सज गया मौसम का बाजार
सुश्री अर्चना भट्ट
मौसम की भविष्यवाणी का निजीकरण भारत की बाजारवादी अर्थव्यवस्था की नवीनतम घटना है । इसके दोनों ही पक्ष हैं। भारतीय टेलीविजन पर जिस अंदाज से अब मौसम की जानकारी दी जा रही है वह व्यावसायिकता के नए युग की ओर इशारा कर रहा है । परंतु इसी के समानांतर भारतीय मौसम विभाग का सक्रिय होना जेठ में ठंडी बयार की अनुभूति दे रहा है । पुणे स्थित भारतीय मौसम विभाग (आई.एम.डी.) ने जब १७ अप्रैल ०९ को मानूसन के दौरान कम वर्षा का अंदाजा नहीं था । भविष्यवाणी के अनुसार सामान्य वर्षा की ९६ प्रतिशत होनी थी परंतु तपती जून में यह मात्र ५७ प्रतिशत ही हुई जो कि जुन १९२६ के बाद सबसे कम थी २४ जुन को आईएमडी इस आंकडे को ९३ प्रतिशत ले गया । परंतु मई में हुई दो घटनाआें ने मौसम विभाग को अचंभित कर दिया । ये थीं बंगाल में आया आईला तूफान और पश्चिम विक्षोभ की वजह से देश के उत्तरी भाग में हुई बरसात जिसकी वजह से मौसम ठंडा हो गया और उसने मानसून को कमजोर कर दिया। प्रश्न उठता है कि ऐतिहासिक आंकड़ो पर आधारित भविष्यवाणी का वर्तमान में कोई अर्थ बचा है ? शोध बताते हैं कि जून और जुलाई में वर्षा में वर्षा में कमी आई है । पुणे स्थित आईएमडी के भविष्यवाणी विभाग के प्रभारी डी.एस.पाई का कहना है कि हम १० डायनामिकल मॉडल्स के बहुमुखी स्वरूप के अंतर्गत मौसम की जानकारी इकट्ठी करते हैं । यदि हम इनके परिणामों के प्रति आवश्वस्त नहीं हो पाते तो पुराने सांख्यकीय मॉडल पर समझौता कर लेते है । डायनामिक मॉडल के अंतर्गत बादलों की प्रवृत्ति और आर्द्रता पर नजर रखी जाती है । वहीं दुसरी ओर आईएमडी के अनेक वैज्ञानिक उपरोक्त प्रणाली पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उनके अनुसार यह भारत की परिस्थितियों पर आधारित नहीं है । आईएमडी के वैज्ञानिकों की एक पीड़ा यह भी भारत में नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज फोरकास्टिंग, अनेक आई.आई.टी., इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्राफिकल मेट्रोलाजी जैसे मौसम शोध संस्थानों और आईएमडी के मध्य कोई सामंजस्य ही नहीं है । आईएमडी स्वयं अपने द्वारा सरकार को कृषि रणनीति बनाने में दी जाने वाली मौसमी भविष्यवाणियों से बहुत संतुष्ट नहीं है । परंतु वह अपनी मध्य और लघु अवधि भविष्यवाणियां क्रमश: पांच व एक दिन अग्रिम, के मामले में विश्वास से भरा हुआ है। हवा अब किस ओर बहेगी यह जानना अब आईएमडी का विशेषाधिकार नहीं रहा है । पिछले ६ वर्षो में मौसम की भविष्यवाणी करने वाली अनेक कंपनियां अस्तित्व में आ गई हैं जो प्रतिदिन, प्रतिघंटे ओर प्रति १० मिनट फर भविष्यवाणियां कर रही है । दिल्ली में ३० मई ०९ को एकाएक आई वर्षा और तूफान के कारण तापमान में आई कमी से एयरकंडीशनरों की आवश्यकता में कमी होने की वजह से विद्युत वितरण कंपनियों ने उस दिन की विद्युत आपूर्ति में कमी कर दी थी । नई दिल्ली पावर लि. (एनडीपीएल) जो कि टाटा का संयुक्त उपक्रम है, के पास यदि अग्रिम सूचना नहीं होती तो उन्हें ५ से ८ लाख के मध्य आर्थिक हानि उठानी पड़ सकती थी । विद्युत वितरण कंपनियां, उत्पादन कंपियों से एक दिन अग्रिम विद़्युत खरीदती हैं । मौसम में एकाएक आया परिवर्तन उनके इस गणित को बिगाड़ सकता है । दिल्ली स्थित स्कायमेक सप्लाईज एनडीपीएल और रिलायन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर लि. को उनकी जरूरत के अनुरूप मौसम संबंधी सेवाएं प्रदान करती है । २००३ में उसने १८ लाख रूपये के कारोबार से व्यापार प्रारंभ किया था जो अब बढ़कर १.