शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

हमारा भूमण्डल
कृषि क्रांति का हाहाकार
लता जिश्नु

    अमेरिका में मान्सेंटो द्वारा अवैध जीएम गेहूं उत्पादन से विश्वभर में हाहाकार सा मच गया है । जापान और दक्षिण कोरिया अमेरिका से गेहूं आयात प्रतिबंधित कर चुके हैं । भारत में जीएम खाद्यों की वकालत करने वालों को अब नजर उठाकर देखना चाहिए कि सारी दुनिया इस बात पर एकमत है कि जीएम खाद्यों से होने वाले नुकसान को नापने की गलती रहित तकनीक अभी तक विकसित नहीं हुई है ।
    अमेरिका के ओरेगान के एक खेत मेंजीन संवर्धित (जीएम) गेहूं पाए जाने से दुनियाभर में हाहाकार मच गया है । इस खरपतवाररोधी जीएम गेहूं को मोन्सेंटों ने विकसित तो किया है, लेकिन अमेरिकी कृषि विभाग ने अभी इसके उत्पादन की अनुमति नहीं दी है । खेत में परीक्षण और कार्यक्रम के वापस लिए जाने के नौ वर्ष पश्चात इसके पुन: एक खेत में उभरने से न केवल कृषि एवं विज्ञान जगत हिल गया है बल्कि विश्व गेहूं बाजार भी संकट मेंपड़ गया है । 
     जीएम गेहूं को व्यावसायिक तौर पर विश्व में कहीं जारी नहीं किया गया है, लेकिन इसे लेकर तीखी प्रतिक्रियाआई है और जापान एवं उत्तरी कोरिया जैसे गेहूं के बड़े आयातक देशों ने गेहूं आयात रोक दिया है । साथ ही अन्य गेहूं उत्पादक देशों में आई बंपर फसल की वजह अमेरिका के निर्यात में १० प्रतिशत कमी आई है । उधर यूरोपियन संघ ने भी अमेरिकी नरम-सफेद गेहूं के आयात के लिए सदस्य देशोंको सावधानी बरतने को कहा है ।
    यू.एस. डेवलपमेंट ने विश्वभर में अवैध जीएम गेहूं की फसल पर चल रही बहस को नई दिशा दी है और जीएम मिलावट को कमोवेश असंभव बताया है । वैसे भारत भी अपवाद नहीं है या पर मान्सेंटो कपास के राउंड-अप रेडी को अवैध रूप से तीन राज्यों में लगाए जाने की बात सामने आई है । भारतीय कृषि शोध संस्थान के वैज्ञानिकों ने नियामक तंत्र को ठीक करने की बात कही   है ।
    अमेरिका में अवैध जीएम सम्मिश्रण की भारी कीमत किसानों को मुआवजे  के रूप में चुकानी पड़ती है । वैसे इसका सबसे महत्वपूर्ण मामला सन् २०११ में जर्मनी आधारित कंपनी के बेयर एजी और उसकी मानयता प्राप्त् बेयर क्राप साइंस उवं अमेरिका धान उत्पादन किसान का था, जिसमें कंपनी को ७५ करोड़ डॉलर मुआवजा देना पड़ा था । यह मुआवजा उसके अतिरिक्त था, जो कि बेयर को चावल निर्यात और आयातकों, चावल मिलों, बीज विक्रेताआें और चावल उत्पादक किसानों को देना पड़ा था ।
    आरेगान के ३२ हेक्टेयर के खेत मेंमोनसेंटो के इस राउंड अप रेडी (बीज प्रबंधन के लिए) की उपस्थिति उसकी पुरानी आदत का दोहराव ही है । आरेगान ने भी जर्मनी की तरह की मुकदमें की बात कही है । वाशिंगटन राज्य के अनेक गेहूं उत्पादकों ने नियति में हुए घाटे की पूर्ति हेतु मोन्सेंटो पर दावा लगाया है इसी तरह का दावा केन्सास के किसान ने भी लगाया है । इस क्रांतिकारी जीएम गेहूं ने सभी के कान खड़े कर दिए हैं । वैसे इस नरम सफेद गेहूं की संपूर्ण फसल का कमोवेश निर्यात होता है ।
