शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

ज्ञान विज्ञान

सूरज और ग्रहों की निर्माण की नयी कहानी

ग्रहों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सूरज और सौरमण्डल के ग्रहों का निर्माण भी अब तक की धारणाआें से अलग तरीके से हुआ होगा । कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के नेतृत्व में वैज्ञानिकों के एक दल ने सूरज और ग्रहों में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के मामले में उनके अलग होने का खुलासा किया है ।
हमारे सौरमण्डल में यह दोनों गैसे प्रचुर मात्रा में है । नासा के २००४ जीनेसीस मिशन में प्राप्त् हुए नमूनों का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार यह अंतर बहुत कम है लेकिन इससे यह जानने में मदद मिल सकती है कि हमारा सौरमण्डल कैसेबना था । अध्ययन दल के नेतृत्वकर्ता केविन मैककीगन ने कहा कि हमने पाया कि पृथ्वी, चन्द्रमा और मंगल ग्रह तथा उल्कापिंड जैसे क्षुद्रगहों के नमूनों में ओ-१६ सूर्य की तुलना में कम मात्रा में है । उन्होने कहा कि आशय यह है कि हम सौर नीहारिका के उस पदार्थ को चिन्हित नहीं कर पाए जिससे सूरज बना है यह कैसे और क्यों हुआ, इस बात का पता लगाना अभी बाकी है गौरतलब है कि पृथ्वी पर वायु मण्डल ऑक्सीजन के तीन परमाणुआें के योग से बना है । इनमें मौजूद न्यूट्रॉनों की संख्या के आधार पर अंतर किया जाता है । सौरमण्डल में करीब १०० फीसदी ऑक्सीजन परमाणु ओ-१६ से निर्मित है लेकिन ओ-१७ और ओ-१८ नाम के ऑक्सीजन आइसोटोप बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है । नमूनों के अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि सूरज में ओ-१६ की मौजदूगी का प्रतिशत पृथ्वी या अन्य ग्रहों की तुलना में थोड़ा अधिक है । अन्य आईसोटोप का प्रतिशत थोड़ा कम है । नाइट्रोजन तत्व के मामले में सूरज और ग्रहों के बीच अंतर होने का पता चला है । ऑक्सीजन की तरह नाइट्रोजन का भी एक आइसोटोप है जिसका नाम एन-१४ है ।
इससे सौरमण्डल में करीब १०० फीसदी परमाणु का निर्माण होता है लेकिन एन १५ बहुत कम मात्रा में है । इन नमूनों का अध्ययन करने वाले दल ने पाया कि पृथ्वी की तुलना में सूरज और बृहस्पति में मौजूद नाइट्रोजन एन-१४ से कुछ अधिक है लेकिन एन-१५ से कुछ कम है । सूरज और बृहस्पति दोनों ही में नाइट्रोजन की समान मात्रा प्रतीत होती है । अध्ययन के मुताबिक जहां तक ऑक्सीजन की बात है, पृथ्वी और शेष सौरमण्डल नाइट्रोजन के मामले में बहुत अलग है ।


डायनासोर काल के जीव स्तनधारी होते थे

अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि डायनोसोर काल में समुद्र में रहने वाले कुछ जीव शावक को जन्म दिया करते थे । इससे पहले यही समझा जाता कि सरीसृप अंडो के जरिए ही नए जीवन का सृजन करते थे ।
अमेरिकी विज्ञान पत्रिका सांइस मेंप्रकाशित इस शोधपत्र में अमेरिका के मार्शल विश्वविघालय के प्रोफेसर फ्रैंक ओकी ने बताया कि दो वर्ष पहले पुरातत्वविदों ने मिसोजोइक कॉल के समुद्र में बसने वाले जीव प्लेसियोसोर के जीवाश्म को एक-एक हड्डी करके जोड़ना शुरू किया था ।
जब यह जीवाश्म पूरी तरह से बन गया तो उन्हें पता चला कि यह एक प्लेसियोसोर मादा और उसके गर्भस्थ शावक का जीवाश्म है । कीफ ने कहा कि यह बहुत ही अनूठी जानकारी थी । जब हमने इसे मौजूदा समय के समुद्री स्तनधारियों से जोड़कर देखा तो हमें पता चला कि प्लेसियोसोर बहुत सारे शावकों को जन्म देने के स्थान पर एक पूरी तरह से विकसित एवं स्वस्थ शावक को जन्म दिया करते थे ।
इससे पहले समझा जाता था कि प्लेसियोसोर आज के समय के कछुआें की तरह अंडे देने के लिए समुद्र के तट पर आया करते थे । वैज्ञानिकों ने इस बीच इस नन्हें प्लेसियोसोर शावक को मादा द्वारा खा लेने संबंधी आंशका को भी खारिज कर दिया । उन्होनें कहा कि इस नन्हें शावक की हडि्ड्यों पर कहीं भी चबाए जाने के निशान नहीं है और इसे देखकर पता चलता है कि यह गर्भ में विकास के चरणों में था जब इसकी मां की मौत हो गई हो । मीसीजोइक काल आज से करीब २५ करोड़ वर्ष पहले हुआ करता था । जुरासिक और मीसोजोइक काल के दौरान ही डायनोसोर और प्लेसियोसोर प्रजाति के जीवों का उद्भव हुआ था । डायनोसोर जंगलों में निवास करते थे और घोंसला बनाकर अपने अंडो को सेते थे । प्लेसियोसोर के बारे में भी अब तक कुछ-कुछ ऐसा ही समझा जाता था ।

