पर्यावरण परिक्रमा
आधुनिक रॉडार होते तो बच जाती जानें
सरकार की एक लापरवाही उत्तराखंड मेंभयानक रूप से जानलेवा साबित हुई है । यदि उत्तराखंड के पर्वतीय हिस्सोंमें आधुनिक डॉप्लर वेदर रॉडार होते तो समय रहते बादल फटने की चेतावनी देकर सैकड़ों जानें बचाई जा सकती थी । हैरत है कि कठोर कुदरत वाले उत्तर भारत के हिमालयी इलाके मेंएक भी ऐसा आधुनिक रॉडार नहीं लगा है, जबकि यह प्रणाली देश के १४ शहरों में लगाई गई है, जहां मौसम सहज है और लोग अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं । उत्तराखंड व हिमालय के मौसम का मिजाज पटियाला के रॉडार से नापा जाता है, जिसकी जानकारी अंदाजे पर आधारित होती है ।
केदारघाटी का हादसा मंदाकिनी से उठे बादल के फटने की देन था, जो हिमालयी प्रदेश की नियमित आपदा है । मौसम विज्ञानी मानते है कि बादल फटने का लंबा पूर्वानुमान असंभव है लेकिन कुछ घंटे पहले इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । इसके लिए डॉप्लर रॉडार सबसे उपयुक्त है जो बादलों का घनत्व, हवा का प्रवाह व बादल की स्थिति बताते हैं । बादल फटने की घटना एक सीमित इलाके मेंहोती है इसलिए त्वरित जानकारी के आधार पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सकता है । डॉप्लर रॉडार उपग्रह के एस बैंड पर काम करता है लेकिन पूरे उत्तरी हिमालयी प्रदेश में इसकी कोई सुविधा नहीं है । हिमालय क्षेत्र को अगले चरण में शामिल किया जाएगा ।
पटियाला का रॉडार करीब २५० कि.मी. की रेंज के साथ हिमालयी इलाकों का मोटा पूर्वानुमान ही दे पाता है । निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट के प्रमुख जतिन सिंह कहते हैं कि बादल फटना एक स्थानीय घटना है और पहाड़ों में सिग्नल रूकते हैं इसलिए पर्वतीय इलाकों में कई छोटे रडार भी लगाए जाते हैं ताकि बादलों की स्थिति जानी जा सके और समय रहते चेतावनी दी जा सके । मौसम पूर्वानुमान तकनीकों को लेकर पहाड़ की उपेक्षा हैरत में डालती है । बड़े बांधों वाले पर्वतीय इलाकों में आकस्मिक बाढ़ के पूर्वानुमान का तंत्र अनिवार्य है लेकिन ४५ बांधों वाले उत्तराखंड में यह जानना कतई असंभव है कि कब कहां बादल फटेगा । यही हाल हिमाचल का है । ताजा आपदा से सार्वाधिक प्रभावित उत्तराखंड के चार जिलों रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में २४ सक्रिय बांध हैं, जिनके आसपास फटने वाला बादल पूरे उत्तराखंड को डुबा सकता है ।
बादल फटना एक आकस्मिक घटना है, जिसमें एक सीमित इलाके में बहुत तेज वर्षा होती है । इसकी रफ्तार १०० मिमी प्रतिघंटा हो सकती है । क्लाउड बर्सट में पानी से भरे बादल हवा थमने से भयानक वर्षा करते हैं । बादल फटने की घटना कुछ मिनट के लिए ही होती है लेकिन तबाही बड़ी होती है । पहाड़ों में यह बारिश ढलानों से पत्थर व भूस्खलन लाती है, जैसा कि उत्तराखंड में अभी हुआ है ।
दुनिया के ३८ देश २०१५ तक करेंगे भुखमरी खत्म
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने कहा है कि दुनिया के ३८ देश वर्ष २०१५ तक भुखमरी समाप्त् कर लेंगे ।
