शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

वानिकी जगत

वन हमारी धरोहर
जे.पी. पटेरिया

इन दिनों पूरी दुनिया में अन्तर्राष्ट्रीय वन वर्ष मनाया जा रहा है। विश्वभर में हो रही प्राकृतिक आपदाआें की पृष्ठभूमि में हमें पृथ्वी पर हो रहे पर्यावरणीय अत्याचार पर अत्यन्त गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है ।
प्राचीनकाल में मनुष्य एवं प्रकृति का संबंध अत्यन्त सौहार्द्रपूर्ण रहा है परन्तु धीरे-धीरे मानव की स्वार्थी नीतियों ने प्रकृति के अनमोल उपहार वनों का अनियंत्रित दोहन करना प्रारंभ कर दिया है जिसके फलस्वरूप जल एवं वायु के प्रदूषण ने विराट रूप धारण कर लिया है । विकास की इस अंधी दौड़ में परिस्थितिकीय कारकोंे की अनदेखी की गई जिसके कारण आज पर्यावरणीय समस्यायें सामने आ रही है । पर्यावरण के नाम पर अधिक से अधिक लोगों को जंगल की तरफ आकर्षित करने के क्रम में जंगल की घोर उपेक्षा हो रही है । मनुष्य एवं जानवर एक दूसरे के इलाके में घुसपैठ कर रहे है । इससे उनके बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो रही है । जंगल को अपने मूल रूप में बचाये रखने की जरूरत है । जंगल सरंक्षपण के लिए नियम बनाते समय हमें उभय संरक्षण के मुद्दों पर भी संवेदनशील रवैया अपनाना होगा ।
मध्यप्रदेश भारत वर्ष का ह्दय प्रदेश है । शरीर का ह्दय यदि स्वस्थ रहता है तो संपूर्ण शरीर स्वस्थ रहेगा । प्रदेश का स्वास्थ्य प्राकृतिक संसाधनों की सतत् निरन्तरता पर निर्भर है । देश का लगभग १२ प्रतिशत वन मध्यप्रदेश में उपलब्ध है जो कि मध्यप्रदेश की ३१ प्रतिशत के लगभग भूमि पर विद्यमान है । वन हमारे जीवन की बुनियाद है जो पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है । वनों का आशय सामान्य रूप से वृक्षों के समूह से होता है । लेकिन वास्तव में ये विभिन्न जीवों का जटिल समुदाय है । एक दूसरे पर परस्पर आश्रित अनेक पेड़-पौधे और जानवर वनों में निवास करते है, तथा वन के भूतल पर अनेक प्रकार के छोटे-छोटे जीव जन्तु जीवाणु एवं फंगस पाये जाते है जो मिट्टी और पौधों के मध्य पोषक तत्वों का आदान प्रदान करने में मदद करते है । वनों से मानव समुदाय को अनेक बहुमूल्य वस्तुएं प्राप्त् होती है जिनमें स्वच्छ जल, वन प्राणियों के रहने के लिए वास स्थान, लकड़ी, भोजन, सुंदर परिदृश्य सहित अनेक पुरातात्विक और एैतिहासिक स्थल शामिल है ।
वनों की सघनता के मामले में मध्यप्रदेश एक समृद्ध राज्य है । यह सम्पन्नता हमे विरासत में मिली है, लेकिन इससे अधिक यहां के लोगों ने इसकी महत्ता को समझा और संरक्षण किया है । वन आवरण की दृष्टि से मध्यप्रदेश देश में प्रथम स्थान पर है । मध्यप्रदेश का वनक्षेत्र ७६०१३ वर्ग किलोमीटर है, द्वितीय स्थान पर अरूणाचल प्रदेश जिसका वनक्षेत्र ६७७७७ किलोमीटर तथा तीसरे स्थान पर छत्तीसगढ़ जिसका वनक्षेत्र ५९७७२ वर्ग किलोमीटर है । मध्यप्रदेश में वृक्ष प्रजातियां साल तथा सागौन हैं इसके अलावा यहां के वनों में बीजा, साजा, धावड़ा, महुआ, तेंदू, ऑवला, बांस आदि महत्वपूर्ण प्रजातियां है । इसके साथ ही जंगल में अनेक तरह के औषधीय पौधे भी पाये जाते हैं । पौधे पर्यावरण संतुलन की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही वनवासियों की आजीविका के प्रमुख साधन भी है ।
