सोमवार, 14 सितंबर 2009

१२ खास खबर

पानी पर सोचने का समय आ गया है
(हमारे विशेष संवाददाता द्वारा)
पिछले दिनों नासा के एक मिशन ने भारत के उत्तरी राज्यों में ग्राउंड वाटर या भूमिगत जल के गिरते स्तर के बारे जेा रहस्योद्घाटन किया है वह हमारे लिए एक बहुत बुरी खबर है । जल कीउपलब्धता दिनों दिन कम होती जा रही है । पृथ्वी की कक्षा में चक्कर लगा रहे नासा के दो उपग्रहों ने जमीन के भीतर पानी की उपस्थिति का पता लगाते हुए भारत के उत्तरी राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में ग्राउंडवाटर के स्तर में भारी गिरावट दर्ज की है । नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि इन राज्यों में पानी हर साल १७.७ घन किलोमीटर की दर से गायब हो रहा है जबकि सरकारी अनुमान अब तक १३.२ घन किलोमीटर प्रतिवर्ष का रहा है । इस पृष्ठभूमि में योजना आयोग का यह अध्ययन और भी अधिक ध्यान खींचने वाला साबित हो जाता है जिसमें कहा गया है कि अगले ३५ से ४० वर्षोंा के बीच भारत में वर्ष जल और भू-जल की भारी कमी होने वाली है । क्षुद्र राजनीतिक मसलों में जूझती हमारी सरकारें आज और अभी से आगे नहंी देख पातीं । जरूरत इस बात की है कि मानवीय अस्तित्व से जुड़े मसलों पर सोचा जाए और नीतियाँ बनाकर बकायदा परिणामों पर नज़र रखी जाए । पंजाब और हरियाणा उन राज्यों में से हैं जिन्होंने हरित क्रांति को सचमुच अपनी जमीन पर उतारा है । पर नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि धान का कटोरा माने जाने वाले उत्तर भारत के राज्यों खासकर पंजाब और हरियाणा में भूजल हर साल एक फुट नीचे गिरता जारहा है । इस पानी का ९० प्रतिशत हिस्सा सिंचाई के काम में खर्च हो रहा है । तो क्या हमें सिंचाई पर अपनी नीति पर नए सिरे से विचार करना चाहिए ? भारत में कृषि काफी हद तक मानसून पर निर्भर है लेकिन शहरी विकास के मामले में दिखाई गई कल्पनाहीनता के कारण वर्षा जल का समुचित उपयोग नहीं हो पाता । वह प्राय: बाढ़ का रूप लेकर बेकार चला जाता है । वह रिसकर उतना पृथ्वी में नहीं पहुंच पाता जितना कि हर साल कुआें, हैण्डपंपों, ट्यूबवेलों के जरिए जमीन के अंदर से खींच लिया जाता है । भूजल का गिरता स्तर एक उत्तर भारतीय घटना ही नहीं , समूचे भारत में भूजल का स्तर लगातार खतरनाक ढंग से गिर रहा है । इस पृष्ठभूमि में कोढ़ में खाज वाली बात यह है कि इस समय देश के आधे जिले सूखे की चपेट में हैं और सरकार के पास इसके अलावा अैर कोई चारा नहंी है कि वह हैंडपम्प आदि लगाकर भूजल का और दोहन करे । जाहिर है इससे भूजल का स्तर और नीचे गिरेगा । सरकार खड़ी हुई फसलों को बचाने के लिए इस साल ट्यूबवेलों पर वैसे भी कहीं ज्यादा आश्रित होती जा रही है । मानसून की बेरूखी से पानी की कमी तो है ही, जितनी बारिश हो रही है उसका बड़ा हिस्सा इस साल भी यूं ही समुद्र में बह जाएगा । केंद्र के दो दशकों के प्रयासों के बावजूद भी राज्य सरकारें भूजल के रिचार्ज की दिशा मंे कारगर उपाय नहंी कर पाई है । छह को छोड़ बाकी राज्यों ने बारिश के पानी के संचयन को कानून तक नहीं बनया । प्रमुख अन्न उत्पादक राज्यों में से एक पंजाब ने तो ऐसा कानून बनाने से इनकार ही कर दिया है । राज्यों की उदासीनता का ही नतीजा है कि सामान्य तौर पर बारीश से मिलने वाले १८६९ अरब घनमीटर पानी में से सालाना मात्र ११२३ अरब घनमीटर जल का ही भंडारण हो रहा है और करीब ४१ फीसदी यानी ७६४ अरब घनमीटर पानी समुद्र में बह रहा है । जबकि सूचो से निपटने के लिए भूजल ही प्रमुख उपाय रहा है । केंद्र पिछले दो दशकों से मॉडल बिल भेजकर राज्यों से भूमिगत जल बचान के लिए कानून बनाने का आग्रह करता रहा है । दो साल पहले भूजल के रिचार्ज के लिए राज्यों को मास्टर प्लान भी भेजा लेकिन आंध्र प्रदेश , हिमाचल प्रदेश, केरल, बिहार,पं. बंगाल और गोवा ने ही घरों में वर्षा जल संचयन अनिवार्य करने समेत भूजल के बेतरतीब इस्तेमाल पर अंकुश लगाने का प्रयास किया। जबकि सौ फीसदी से ज्यादा भूजल का दोहन कर रहे पंजाब,हरियाणा, दिल्ली,राजस्थान, पोंडिचेरी और दमनदीव से लेकर ७० फीसदी दोहन करने वाले उत्तर प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक चुप्पी साधे हैं । हालत यह है कि छह सौ में से ३६२ जिलों में भूजल बोर्ड के अध्ययन के मुताबिक कई क्षेत्रों में सालाना २० सेंटीमीटर की रफ्तार से भूजल स्तर गिर रहा है । पंजाब और हरियाणा में यह दर चार फीट तक है । अब समय आ गया है कि जब पानी और सिफ र्पानी के बारे में सोचा जाए और पानी के प्रश्न को तमाम राष्ट्रीय-अंतराष्ट्रीय मसलों पर तरजीह देनी शुरू की जाए क्योंकि पानी नहीं रहा तो जीवन भी कैसे बचेगा ?***

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