रविवार, 18 सितंबर 2011

प्रसंगवश

मध्यप्रदेश में चीते का पुनरागमन
मध्यप्रदेश के राजस्थान से सटे श्योपुर जिले के कूनो-पालपुर व सागर जिले के नौरादेही अभयारण्य में विदेशी चीते के आगमन का प्रकल्प अच्छी खबर हो सकता है, बशर्ते यह प्राकृतिक पर्यावास उसे रास आ जाए तथा कृत्रिम पर्यावरण में उसका प्रजनन व बाद को जंगल में छोड़ने का प्रयोग सफल हो जाए । १९५२ में इंडियन बोर्ड आफ वाइल्ड लाइफ ने जिन १३ लुप्त्प्राय वन्य प्रजातियों की सूची जारी की थी, उनमें चीता (एसीनोनिक्स) शीर्ष पर था । चीता जिसका उल्लेख संस्कृत साहित्य में चित्रक के नाम से पाया जाता है, व्याघ्र (बाघ) और सिंह (लॉयन) से एकदम पृथक प्रजाति के रूप में वर्णित है ।
कैप्टेन जे. फारसामथ ने १८५८ से १८६५ तक म.प्र. के वनों का व्यापक भ्रमण करके द हाइलैड्स ऑफ सेन्ट्रल इंडिया नामक अपनी पुस्तक में जिस हंटिंग लैपर्ड का उल्लेख किया है वह तेंदुआ न होकर वास्तव में चीता ही है, क्योंकि उन्होनें १८८९ में पहली बार प्रकाशित इसी पुस्तक में लिख है कि हंटिंग लैपर्ड सामान्य लैपर्ड या पेंथर की भांति बस्तियों के पास झांकता तक नहीं है । १९०७ के सीई ल्यूनआई द्वारा संपादित रतलाम स्टेट गजेटियर में वहां चीता पाये जाने का उल्लेख है जिसने नरभक्षी हो जाने के कारण रियासत के बाजना क्षेत्र में १५ आदिवासियों को मार दिया था ।
चीते स्वभाव से तेज धावक होते हैं । अत: उन्हें घास के झाड़ी मिश्रित विशाल चरागाह चाहिए जिनमें काले हिरन, चिंकारे और चीतल हों । अब खेती व बस्तियों के कारण ऐसे विशाल प्राकृतिक पर्र्यावास कहीं भी उपलब्ध नहीं है । कोल्हापुर नरेश का अनुभव यह बताता था कि पालतू चीते अधिकाशंत: प्रजनन नहीं करते । कूनो- पालनपुर व नौरादेही में चीतों के आगमन, प्रजनन और संरक्षण को लेकर वही प्रश्न है जो कोल्हापुर नरेश ने वन्यप्राणीविद् गी के साथ चर्चा में उठाये थे । प्रयोगधर्मी वन्यप्राणी प्रबंध चीतों के पुनरागमन के प्रकल्प में सहायक हो सकते है । यक्ष प्रश्न यह है कि क्या इस तेजकदम बंजारा प्रजाति के लिये बुनियादी रूप से आवश्यक विशाल चरागाह और छोटे वन्य प्राणियों की शिकार हमारे यहां है ? हमारे वन्यप्राणी प्रबंध के बारे में स्वयं वन्यप्राणियों की क्या राय है, उसे लेकर निम्नांकित शेर सटीक बैठता है -
मजा तब था जो वे सुनते मुझी से दास्तां मेरी ।
कहां से लाएगा कोई बयां मेरी जुबां मेरी ।।
घनश्याम सक्सेना, भोपाल

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