दिल्ली : सल्तनत कायम है
सुश्री रावलीन कौर
दिल्ली में पानी को लेकर मच रही अफरातफरी का हल हजारों किलोमीटर दूर हिमाचल प्रदेश स्थित गांवों को डुबोकर निकाला जा रहा है। भारत का प्रत्येक शहरी निकाय पानी की बर्बादी के लिए गरीबों और वंचितों को दोषी ठहराता है । दिल्ली की (तथाकथित) अवैध क्रॅालोनियों में रहनेवाले भी इस देश के ही नागरिक है। अगर दिल्ली में पानी की इतनी ही कमी है तो वह मंत्रियों, संासदों, अफसरों के बंगलों के निजी लॉन पर सबसे पहले प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती ? गावोंं को डुबोकर अपना गला तर करना क्या किसी जजिया कर से कम है ? हिमालय प्रदेश के सिरमौर जिले मेंयमुना की सहायक नदी पर प्रस्तावित रेणुका बांध' के निर्माण से ७०० परिवार पर प्रभावित होगें यह परियोजना दिल्ली को बरास्ता हरियाणा पानी पहुंचाने के लिए है । अगर यह कार्यान्वित हुई तो अनेक परिवारों का बसेरा और जीविका छिन जाएगी क्योेंकि इसके अतंर्गत मात्र मुआवजे का प्रावधान है । अतएव लोगों ने परियोजना एवं भूमि अधिग्रहण कि तौर तरीकों पर विरोध प्रकट करना प्रांरभ कर दिया है। इतना ही नहीं संबंधित राज्यों के मध्य भी दिल्ली को पानी देने पर विभ्रम है। गैर सरकारी सगंठनों का कहना है कि यदि दिल्ली पानी की आपूर्ति में हो रही वर्तमान ढीलमपोल जैसे असमान वितरण, पानी का व्यर्थ बहना और पानी की चोरी पर रोक लगा दें तो इस बांध की आवश्यकता ही नही है। स्थानीय किसान जागीरसिंह तोमर का कहना है कि सिंचित भूमि के लिए मात्र २.५० लाख प्रति बीघा का मुआवजा दिया जा रहा है जबकि वे अपने पंाच बीघा के खेत से प्रतिवर्ष ३ लाख रू. तक कमा लेते है । रेणुका बांघ संघर्ष समिति के सचिव चांद का कहना है कि पहले जहां हम अधिक मुआवजे की बात कर रहे थे वहीं अब हम अपनी जमीने देने को तैयार भी हो जाते है तो मिलने वाला मुआवजा बाजार मूल्य की तुलना में नगण्य है । इस परियोजना से पशु चराने वाला घुमंतु समुदाय भी प्रभावित होगा । हिमाचल प्रदेश विद्युत निगम के निदेशक सी.एम. वालिया गांव वालों की आशंकाआैं को निराधार बताते हुए कहते है कि , रेणुका गांव के निवासियों को दिए जाने वाला पुनर्वास पैकेज पूरे देश मेंसर्वश्रेष्ट है । ऐसी परियोजनाआें में विरोध तो हमेशा बना ही रहता है । वे इसमें कोई मदद नहीं कर सकते परंतु भूमि अधिग्रहण की वास्तविकता क्या है ? रेणुका बांध की डूब में आने वाले ३७ गंावों में से २० गंावों के बच्च्े तक अब यह जान गए है कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम १८९४ के अंतर्गत धारा १७ (४) के अतर्गत सरकारी अफसरों को यह अधिकार है कि वें भूस्वामियों द्वारा भूमि अधिग्रहण को लेकर उठाई गई आपत्तियों को दरकिनार कर सकते है । वहीं निगम के मुख्य प्रबंधक का रवैया तो कुछ अधिक ही स्पष्टवादी है उनका कहना है, यह एक सरकारी परियोजना है । अगर वह अधिग्रहण का निश्चय करती है तो उस पर उठी आपत्तियां महज औपचारिकताएं हैं वहीं सर्वोच्च् न्यायालय