संगठन के महानिदेशक जोसी ग्रेजियानो डी सिल्वा ने कहा कि वर्ष २०१५ तक भुखमरी समाप्त् कर सकने वाले ३८ देशों की पहचान की गयी है । इन देशों ने साबित कर दिया है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, सहयोग और समन्वय से भुखमरी में काफी तेजी से कमी लायी जा सकती है । ये देश बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हैं । उन्होने देशों से यह स्थिति बनाये रखने का अनुरोध किया ताकि भुखमरी को पूरी दुनिया से जड़ से उखाड़ा जा सके । आर्मेनिया, अजरबैजान, क्यूबा, डीजीबूती, जार्जिया, घाना, गुयाना, कुवैत, किर्गिस्तान, निकारागुआ, पेरू, सेंट विसेंट एण्ड द ग्रेनाडिस समोआ, सोओ टीम एण्ड प्रिंसिप, थाइलैंण्ड, तुर्कमेनिस्तान, वेनेजुएला, वियतनाम जैसे ३८ देश २०१५ तक भुखमरी खत्म करने की राह में काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं । इसके अलावा १५ विकासशील देशों में भुखमरी की दर पहले ही पांच फीसदी से भी नीचे आ चुकी है । श्री डी सिल्वा ने कहा कि हम पहली ऐसी पीढ़ी हैं जो भुखमरी का खात्मा कर सकते हैं, जिसने सभ्यता के जन्म के बाद से ही मानव जाति को त्रस्त कर रखा है । हमें इस मौके का फायदा उठाना चाहिये । डॉ. सिल्वा ने कहा कि पिछले दशक में भूख से मरने वाले लोगों की संख्या में काफी गिरावट आयी है, लेकिन अब भी ८७ करोड़ लोग अब भी कुपोषण का शिकार है । इसके अलावा लाखोंअन्य लोग विटामिन और खनिज तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं तथा बच्चें का सही तरीके से विकास नहीं हो पा रहा । उन्होनें लक्ष्य हासिल करने वाले देशों को संबोधित करते हुये कहा कि आप लोग इस बात की जिंदा मिसालें हो कि अगर समाज भुखमरी को खत्म करने की ठान ले तथा सरकार भी इसे लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध हो तो परिणाम अवश्य नजर आता है । हमें तब तक अपने प्रयास जारी रखने होंगे जब तक कि दुनिया के हर व्यक्ति को भरपेट खाना व मिलने लगे और हर कोई स्वस्थ न हो जाये ।
गायब हो जाएंगे, नरम खोल वाले कछुए
नरम खोल वाले दुर्लभ एन निगरीकरन कछुऐ विलुिप्त् के कगार पर है । इस प्रजाति के कछुए त्रिपुरा के गोमती जिले के तारिपुरेश्वरी मंदिर के जलाशय मेंपाए जाते है । अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संगठन (आईयूसीएन) ने बोसमती के लोकप्रिय नाम से पहचाने जाने वाले इन विशेष प्रकार के कछुआें के विलुप्त् होने की आशंका जताई है ।
पन्द्रहवी सदी के इस मंदिर को देश का सबसे पवित्र हिन्दु मंदिर माना जाता है । मंदिर परिसर का आकार कर्म (कछुआ) की याद दिलाता है । मंदिर के पास बने कल्याण सागर जलाशय में बोसतमी प्रजाति के कछुआें का निवास है । श्रदालु उन्हें चिवड़ा और बिस्कुट खिलाते है । माताबारी मंदिर समिति ने करीब एक दशक पहले जलाशय के किनारोंको सीमेंट से पक्का करा दिया था जिसके बाद से कछुआें की संख्या में लगातार कमी आ रही है ।
लेबुचेरा स्थित सेन्ट्रल फिशरीज कालेज के प्रोफेसर मृणाल कांति दत्त ने बताया कि तत्काल संरक्षण के लिए कछुआें को प्राकृतिक वातावरण और रेतीला तट मुहैया कराया जाए । राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य ज्योति प्रकाश रायचौधरी ने बताया कि कछुआें को पक्के कर दिए गए तट पर आकर सुस्ताने और घुमने फिरने में दिक्कत आ रही है । मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गत तीन जून को हुई राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में राय चौधरी ने सुझाव दिया था कि जलाशय के तटों को फिर से रेतीला बनाया जाए ।
अब हवा और धूप से चार्ज होगा मोबाइल
