मंगलवार, 27 फ़रवरी 2007

खास खबर


ओजोन परत में क्षति पर्यावरण के लिए संकट

(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)

सूरज की घातक पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करने वाली ओजोन परत में उत्तरी अमेरिका से भी बड़े आकार का छिद्र बनने से यह रिकॉर्ड क्षति की कगार पर जा पहँची है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा)और नेशनल ओशनिक एंड एटमोस्फयीरिक एडमिनिस्टेशन (नोआ) की ओर से हाल में जारी की गई संयुक्त रिपोर्ट के मुताबिक 21 सितम्बर से लेकर 30 सितम्बर के बीच अंटाकर्टिक यानी दक्षिणी ध्रुव के ऊपर वायुमंडल में ओजोन की परत में अब तक का सबसे बड़ा छिद्र देखा गया है।

धरती के वायुमंडल की स्थिति पर निगरानी रखने वाले नासा के मौसम उपग्रह (ओरा) से प्राप्त ऑंकड़ो के मुताबिक इस अवधि में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर समपात मंडल (स्ट्रैटस्फयीर) में ओजोन परत में 1 करोड़ 60 लाख वर्ग मील का छिद्र देखा गया जो कि अब तक का एक रिकॉर्ड है।

मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन परत को यह नुकसान वायुमंडल में ब्रोमाइन और क्लोरिन जैसी ग्रीन हाउस गैसों के बड़ी मात्रा में उत्सर्जन से पहुँचा है। मेरीलैंड के ग्रीनबेल्ट स्थित नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर के वैज्ञानिक पाल न्यूमैन के मुताबिक इस क्षति की वजह से ओजोन परत की मोटाई इस क्षेत्र में 300 डाब्सन यूनिट के सामान्य स्तर से घटकर 83 डाब्सन यूनिट तक जा पहुँची है। डाब्सन यूनिट ओजोन परत की नाप का एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पैमाना है।

नोआ के निदेशक डेविड हाफ्मैन के मुताबिक ओजोन में आई इस क्षति का साफ मतलब इस क्षेत्र में समताप मंडल में इस गैस का नहीं के बराबर रह जाना है या फिर दूसरे शब्दों में यह पूरी तरह खत्म हो चुकी है। पर वाशिंगटन के कार्नेगी संस्थान के वैश्विक पारिस्थितिकी विभाग में कार्यरत् वैज्ञानिक श्री केन कैलडेरिया मानते है कि वर्तमान स्थिति इतनी ज्यादा गंभीर भी नहीं है, क्योंकि ओजोन परत में क्षरण होने के बावजूद कुछ समय बाद स्वतः सामान्य स्थिति में आ जाने की प्राकृतिक क्षमता विद्यमान है। हालाँकि यह रफ्तार बेहद धीमी होती है और ऐसे में माजूदा छिद्र भी अगले दशक में 0.1 या .0.2 प्रतिशत की रफ्तार से ही भर सकेगा और पूरी तरह भरने में इसे कई वर्षो का सामना लग सकता है।

हल्के नीले रंग की तीव्र गंध वाली ओजोन गैस वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत समताप मंडल में धरती से 9 से 30 मील की दूरी तक पाई जाती है। धरती पर बसने वाले जीव-जंतुओं और वनस्पतियों के साथ-साथ मानवों के लिए भी यह सुरक्षा कवच की तरह काम करती है। इसकी परत में प्रवेश करते ही सूर्य की घातक पराबैंगनी किरणों का दुष्प्रभाव खुद ही नष्ट हो जाता है। पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों में यह परत ज्यादा मोटी और अन्य क्षेत्रों में अपेक्षाकृत पतली होती है।

ओजोन की अनुपस्थिति में सूर्य की पराबैंगनी किरणें यदि सीधे धरती पर पड़ने लगें तो यह मानवों में चर्म कैंसर के साथ-साथ जीवन की संरचना के मूल आधार डीएनए को भी बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर सकती है। ओजोन की प्राकृतिक संरचना कुछ ऐसी ही है कि गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में हानिकारक गैसो का दुष्प्रभाव ओजोन पर ज्यादा तेजी से होता है। लिहाजा उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के क्षेत्रों में हानिकारक ग्रीन हाउस गैसों इसके लिए एक बड़ा खतरा होती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक आमतौर पर ग्रीन हाउस गैसें खासतौर पर औद्योगिक प्रतिष्ठानों और वातानुकूलित उपकरणों में इस्तेमाल की जाने वाली क्लोरोफ्लोरो कार्बन (सीएफसी) ओजोन परत के लिए सबसे ज्यादा हानिकारक होती हैं। पर दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में ओजोन परत में आए मौजूदा क्षरण के लिए वैज्ञानिक ब्रोमाइन और क्लोरिन जैसी गैसों के बड़ी मात्रा में उत्सर्जन और मौसम में आए अप्रत्याशित बदलावों को मूल रुप से जिम्मेदार मान रहे हैं।

सन् 1985 में विएना समझौते और बाद में 1987 की मांट्रियल घोषणा के तहत प्रतिबंध लगाया जा चुका है, लेकिन विश्व मौसम संगठन और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा ओजोन के क्षरण के कारणों और इसके सुरक्षा के उपायों की आलकन रिपोर्ट में कहा गया है कि ओजोन को बचाने के लिए सिर्फ ये प्रयास पर्याप्त नहीं है।

इसके लिए जरुरती है कि दुनिया के सभी देश अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसा समझौता करें, जिसके तहत ओजोन को नुकसान पहुँचाने वाली हानिकारक गैसों में इस्तेमाल पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाया जाए।

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1 टिप्पणी:

हरिराम ने कहा…

ओजोन परत में छिद्र समग्र विश्व के अस्तित्व के लिए भारी खतरा है। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार अक्टूबर 1999 में ओड़िशा में आया महाचक्रवाती तूफान आने का कारण भी यही था। इसका कारण वायु प्रदूषण है। सचमुच सबसे बड़ा पाप है यह।