ने २००४ में भारत सरकार विरूद्ध कृष्णलाल अरनेजा वाले मामलें में त्वरित धारा (अरजेंसी क्लास) को असंवैधानिक बताते हुए कहा है कि बाढ़ या भूकंप जैसी असाधारण परिस्थितियों के अलावा त्वरित भूमि अधिग्रहण की अनुमति नही दी जाना चाहिए एवं प्रभावित व्यक्ति को आपत्ति का अधिकार होना चाहिए । हिमालय प्रदेश के पर्यावरण शोध एवं कार्य समूह की मानसी अशर का कहना है कि जब परियोजना को वन एवं पर्यावरण विभाग से एवं केन्द्रीय जल आयोग एवं केन्द्रीयविद्युत प्रधिकरण से विभिन्न अनुमितयां ही नहीं मिली है तो यें अरजेंसी क्लाय कैसे लगा सकतें हैं ? रेणुका बांध का विचार १९६० के दशक में आया और १९९४ में हिमालय और उत्तरप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, हरियाण और उत्तरप्रदेश के मध्य सहमति बनी । परंत इस कानून मंत्रालय ने कहा कि यह समझौता वैध नहीं है क्यों कि राजस्थान ने इस पर हस्ताक्षर ही नही किए है । एक गैर सरकारी सगंठन `युमना जिये अभियान' के मनोज मिश्रा का कहना है कि हरियाणा भी इस समझौते से खुश नही है । उसका कहना है । कि पानी की मात्रा कम होने की दशा में अन्य राज्यों के हिस्सें में कमी होगी लेंकिन दिल्ली के नहीं । अतएवं हरियाणा रेणुका बांध से छोड़े जाने वाले पानी व बिजली अब दोनों में अपना हिस्सा चाह रहा है । वहीं दिल्ली में पेयजल की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार दिल्ली जल बोर्ड का कहना है कि १९९४ के अनुबंध से यह स्पष्ट है कि में रेणुका का पानी दिल्ली को ही मिलेगा । वहीं हिमाचल विद्युत निगम के वालिया का कहना है कि इस मामले में केंन्द्र सरकार ही निर्णय लेगी । हिमाचल प्रदेश की जिम्मेदारी तों बांध के निर्माण और पानी की आपूर्ति तक सीमित है । नीचे इसका वितरण किस तरह होगा यह हमारी चितां का विषय नहीं है । दिल्ली को प्रतिदिन ३६३७ मिलियन लिटर पानी की आवश्यकता है जबकि आपूर्ति २९५५ मि.लि है । आलोचकों का कहना है कि पानी की आपूर्ति में भेदभाव बरता जा रहा है । उदाहरण के लिए लुटियन वाली दिल्ली (जहां मंत्री व वरिष्ट अफसर रहते है)को प्रतिदिन ३०० एम.एल.डी. पानी की आपूर्ति होती है । जबकि महरौली जैसे स्थानों में यह ४० एम.एल.डी. से भी कम है । दिल्ली सरकार रेणुका बांध से १२४०एम.एल.डी. अतिरिक्त पानी चाहती है । दिल्ली की जल आवश्यकता पर सवाल उठाते हुए मनोज मिश्र का कहना है कि क्या दिल्ली को और पानी की आवश्यकता है? दिल्ली जल बोर्ड की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए भारत के महालेखाकार ने २००८ मेंटिप्पणी की है कि दिल्ली में शहरी विकास मंत्रालय द्वारा तय १५ प्रतिशत आपूर्ति हानि के बजाय ४० प्रतिशत पानी व्यर्थ बह रहा है। यह अनुमानित हानि ३८२ मिलियम लिटर प्रतिदिन है । दिल्ली स्थित विज्ञान एवं पर्यावरण केंन्द्र (सीएसई) के एक अध्ययन के अनुसार शहर में गरीब १२०० मिलियन लिटर पानी प्रतिदिन बर्बाद हो रहा है । यह रेणुका बांध से होने वाली जल आपूर्ति के