४ करोड़ तक पहुंच गया है । कानपुर स्थित वेदर रिस्क मेनेजमेंट के भी इसी तरह की सेवाएं उपलब्ध करवाती है । यह कंपनी बीमा कंपनियों को कृषि आधारित बीमा पॉलिसी के जोखिम निर्धारण की गणना में सहायता करती है । स्कायमेट तो स्वयं को परिपूर्ण मौसम भंडार की संज्ञा देती है । इस व्यापार का हानि अथवा लाभ इस बात पर निर्भर करता है कि कंपनी कितनी सटीक जानकारी उपलब्ध करवा पाती है । खरी न उतरने वाली प्रत्येक भविष्यवाणी के लिए कंपनी को दंडित किया जाता है । उदाहरण के लिए तापमान के मामले में केवल एक डिग्री से तक की गलती की अनुमति है । एमडीपीएल के महाप्रबंधक जयंत चटर्जी का कहना है कि सटीक भविष्यवाणी संबंधी आकड़ों के लिए निजी मौसम कंपनियों को किए जा रहे भुगतान क माध्यम से हम २० लाख रूपए तक बचा पाते हैं । अब विद्युत का क्रय मूल्य मांग के स्वरूप पर आधारित होता है जो कि १.५० पैसे प्रति यूनिट से लेकर १५ रूपए प्रति यूनिट के मध्य तक कहीं भी हो सकता है । २८ से ३० मई मध्य दिल्लली का तापमान ४१ डिग्री सेल्सियस से घटकर ३५ डिग्री सेल्सियस पर आ गया था जिसके परिणामस्वरूप विद्युत दर ५.५० प्रति यूनिट से घटकर १.०८ पैसे प्रति यूनिट पर आ गई है । सटिक अग्रिम चेतावनी मिलने से आपात स्थिति से निपटने में भी मदद मिलती है । सार्वजनिक कंपनी पॉवरग्रिड कॉपरेशेन ने गत सर्दियों में स्कायमेट से प्राप्त् सूचनाआें के आधार पर धुंध के प्रभावों की अग्रिम गणना कर एक हेलीकॉप्टर किराये से लेकर अपनी वितरण की लाइनों से धुंध और प्रदूषण की सच्चई जिससे कि वितरण लाईनों में खराबी नहंी आई । तेल शोधन के कार्य में भी ये कंपनियां अत्यंत सहायक होती हैं क्योंकि ये समुद्री तूफान के दौरान तेल शोधन का कार्य रोकना पड़ता है अन्यथा कुएं में आग लग सकती है । इसी तरह फसल बीमा भी मौसम पर अत्यधिक निर्भर है । ये नई कंपनियां पूर्णतया स्वचालित मौसम केन्द्रों के माध्यम से संचालित होती है । यंत्र चौबीस घंटे, तापमान आर्द्रता, हवा की रफ्तार और दिश और वर्षा प्रति घंटे गणना कर सेटेलाईट या केबल के माध्यम से कंपनियों को पहुंचाते रहते हैं । नेशनल कोलेटरल मेनेजमेंट सर्विसेस लि. ने अनेक बैंकों की सहायता से २००४ में अपना कार्य १६ राज्यों में ४०० पूर्णतया स्वचालित मौसम केंद्रों से प्रारंभ किया । यी १००० रूपए से १०००० रूपए प्रति माह तक का ाुल्क लेती है । भारत में हइस समय १२०० ० निजी मौसम केंद्र कार्यरत् हैं जिनके निकट भविष्य में और वृद्धि की संभावना है । महाराष्ट्र के पूना, सांगली, नासिक क्षेत्र के अंगरू उत्पादक ृकषक आईसीआईसीआई बैंक के ग्राहक है। बैंक अपने इन ग्राहकों को मौसम संबंधी जानकारी उपलब्ध करवाती है क्योंकि किसान अभी भी मौसम कंपनियों से सीधे ग्राहक नहीं है । वैसे इन मौसम भविष्यवाणी कपंनियों के सबसे बड़े ग्राहक मीडिया