हिमाचल प्रदेश के मण्डी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के विद्यार्थियोंने भविष्य की तकनीकी चुनौतियों को देखते हुए ऐसे अहम डिजाइन तैयार किए हैं, जो न केवल कम लागत वाले हैं, बल्कि दैनिक जरूरतों को और बेहतर विकल्प देंगे । विद्यार्थियों ने कम लागत के थ्रीडी प्रिंटर का डिजाइन तैयार करने में कामयाबी हासिल की है ।
साथ ही, हवा व धूप से मोबाइल चार्ज करने की विधि भी खोज ली है । विद्यार्थियों ने संस्थान के कमाद स्थित परिसर में ओपन हाउस के दौरान कई नए मॉडल प्रदर्शित किए हैं । इनमें रेल हादसों पर अंकुश लगाने के लिए स्वचालित ब्रेक सिस्टम, स्वचालित व्हीलचेयर, धूल सोखने वाली मशीन, पानी का छिड़काव करने वाले यंत्र, इंटेलीजेंट पार्किग सिस्टम, ऑटोमेटिक पेपर रिसाइकलर, पर्वतीय क्षेत्र में बीज बोने के लिए रोबोट, अंधे लोगों के लिए ऑटो नेविगेशन उपकरण, होम ऑटोमेशन सिस्टम प्रमुख है ।
संस्थान के इंजीनियरोंने हवा व धूप के उपयोग से चलने वाला हाइब्रिड मोबाइल चार्जर बनाया है । इस चार्जर की खासियत है कि इससे घर के अंदर बैठे हुए भी मोबाइल चार्ज किया जा सकता है । यह इस तरह से डिजायन किया गया है कि सीधी धूप के बिना भी मोबाईल चार्ज हो सकता है । ओपन हाउस में इस डिजाइन को दूसरा पुरस्कार मिला ।
नार्वेको एशिया के करीब लाई पिघलती बर्फ
नार्वेके सुदूर उत्तर में किरकेनिस कस्बा किसी जमाने में किसी भी अन्य यूरोपीयन बंदरगाह के मुकाबले एशिया से बहुत अधिक दूर होता था, लेकिन अचानक से यह एशिया के करीब आता दिखा है और इसका कारण है जलवायु परिवर्तन । जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलती बर्फ ने रूस की आर्कटिक तटरेखा के साथ-साथ नार्दर्न सी रूट को खोल दिया है जिससे अंतरराष्ट्रीय कारोबार का चलन-बदल गया है और यहां इस सुदूर इलाके में यह किसी चार लेन के राजमार्ग के बजाय किसी शांत से गांव की छोटी सी पगडडी अधिक दिखाता है । इस बदलाव का क्रांतिकारी महत्व है क्योंकि इसके चलते जापनी बंदरगाह योकोहामा तथा जर्मन के हेमबर्ग के बीच की यात्रा में लगने वाले समय में जहां ४० फीसदी की कमी आयी है वही ईधन पर खर्च भी २० फीसदी घट गया है ।
आधुनिक रॉडार होते तो बच जाती जानें
सरकार की एक लापरवाही उत्तराखंड मेंभयानक रूप से जानलेवा साबित हुई है । यदि उत्तराखंड के पर्वतीय हिस्सोंमें आधुनिक डॉप्लर वेदर रॉडार होते तो समय रहते बादल फटने की चेतावनी देकर सैकड़ों जानें बचाई जा सकती थी । हैरत है कि कठोर कुदरत वाले उत्तर भारत के हिमालयी इलाके मेंएक भी ऐसा आधुनिक रॉडार नहीं लगा है, जबकि यह प्रणाली देश के १४ शहरों में लगाई गई है, जहां मौसम सहज है और लोग अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं । उत्तराखंड व हिमालय के मौसम का मिजाज पटियाला के रॉडार से नापा जाता है, जिसकी जानकारी अंदाजे पर आधारित होती है ।
केदारघाटी का हादसा मंदाकिनी से उठे बादल के फटने की देन था, जो हिमालयी प्रदेश की नियमित आपदा है । मौसम विज्ञानी मानते है कि बादल फटने का लंबा पूर्वानुमान असंभव है लेकिन कुछ घंटे पहले इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । इसके लिए डॉप्लर रॉडार सबसे उपयुक्त है जो बादलों का घनत्व, हवा का प्रवाह व बादल की स्थिति बताते हैं । बादल फटने की घटना एक सीमित इलाके मेंहोती है इसलिए त्वरित जानकारी के आधार पर लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सकता है । डॉप्लर रॉडार उपग्रह के एस बैंड पर काम करता है लेकिन पूरे उत्तरी हिमालयी प्रदेश में इसकी कोई सुविधा नहीं है । हिमालय क्षेत्र को अगले चरण में शामिल किया जाएगा ।
