सूक्ष्म तरंगी अवन के दुष्प्रभाव
प्रो. ईश्वरचंद शुक्ल/बृजेश सिंह/विनोद कुमार
आधुनिक जीवन शैली में शीघ्रता हेतु उन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है जो कि समय की बचत करे तथा कम से कम श्रम करना पड़े । भोजन बनाते तथा उसे रफ्रिजरेटर में रखकर आवश्यकता के समय पुन: गर्म करने के लिए पारम्परिक विधि के अतिरिक्त कई विद्युत एंव इलेक्ट्रानिक उपकरणों का प्रयोग भी किया जाता है । इनमें से सबसे आधुनिक एंव सुविधाजनक है सूक्ष्मतरंगी अवन (माइक्रोवेव अवन) । इसका आविष्कार सर्वप्रथम पारसी स्पेन्सर रेथियान के लिए मैग्नाट्रान बनाते समय किया गया । रेथियान ने १९४६ में सूक्ष्मतरंगों द्वारा भोजन बनाने का पेटेन्ट करवाया तथा १९४७ मे पहला सूक्ष्म तरंगी अवन तैयार किया । जिसका नाम राडोरन्ज रखा गया । इसका आकार लगभग १.८ मीटर तथा भार ३४० किग्रा. था । यह जल शीतित तथा ३००० वाट का विकिरण पैदा करता था जो कि आधुनिक सूक्ष्मतरंगी अवन से तीन गुना था । तत्पश्चात लिटन ने १९६० में छोटे आकार का नया अवन बनाया जो कि आजकल प्रयोग किया जा रहा है । सूक्ष्म तरंगी अवन में सूक्ष्म तरंगों के प्रयोग द्वारा भोजन पकाया जाता है । प्रत्येक अवन में एक मैग्नाट्रान होता है जो कि एक नली के आकार का होता है । इसमें इलेक्ट्रानों को चुम्बकीय तथा विद्युत क्षेत्र से इस प्रकार प्रभावित किया जाता है कि २४५० मोगा हर्ट्ज (चकू) या २.४५ गीगा हर्ट्ज (ऋकू) का सूक्ष्म तरंगी विकिरण प्राप्त् हो सके । यही सूक्ष्म तरंगी विकिरण भोजन के अणुआें से क्रिया करता है । सम्पूर्ण तरंग शक्ति ध्रुवता को धनात्मकता से ऋणात्मकता में प्रत्येक तरंग चक्र के साथ बदल देती है । सूक्ष्मतरंगी अवन से ध्रुवण के यह परिवर्तन प्रत्येक सेकेन्ड में लाखों बार होते हैं । भोजन में विशेषत: जल के अणु में एक धनात्मक तथा एक ऋणात्मक सिरा उसी तरह होता है जैसा कि चुम्बक में उत्तरी तथा दक्षिणी धु्रवण होता है । व्यावसायिक रूप में प्रयोग होने वाली सूक्ष्म तरंगी अवन के लिए १००० वाट की प्रत्यावर्ती धारा की आवश्यकता पड़ती है । मैग्नाट्रान द्वारा उत्पन्न सूक्ष्मतरंगें खाद्य पदार्थोंा पर बमबारी करती है, जिससे ध्रुवीय अणु का धूर्णन उसी आवृति पर एक सेकेण्ड में लाखों बार होने लगता है। यह प्रक्षोभ अणुआें में घर्षण पैदा करता है जिससे भोजन गर्म हो जाता है। इस प्रकार उत्पन्न असामान्य ताप निकटवर्ती अणुआें को सम्पूर्ण रूप में आघात भी पहुँचाता है । इससे कभी-कभी अणु का विदारण हो जाता है या बल प्रयोग के कारण विकृत हो जाते हैं । सूक्ष्म तरंगी अवन भोजन में जल के अणुआें में कम्पन पैदा करता है जिससे एक विशेष इलेक्ट्रान नली जिसे मैग्नाट्रान कहते है सूक्ष्मतरंगें पैदा करती है । समताप हेतु मैग्नाट्रान अपनी तरंगों को एक घूर्णित धातु चक्रिका की ओर निर्देशित है, जो कि पुच्छों को आफसेट करती है तथा तरंग को अवन कोटर में प्रसारित कर देती है । कभी-कभी भोजन हेतु एक घूर्णित पटि्टका का अतिरिक्त प्रयोग भी किया जाता है ।