औद्योगिक विकास की डूबती नब्ज
मार्टिन खोर
एशिया के देशों में भारत और चीन को छोड़कर अधिकांश देश ऋणात्मक वृद्धि दर का शिकार हो गए हैं । इस मंदी का सर्वाधिक शिकार निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था वाले देश हैं । मौजूदा आर्थिक संकट ने वैश्विक स्तर पर नई आर्थिक सोच विकसित करने को भी बाध्य किया है । इतना ही नहीं अब मध्य और पूर्वी यूरोप भी इस आर्थिक संकट की जबरदस्त चपेट में हैं और स्पेन जैसा विकसित राष्ट्र भी भयानक बेरोजगारी में उलझ गया है । वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर एक रोचक बहस चल रही है कि क्या यह सदमें से उब चुकी है या हर तरह हरा ही हरा देखने वाले हमें बहका रहे हैं क्योंकि आने वाला समय और भी बदतर हो सकता है । पश्चिम के कुछ राजनीतिज्ञ शेयर बाजार में आए आंशिक सुधार और अमेरिका और गिरावट का अंत एवं स्थिति में सुधार की शुरूआत मान रहे है । परंतु अनेक अर्थशास्त्रियों ने इस अपरिपक्व आशावाद के खिलाफ चेताया भी है । उन्होंने आधारभूत ढांचे की गंभीर समस्याआें के बने रहने की ओर इशारा किया है । इसी तरह मंदी से सर्वाधिक प्रभावित मध्य और पूर्वी यूरोप के लिए भविष्य का डरावना दृश्य बन रहा है । स्पेन जैसे एक प्रमुख विकसित देश में बेरोजगारी की दर १७.४ प्रतिशत के खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है । इस साल की पहली तिमाही में वहां बेरोजगारों की संख्या में ८ लाख की वृद्धि हुई है और अब यह कुल ४० लाख पहंुच गई है । उपलब्ध नवीनतम आंकड़े के अनुसार एशिया महाद्वीप में दक्षिण पूर्व एशिया सर्वाधिक प्रभावित है । संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा का एशिया और प्रशांत क्षेत्रों के लिए गठित आर्थिक व सामाजिक आयोग (ईस्केप) ने अपने वार्षिक सम्मेलन के लिए तैयार दस्तावेज में कहा है कि एशिया में संकट पहली श्रेणी (विकसित देशों में वित्तीय संकट का एशिया पर सीमित प्रभाव) से दूसरी श्रेणी (विकसित देशों में भयानक मंदी और एशिया पर उसके अवश्यंभावी प्रभाव) पर पहंुच चुकी है । द्वितीय श्रेणी में एशिया के देशों का निर्यात घटेगा, पिछले दशक में विद्यमान दो अंको वाली बढ़त घटकर दो अंकों वाली मंदी में परिवर्तीत हो जाएगी, घरेलू मांग में कमी आएगी एवं बेरोजगारी में वृद्धि होगी । निर्यात में आई गिरावट की गणना यदि एक वर्ष पूर्व की स्थिति से करें तो यह गिरावट क्रमश: मलेशिया में ३४ प्रतिशत, सिंगापुर में ४० प्रतिशत, फिलिसपींस में ४१ प्रतिशत, ताईवान ४४ प्रतिशत, दक्षिण कोरिया ३४ प्रतिशत, थाईलैंड २७ प्रतिशत, हांगकांग २१ प्रतिशत, चीन १८ प्रतिशत, भारत १६ प्रतिशत व जापान में ३५ प्रतिशत रही है। फरवरी में ये गिरावट कमोवेश यथावत बनी रही सिर्फ मलेशिया में यह घटकर २६ प्रतिशत हुई वहीं चीन में यह गिरावट बढ़कर २६ प्रतिशत हो गई । चीन से संबंधित प्रवृत्ति पर गौर करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में चीन को किए जाने वाला निर्यात अत्यधिक महत्व रखता है । यदि चीन का अमेरिका, यूरोप और जापान को निर्यात के लिए दक्षिण पूर्व एशिया से किए जा रहे आयात में भी कमी करेगा ईस्केप की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी में आयात में भी कमी करेगा ईस्केप की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी में आयात में खासकर चीन में आई ४३ प्रतिशत की कमी खतरे की घंटी है । रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण पूर्व एवं पूर्व एशिया में उत्पादन का आधार आंचलिक स्तर पर काफी घुलामिला है अतएव आयात में कमी को औद्योगिक संकट का प्रारंभ भी कहा जा सकता है । रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि निर्माण क्षेत्र में संकट के गहराने से वित्तीय क्षेत्र के गैर उत्पादक ऋणों की संख्या में वृद्धि हो जाएगी । साथ ही इसमें यह भी बताया गया है कि इस क्षेत्र में २००९ में बेरोजगारों की संख्या बढ़कर २.