    चिंता का विषय यह है कि जीएम पदार्थ मेंसम्मिश्रण किस प्रकार और कब हुआ । मोन्सेंटो का दावा है कि उसने काफी पहले इस परीक्षण समाप्त् कर दिया है और इसके व्यवस्थित दस्तावेज और अंकेक्षण रिपोर्ट उसके पास भी है । उसका यह भी कहना है कि राउंडअप रेडी गेहूं का आरेगान के खेतों में अंतिम परीक्षण सन् २००१ में हुआ था और अन्य राज्यों में यह २००३ में समाप्त् हुआ । कंपनी के उपाध्यक्ष फिलिप मिलर का कहना है कि वे इस मामले की तह मेंजाना चाहते हैं और इस हेतु तकनीकी मदद प्रदान करने को भी तैयार हैं जिससे कि स्त्रोत की उपस्थिति का पता लगाया जा सके । बाद मोन्सेंटो के एक अधिकारी ने इसे तोड़फोड़ कहा । वहीं उनके मुख्य तकनीकी अधिकारी ने इसे जानबूझकर बीजोंमें मिलावट की संज्ञा दी है । अमेरिकी कृषि विभाग ने सन् १९९८ से २००५ के मध्य खेतों में १०० परीक्षणों की अनुमति दी थी । समाचार एजेंसी के अनुसार कुल १६१९ हेक्टेयर में २७० स्थानों पर परीक्षण हुआ था । ऐसे में केवलएक ही स्थान पर सम्मिश्रित जीएम गेहूं का पाया जाना रहस्य    है ।
    विश्व के नामचीन कृषि वैज्ञानिक डाउन गुरियन शेरमन का कहना है कि यह घोटाले का अंश मात्र भी नहीं है । हमें पता ही नहीं है कि प्रयोग किस स्तर पर हुए हैं । इसे लेकर हम सभी अंधेरे में हैं । इस स्थिति के उपजने के वे दो कारण बताते हैं, पहला अमेरिकी कृषि विभाग जिस अलगाव में इसे लगाने की बात करता है उसमें दूरी के बावजूद सम्मिश्रण होने को पूरी तरह से टाला नहीं जा सकता । इसके पीछे मानव भूल (गलती से बीजों की आपस में मिल जाना) भी हो सकती है । दूसरा यह कि खेतों में सम्मिश्रण की स्थिति का निरन्तर परीक्षण नहीं होता । इसके डीएनए उपलब्ध नहीं होते और कंपनियां गोपनीयता की आड़ लिए रहती हैं । इसलिए मोन्सेंटो ने हड़बडाहट मेंे जापान, कोरिया, ताइवान और यूरोपीय संघ को मूल राउंडअप परीक्षण रिपोर्ट दिखाई । वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान परीक्षण तकनीक गुमराह करने वाले नतीजे सामने ला सकती है ।
    शेरमन का कहना है कि अमेरिका में प्रति वर्ष १००० से अधिक खेत परीक्षण होते हैं । इसमें मक्का जैसी फसले भी हैं । अतएव सम्मिश्रण की वास्तविक स्थिति का पता लगा पाना बहुत कठिन है । वैसे बेयर क्राप साइंस एकमात्र बड़ी बायोटेक कंपनी नहीं है, जिसे सम्मिश्रण का दोषी पाया गया है । अन्य मामलों में दोषी कंपनियों को सस्ते में छोड़ दिया गया था । दिसम्बर २००६ में सिजेंटा पर मात्र १.५ करोड़ डॉलर का जुर्माना इसलिए किया गया था कि बिना अनुमति वाले बीटी १० मक्का के बीज, खाद्य के लिए वितरित होने वाले बीजों में मिला दिए थे । सन् १९९७ में फ्रांस की लिमाग्रेन सीड एवं मोन्सेटो की केनेडियन केनोला के ६०,००० बोरे बीज इसलिए बाजार से उठाने पड़े थे, क्योंकि उन्होनें इसमें अमान्यता प्राप्त् खरपतवार रोधी बीज मिला दिए थे ।
    एक प्रमुख जैव सुरक्षा विशेषज्ञ जैक ए हैनेमन डाउन टू अर्थ को बताया कि सर्वाधिक चिंता का विषय है कि आधिकारिक रूप से परित्याग कर दिए गए एवं व्यावसायिक रूप से जारी न किए जाने के बरसों बाद ये बीज सामने आ रहे हैं । सन् २०१२ में भी वैज्ञानिकों ने कनाड़ा में पाया था कि अकेले सास्काट्चेका में ३ लाख एकड़ में अपंजीकृत गेहूं लगा दिया गया था । उन्होनें चेतावनी देते हुए कहा है कि संभवत: अभी सबसे खतरनाक प्रजातियों के परीक्षण की सुविधा ही हमारे पास नही है । गौर करना होगा कि वह क्या चिन्ह थे, जिससे आरेगन का किसान सतर्क हुआ, लेकिन ऐसी प्रजाति जो कि औषधि या औद्योगिक क्षेत्र मेंया पोषण की गुणवत्ता से संबंधित होगी, वे अधिक चिंता का केन्द्र है, क्योंकि उससे पहुंचने वाले नुकसान का पूर्व में अनुमान लगा पाना असंभव है ।
    और भी बुरी स्थिति यह है कि इस बीमारी का कारण भी रहस्य में ही रह जाएगा, क्योंकि जीएमओ को खोजने और इसके प्रभावों को जोड़ना आसान नहीं है । तब हमारे पास शायद इससे आंखे फेर लेना ही एकमात्र हल बचा रहेगा ।

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