समूह हैं । इसमें टेलीविजन और प्रिंट दोनों ही शामिल हैं । आज इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार का ७० प्रतिशत यहीं से प्राप्त् होता है । मीडिया कंपनियों का कहना है कि उन्हें बजाए भारतीय मौसम विभाग के निजी कंपनियों के साथ ज्यादा साहूलियत महसूस होती है । भारतीय मौसम विभाग के आधुनिकीकरण के लिए भी केन्द्र ने ९५० करोड़ की योजना को स्वीकृति दे दी है । इसके माध्यम से अब तक १२५ नए स्वचालित केंद्र स्थापित भी हो चुके हैं । मौसम विभाग इन्हें पर्याप्त् नहीं मानता । विभाग का मानना है कि प्रत्येक जिले में कम से कम चार केंद्र होना चाहिए अतएव देश में २५०० केन्द्रों की आवश्यकता है । अमेरिका में १९८० के दशक के प्रारंभ में इन सेवाआें के निजीकरण की शुरूआत हुई । निजीकरण के संबंध में भारतीय मौसम विभाग का कहना है कि मौसम की भविष्यवाणी के लिए वर्तमाल अवलोकन के साथ ही साथ ऐतिहासिक आंकड़ों की भी आवश्यकता है । अधिकांश निजी सेवा प्रदाताआें के पास इनका अभाव है । उनका यह भी कहना है कि सामान्य भविष्यवाणी मौसम विभाग की जिम्मेदारी है परंतु निजी जरूरतों पर आधारित भविष्यवाणी आंकड़े तो निजी क्षेत्र ही बेहतर उपलब्ध करवा सकते हैं । निजी क्षेत्र के हस्तक्षेप से आईएमडी को सेवाआें की गुणवत्ता बढ़ाने पर विवश कर दिया है । वहंी विश्व मौसम संगठन का मानना है कि कोई एक सरकार या एजेंसी अकेले के दम पर यह कार्य नहीं कर सकती । राष्ट्रीय मौसम भविष्यवाणी की अनिवार्यता को इसलिए नहीं नकारा जा सकता क्योंकि भारत के करोड़ों किसानों को आज मौसम की भविष्यवाणी से कही अधिक आवश्यकता है । ***
करोंड़ो पौधे रोपे फिर भी हरियाली की रफ्तार कम
पिछले महीने देश भर में वन महोत्सव के दौरान कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक और गांधीनगर से गुवाहाटी तक करोड़ों पौधे लगाए गए हर साल यही होता है, फिर भी हरियाली उस रफ्तार से नहीं बढ़ रही है, जिससे हर साल वन संपदा को हो रहे नुकसान की भरपाई की जा सके । नतीजा सामने है । बीस साल पहले वन क्षेत्र को देश के कुल भू-भाग का ३३ फीसदी तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था, जिसे आज तक पूरा नहीं किया जा सका है । मौजूदा आंकड़ों के अनुसार इस समय देश के कुल भू-भाग का २० प्रतिशत ही वनाच्छादित है । जबकि पर्यावरण संतुलन के लिए ३५ फीसदी वन क्षेत्र जरूरी है । वन क्षेत्र के घटने के कारण पारिस्थितिकी असंतुलन पैदा हुआ है, जिसकी वजह से सूखा, बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाआें में इजाफा हुआ है । वन क्षेत्र में कमी आने से कई जानवरोंं के अस्तित्व को खतरा पैदा हो गया है । पिछली सदी की शुरूआत में देश में ५० हजार बाघ थे । अब उनकी संख्या घटकर १५०० से भी कम रह गई है । यही हाल हाथियों का भी है । कई ऐसे भी जीव-जंतु हैं, जो हर साल खामोश मौत मर रहे हैं । खाद्यान्न श्रृंखला की इन महत्वपूर्ण कड़ियों के खत्म होने से पारस्थितिकी असंतुलन की समस्या गंभीर है । पर्यावरण को होने वाले इन्हीं नुकसानों को कम करने के लिए देश में १९८८ में राष्ट्रीय वन नीति बनाई गई थी ।
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