पटियाला का रॉडार करीब २५० कि.मी. की रेंज के साथ हिमालयी इलाकों का मोटा पूर्वानुमान ही दे पाता है । निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट के प्रमुख जतिन सिंह कहते हैं कि बादल फटना एक स्थानीय घटना है और पहाड़ों में सिग्नल रूकते हैं इसलिए पर्वतीय इलाकों में कई छोटे रडार भी लगाए जाते हैं ताकि बादलों की स्थिति जानी जा सके और समय रहते चेतावनी दी जा सके । मौसम पूर्वानुमान तकनीकों को लेकर पहाड़ की उपेक्षा हैरत में डालती है । बड़े बांधों वाले पर्वतीय इलाकों में आकस्मिक बाढ़ के पूर्वानुमान का तंत्र अनिवार्य है लेकिन ४५ बांधों वाले उत्तराखंड में यह जानना कतई असंभव है कि कब कहां बादल फटेगा । यही हाल हिमाचल का है । ताजा आपदा से सार्वाधिक प्रभावित उत्तराखंड के चार जिलों रूद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ में २४ सक्रिय बांध हैं, जिनके आसपास फटने वाला बादल पूरे उत्तराखंड को डुबा सकता है ।
बादल फटना एक आकस्मिक घटना है, जिसमें एक सीमित इलाके में बहुत तेज वर्षा होती है । इसकी रफ्तार १०० मिमी प्रतिघंटा हो सकती है । क्लाउड बर्सट में पानी से भरे बादल हवा थमने से भयानक वर्षा करते हैं । बादल फटने की घटना कुछ मिनट के लिए ही होती है लेकिन तबाही बड़ी होती है । पहाड़ों में यह बारिश ढलानों से पत्थर व भूस्खलन लाती है, जैसा कि उत्तराखंड में अभी हुआ है ।
दुनिया के ३८ देश २०१५ तक करेंगे भुखमरी खत्म
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने कहा है कि दुनिया के ३८ देश वर्ष २०१५ तक भुखमरी समाप्त् कर लेंगे ।
संगठन के महानिदेशक जोसी ग्रेजियानो डी सिल्वा ने कहा कि वर्ष २०१५ तक भुखमरी समाप्त् कर सकने वाले ३८ देशों की पहचान की गयी है । इन देशों ने साबित कर दिया है कि मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, सहयोग और समन्वय से भुखमरी में काफी तेजी से कमी लायी जा सकती है । ये देश बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर हैं । उन्होने देशों से यह स्थिति बनाये रखने का अनुरोध किया ताकि भुखमरी को पूरी दुनिया से जड़ से उखाड़ा जा सके । आर्मेनिया, अजरबैजान, क्यूबा, डीजीबूती, जार्जिया, घाना, गुयाना, कुवैत, किर्गिस्तान, निकारागुआ, पेरू, सेंट विसेंट एण्ड द ग्रेनाडिस समोआ, सोओ टीम एण्ड प्रिंसिप, थाइलैंण्ड, तुर्कमेनिस्तान, वेनेजुएला, वियतनाम जैसे ३८ देश २०१५ तक भुखमरी खत्म करने की राह में काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं । इसके अलावा १५ विकासशील देशों में भुखमरी की दर पहले ही पांच फीसदी से भी नीचे आ चुकी है । श्री डी सिल्वा ने कहा कि हम पहली ऐसी पीढ़ी हैं जो भुखमरी का खात्मा कर सकते हैं, जिसने सभ्यता के जन्म के बाद से ही मानव जाति को त्रस्त कर रखा है । हमें इस मौके का फायदा उठाना चाहिये । डॉ. सिल्वा ने कहा कि पिछले दशक में भूख से मरने वाले लोगों की संख्या में काफी गिरावट आयी है, लेकिन अब भी ८७ करोड़ लोग अब भी कुपोषण का शिकार है । इसके अलावा लाखोंअन्य लोग विटामिन और खनिज तत्वों की कमी से जूझ रहे हैं तथा बच्चें का सही तरीके से विकास नहीं हो पा रहा । उन्होनें लक्ष्य हासिल करने वाले देशों को संबोधित करते हुये कहा कि आप लोग इस बात की जिंदा मिसालें हो कि अगर समाज भुखमरी को खत्म करने की ठान ले तथा सरकार भी इसे लेकर पूरी तरह प्रतिबद्ध हो तो परिणाम अवश्य नजर आता है । हमें तब तक अपने प्रयास जारी रखने होंगे जब तक कि दुनिया के हर व्यक्ति को भरपेट खाना व मिलने लगे और हर कोई स्वस्थ न हो जाये ।
