शनिवार, 17 सितंबर 2011

विशेष लेख

सर्पदंश : उपचार व रोकथाम
डॉ. वी.वी. पिल्लै

विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि भारत में हर साल सर्पदंश की डेढ़ से दो लाख घटनाएं होती हैं और कम से कम २० हजार लोगों की मौत हो जाती है ।
मनुष्यों में सर्प के विष से बचने के लिए स्वयं में प्रतिरक्षा प्रणाली का अभाव होता है । अन्य जहरों के उलट सांप का जहर करीब २० घटकों का जटिल मिश्रण होता है और प्रत्येक तत्व का मानव शरीर पर अलग-अलग ढंग से घातक असर पड़ता है । अलग-अलग प्रजाति के सांपों में जहर के घटक भिन्न-भिन्न हो सकते हैं । सांप के जहर के खिलाफ कोई ऐसा अकेला अपने आप में संपूर्ण रासायनिक प्रतिविष नहीं है जिससे जहर के असर को खत्म किया जा सके । जब जहर रक्त संचार तंत्र में प्रवेश करता है, तब एंटीबॉडी का उत्पादन तो होता है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत धीमी होती है । यदि शरीर में पहुंचे जहर की मात्रा बहुत ज्यादा है तो वह घातक साबित हो सकता है ।
सांप के जहर का सामना करने के लिए आधुनिक विज्ञान ने प्रतिरक्षा पद्धति के माध्यम से एक विज्ञानसम्मत तरीके का आविष्कार किया है । यह इस तरह से है : घोड़े या भेड़ों को सर्प विष की सहन करने लायक मात्रा दी जाती है और उनके सीरम से एंटीबॉडी एकत्र कर ली जाती हैं । इन्हें परिशुद्ध एवं परिष्कृत करके एंटी-स्नेक वेनम (एएसवी) बनाया जाता है जिसे एंटीवेनिन के नाम से भी जाना जाता है । इसी पद्धति के उन्नत संस्करण के रूप में सांपों की कई प्रजातियों के जहर की एंटीबॉडी एक साथ उत्पन्न कर ली जाती है, ताकि एक ही सीरम का इस्तेमाल अनेक प्रजातियों के सर्पदंश के खिलाफ किया जा सके । इसे पॉलीवैलेंट एंटीवेनिन कहा जाता है ।
एंटीवेनिन कोई दवा नहीं, बल्कि एक प्रकार का टीका है । यह विभिन्न जैविक अणुआें का एक पैकेज होता है जो प्रतिरक्षी ढंग से सक्रिय होते हैं । एंटीवेनिन देते ही उसके अणु विष के स्वतंत्र अणुआें से जुड़ जाते हैं और उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं । एंटीवेनिन जितना जल्दी दिया जाएगा, नतीजा भी उतना ही अच्छा होगा क्योंकि विष के अणु शरीर के अणुआें से मिलकर तुरन्त घातक असर दिखाने लगते हैं ।
पॉलीवैलेंट सीरम में करीब सौ जैविक घटक हो सकते हैं । इनमें से कुछ ही जहर को निष्क्रिय करने में काम आते हैं । बाकी का विपरीत असर पड़ सकता है । करीब २० फीसदी मामलों में विभिन्न विपरीत प्रभाव देखने में आते हैं । पॉलीवेनिन का इस्तेमाल जानलेवा विष से बचाने में किया जाता है । ८० फीसदी मामलों में बगैर किसी दिक्कत के जान बचा ली जाती है । केवल २० फीसदी मामलों में ही विपरीत असर होता है और वह भी बहुत हल्का । एंटीवेनिन से उपचार करते समय समुचित सावधानी बरतने से विपरीत प्रभावों से बचा जा सकता है ।
पूरी दुनिया के आंकड़े दर्शाते हैं कि एएसवी के आविष्कार के बाद सर्पदंश से होने वाली मौतों की संख्या में भारी गिरावट आई है । अब विकसित देशों में सर्पदंश से कभी-कभार ही मौत होती है । एएसवी से उपचार पूरी तरह से प्रमाणित है ।
तथ्य यह है कि ९९.९ फीसदी मामलों में मौत को टाला जा सकता है । इस भयावह स्थिति के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं, जैसे लोगों में जागरूकता का अभाव, गलत प्राथमिक चिकित्सा, उचित उपचार प्रदान करने में देरी, गलत उपचार इत्यादि । सांप के काटने पर भी कई बार डर की वजह से लोग सदमे में आ जाते हैं । दरअसल आंकड़े बताते है कि सर्पदंश के ७० फीसदी मामले विषहीन सांपों के काटने के होते हैं । शेष ३० फीसदी सर्पदंश की घटनाआें में भी करीब आधे मामलों में ही शरीर में इतना जहर पहुंच जाता है कि कोई विशेष शारीरिक समस्या पैदा होती है । इसका मतलब है कि सर्पदंश के ८५ फीसदी मामलों में केवल प्राथमिक देखभाल की जरूरत होती है और महज १५ फीसदी मामलों में ही विशेष उपचार आवश्यक होता है ।