बराबर ही है । अगर शहर आपूर्ति की हानि कम कर ले तो उसके पास अतिरिक्त जल होगा । अध्ययन का मानना है कि बांध की आवश्यकता ही नहीं है । पंरतु दिल्ली जल बोर्ड की इस निष्कर्षो से सहमति नहीं हैं । उनका मानना है कि समस्या लीकेज से ज्यादा चोरी की है । अवैध कॉलोनियों द्वारा बड़ी मात्रा में पानी ले लिया जाता है । श्री मिश्रा का यह भी कहना है कि नदियों को बांधना कोई हल नहीं है कोई नदी कैसे पुनर्जीवित हो सकती है, यदि उसकी सहायता नदियों पर बांध बना दिए जाएगें ? नदी का तेज प्रवाह प्रदूषण से भी निपटना है । हिमाचल प्रदेश के गिरिबाटा बांध में नियुक्त एक इंजीनियर का कहा है वर्तमान में कार्यरत गिरिबाट परियोजना प्रस्तावित रेणुका बांध से नीचे ६० मेगावट बिजली उत्पादन के लिए निर्मित की गई है । गिरिबाट परियोजना मानसून को छोडकर साल के बाकी ९ महीनों में मात्र ८ से ९ मेगावट बिजली का निर्माण कर पाती है ऐसी स्थिति में रेणुका बांध ४० मेगावट बिजली किस प्रकार उत्पादित कर पाएगा ? वहीं गैर सरकारी संगठनों ने अपने ज्ञापन में कहा है कि यदि दिल्ली को साल में ९ महीनें न्यूनतम १२४० एम.एल.डी. पानी की आपूर्ति करना है तो टरबाईन चलाने के लिए पानी कहां से उपलब्ध होगा ? क्योंकि अब तो मानसून में भी जलाशय को भरने के बजाए दिल्ली को पानी देने की प्राथमिकता दी जाएगी। हिमाचल विद्युत बोर्ड का कहना है कि इसके कारण गिरिबाट बांध की कार्यक्षमता में भी वृद्धि होगी क्योंकि उसे रेणुका जलाशय से लगातार पानी मिलेगा। उनके अनुसार इस योजना से अन्य कई लाभ भी हैं जैसे कि तब हमारे पास २४ कि.मी. लम्बा जलाशय होगा । इसे हमेशा ही पर्यटन और जलीय खेलों के लिए उपयोग में लाया जा सकता है और हम इससे काफी कमाई भी कर सकते हैं । परंतु तोमर इन बातों से बहुत उत्साहित नहीं हैं । वे कहते हैं, मैं अपनी जमीन, खेती और जीविका को केवल इसलिए छोड़ दूँ जिससे कि दूसरे लोग जलीय खेलों का आनंद ले सकें ।***
अब मूंगफली से दूध और दही बनेगा
जहां अधिक मुनाफा कमाने के लिए दूध माफिया मिलावटी दूध और उसके उत्पादों से आम लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहा है, वहीं लुधियाना के सेंट्रल इंस्टीटयूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी (सिफेट) ने मूंगफली से दूध और दही तैयार कर अनोखी क्रांति का आगाज किया है। साथ ही सिफेट ने मूंगफली के दूध को स्वास्थ्य के लिहाज से बेहतरीन बताया है । प्राप्त् जानकारी के अनुसार भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के अंतर्गत आने वाले सिफेट ने वाणिज्यक रूप से व्यवहारिक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसके जरिए मूंगफली से दूध और दही तैयार किया जा सकता है । आईसीएआर की और से जारी विज्ञिप्त् के मुताबिक प्रसंस्करण से पूर्व इस तकनीक के द्वारा मूंगफली में पाए जाने वाले लिपोक्सीजिनेसे एंजाइम को निष्क्रिय किया जाता है ।
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