भोपाल गैस त्रासदी के लिये जांच आयोग गठित
मध्यप्रदेश सरकार ने भोपाल गैस कांड के २७ साल बाद एक जांच आयोग का गठन किया है । यह यूनियन कार्बाइड कारखाने में हुए भीषण हादसे के विभिन्न पहलुआें की जांच कर रिपोर्ट तैयार करेगा । हालांकि रिपोर्ट देने के लिए आयोग का कोई कार्यकाल तय नहीं किया गया है । आयोग का अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज एसएल कोचर को नियुक्त किया गया है । राज्य सरकार ने इसके गठन की अधिसूचना जारी कर दी है । वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाविल्स ने इस आयोग के गठन पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि राज्य सरकार का यह व्यर्थ का कदम है । पीपी राव ने कहा कि आयोग का गठन कुछ नहीं होने से तो अच्छा है भले ही यह कदम देर से उठाया गया है ।
ये सवाल होगें जांच के दायरे में :-
*हादसे के दौरान राज्य प्रशासन की भूमिका ।
*यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को सुरक्षित भागने का मौका देने की जांच।
*क्या कंपनी ने सख्त सुरक्षा मानकों का पालन किया था ।
*क्या कारखाने में आवश्यक सुरक्षा उपकरण लगाए गए थे ।
*उद्योग द्वारा क्या खतरनाक रासायनिक कचरे के निस्तारण की उचित व्यवस्था की गई थी ।
आईआईटी के रजिस्ट्रार संजीवन कशालकर ने बताया कि संस्था के ६२ छात्र-छात्राआें और फैकल्टी की मेहनत से स्वदेशी तकनीक से विकसित तीन किलोग्राम वजनी नैनो सेटेलाइट जुगनू प्रक्षेपण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को सौंपा गया है । मार्च २०१० में संस्थान के स्वर्ण जंयती समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यहां आई थी और उन्होने स्वदेशी तकनीक से निर्मित इस सैटेलाईट की जमकर तारीफ की थी और इसके निर्माण में लगे छात्र-छात्राआें का हौंसला बढ़ाया था । इस सैटेलाइट का वजन तीन किलोग्राम है पूरी तरह से स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर आधारित है । एक फीट लंबा, दस सेंटीमीटर चौड़ा यह सैटेलाईट पोलर लाच वेहिकल (पीएसएलवी) की मदद से श्री हरिकोटा से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा । आईआईटी के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह कम से कम एक साल तक अंतरिक्ष में रहेगा । जुगनू से मिलने वाली उच्च् क्षमता की तस्वीरों व आंकड़ों का प्रयोग सूखा, बाढ़ और भूकंप संबंधी जानकारी हासिल करने के साथ-साथ प्रदूषण और पर्यावरण की जानकारी में भी किया जाएगा । इसका नियंत्रण कक्ष और भूकेन्द्र आईआईटी कानपुर का मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग होगा ।
निजी भागीदारी से बने इस संयंत्र पर १३ करोड़ की लागत आएगी और यह संपूर्ण खर्च मुम्बई की एक कम्पनी रोचेम सेपरेशन सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड वहन करेगी । इस संयंत्र की खास बात यह है कि पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है तथा इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होगा । इसके लिए कम्पनी यहां जर्मनी से आयातित कंकर्ड ब्लू वेस्ट एनर्जी सिस्टम नामक अति आधुनिक तकनीक का उपयोग करेगी ।
यह पद्धति पूरी तरह प्रदूषण रहित और एक वैज्ञानिक कचरा निस्तारण विधि है । यहां एक ग्रीन जोन विकसित करके कचरा एकत्र करने, उसके भंडारण से लेकर उसके निस्तारण की पूरी प्रक्रिया सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल और दुर्गध रहित होगी । इसके लिए प्रतिदिन एक सौ टन कचरा सीकर में ही उपलब्ध हो होगा तथा यह इकाई वर्ष में ७५०० घंटे काम करेगी । इस प्रक्रिया के तहत एक मेगावट प्रति घण्टे के हिसाब से सालभर में कुल ७५०० मेगावट बिजली का उत्पादन होगा ।
