शनिवार, 23 अक्तूबर 2010

७ पर्यावरण परिक्रमा

गमला बताएगा कि पौधा प्यासा है

लंदन की एक छात्रा ने एक ऐसा करिश्माई गमला ईजाद किया है, जिसमें लगे पौधे को जब भी पानी की जरूरत होगी उसमें लाइट खुद-ब-खुद जल उठेगी । आमतौर पर पौधे की मुरझाई या पीली हो चुकी पत्तियों को देखकर एकदम पता चल जाता है कि पौधे को पानी की सख्त जरूरत है ।
दर असल बागवानी की शौकीन लंदन की २२ वर्षीय नेरली किंग अपने दादा को मदद करने के लिए ऐसा गमला बनाने का फैसला लिया था । सुश्री किंग कहती हैं कि वह किसी भी पौधे पर पीली पत्तियाँ देख अपने पिता के चेहरे पर आने वाले दु:ख के भावों को साफ तौर पर पढ़ लेती थीं । इसीलिए उसनके अपने पिता की मदद करने के इरादे से अपने युनिवर्सिटी के कोलेक्ट में यह करिश्माई गमला बना डाला । सुश्री किंग का कहना है कि नए-नए बागवानी करने वालों तथा अधिक व्यस्त रहने वालों के लिए यह गमला काफी लाभप्रद साबित होगा । अकसर पेड़-पौधों के शौकीन बुजुर्ग लोग अपना खाली समय बागवानी में गुजारते हैं और इस प्रकार के गमले उनका काफी काम आसान कर देंगे । वेस्ट लंदन की बू्रनेल यूनिवर्सिटी में तैयार इस गमले में जब बीज से तैयार किया गया कोई पौधा लगाया जाएगा और जब भी पौधे को पानी की कमी महसूस होगी या फिर माली या बागवानी करने वाला गमले में पानी डालना भूल जाएगा तो इस गमले की दिवार पर सफेद रंग की लाइट जलने लगेगी । करीब आठ महिने की मेहनत से तैयार इस गमले के नीचे की तरफ तली में नमी और तापमान को मापने वाले सेंसर लगे हैं और बाहरी सतह पर लाइट सेंसर जिससे पौधे की प्यास का पता लग जाएगा ।

अब कचरा भी बटोरेंगी कंपनियां

सड़कों पर बिखरे पड़े गुटके, चिप्स आदि के रैपर अब जल्द ही गुजरे जमाने की बात होने वाली हैं । प्लास्टिक के बढ़ते कचरे से निपटने के लिए केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जो खाका तैयार किया है उसके अमल मेंआने के बादस्थिति काफी हद तक बदल जाएगी । एक नियम के तहत विदेशों की तर्ज पर निर्माण की जिम्मेदारी तय होगी, यानि कंपनियां महज उत्पाद बेचने तक ही सीमित नहीं रहेंगी ।उन्हें बाजार से खाली रैपर और बोतलोें को भी इकट्ठा करना होगा ।
अब तक कंपनियां सिर्फ मुनाफे में ही मतलब रखती थीं, मगर अब उन्हें पर्यावरण स्वच्छता की भी जिम्मेदारी निभानी होगी । बहुस्तरीय चिप्स, बिस्कुट गुटखा के पैकेट, पेय पदार्थ की बोतलें और दूसरे उत्पाद जो प्लास्टिक की पैकिंग मेंआते हैं बनाने वाली कंपनियां नए नियम के दायरे मेंआएंगी । इन नए नियम को पूरी तरह अमल में आने में दो तीन साल का वक्त लगेगा ।
रैपरों को एकत्रित करने के लिए कंपनियों को कलेक्शन तंत्र विकसित करना होगा । इसके लिए वो या तो नगर निगम की मदद ले सकती है, रिटेलरों के साथ काम कर सकती है ।
पर्यावरण मंत्रालय प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के पक्ष मेंनहीं हैं, इसके चलते निर्माता की जिम्मेदारी तय की जा रही है । ताकि बिना प्रतिबंध लगाए की कचरे का निस्तारण किया जा सके ।
कुल उत्पादित प्लास्टिक में से ४५ फीसदी कचरा बन जाती है और महज ५५ फीसदी ही रीसाइकिल हो पाती है । एक रिपोर्ट में कहा गया था कि प्लास्टिक की मोटाई २० की जगह १०० माइक्रोन तय की जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा रीसाइकिल हो सके ।
इंडियन इंस्टिटयुट ऑफ पैकेजिंग के मुताबिक प्लास्टिक के कचरे को रीसाइकिल करके पुन: प्रयोग में लाया जाएगा । इसके अलावा सड़क बनाने में भी उसका इस्तेमाल होगा ।