यदि आप सर्पदंश की प्राथमिक चिकित्सा देने के लिए प्रशिक्षित नहीं है तो अच्छा यही होगा कि घटना स्थल पर आप कुछ न करें । रोगी को पास के ही किसी अस्पताल में ले जाएं । जितना संभव हो सके, रोगी को चलने-फिरने न दें । उसे आश्वस्त करें कि सांप जहरीला नहीं था । अस्पताल ले जाने के दौरान रोगी के शारीरिक लक्षणों (जैसे पलकों के भारीपन वगैरह) के बारे में चिकित्सक को बताएं ।
इलाज के समय सांप की पहचान की आवश्यकता नहीं होती है । एंटीवेनिन उपचार के शुरूआती दिनों में केवल मोनोवैलेंट एंटीवेनिन ही उपलब्ध था और इसलिए सांप की पहचान जरूरी होती थी । लेकिन आजकल पॉलीवैलेंट एंटीवेनिन बहुत प्रचलित है और यह सभी चार संभव जहरीली प्रजातियों के दंश में काम आता है । लिहाजा सांप की पहचान से अब कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है । एक प्रशिक्षित चिकित्सक रोगी के लक्षणों के आधार पर ही इस बात की पहचान कर लेगा कि किस तरह का जहर शरीर में गया है । इसलिए सांप को लाना बिलकुल भी जरूरी नहीं रह गया है । सांप को पकड़ने को कोशिश न ही करें तो बेहतर होगा क्योंकि इस चक्कर में वह और लोगों को काट सकता है । इसके अलावा सांप के पीछे भागने से रोगी की चिकित्सा में भी अनावश्यक देरी होगी।
घटना स्थल पर मौजूद व्यक्ति रोगी को ढाढ़स बंधाने के लिए बहुत कुछ कर सकता है । विषहीन सांप के काटे अधिकांश रोगियों को केवल इसलिए भर्ती किया जाता है कि वे बहुत ज्यादा घबरा जाते हैं । भावनात्मक सहारा और आशावादी सोच सबसे ज्यादा जरूरी होता है । यहां तक कि विषधारी सांप के काटने की स्थिति में भी यदि रोगी हौसला बनाए रखे तो वह उतनी ही जल्दी ठीक हो सकेगा । रोगी को आश्वस्त करें कि दंश नुकसानरहित है। यदि आप जानते हैं कि जिस सांप ने काटा है, वह जहरीला है तब भी क्षणिक झूठ का सहारा लेना चाहिए । सारे लक्षणों पर नजर रखें और अन्य जानकारी (जैसे दंश का सटीक समय इत्यादि) नोट करें । यह काफी इलाज के समय उपयोगी हो सकता है।
बचाव एवं रोकथाम :-
बचाव को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए ।
गौरतलब है कि सर्पदंश की घटनाएं कुछ निश्चित गतिविधियों के आसपास, कुछ निश्चित क्षेत्रों में, कुछ निश्चित समयों पर होती हैं । अध्ययनों से ये तथ्य सामने आए हैं -
(१) घास की कटाई और निंदाई के दौरान सर्पदंश की घटनाएं ज्यादा होती है ।
(२) रबर, नारियल और सुपारी की बागवानी मेंखाद बिछाने के लिए पेड़ों के आधार की सफाई करते समय भी सर्पदंश की काफी घटनाएं होती हैं । (३) तड़के (३से ६ बजे सुबह) रबर एकत्र करने और सब्जियां काटने व फलों की तुड़ाई के दौरान भी सर्पदंश की घटनाएं ज्यादा होती है ।
(४) चाय और कॉफी बागानों के श्रमिक पत्तियां तोड़ते समय वाइपरों की शांति में विध्न डालने का खतरा उठाते हैं ।
(५) रात को टॉर्च के बगैर, नंगे पैर अथवा केवल सैंडल या चप्पल पहनकर घर के बाहर जाने की वजह से ।
(६) शाम के समय तालाबों, झरनों या नदियों में स्नान के दौरान भी सर्पदंश की घटनाएं होती हैं । आम धारणा यह है कि पानी में काटने वाले सांप जहरीले नहीं होते हैं, जबकि तथ्य यह है कि कोबरा और अन्य जहरीले सांप पानी में प्रवेश कर सकते हैं और वे काफी अच्छे तैराके भी होते है ।
(७) तालाब या नदी के किनारे भी सर्पदंश का खतरा होता है ।
रोकथाम के कुछ उपाय :-
(१) रात के समय जूते या बूट पहनकर ही बाहर जाएं और साथ में हमेशा टॉर्च रखें ।
(२) घास की कटाई अथवा फल या सब्जियों की तुड़ाई या पेड़ों का आधार साफ करने के दौरान अपने साथ एक डंडा रखें । सबसे पहले डंडे से घास या पत्तियों को हिलाएं । वहां सांप हो तो उसे भागने का मौका दें ।
(३) जमीन पर पड़ी लकड़ियां बीनते समय पत्तियों व डंठलों को ध्यान से देखें कि कहीं वहां सांप तो नहीं है ।
(४) मवेशियों का चारा या खाद्य सामग्री और कचरा अपने घर से दूर रखें । इससे चूहे आकर्षित होते हैं जिन्हें खाने के लिए अंतत: सांप भी आएंगे ।
(५) जमीन पर सोने से बचें ।
(६) घरों के दरवाजों और खिड़कियों के पास पौधे नहीं होने चाहिए । सांप छिपने की जगह चाहते हैं और पौधों के जरिए उन्हें खिड़कियों से घर के अंदर आने में मदद मिलती है ।

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