ये सवाल होगें जांच के दायरे में :-
*हादसे के दौरान राज्य प्रशासन की भूमिका ।
*यूनियन कार्बाइड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को सुरक्षित भागने का मौका देने की जांच।
*क्या कंपनी ने सख्त सुरक्षा मानकों का पालन किया था ।
*क्या कारखाने में आवश्यक सुरक्षा उपकरण लगाए गए थे ।
*उद्योग द्वारा क्या खतरनाक रासायनिक कचरे के निस्तारण की उचित व्यवस्था की गई थी ।
इसी माह उड़ान भरेगा जुगनू
आईआईटी कानपुर द्वारा स्वदेशी पद्धति से निर्मित नैनो सैटेलाइट जुगनू का प्रक्षेपण सितम्बर के अंत तक श्रीहरिकोटा से किए जाने की उम्मीद है।आईआईटी के रजिस्ट्रार संजीवन कशालकर ने बताया कि संस्था के ६२ छात्र-छात्राआें और फैकल्टी की मेहनत से स्वदेशी तकनीक से विकसित तीन किलोग्राम वजनी नैनो सेटेलाइट जुगनू प्रक्षेपण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों को सौंपा गया है । मार्च २०१० में संस्थान के स्वर्ण जंयती समारोह में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल यहां आई थी और उन्होने स्वदेशी तकनीक से निर्मित इस सैटेलाईट की जमकर तारीफ की थी और इसके निर्माण में लगे छात्र-छात्राआें का हौंसला बढ़ाया था । इस सैटेलाइट का वजन तीन किलोग्राम है पूरी तरह से स्वदेशी टेक्नोलॉजी पर आधारित है । एक फीट लंबा, दस सेंटीमीटर चौड़ा यह सैटेलाईट पोलर लाच वेहिकल (पीएसएलवी) की मदद से श्री हरिकोटा से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा । आईआईटी के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यह कम से कम एक साल तक अंतरिक्ष में रहेगा । जुगनू से मिलने वाली उच्च् क्षमता की तस्वीरों व आंकड़ों का प्रयोग सूखा, बाढ़ और भूकंप संबंधी जानकारी हासिल करने के साथ-साथ प्रदूषण और पर्यावरण की जानकारी में भी किया जाएगा । इसका नियंत्रण कक्ष और भूकेन्द्र आईआईटी कानपुर का मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग होगा ।
सीकर मेंकचरे से बिजली बनाने का पहला संयंत्र
राजस्थान के सीकर में ऐसा विद्युत उत्पादन संयंत्र स्थापित किया जा रहा है जो कचरे से बिजली पैदा करेगा । यह संयंत्र न केवल राज्य बल्कि पूरे उत्तरी भारत में अपनी तरह का पहला ऐसा संयंत्र होगा । निजी भागीदारी से बने इस संयंत्र पर १३ करोड़ की लागत आएगी और यह संपूर्ण खर्च मुम्बई की एक कम्पनी रोचेम सेपरेशन सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड वहन करेगी । इस संयंत्र की खास बात यह है कि पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल है तथा इससे किसी तरह का प्रदूषण नहीं होगा । इसके लिए कम्पनी यहां जर्मनी से आयातित कंकर्ड ब्लू वेस्ट एनर्जी सिस्टम नामक अति आधुनिक तकनीक का उपयोग करेगी ।
यह पद्धति पूरी तरह प्रदूषण रहित और एक वैज्ञानिक कचरा निस्तारण विधि है । यहां एक ग्रीन जोन विकसित करके कचरा एकत्र करने, उसके भंडारण से लेकर उसके निस्तारण की पूरी प्रक्रिया सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल और दुर्गध रहित होगी । इसके लिए प्रतिदिन एक सौ टन कचरा सीकर में ही उपलब्ध हो होगा तथा यह इकाई वर्ष में ७५०० घंटे काम करेगी । इस प्रक्रिया के तहत एक मेगावट प्रति घण्टे के हिसाब से सालभर में कुल ७५०० मेगावट बिजली का उत्पादन होगा ।
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