शनिवार, 17 सितंबर 2011

स्वास्थ्य

मधुमेह से लड़ने की अधूरी तैयारी
दिनसा सचान

भारत में मधुमेह का फैलाव जिस तेजी से हो रहा है उससे निपटने के लिए ऐसा कार्यक्रम बनाना चाहिए जो कि पूर्णतया इसी बीमारी पर एकाग्र हो । सभी प्रमुख असंक्रामक रोगों की एक साथ एक ही कार्यक्रम के अन्तर्गत पहचान व उपचार की योजना इस पूरे अभियान को पटरी से उतार सकती है।
केन्द्र सरकार का मधुमेह (डायबिटीज) पर नियंत्रण के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम की शुरूआत हिचकिचाहट भरी थी । इससे भी बुरी बात यह है कि इसे राष्ट्रीय केंसर, मधुमेह, हृदयरोग एवं हृदयघात निवारण एवं नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीडीसी एस) के एक हिस्से के रूप मेंप्रारंभ किया गया है ।
मधुमेह नियंत्रण कार्यक्रम का प्रथम चरण जुलाई २०१० में प्रारंभ हुआ था और इसे अप्रैल २०१२ में पूरा किए जाने की योजना है । इसके तीन लक्ष्य हैं जागरूकता, चिन्हित करना एवं उपचार । चिन्हित करने के अभियान को शुरू करने में ही सरकार को एक वर्ष लग गया । केन्द्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्री गुलाब नबी आजाद ने चिन्हित करने के अभियान का उद्घाटन इस वर्ष ३० जून को किया । वर्ष २०११ के अंत तक २१ राज्यों के ३० जिलों में मधुमेह की पहचान कर मुफ्त उपचार किया जाना है । आशंका है कि सरकार की कछुआ चाल से यह कार्य समयावधि में पूर्ण नहीं हो पाएगा ।
सरकार ने एनपीडीएसीएस पर १२५० करोड़ रूपए का निवेश किया है। इसमें से ५०० करोड़ रूपए मधुमेह और हृदयरोग हेतु आवंटित किए हैं । सरकार ने इस हेतु अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी अब्बॉट से ६००० ग्लूकोमीटर (रक्त में शर्करादेखने का यंत्र) और १.२ करोड़ पटि्टया (स्ट्रिप) खरीदी है । श्री बचानी जो कि इस पहल की अगुवाई कर रहे हैं, का कहना है कि बाकी की राशि राज्यों को दे दी गई है । वे स्वास्थ्य मंत्रालय में अंसक्रामक रोग विभाग के उप निदेशक जनरल हैं । परन्तु तय जिलों में अभी तक धन पहुंचा ही नहीं है । महाराष्ट्र के वाशिम जिला अस्पताल के सुपरवाइजर वैंकट क्षीरसागर ने इस बात की पृष्टि की है । जबकि आंध्रप्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पी.वी. रमेश ने आश्वासन दिया है कि राज्य के जिलों में अगस्त तक धन पहुंच जाएगा ।
चिकित्सकों द्वारा परियोजना की आलोचना :-
नई दिल्ली स्थित मेक्स हॉस्पिटल के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डाँ. सुजीत झा का कहना है कि चिन्हित करने पर बहुत अधिक ध्यान दिया गया है । यदि मरीजों की पहचान हो गई हो तो उनका तुरन्त उपचार होना चाहिए । दिल्ली मधुमेह शोध केन्द्र के अध्यक्ष ए.के. झिंगन का मत है कि वितरण के लिए जिन दवाइयों का चयन किया गया है कि वे पुराने मिश्रण की है । जबकि अधिक प्रभावकारी दवाईयों का वितरण किया जाना चाहिए ।