आंतकवादी मंसूबे ताड़ने की मशीन

खबर है कि एक ऐसा यंत्र बनाया गया है जो यात्रियों के मन में पैदा हो रहे किसी भी दुर्भावना पूर्ण विचार को ताड़ लेगा । कहा जा रहा है कि इससे सुरक्षाकर्मियों को यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि कहीं आप अपराध तो नहीं करने वाले हैं ।
नेचर पत्रिका के मुताबिक यू.एस. घरेलू सुरक्षा विभाग द्वारा आंतकवादी मंसूबों का पूर्वाभास करने वाले कार्यक्रम फ्यूचर एट्रिब्यूट स्क्रीनिंग टेक्नॉलॉजी (फास्ट) का प्राथमिक परीक्षण भी पूरा हो गया है ।
दरअसल फास्ट झूठ पकड़ने वाली मशीन की ही तरह काम करती है और व्यक्ति के विभिन्न शारीरिक लक्षणों को रिकार्ड करती है - जैसे हृदय गति, निगाहों की स्थिरता ताकि उसकी मानसिक स्थिति को अंदाज लगाया जा सके । मगर पोलीग्राफ टेस्ट और इसमें एक महत्वपूर्ण फर्क यह है कि फास्ट में व्यक्ति को स्पर्श किए बगैर ही ये सारी बातें जांचनी होती है, उदाहरण के लिए जब व्यक्ति हवाई अड्डे के गलियारे से गुजर रहा हो । इसमें व्यक्ति से पूछताछ की भी गुजाइश नहीं है ।
फिलहाल फास्ट का परीक्षण सिर्फ प्रयोगशाला में ही हुआ है और मैदानी परीक्षण का इंतजार है । परीक्षण का तरीका यह रहा है कि इस यंत्र के सामने से गुजरने से पहले कुछ व्यक्तियों को कहा जाता है कि वे कोई विध्वंसक कार्य करने की तैयारी करें । वैज्ञानिकों के सामने अहम सवाल यह है कि क्या इस तरह के व्यक्ति वास्तविक आतंकवादी के द्योतक है । इस बात को लेकर भी चिंता जाहिर की जा रही है कि जब लोगों को पता होगा कि ऐसा कोई यंत्र काम कर रहा है तो उनका व्यवहार बदल जाएगा । घरेलू सुरक्षा विभाग का कहना है कि प्रयोगशाला परीक्षणों में इस यंत्र की सत्यता ७० प्रतिशत आंकी गई है ।
इस संदर्भ में कई वैज्ञानिकों ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या वास्तव में दुर्भावनापूर्ण मंसूबों का कोई अनूठा लक्षण होता है जिसे आप यात्रा के दौरान होने वाले सामान्य अफरा-तफरी से अलग करके देख सकें । देखा गया है कि यदि आप किसी के फिंगरप्रिंट भी लेना चाहेंतो सामान्यत: व्यक्ति की धड़कन बढ़ जाती है ।
फेडरेशन ऑफ अमरीकन साइन्टिस्ट के स्टीवन आफ्टरगुड का मत है कि इस टेस्ट में कुछ हासिल नहीं होगा, सिवाय इसके कि आपको खतरे की मिथ्या घंटियां सुनाई पड़ती रहेगी, जिनके चलते आम नागरिकों के लिए यात्रा करना एक दुखदायी अनुभव बन जाएगा । उनके हिसाब से यह मान्यता ही गलत है कि दुर्भावना का कोई शारीरिक या कार्यिकीय पहचान चिन्ह होता है । इस तथ्य के मद्देनजर यह कवायद एक नौटंकी से ज्यादा कुछ नहीं है ।

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