पावर अस्तम सतत् निर्गमन मैग्नाट्रान आन-आफ द्वारा परिवर्ती समय में विकिरण को कम कर सकता है। मैग्नाट्रान में क्वार्ट्ज तथा हैलोजन बल्ब लगाकर भोज्य पदार्थ को भूरा किया जा सकता है जो कि मात्र सूक्ष्म तरंगे नहीं कर सकती । सूक्ष्म तरंगे वस्तु के गुण के अनुसार पारगत, परावर्तित अथवा शेषित होती है । सूक्ष्मतरंगी अवन के कुछ लाभ भी हैं । इससे भोजन बनाने में समय की बचत होती है । प्रचलित तरीके से भोजन बनाने में समय अधिक लगता है तथा ऊर्जा की हानि भी होती है । सूक्ष्मतरंगी अवन में केवल भोज्य पदार्थ ही गर्म होता है जबकि प्रचलित तरीके से भोजन बनाने मेंजल, तेल, घी या हवा को गर्म करना पड़ता है । इसमें जिस पात्र में भोज्य पदार्थ को रखा जाता है वह गर्म नहीं होता अत: इंर्धन की बचत होती है जिसमें धन भी कम व्यय होता है । सभी पोषक पदार्थ भोजन में बने रहते हैं, नष्ट नहीं होते । सूक्ष्म तरंगी अवन में प्रोटीन युक्त भोजन भूरा नहीं होता । इस प्रकार के समानीत आक्सीकरण से भोजन में विटामिन अ तथा ए के नष्ट होने की सम्भावना कम रहती है । सूक्ष्म तरंगी अवन में शीघ्रता से गर्म किये गये भोजन के पोषक तत्व अधिक सुरक्षित रहते हैं जबकि गैस या स्टोव पर अधिक देर तक गर्म किये भोजन में इतनी सुरक्षा नहीं रहती । समान्यत: हानिकारक सूक्ष्म जीव ५०जउ-६०जउ के ताप पर पनपते हैं लेकिन जब आप सूक्ष्म तरंगी अवन में भोजन पकाते हैं तो शीघ्रता से पकता है तथा शीघ्रता से परोसा जा सकता है । इस प्रकार हानिकारक तापक्रम पर भोजन कम देर तक रहता है जिससे विषाक्तता में बचाव होता है । अब आइये उन कारणों की ओर ध्यान दें जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं । सर्व प्रथम तो भोजन शीघ्र गर्म होने के कारण समान रूप से पक नहीं पाता । सूक्ष्म तरंगी अवन का प्रयोग अधिकांशत: पहले से पकाये हुए भोजन को पुन: गर्म करने के लिए किया जाता है । इस क्रिया में कीटाणु संक्रमण पूर्ण रूप से नष्ट होने की सम्भावना रहती है । अत: आहारजनित बीमारियों के फैलने का भय रहता है । असमान ताप आशत: सूक्ष्म तरंगी ऊर्जा के असमान वितरण तथा अशत: भोजन में ऊर्जा के विभिन्न दरों पर अवशोषण के कारण होता है । इस सामान्य दोष के अतिरिक्त तीव्र खतरा अन्य कारणों से भी होता है। सूक्ष्म तरंगी अवन में जब द्रवों को चिकने तल वाले बर्तन में गर्म किया जाता है तो वे अति तप्त् हो जाते हैं अर्थात उस तापक्रम पर बिना उबले हुए ही पहुँच जाते हैं