शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

१२ प्रदेश चर्चा


पंजाब : अंधेपन का शिकार होते गांव
सुश्री मीनाक्षी अरोरा

किसी एक विशेघ क्षेत्र में अंधत्व का विस्फोट अत्यंत चिंताजनक स्थिति है । पंजाब के मालवा क्षेत्र के कुछ गांवों में संभवत: पानी के प्रदूषण की वजह से बहुत से बच्च्े अंधे पैदा हो रहे है । वहीं सरकार के दो विभाग विरोधाभासी बयान देकर स्थितियों को और अधिक जटिल बना रहे हैं ।
भारत-पाकिस्तान सीमा से लगे पंजाब के फीरोजपुर जिले के गांवों में रहने वाले लोगों के लिए दुनिया अंधेरी होती है । बच्च्े हों या बडे उनकी आंखे रोशनी खोती जा रही है । कारण कोई नहीं जानता पर लोग तरह-तरह की बातें करते हैं । लेकिन यह तो तय है कि यहां के लोगों को जैसा पीला-गंधयुक्त पानी पीने को मिल रहा है, वह कोई गंभीर गुल खिला रहा है । पेयजल के नाम पर लोग जहर पीने को मजबूर है । जहरीले रसायनों से युक्त पानी पीने की वजह से डोना नांका, नूरशाह तोजा रूहेला, खदूका आदि कई गांवों में बच्च्े या तो दृष्टिहीन पैदा हो रहे हैं या ये कुछ समय बाद धीरे-धीरे दृष्टिहीन होते जाते हैं ।
कुछ माह के अंदर ही डोना नांका गांव में कम से कम एक दर्जन बच्च्े या तो दृष्टिहीन पैदा हुए या फिर जन्म लेने के कुछ ही साल बाद उनकी आखों की रोशनी चली गई । बाईस साल के शंकर सिंह ने बताया, जब मैं पांचवी कक्षा पढ़ रहा था, तभी मेरी नजर कमजोर पड़ने लगी फिर धीरे-धीरे मैं पूरी तरह दृष्टिहीन हो गया । शंकर सिंह के भाई के साथ भी ऐसा ही हुआ । जन्म से उसे कोई परेशानी नहीं थी लेकिन बड़े होते-होते वह भी अंधेपन का शिकार हो गया ।
पास ही के गांव तेजा रूहेला और नूरशाह में भी तकरीबन पचास से ज्यादा छोटे-बड़े लोग दूषित पानी के कारण अंधेपन का शिकार हो गए हैं । कुछ की दृष्टि पूरी चली गई है और कई तेजी से अंधेपन की ओर बढ़ रहे
हैं ।
तेजा रूहेला की एक सात वर्षीय बच्ची वीना भी इसी जहर का शिकार हुई और पिता गुरनाम सिंह उसे इलाज के लिए राजस्थान में श्रीगंगानगर ले गए जहां ऑपरेशन के बावजूद भी उसकी आंखे बेनूर रहीं । एक और बच्ची शिमला बाई की आंखों ने तो दुनिया में उजाला देखा ही नहीं । वह तो जन्म से ही अंधेपन का शिकार हो गई थी । उधर लादूका गांव में कई लोग मौत का शिकार हो गए जिसके लिये हेपेटाइटस और पीलिया को जिम्मेदार बताया गया । लेकिन इसी तर्क के साथ यह भी ध्यान देने लायक है कि पीलिया और हेपेटाइटस दोनों मे ही प्रदूषित पानी एक बड़ी वजह होता है । गंदा और जहरीला पानी शरीर में जाकर लीवर पर असर करता है जो कई बार खतरनाक स्थिति में होने पर मौत का कारण भी बन जाता है । शाय यही हो रहा है पाकिस्तान के बॉर्डर के समीपवर्ती गांवों में ।
डोना नांका के शंकर सिंह के पिता महिंद्रसिंह ने बताया कि इन इलाकों में लोग पीने के पानी के लिए भूजल पर निर्भर हैं जिसे वे हैंडपंप के जरिए लेते हैं । महिंदर सिंह ने एक गिलास में हैंडपम्प का पानी भरा जो करीब बीस मिनट में ही पीला हो गया । इसी पीले पानी की ओर इशारा करते हुए कहा यही पानी है जिसे हम सालों से पी रहे हैं, यहां इस प्रदूषित भूजल के अलावा और कोई विकल्प हमारे पास नहीं है ।
गांव की गलियों में घरों की दीवारों पर बड़े-बड़े अक्षरों में सरकार की ओर से यह चेतावनी लिखी गई है कि यहां का भूजल सेहत के लिए ठीक नहीं है । लेकिन बावजूद शासकीय पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि वहां का भूजल जहरीला नहीं है । अगर ऐसा है तो फिर सरकार ने गांवों की दीवारों पर चेतावनी क्यों लगाई है ।
दूसरी ओर कई गैर सरकारी संगठनों की ओर से किए गए सर्वेक्षणों में यह बात सामने आई है कि इलाके में भूजल जहरीला हो चुका है । इनका दावा है कि गांवों में अंधेपन के अलावा एक साथ इतने सारे लोग शारीरिक और मानसिक विकलांगता और कई अन्य बीमारियों के शिकार हो रहे हैं जिससे साफ संकेत मिलता है कि पानी में विषैलापन है । दूषित पानी का असर पशु-पक्षियों और फसलों पर भी साफ नजर आता है ।
