पर्यावरण समाचार
देवभूमि त्रासदी दशकों की लापरवाही का नतीजा
देवभूमि उत्तराखंड में हाल ही में आयी आपदा की सही वजहों का पता लगाया जाना अभी बाकी है, लेकिन पर्यावरणविदों ने इसे दशकों से प्राकृतिक संसाधनों के साथ किये जा रहे खिलवाड़ का परिणाम और मानव निर्मित संकट करार दिया है । कुछ विशेषज्ञोंका कहना है कि वैश्विक तापमान में अचानक भारी बदलाव के कारण ऐसे संकट आते हैं, लेकिन पर्यावरणविद इस बात पर एकमत हैं कि हिमालय की सुकुमार पारिस्थितिकी से छेड़छाड़ की वजह से इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदायें आ रही है ।
पर्यावरणविदों का कहना है कि हिमालय दुनिया का सबसे तरूण पर्वत है, जहां कठोर चट्टानों पर मिट्टी जमा है । इसके कारण वहां भूक्षरण, भूस्खलन और भूकम्पीय हलचलें होने का अंदेशा लगातार बना रहता है । इस क्षेत्र में लंबे अर्से से जल, जंगल और खनिजों का बेहिसाब दोहन होता रहा है । नये पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के गठन के बाद विभिन्न सरकारों ने वहां की पारिस्थितिकी और पर्यावरण की परवाह किये बिना विपरीत गतिविधियां जारी रखी । इससे हिमालय को बहुत क्षति पहुंच है । अनियोजित एवं अवैज्ञानिक निर्माण और बांधों की बहुलता से इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंचा है ।
उत्तराखंड में जल विघुत परियोजनाआें के अंधाधुंध निर्माण की वजह से मामूली अंसतुलन से भी और जल विद्युत परियोजनाआें से हिमालय के ऊपरी हिस्से पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है । हिमालय की सतह बड़ी नाजुक है, जो आसानी से अस्थिर हो सकती है । जल विघुत परियोजनाआें के लिए निर्मित किये गये जलाशय पर्वत के निचले हिस्से के संतुलन को गड़बड़ा सकते हैं और यह गंगा के प्रवाह मेंदिखाई भी दे रहा है । वर्तमान में १० हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए गंगा पर करीब ७० जल विघुत परियोजनाएं निर्मित हो गयी हैं या प्रस्तावित है । इन जल विद्युत परियोजनाआें की श्रृंखला से गंगा एक दिन या तो सुरंग में परिवर्तित हो जायेगी या वह एक जलाशय में तब्दील हो जायेगी । इससे गंगा के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो रहा है ।
देवभूमि त्रासदी दशकों की लापरवाही का नतीजा
देवभूमि उत्तराखंड में हाल ही में आयी आपदा की सही वजहों का पता लगाया जाना अभी बाकी है, लेकिन पर्यावरणविदों ने इसे दशकों से प्राकृतिक संसाधनों के साथ किये जा रहे खिलवाड़ का परिणाम और मानव निर्मित संकट करार दिया है । कुछ विशेषज्ञोंका कहना है कि वैश्विक तापमान में अचानक भारी बदलाव के कारण ऐसे संकट आते हैं, लेकिन पर्यावरणविद इस बात पर एकमत हैं कि हिमालय की सुकुमार पारिस्थितिकी से छेड़छाड़ की वजह से इस क्षेत्र में प्राकृतिक आपदायें आ रही है ।
पर्यावरणविदों का कहना है कि हिमालय दुनिया का सबसे तरूण पर्वत है, जहां कठोर चट्टानों पर मिट्टी जमा है । इसके कारण वहां भूक्षरण, भूस्खलन और भूकम्पीय हलचलें होने का अंदेशा लगातार बना रहता है । इस क्षेत्र में लंबे अर्से से जल, जंगल और खनिजों का बेहिसाब दोहन होता रहा है । नये पर्वतीय राज्य उत्तराखंड के गठन के बाद विभिन्न सरकारों ने वहां की पारिस्थितिकी और पर्यावरण की परवाह किये बिना विपरीत गतिविधियां जारी रखी । इससे हिमालय को बहुत क्षति पहुंच है । अनियोजित एवं अवैज्ञानिक निर्माण और बांधों की बहुलता से इस क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी को भारी नुकसान पहुंचा है ।
उत्तराखंड में जल विघुत परियोजनाआें के अंधाधुंध निर्माण की वजह से मामूली अंसतुलन से भी और जल विद्युत परियोजनाआें से हिमालय के ऊपरी हिस्से पर बड़ा दुष्प्रभाव पड़ता है । हिमालय की सतह बड़ी नाजुक है, जो आसानी से अस्थिर हो सकती है । जल विघुत परियोजनाआें के लिए निर्मित किये गये जलाशय पर्वत के निचले हिस्से के संतुलन को गड़बड़ा सकते हैं और यह गंगा के प्रवाह मेंदिखाई भी दे रहा है । वर्तमान में १० हजार मेगावाट विद्युत उत्पादन के लिए गंगा पर करीब ७० जल विघुत परियोजनाएं निर्मित हो गयी हैं या प्रस्तावित है । इन जल विद्युत परियोजनाआें की श्रृंखला से गंगा एक दिन या तो सुरंग में परिवर्तित हो जायेगी या वह एक जलाशय में तब्दील हो जायेगी । इससे गंगा के अस्तित्व को ही खतरा पैदा हो रहा है ।
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