जो कि उनके क्वथनांक से कुछ अंश सेल्सियस ऊपर होता है । इसमेंउबलने की क्रिया विस्फोटक रूप से तब प्रारम्भ हो सकती है जबकि बर्तन को अवन से बाहर निकाला जाता है । इससे अवन चलाने वाला घातक रूप से जल सकता है । कुछ पात्र जैसे कांटा सूक्ष्म तरंगी अवन में रखने से चिन्गारी पैदा करतेहैं । इसका कारण यह है कि कांटा एन्टिना का कार्य करता है तथा सूक्ष्म तरंगी विकिरण का अवशोषण उसी प्रकार दूसरे धातु के बर्तन जैसे चम्मच आदि । कांटे के नुकीले सिरे विद्युत क्षेत्र को सान्द्रित करने का कार्य करते हैं । इसका प्रभाव वायु का परावैद्युत प्रवणता का अत्यधिक बढ़ाकर लगभग ३ मेगावोल्ट प्रति मीटर (३द१०६चशत/च) कर देता है, जो कि चिन्गारी उत्पन्न करता है । यह प्रभाव सेन्ट एलमा (डीं. एश्राि ी) आग के प्रभाव के समान ही होता है । सूक्ष्म तरंगी अवन के उच्छादन जैविक प्रभाव अत्यन्त हानिकारक होते हैं। लगातार सूक्ष्म तरंगी अवन में बनाया हुआ भोजन लेने से दीर्घकालिक स्थायी मस्तिष्क क्षति पैदा होती है । यह प्रभाव मस्तिष्क के ऊतकों में विद्युत आवेग को लघु बनाने अर्थात् अधु्रवीकरण या अचुम्बकीय बनाने के कारण होता है । मनुष्य का शरीर सूक्ष्मतरंगी भोजन द्वारा उत्पादित अज्ञात उपउत्पादों का उपापचयन नहीं कर सकता है । सूक्ष्मतरंगित भोजन के उपउत्पाद शरीर के अन्दर स्थायी रूप में पड़े रहते हैं । सूक्ष्म तरंगी अवन द्वारा पकाई हुई शाक-सब्जियों के खनिज कैन्सर कारक मुक्त मूलकों में परिवर्तित हो जाते हैं । सूक्ष्म तरंगित ब्रोकोली तथा गाजर पर किये गये ऊतकीय अध्ययन द्वारा ज्ञात हुआ है कि इनके पोषक तत्व उच्च् आवृत्ति उत्क्रमणीय ध्रुवण के कारण विरूपित हो जाते हैं, यहंा तक कि कोशिका भित्ति फट जाती है , जबकि पारम्परिक तरीके से पकाये गये भोजन में कोशिका संरचना सुरक्षित रहती है । कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य को सूक्ष्मतरंगी बीमारी भी हो सकती है । इनके मुख्य लक्षण है । रक्त्तचाप तथा धीमी नाड़ी गति ।बाद में सर्वाधिक सामान्य अभिव्यक्ति दीर्घकालीन अनुकंपिका नाड़ी तंत्र का उत्तजित होना तथा उच्च्रक्त चाप का होना पड़ता है । इस दशा में अधिकतर सिर दर्द, चक्कर आना,नेत्रपीडा,अनिद्रा, चिडचिडापन, संताप,पेट दर्द,तंत्रिका तनाव ध्यान केन्द्रित करने की अक्षमता,गंजापन,तथा एपेन्डि साइटिस की प्रबलता की सम्भावना, मोतियाबिन्द , प्रजनन समस्या तथा कैंसर आदि विकारों का होना होता है । इसकी भी पुष्टि की गई है कि बच्चो के सूक्ष्म तरंगित भोजन में कुछ ट्रांस अमीनो अम्ल संश्लेषित समावयवी अमीनो अम्लों में परिवर्तित हो जाते हैं । संश्लेषित समावयवी चाहे वे सिस अमीनों अम्ल हो अथवा ट्रांस वसीय अम्ल, जैविक रूप से क्रियाशील नहीं होते