शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

पर्यावरण परिक्रमा

हरियाणा के किसान ने कचरे से बना ली बिजली

आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इस कहावत को आपने जरूर सुना होगा । लड़कपन से ही कुछ न कुछ नया सोचने की आदत रखने वाले रायसिंह को भी इसी कहावत ने कुछ नया करने का हौंसला प्रदान किया ।
आज साधारण किसान से इंजीनियर कहलाये जा रहे है । विधिवत् रूप से कोई डिग्री न होने के बावजूद उन्होनें कचरे से चलने वाला ऐनरसोल गैसीफायर बना डाला, खास बात यह है कि इस गैसीफायर से बिजली भी पैदा की जा सकती है । हनुमानगढ़ जिले के थालड़का के रायसिंह आज इस गैसोफायर के निर्माता है जो कि खेतों में पानी सींचने से लेकर बिजली पैदा करने के कामआ रहा है ।
वर्ष १९९९ में रायसिंह ने बिना तेल व बिजली के इंजन को चलाने पर अपनी रिसर्च शुरू की तथा इस कार्य मेंअथक मेहनत के बाद २००१ में सफल हो गया । सबसे पहले रायसिंह ने पांच केवी का इंजन बिना डीजल के चलाया । इसके परीक्षण के लिए, उसने किसानों को इस तरह के इंजन तैयार करके दिए ताकि इंजन सेट में आने वाली दिक्कतों का पता चल सके । समय के साथ-साथ उसमें सुधार होता गया ।
एक बार सफलता मिलने पर रायसिंह के कदम नहीं रूके और उसने जल्द ही १५ केवी का एक ऐसा गैसोफायर बना दिया है जो कचरे से चलता है । इस गैसोफायर से जनरेटर चलाकर बिजली भी बनाई जा सकती है तथा खेतों में ट्यूबवेल भी चलाए जा सकते है । बुलंद हौसले के साथ रायसिंह ने अपने गैसोफायर को भारत के विभिन्न प्रांतों के अलावा दक्षिण अफ्रीका, जर्मनी व कीनिया में भी भेजे हैं । रायसिंह के अनुसार इस वक्त भी अमेरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, कीनिया, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका आदि से गैसोफायर को लेकर चर्चाएं चल रही है ।
वह चाहता है कि सरकार यदि इस प्रोजेक्ट को बड़े स्तर पर शुरू करे तो न केवल हम बिजली व डीजल की बचत कर पाएंगे बल्कि गैसोफायर का निर्यात कर देश को आर्थिक लाभ भी पहुंचा सकते है । खेतों में पड़ा कचरा करें प्रयोग रायसिंह का गैसोफायर जनरेटर सरसों का तूड़ा, गोबर, पेड़-पौधों के पत्तो, मूंगफली व मक्के के छिलके, चावल व गेहूं का भूसा, नारियल का छिलके आदि से बड़ी आसानी से चल सकता है ।

न्यूक्लियर प्लांट की जगह पर बना पार्क
अकसर पार्क ऐसी जगह बनाए जाते हैं जहां पर खुला वातावरण और हरियाली हो । न कि ऐसी जगह जो खतरे से भरी हुई हो । लेकिन जर्मनी के शहर कल्कर के समीप स्थित बने इस पार्क के बारे मेंसुनकर आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे । ऐसा नहीं है कि यह खुले वातावरण में न बना हो, लेकिन न्यूक्लियर रिएक्टर प्लांट जैसी उस खतरनाक जगह पर बना है जहां कोई नहीं जाना चाहेगा । लेकिन ऐसा नहीं है । करोड़ों रूपए से बनने वाला यह न्यूक्लियर प्लांट शुरू होने से पहले ही बंद हो गया था । ८० हेक्टेअर में बने इस पार्क में हर साल करीब पूरी दुनिया से छह लाख पर्यटक यहां आते है ।
इस न्यूक्लियर पावर प्लांट के कूलिंग टॉवर में विशाल झूला लगाया गया है । १३० फीट ऊंची इसकी दीवार पर चढ़ने के लिए सीढ़िया लगाई गई है।
यह पार्क न केवल घूमने के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां रहने के लिए कमरों से लेकर बार, रेस्टोरेंेट, गोल्फ कोर्स, टेनिस कोर्स म्यूजियम जैसी सुविधाएं भी मौजूद हैं ।
इस प्लांट को जर्मनी ने १९७२ में बनना शुरू किया था । करीब २१.३ करोड़ रूपये की लागत के बाद इसे बंद कर दिया गया । कारण था यहां के स्थानीय लोगों का विरोध करना ।
एक डच व्यापारी ने न्यूक्लियर प्लांट सहित इस पूरी जगह को खरीद लिया । हालांकि इसे उन्होनें कितने रूपए में खरीदा इसका खुलासा नहीं किया गया ।
जापान में हुए हादसे के बाद परमाणु बिजली घरों को लेकर दुनिया में नई बहस शुरू हुई है । इसमें इस प्रकार के कदम से नई रोशनी मिलेगी ।

अंटार्कटिका से बहने वाली नदियों का नक्शा तैयार

वैज्ञानिकों ने पहली बार अंटार्कटिका महाद्वीप की बर्फ के नीचे बहने वाली उन नदियों का नक्शा तैयार करने का दावा किया है, जो समुद्र में जाकर मिलती हैं । ये नदियां अपने साथ अंटार्कटिका की बर्फ बहाकर समुद्र में ले जाती है ।
इससे जलवायु परिवर्तन के संदर्भ मेंभविष्य में समुद्र के स्तर के घटने या बढ़ने के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है । वैज्ञानिकों के अंतराष्ट्रीय दल ने यूरोप, जापान और कनाड़ा के उपग्रहों से मिली जानकारी के आधार पर ग्लेशियर बनने की प्रक्रिया का भी पता लगाया है । इनमें यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर एरिक रिगनॉट का अहम योगदान है । उन्होने समुद्र तक बर्फ के पहुंचने का मॉडल तैयार किया है, जो कि इससे पहले कभी नहीं बनाया गया ।
ब्रिटिश अखबार डेली मेल ने प्रोफेसर रिगनॉट के हवाले से लिखा है कि हमारी यह उपलब्धि ग्लेशियोलॉजी के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है । हमने यह पहचाना है कि कैसे अंटार्कटिका से नदियां बहकर समुद्र में मिलती है । धरती पर अंटार्कटिका में ही बर्फ का सबसे बड़ा भंडार है और अंटार्कटिका से पिघलने वाली बर्फ समुद्र के स्तर पर बड़ा प्रभाव डालती है ।



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