भारत में विश्व के सर्वाधिक ५.०८ करोड़ मधुमेह रोगी हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सन् २०३० में इनकी संख्या बढ़कर ७.९४ करोड़ हो जाएगी । श्री झा उपचार के संबंध में सरकारी तैयारियों की पर्याप्त् पर प्रश्न उठाते हुए कहते है क्या हमारे पास समुचित संख्या में प्रशिक्षित कर्मी हैं ? भारतीय मधुमेह शोध संस्थान के अध्यक्ष ए. रामचंद्रन इससे सहमति जताते हुए कहते है स्वास्थ्य केन्द्रों में पेशेवर व्यक्ति होना चाहिए जो कि मरीजों को जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन के संबंध में प्रशिक्षित कर सकें ।
मधुमेह जीवनपर्यन्त चलने वाली बीमारी है । अतएव सिर्फ मुफ्त दवाइयां दे देना ही काफी नहीं हैं । वहीं झा का कहना है भारत में मधुमेह रोगियों के पैदल चलने संबंधी जागरूकता की अत्यन्त आवश्यकता है । इस हेतु ढांचागत निवेश सहायता प्रदान करेगा । लोगों को शिक्षित करना होगा और ध्यानपूर्वक अगले १० वर्षो तक निगरानी रखनी होगी ।
इस तरह की मिशन आधारित परियोजनाएं भारत में नई नहीं है । सन् १९८७ में मधुमेह नियंत्रण का राष्ट्रीय कार्यक्रम तमिलनाडु, जम्मु कश्मीर और कर्नाटक में आरंभ किया गया था । धन की कमी से इसकी हवा निकल गई । सन् २००८ में भी मधुमेह, हृदयरोग और हृदयघात निवारण एवं नियंत्रण हेतु एक पायलेट परियोजना प्रारंभ की गई थी । रामचन्द्रन का कहना है इसकी शुरूआत तो अच्छी हुई लेकिन शीघ्र ही इसका उत्साह ठंडा पड़ गया ।
गतवर्ष प्रारंभ हुए एनपीसी डीएसीएस को पूर्व में मिली असफलताआें का अध्ययन कर लेने के बाद ही शुरू किया जाना था । पर ऐसे कोई आंकड़े ही मौजूद नहीं है कि इस तरह के कार्यक्रम मददगार सिद्ध होते भी हैं या नहीं । पूर्ववर्ती परियोजनाआें के बारे में पूछे जाने पर श्री बचानी का कहना था अब वे अतीत की बात बन चुकी है । रामचन्द्रन का कहना है कि इस कार्यक्रम को केंसर, हृदयरोग व हृदयघात के साथ जोड़ने से उन्हें निराशा हुई है । उनका मानना है बीमारी का बोझ के देखते हुए पूरी तरह से इसी बीमारी को समर्पित एक स्वतंत्र योजना बननी चाहिए ।
यह बीमारी चुपके से विकासशील विश्व में प्रवेश कर गई है । भारत और चीन को इसकी वजह से सन् २००५ से २०१५ के मध्य ९०० अरब अमेरिकी डॉलर की आमदनी से हाथ धोना पड़ सकता है । यह बीमारी अब युवाआें के लिए भी खतरा बन गई है । अंधेपन, किडनी के खराब होने और और पैरों में घाव जैसी जटिलताआें के चलते उपचार की लागत भी बहुत बढ़ गई है । बीमारी की गंभीरता से परेशान होकर गोवा जिसकी कि इस परियोजना में अनदेखी की गई है, ने जून में मधुमेह रोगियों का नामांकन प्रारंभ कर दिया । इसके अन्तर्गत सभी सरकारी एवं निजी अस्पतालों में रोग पहचान की नि:शुल्क सुविधा उपलब्ध होगी । सभी मरीजों को पहचान पत्र जारी किए जाएंगें और उन्हें नि:शुल्क स्वास्थ्य सेवा, दवाईयां और इंसुलिन उपलब्ध कराए जाएंगे ।
इस मूक हत्यारे ने अब अपने विषदंत पूरे देश में फैलालिए हैं । परन्तु सरकार कोई भी अभेद्ध योजना बनाने से कतरा रही है । कम से कम २० वर्ष देरी से ही सही लेकिन यह परियोजना इस दिशा में उठा एक सकारात्मक कदम तो माना जा सकता है ।

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