इसके अतिरिक्त अमीनो अम्लों मे से एक ङ- प्रोलीन व- समायवी में परिवर्तित हो जाता है जो कि तंत्रिका विषालु (तंत्रिकाआें के लिए जहरीला ) तथसा ग्रेफो विषालु (गुर्दो के लिए जहरीला) होता है । यह अत्यंत दुखद है कि अधिकांश बच्चें को दूध नहीं पिलाया जाता बल्कि उन्हें डिब्बे का दूध पिलाया जाता है जो कि सूक्ष्म तरंगित होता है । एक लघु अध्ययन में पाया गया कि सूक्ष्म तरंगित दूध तथा सब्जियों के सेवन से व्यक्ति के रूधिर में विक्षुब्ध परिवर्र्तन हो जाते हैं । आठ स्वयं सेवकों ने विभिन्न प्रकार के पकाये गये उसी भोजन को खाया । सभी भोज्य पदार्थ जो कि सूक्ष्म तरंगी अवन द्वारा पकाये गये थे से सभी स्वयं सेवकों के रक्त में परिवर्तन पैदा हो गये थे । हीमोग्लोबिन स्तर घट गया तथा सफेद रक्त कोशिका तथा कोलेस्टराल का स्तर बढ़ गया । लिम्फोसाइट की संख्या भी घट गयी । एक अन्य प्रयोग में संदीप्त् जीवाणुआें को रक्त में ऊर्जा परिवर्तन के अध्ययन हेतु उपयोग किया गया । इन जीवाणुआें को जब उस रक्त सीरम में अनाव्रत किया गया तो उनमें सार्थक संदीपन वृद्धि पायी गई । इतने दुष्परिणामों का प्रभाव बचाव के उपाय अपना कर कम किया जा सकता है । सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखें कि हिम शीतित भोजन को पकाने के पहले उसे सूक्ष्म तरंगी अवन में ठीक से गर्म कर लें अन्यथा शीतित बिन्दु जीवाणु स्तर को बढ़ाने का कार्य करेंगे । सम्पूर्ण पाक क्रिया के लिए आवश्यक है कि भोज्य पदार्थ को छोटे टुकड़ों में काट लिया जाय क्योंकि छोटे टुकड़े बड़े टुकड़ों की तुलना में समान रूप से पकते हैं । पाक क्रिया की थैलियां ढक्कन या बर्तन को प्लास्टिक की पतली परत से ढक दिया जाये तो भोजन समान रूप से पकेगा तथा हानिकारक कीटाणु भी नष्ट हो जायेंगे। समान ताप रखने के लिए छिछले तथा गोलाकार बर्तनों का प्रयोग करना चाहिए। चौकोर तथा गहरे बर्तन में समान ताप क्रम नहीं रह पाता । भोजन पकाते समय भोज्य पदार्थ को कम से कम एक बार अवश्य चलाना चाहिए । जिन पदार्थोंा को चलाया नहीं जा सकता उन्हें कुछ देर तक अवन में ही छोड़ दें जिससे ऊष्मा का संचालन समान रूप से हो जाय । सर्वदा मानक समय जो कि सूक्ष्मतरंगी भोज्य पदार्थ जैसे पापकार्न या पूर्व पैक भोजन पर दिया रहता है पालन करना चाहिए । स्टफ की हुई पोल्ट्री को गर्म नहीं करना चाहिए क्योंकि उसके रोगाणुआें का विनाश पहले ही हो जाता है । कभी भी छिलके सहित अण्डे को नहीं गर्म करना चाहिए अन्यथा छिलके के अन्दर बनी भाप से अण्डा फट सकता है । द्रव या अन्य भोजन अतिउष्ण हो सकता है अर्थात जब उन्हें हिलाया जायेगा या विचलित किया जायेगा तो विस्फोटक रूप से उबलने लगेंगे । सदैव दिये गये समय तक ही पाक क्रिया करें। यदि आपको