३ करोड़ हो जाएगी । वैसे इसे सकारात्मक पहलु के रूप में भी देखा जा सकता हैं, कि अकेले चीन मेंयह बात सामने आ चुकी है कि अकेले चीन में समुद्रतटीय निर्यात क्षेत्र में २ करोड़ से अधिक औद्योगिक श्रमिक अपना रोजगार गवां चुके है । दक्षिण पूर्व एशिया में आर्थिक वृद्धि में गिरावट का सर्वाधिक असर हुआ है । ईस्केप के एक अनुमान के अनुसार एशिया प्रशांत क्षेत्र के विकासशील देशों में वृद्धि दर जो २००७ में ८.८ प्रतिशत थी वह २००८ में घटकर ५.८ प्रतिशत रह गई एवं २००९ में तो यह मात्र ३ प्रतिशत रह गई ।पंरतु दक्षिण पूर्व एशिया में यह वृद्धि २००७ में ६.५ प्रतिशत २००८ में ४.३ प्रतिशत व २००९ में यह घटकर ऋणात्मक ०.७ प्रतिशत व २००९ के स्तर पर पहुंच गई । यह अकला ऐसा उपक्षेत्र है । जहां सकल घरेलु उत्पादन में वास्तविक कमी आई है । वहीं पूर्वी एवं उत्तरपूर्वी एशिया (जहां चीन का प्रभुत्व है ) अभी भी ३.३ प्रतिशत एवं दक्षिण पश्चिम एशिया में वृद्धि दर सकारात्मक ४.३ प्रतिशत रहने का अनुमान है । ईस्केप की रिपोर्ट में किसी देश विशेष पर केंद्रित वृद्धि दर का आकलन नहीं किया गया है । परंतु ईकॉनामिस्ट पत्रिका की नवीनतम भविष्यवाणी के अनुसार रूिथतियों में थोडा सुधार आ रहा है । इसके अनुसार जिन देशों में ऋणात्मक वृद्धि की संभावना है वे है वे हैं मलेशिया ३.प्रतिशत,सिंगापुर ७.५ प्रतिशत, थाईलैंड ४.४ प्रतिशत, इडोनोशिया १.३ प्रतिशत, दक्षिण कोरिया ५.९ प्रतिशत व ताईवान ६.५ प्रतिशत । वहीं दूसरी ओर चीन और भारत की वृद्धि दर में कमी तो अवश्य आएगी परंतु वह फिर भी क्रमश: ६ प्रतिशत व ५ प्रतिशत की सकारात्मक वृद्धिदर कायम रख पाएगें । ओद्योंगिक उत्पादन संबंधी नवीनतम आंकडें बताते हैं कि समस्या का स्त्रोत वे देश हैं जो कि देश में निर्मित साम्रगी के निर्यात पर टिके हैं अतएव वे ही सर्वाधिक प्रभावित भी हुए है । अगर एक वर्ष पूर्व के औद्योगिक उत्पादन की तुलना करें तो फरवरी में जिन देशों में औद्योंगिक उत्पादन में कमी आई है । वे है । क्रमश: मलेशिया १४.६ प्रतिशत, सिंगापुर २२ प्रतिशत, थाईलैंड २० प्रतिशत, ताईवान २७ प्रतिशत व दक्षिण कोरिया १० प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है । कि भले ही वह दुनिया का बड़ा निर्यातक देश हो पंरतु घरेलु बाजार में उसके औद्योगिक उत्पादों की जबरदस्त मांग है । इसी के साथ घरेलु मांग में वृद्धिकरने के लिए उसके द्वारा दिया गया वित्तीय प्रोत्साहन अंतत: घटते निर्यात के दुष्परिणामों को रोकने मेंं सफल हुआ है । आंकडे बताते है कि दक्षिण पूर्व एशिया में आर्थिक संकट समाप्त् नहीं हुआ है और अर्थव्यवस्था में मंदी का प्रभाव समाप्त् होने में थोंड़ा और समय लगेगा ।इस दौरान अधिकाशं एशियाई देशों ने अनेक प्रतिगामी उपाय प्रांरभ कर दिए है जिससे उन्हेें आर्थिक जकड़न से मुक्ति मिल सके । इसमें सरकारी व्यय में बढ़ोत्तरी और ब्याजदरों में कमी शामिल है । यह तो समय ही बतलाएगा कि ये नीतियां किस हद तक सकारात्मक प्रभाव डालेगी या कुछ और प्रयत्नों एवं व्यवस्थापन की आवश्यकता है । ***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें