शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

संपादकीय    
प्रलय के शिलालेख से सबक
पिछले दिनोंउत्तराखंड की त्रासदी से यह साबित हुआ है कि हमारे देश में आपदा प्रबंधन व्यवस्था बहुत ही कमजोर है । प्राकृतिक आपदाआें को रोक पाना मुश्किल है लेकिन वैज्ञानिक युग में आपदा से होने वाली तबाही को कम किया जा सकता है ।
    आपदा प्रबंधन एक चुनौतीपूर्ण विषय है । ऐसे समय में जब विश्व के किसी न किसी क्षेत्र में कोई न कोई आपदा आती ही रहती है  कुछ देश आपदा प्रबंधन को गंभीरता से लेते है उनके सालान बजट में इस हेतु बजट का प्रावधान भी रहता है । हमारे यहां कहने को तो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण है, राज्यों में इसकी प्रादेशिक और जिला इकाइया है, लेकिन इस महान त्रासदी के समय पता चला कि उत्तराखंड सरकार के पास आपदाआें से निपटने की कोई तैयार नहीं थी, यह तो भारतीय सेना के जवानों का पराक्रम था कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होनें एक लाख से ज्यादा लोगों को अपनी जान जोखिम में डालकर सुरक्षित निकाला, हालांकि इसमें २० जवानों का अपने प्राण भी गंवाना पड़े लेकिन आपरेशन सूर्या होम से भारत की सेना का समर्पण और राष्ट्र निष्ठा की गौरवमयी भूमिका को सारी दुनिया ने सराहा है । 
    इस त्रासदी के बाद अब न केवल मंदिर का पुर्ननिर्माण करना है बल्कि प्रदेश के एक बड़े हिस्से में विध्वंस के बाद सृजन की नयी तैयारियां करनी होगी । इसके लिये केन्द्र सरकार और उनकी ऐजेन्सियोंके साथ प्रदेश सरकार को बेहतर तालमेल के साथ दीर्घकालीन योजनायें बनाकर तत्काल कार्य प्रारंभ करना होगें । इस प्राकृतिक आपदा से हमें अतीत की उन मानवीय भूलों और लापरवाहियों को सुधारना होगा, जो इस महाविनाश के लिये उत्तरदायी रही है ।
    यह समय त्रासदी पर राजनीति का नहींहै अपितु दलगत भावनाआें से उपर उठकर इस राष्ट्रीय संकट के समय मेंहमारे नीति निर्माता प्रकृति के इस कहर से सबक लेकर न केवल उत्तराखंड अपितु समूचे हिमालय क्षेत्र के संरक्षण और विकास की नयी रूपरेखा बनायेंगे ।

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