविध प्रजातियां खाद्य सुरक्षा के लिए वरदान का कार्य करती हैं । घटती जैव विविधता जीवन के विविध रूपों में मानव को सबसे बुद्धिमान जीव का खिताब हासिल है । लेकिन विकास के लिए मानव ने पर्यावरण और प्रकृति के महत्व को नज़रअंदाज़ कर दिया है । अपनी इच्छाआें की पूर्ति के लिए मानव ने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन कर प्राकृतिक संपदा का अपव्यय किया जिससे प्राकृतिक परिवेश में रहने वाले जीव भी प्रभावित हुए हैं । आवास स्थानों के उज़डने और अंधाधुंध शिकार के चलते आज जैव विविधता सिमटती जा रही है । आज हमारी बढ़ती भोगवादी जीवन शैली ने विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थोंा, उर्वरकों, कीटनाशियों एवं पीड़कनाशियों की खपत को बढ़ाने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है जिसके कारण विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय असंतुलन उत्पन्न हुए हें । घटती जैव विविधता भी पर्यावरणीय असंतुलन का ही एक परिणाम है । इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने वर्ष २००९ में जारी अपनी रिपोर्ट मेंे कहा है कि विश्व में जीव-जंतुआें की ४७.६७७ प्रजातियों में से एक तिहाई से अधिक प्रजातियों यानी १७.२९१ प्रजातियों पर विलुिप्त् का खतरा मंडरा रहा है । आईयूसीएन द्वारा जारी रेड लिस्ट के अनुसार स्तनधारियों की २१ फीसदी, उभयचरों की ३० फीसदी और पक्षियों की १२ फीसदी प्रजातियां विलुिप्त् की कगार पवर हैं । वनस्पतियों की ७० फीसदी प्रजातियों के अलावा ताज़े पानी में रहने वाले सरिसृपों की ३७ फीसदी प्रजातियों ओर ११४७ प्रकार की मछलियों पर भी विलुिप्त् का खतरा मंडरा रहा है । इसी प्रकार भारत में मिलने वाले गिद्ध, बाघ जैसे अनेक जीव भी विलुपित की कगार पर हैं । ऐसे जीवों की सूची काफी लंबी है जिनका अस्तित्व खतरे में हैं ।जीवन का संरक्षण जैव विविधता पृथ्वी के प्राकृतिक सौंदर्य का एक अंग है । हमारा कर्तव्य है कि हम इस जैव विविधता केा संजोकर रखें । वैसे तो प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति सभी जीवों के प्रति दया भाव को महत्व देती आई है । हमारे यहां यहमाना जाता है कि जो क्रूरता हम अपने उपर नहीं कर सकते वह हमें निम्न स्तर के जीवोंसाथ भी नहीं करनी चाहिए । जैव विविधता के संरक्षण के लिए आज पूरे विश्व को गांधीजी के जीवन के हर रूप के सम्मान वाले विचार को जीवन में उतारने की आवश्यकता है । इन विचारेां अपनाने से ही शायद पृथ्वी की अनुपम जैव विविधता सुरक्षित रह सकेगी । हमें यह मानना होगा कि प्रकृति में सभी जीवों के विकास का आधार एक-दूसरे के रख-रखाव व संरक्षण पर आधारित है । इसके लिएआवश्यक हे कि हम सभी जीवों के प्रति आदर-भाव रखने के विचार को समझें और जीवन में उतारें । वास्तव में प्रकृति एवं मनुष्य के बीच घनिष्ठ सम्बंध स्थापित होने पर ही पृथ्वी पर जीवन सदैव विविध रूपों में मुस्कराता रहेगा ।***
जीवों की पाँच हजार नई प्रजातियाँ
समुद्री जीवों की गणना के एक पूर्वावलोकन से पाँच हजार से अधिक नई प्रजातियों का पता चला है । इस परियोजना में कई जीव ऐसे हैं जो ऐसे रसायनों का स्त्राव करते हैं, जिसने कई बीमारियों का इलाज हो सकता है। रिपोर्ट वैज्ञानिकों के एक दल ने सैटिंयागो में विज्ञान की प्रगति के लिए बनी अमेरिकन एसोसिएशन की वार्षिक बैठक में प्रस्तुत की । नई प्रजातियों की गणना का काम पिछले दस वर्षोंा से हो रहा है और अंतिम रिपोर्ट इस साल अक्टूबर में प्रस्तुत की जाएगी । इस परियोजना पर २०८ देशों के दो हजार से अधिक वैज्ञानिकों ने काम किया है। शोधकर्ताआें ने कुछ विचित्र प्रजातियों के फोटो भी प्रस्तुत किए, जिनकी खोज पिछले दशक में की गई है । फ्लोरिडा अटलांटिक यूनिवर्सिटी के एक वैैज्ञानिक डॉक्टर शिर्ले पोंपनी ने स्पंज की नई प्रजाति पर भी प्रकाश डाला। स्पंज की यह नई प्रजाति अगस्त १९९९ में फ्लोरिडा में पाई गई। अध्ययन से पता चला कि वह एक ऐसे रसायन का स्त्राव करती है, जिसमें कैंसर से लड़ने की क्षमता है । अब इस प्रजाति पर और शोध हो रहा है ताकि इसके चिकित्सकीय इस्तेमाल को आसान बनाया जा सके। डॉ. पोंपनी कहते हैं कि जीवों का समुद्र में अनुकूलन करने से वे ऐसे रासायनिक उत्पादन करने लगते हैं जो कम्प्यूटर भी नहीं बना सकते। इस गणना की परियोजना का उद्देश्य समुद्र में संरक्षित क्षेत्रों से जुड़ी वैश्विक नेटवर्क की स्थापना है, ताकि मछलियों के शिकार करने और अन्य गतिविधियों को रोका जा सके ।

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