शराब से दोड़ेगी आपकी गाड़ियां

शराब पीकर गाड़ी चलाना गलत है लेकिन यदि गाड़ी को व्हिस्की का स्वाद लग जाए तो क्या हो ? वैज्ञानिकों ने व्हिस्की बनाने के दौरान उससे निकले अन्य पदार्थोंा से जैविक इंर्धन बनाया है जिसे इंर्धन के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकेगा ।
स्काटलैंण्ड में एडिनबरा नेपियर यूनिवर्सिटी ने इसके लिए पेटेंट की अर्जी भी दिााख्ल कर दी है । उनका कहना है कि ये इंर्धन एथेनॉल जैसे मौजूदा जैविक ईधनों से तीस प्रतिशत ज्यादा कारगर है । वैज्ञानिकों ने इस पर पिछले दो सालों से काम किया है ।
लेकिन ये प्रक्रियाजो कभी काफी लोकप्रिय थी बेहद मंहगी मानी गई है । शोध दल का कहना है कि उन्होंने इसका तोड़ निकाल लिया और व्हिस्की बनाने के दौरान निकले कचरे का इस्तेमाल किया और ब्यूटामॉल बनाया ।
इस शोध दल का नेतृत्व करनेवाले प्रोफेसर मार्टिन टैंगने का कहना है कि ब्यूटामॉल मे लगभग उतनी ही ऊर्जा है जितनी पेट्रोल में। उनका कहना है कि यदि उनकी योजनाआेंे को कामयाबी मिलती है तो दो साल के भीतर ये बाजार मे उपलब्ध हो जाएगा । इसके अलावा एथेनॉल जैसे अन्य जैविक इंर्धनों की तरह इसके इस्तेमाल के लिए आधुनिक कारों को महंगे उपकरण नहीं लगाने होंगे । उनके अनुसार ये फायदे का सौदा होगा ।

अरबों खर्च फिर भी देश की नदियाँ मैली

देश की प्रमुख नदियों की सफाई पर अब तक ४०८५ करोड़ रूपये से अधिक खर्च किए जा चुके हैं। पिछले दिनों पर्यावरण और वन राज्यमंत्री जयराम रमेश ने लोकसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह जानकारी दी ।
उन्होंने बताया कि केन्द्र प्रायोजित राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना के माध्यम से २० राज्योंके १७८ नगरों में ३८ नदियों की सफाई का काम शुरू किया गया है, जिस पर अब तक ४०८५.६५ करोड़ रूपये खर्च किए जा चुके हैं । चालू वित्त वर्ष में इस योजना के लिए १९५ करोड़ रूपये तथा गंगा नदी के लिए ५०० करोड़ रूपये आवंटित किए गए हैं । उन्होंने कहा कि तीव्र शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण नदियों में प्रदूषण बढ़ गया है । जल गुणवत्ता के आधार पर केंन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश में नदियों के १५० प्रदूषित क्षेत्रों की पहचान की है ।
अब तक सबसे अधिक १०५० करोड़ रूपये उत्तरप्रदेश में गंगा, यमुना और गोमती की सफाई पर व्यय हुए हैं । तमिलनाडु में कावेरी सहित ६ नदियों की सफाई पर ८६८ करोड़ रूपये, पश्चिम बंगाल में गंगा, दामोदर और महानंदा की सफाई पर ३०४ करोड़ रूपए तथा दिल्ली में यमुना की सफाई पर २७१ करोड़ रूपये खर्च किए जा चुके हैं।


ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए राज्यों को मदद

सरकार ने कहा कि भूमंडलीय तापमान में वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के पर्यावरण पर पड़ते असर से निपटने और उसे कम करने के लिए विभिन्न उपायोंके तहत कोष की व्यवस्था है और आने वाले वर्षोंा में इसके जरिए राज्यों सरकारों को वित्तीय मदद दी जाएगी । पर्यावरण और वन राज्य मंत्री जयराम रमेश ने पिछले दिनों राज्यसभा में कहा कि भूमंडलीय तापमान में वृद्धि में पर्यावरण पर पड़ते असर से निपटने के लिए उपाय किए गए हैं, जिनके तहत राज्यों को आने वाले वर्षोंा में केन्द्र से मदद मिलेगी । श्री रमेश ने कहा कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने वित्त वर्ष २०१०-११ के लिए पेश बजट में पर्यावरण का विशेष ध्यान रखा है । मुखर्जी ने घोषणा की थी कि संचित निधि निर्मित करने के लिए घरेलु स्तर पर उत्पादित होने वाले और आयातित किए जाने वाले कोयले पर प्रति टन ५० रूपये का सेस लगाया जाएगा ।
उन्होंने कहा कि १३ वें वित्त आयोग ने भी सिफारिश की है कि अभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशोंें को अगले पांच वर्ष के दौरान ५,००० करोड़ रूपये की राशि उनके वन संसाधनों के प्रबंधन के लिए दी जाए । यह एक तरह का ग्रीन बोनस होगा । इसके तहत अगले पांच वर्ष आंध्र प्रदेश को ७२७ करोड़, मध्यप्रदेश को ४९० करोड़, छत्तीसगढ़ को ४११करोड़ और उड़ीसा को ३३० करोड़ रूपये की मदद दी जाएगी ।

वैज्ञानिकों ने की कैंसर कोशिका की पहचान

वैज्ञानिकों ने एक ऐसी कोशिका की हचान की है जिसे प्रोस्टेट कैंसर का कारण माना जा रहा है । वैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्यों में प्रोस्टेट उत्तक में दो तरह की कोशिकाएं होती है, एक जिसे बेसेल कोशिका कहा जाता है और दूसरे को ल्यूमिनल कोशिका । शोधकर्ताआें ने कैंसर रहित मानव के शरीर से बेसेल कोशिका के नमूने लेकर कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले चूहे के शरीर में डाल दिया ।
कुछ समय बाद चूहे को प्रोस्टेट कैंसर हो गया । इस शोध से पहले वैज्ञानिकों का मानना था कि प्रोस्टेट कैंसर का कारण दूसरे भिन्न प्रकार के कोशिका का मुख्यत: ल्यूमिनल कोशिका होते हैंक्योंकि प्रोस्टेट कैंसर की बनावट बहुत हद तक ल्यूमिनल कोशिका से मिलती थी । यह शोध लास एंजिलस स्थित कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डॉ.ओवन विटी के नेतृत्व में किया गया । शोधकर्ताआें ने कैंसर रहित मानवों के शरीर से प्रोस्टेट उत्तक से दोनों प्रकार के कोशिका बेसेल और ल्यूमिनल के नमूने
लिए ।
उन्होंने इनको कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले कुछ चूहों में अलग-अलग डाल दिया परिणाम में देखा गया कि ल्यूमिनल कोशिका के बजाए बेसेल कोशिका से कुछ चूहों में प्रोस्टेट कैंसर होने शुरू हो गए थे ।
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