अन्य प्रदेशोंकी तुलना में मध्यप्रदेश के वनों की स्थिति बेहतर है लेकिन कालांतर में वनों पर बढ़ रहे जैविक दबाव के कारण निश्चित रूप से वन क्षेत्रों में कमी आई है एवं वनों की दशा बिगड़ी है । प्रदेश के वन क्षेत्रों में गरीबी की समस्या व्यापक रूप से विद्यमान है, गरीबी के कारण ही वनों पर अत्यधिक दबाव है, वनक्षेत्रों में रहने वाले विशेषकर आदिवासी लोग अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिये वनों पर ही काफी हद तक आश्रित है । आवास बनाने खाना पकाने के ईधन से लेकर पशुआें को चराने तक वे वनों पर ही आश्रित है
जिससे वनों का ह्ास तेजी से हो रहा है।
मध्यप्रदेश में पर्यावरण संतुलन और मानव जीवन के अस्तित्व की रक्षा के लिए वनों एवं पेड़ पौधो की महत्ता को प्रारंभ से ही स्वीकार किया है, सरकार ने एक जनोन्मुखी वन नीति भी बनाई है । वननीति में वन संसाधन के सतत एवं टिकाऊ प्रबंधन से समाज के आदिवासी एवं आर्थिक रूप से पिछड़े एवं गरीब वर्ग के लोगों की सुरक्षा की मंशा शामिल है । वनों के वैज्ञानिक प्रबंधन और विकास के लिये बिगड़े वन क्षेत्रों के वन आवरण में वृद्धि करने, भू एवं जल संरक्षण जैव विविधता का संरक्षण तथा बांस वनो के पुनरोत्पादन जैसी अनेक योजनाएं चलाई जा रही है।
मध्यप्रदेश में जैव विविधता के समृद्ध होने तथा अनेक महत्वपूर्ण नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र होने के कारण प्रदेश के वन अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अत: देश के पर्यावरणीय परिस्थितिकीय संतुलन तथा जल संरक्षण में प्रदेश के वनों का विशेष योगदान है । वन्य जीवन संरक्षण में भी प्रदेश का अग्रणी स्थान है । प्रदेश के वनक्षेत्र का लगभग ११.४ प्रतिशत संरक्षित क्षेत्र (राष्ट्रीय उद्यान एवं अभ्यारण्य) वन्यप्राणी प्रबंधन के अधीन है । देश के बाघों के आबादी का लगभग २० प्रतिशत एवं विश्व का लगभग १० प्रतिशत मध्यप्रदेश में है ।
वनक्षेत्रों में गरीबी की समस्या के कारण निरक्षरता पनप रही है तथा वन क्षेत्रों में अतिक्रमण बढ़ रहा है । गरीबी के कारण ही वनवासियोंमें सामाजिक कुरीतियों का बोलबाला है । साक्षरता के अभाव में वनवासी, शासन द्वारा द्बारा चलाई जा रही विभिनन जन कल्याणकारी योजनाआें का फायदा उठाने से वंचित रहे है जिससे शासन के तमाम प्रयासों के बावजूद गरीबी की समस्या समाप्त् नहीं हो पा रही है ।
गरीबी के इस चक्रव्यूह को तोड़े वगैर वन एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रयास सफल नहीं हो सकते है । अगर हमें प्रदेश के पर्यावरण का सुधार करना है तो विकास योजनाआें को गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों से जोड़ना होगा, तभी वन एवं पर्यावरण संरक्षण सुिशिचनत हो सकेगा । इसके लिए सरकारी प्रयास एवं जन आंदोलन के उचित समन्वय की आवश्यकता होगी ।

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