इस क्षेत्र में सक्रिय एनजीओ एक्टिव- वॉइस के चेयरमेन नीरज अत्रि ने बातचीत में बताया कि ये सब गांव चंद्रभान नाम के के पास स्थित हैं और इस नाले में बहत सा औद्योगिक कचरा व गंदा रासायनिक पानी बहाया जाता है । यही रसायन और कचरा इन गांवों के भूजल को भी जहरीला बना रहा है । जबकि कुछ अन्य लोगों का कहना है कि खेती में बहुत ज्यादा रासायनिक खादों के प्रयोग की वजह से ऐसा हो रहा है । पंजाब के किसानों ने खेती में जिस अंधाधुंध तरीके से रासायनिक खादोंऔर कीटनाशक दवाईयों का इस्तेमाल किया है । उसका बुरा असर अब जमीन के नीचे के पानी पर भी दिखाई दे रहा है । एक ओर जमीन की उर्वरा-शक्ति घटती गई है, वहींदूसरी ओर भूजल का स्तर न केवल नीचे गया है, बल्कि उसमें रसायनों के जहर भी घुल गए हैं ।
इसके अलावा नदियों में औद्योगिक कचरा फेंके जाने प्लास्टिक और दूसरे प्रदूषक पदार्थोंा के जमीन के भीतर दब कर सड़ने-गलने की वजह से भी भूजल लगातार प्रदूषित होता गया है । बरसात के पानी के साथ बह कर गए रासायनिक खाद और कीटाणुरोधक दवाइयों के अवशेष ने नदियों, नहरों और तालाबों को भी दूषित कर दिया है । जीटीवी से जुड़े नरेन्द्र गोयल कहते हैं कि मालवा का एक बड़ा इलाका तो पहले से ही यूरेनियम के प्रदूषण से प्रभावित रहा है । नए किस्म को मामला हो, पर जांच के बाद ही स्पष्ट हो सकता है ।
वजह कुछ भी हो फिलहाल यह सच है कि लोग किसी जहर का शिकार हो रहे हैं और दूषित पानी पी रहे हैं जब पानी का असर फसलों पर भी हो रहा है । उपज पहले की अपेक्षा घट गई है। लेकिन सरकार मात्र दीवारों पर चेतावनियां लिखवा रही हैं । स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने के प्रति उसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि तेजा रूहेला गांव के पांच सौ परिवारों में से सिर्फ अस्सी परिवारों तक साफ पानी पहुंच पाता
है । वह भी अनियमित रूप से । राजो बाई सरकार तंत्र पर सवालिया निशान लगाती हुई कहते हैं कि बाकी लोग पानी के लिये कहां जाएं ? गांव में जब कोई खास व्यक्ति आता है तब टैंकर से पानी मंगवाया जाता है । लेकिन बाकी दिनों का क्या ?
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटयुट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआई) चंडीगढ़ के विशेषज्ञों का कहना है कि अंधेपन के लिये भूजल प्रदूषण को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं है । इसी संस्थान के प्रो.आमोद गुप्त का कहना है, हालांकि समस्या गंभीर है लेकिन इसके लिये जांच की जरूरत है और अंधेपन के कारणों का पता लगाने के लिये उनके इस संस्थान मेंसभी जरूरी संसाधन मौजूद हैं । लेकिन सवा यह है कि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केवल अपने ही संसाधनों और अध्ययनों पर भरोसा करता है और बोर्ड के बाबू राम की मानें तो भूजल में कोई विषैलापन नहीं है । हाल में किये गये सर्वेक्षणों में केवल टीडीएस की मात्रा ज्यादा पाई गई है । आर्सेनिक, क्रोमियम या जिंक जैसे किसी भी विषैले तत्व की उपस्थिति नहीं पाई गई । उन्होंने यह भी बताया कि ऐसे कदम भी उठाए जा रहे हैं जिससे सीवेज को बिना संशोधित किये सीधे पानी में न डाला जाए ।
एक और बोर्ड का यह कहना है तो दूसरी ओर सवाल उठता है कि अगर भूजल में जहरीलापन नहीं तो दीवारों पर सरकारी फरमान से चेतावनियां क्यों लिखी गई कि यहां का पानी पीने के लिये ठीक नहीं है ?
भारत में आज भी पीने के पानी के लिए नलकूपों और परम्परागत स्त्रातों पर लोगों की निर्भरता समाप्त् नहीं हो पाई है । बहुत सारे इलाके ऐसे हैं जहां लोग नदियों या झरनों आदि का पानी पीते हैं । जब तक हर इलाके में पानी की गुणवत्ता को जांचने और उसमें मिले खतरनाक तत्वों को दूर करने के उपाय नहीं किये जाते लोगों को प्रदूषित पेयजल की मजबूरी से छुटकारा नहीं दिलाया जा सकता ।
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