नहीं ज्ञात है। कि भोजन को कितने समय तक पकाया जाय तो उसे सूक्ष्म तरंगी अवन में ही कुछ देर के लिए छोड़ दें तब बाहर निकालें । सूक्ष्म तरंगी अवन के प्रयोग के समय कुछ सुरक्षा के उपाय भी अपनाने चाहिए । अवन में दिये गये सुझावों को ध्यान से पढ़े तथा पास मेें ही रखें जिससे आवश्यकता पड़ने पर देखा जा सके । केवल सूक्ष्मतरंगी अवन के लिए बनाये गये बर्तनों का ही उपयोग करें । शीशे या चीनी मिट्टी के बने बर्तन अतितप्त् होकर हानि पहुँचा सकते है । कभी भी प्लास्टिक थैलियों, अखबार या कागज का अतिशीतित पदार्थो जैसे आइसक्रीम के पात्रों का उपयोग सूक्ष्मतरंगी अवन में न करें । प्लास्टिक पात्र या परत जो कि विशेष रूप से सूक्ष्मतरंगी अवन के लिए न बनाई गई हो, का प्रयोग भी न करें अन्यथा तप्त् प्लास्टिक के अणु भोजन में प्रवेश कर जायेंगे । कभी प्लास्टिक पर्तोंा जो कि सूक्ष्म तरंगी अवन के लिए बने हैं का भी भोजन से स्पर्श न करें, जिससे प्लास्टिक के रसायन भोजन में न जाने पावें । वसायुक्त भोजन पकाने हेतु सुक्ष्मतरंगी अवन के लिए बनाए ये शीशे के पात्रों का ही प्रयोग करें क्योंकि प्लास्टिक के योज्य उच्च् ताप पर वसा युक्त भोजन में चले जाने की संभावना रहती है । कभी भी धातु के पात्रों या धातु लगे हुए अन्य पात्रों का प्रयोग न करें । सर्वदा बच्चें को जब वे सूक्ष्म तरंगी अवन का प्रयोग कर रहे हों सिखाते रहे तथा ध्यान रखें । उन्हें सुरक्षित प्रयोग के बारे में बतायें तथा संभावित खतरों से सावधान रहने का तरीका बतावें । इस प्रकार हम पाते है कि सूक्ष्मतरंगी अवन हमारे लिए मित्र तथा शत्रु दोनों का कार्य कर सकती है । हमारा प्रयास यह है कि हम उसका प्रयोग सुविधा तथा स्वास्थ्य के लिए करें । जिस तरह विद्युत हमारे लिए विनम्र सेवक है परन्तु त्रुटि होने पर प्राण घातक भी हो जाती है, उसी प्रकार सूक्ष्मतरंगी अवन के बारे में भी सोचना चाहिए । हम आधुनिक सुविधाआें को नकार नहीं सकते लेकिन अपने स्वास्थ्य को खराब करने में भी समझदारी नहीं है । ***
बाघ संरक्षण के लिए दोगुना आवंटन
बाघ संरक्षण केंद्र सरकार की उच्च् प्राथमिकताआें में शामिल है । ऐसे में बाघ परियोजना के लिए आम बजट में २००९-१० में १८४ करोड़ रूपए का प्रावधान किया गया है जबकि २००८-०९ में यह रकम ७२ करोड़ रूपए थी। बाघ परियोजना एक स्वायत्तशासी व्यवस्था है जिसके तहत बाघों को संरक्षित करने की कोशिश की जा रही है । ताजा अनुमानों के अनुसार इनकी संख्या पूरे देश में घटकर १४११ रह गई है । इस बार के बजट में राष्ट्रीय नदी व झील संरक्षण योजना के लिए ५६२ करोड़ रू. का प्रावधान है जो पिछली बार की तुलना में २२७ करोड़ रूपए ज्यादा है ।
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