गायब हो जाएंगे, नरम खोल वाले कछुए
नरम खोल वाले दुर्लभ एन निगरीकरन कछुऐ विलुिप्त् के कगार पर है । इस प्रजाति के कछुए त्रिपुरा के गोमती जिले के तारिपुरेश्वरी मंदिर के जलाशय मेंपाए जाते है । अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संगठन (आईयूसीएन) ने बोसमती के लोकप्रिय नाम से पहचाने जाने वाले इन विशेष प्रकार के कछुआें के विलुप्त् होने की आशंका जताई है ।
पन्द्रहवी सदी के इस मंदिर को देश का सबसे पवित्र हिन्दु मंदिर माना जाता है । मंदिर परिसर का आकार कर्म (कछुआ) की याद दिलाता है । मंदिर के पास बने कल्याण सागर जलाशय में बोसतमी प्रजाति के कछुआें का निवास है । श्रदालु उन्हें चिवड़ा और बिस्कुट खिलाते है । माताबारी मंदिर समिति ने करीब एक दशक पहले जलाशय के किनारोंको सीमेंट से पक्का करा दिया था जिसके बाद से कछुआें की संख्या में लगातार कमी आ रही है ।
लेबुचेरा स्थित सेन्ट्रल फिशरीज कालेज के प्रोफेसर मृणाल कांति दत्त ने बताया कि तत्काल संरक्षण के लिए कछुआें को प्राकृतिक वातावरण और रेतीला तट मुहैया कराया जाए । राज्य वन्यजीव बोर्ड के सदस्य ज्योति प्रकाश रायचौधरी ने बताया कि कछुआें को पक्के कर दिए गए तट पर आकर सुस्ताने और घुमने फिरने में दिक्कत आ रही है । मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में गत तीन जून को हुई राज्य वन्यजीव बोर्ड की बैठक में राय चौधरी ने सुझाव दिया था कि जलाशय के तटों को फिर से रेतीला बनाया जाए ।
अब हवा और धूप से चार्ज होगा मोबाइल
हिमाचल प्रदेश के मण्डी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के विद्यार्थियोंने भविष्य की तकनीकी चुनौतियों को देखते हुए ऐसे अहम डिजाइन तैयार किए हैं, जो न केवल कम लागत वाले हैं, बल्कि दैनिक जरूरतों को और बेहतर विकल्प देंगे । विद्यार्थियों ने कम लागत के थ्रीडी प्रिंटर का डिजाइन तैयार करने में कामयाबी हासिल की है ।
साथ ही, हवा व धूप से मोबाइल चार्ज करने की विधि भी खोज ली है । विद्यार्थियों ने संस्थान के कमाद स्थित परिसर में ओपन हाउस के दौरान कई नए मॉडल प्रदर्शित किए हैं । इनमें रेल हादसों पर अंकुश लगाने के लिए स्वचालित ब्रेक सिस्टम, स्वचालित व्हीलचेयर, धूल सोखने वाली मशीन, पानी का छिड़काव करने वाले यंत्र, इंटेलीजेंट पार्किग सिस्टम, ऑटोमेटिक पेपर रिसाइकलर, पर्वतीय क्षेत्र में बीज बोने के लिए रोबोट, अंधे लोगों के लिए ऑटो नेविगेशन उपकरण, होम ऑटोमेशन सिस्टम प्रमुख है ।
संस्थान के इंजीनियरोंने हवा व धूप के उपयोग से चलने वाला हाइब्रिड मोबाइल चार्जर बनाया है । इस चार्जर की खासियत है कि इससे घर के अंदर बैठे हुए भी मोबाइल चार्ज किया जा सकता है । यह इस तरह से डिजायन किया गया है कि सीधी धूप के बिना भी मोबाईल चार्ज हो सकता है । ओपन हाउस में इस डिजाइन को दूसरा पुरस्कार मिला ।
नार्वेको एशिया के करीब लाई पिघलती बर्फ
नार्वेके सुदूर उत्तर में किरकेनिस कस्बा किसी जमाने में किसी भी अन्य यूरोपीयन बंदरगाह के मुकाबले एशिया से बहुत अधिक दूर होता था, लेकिन अचानक से यह एशिया के करीब आता दिखा है और इसका कारण है जलवायु परिवर्तन । जलवायु परिवर्तन के कारण पिघलती बर्फ ने रूस की आर्कटिक तटरेखा के साथ-साथ नार्दर्न सी रूट को खोल दिया है जिससे अंतरराष्ट्रीय कारोबार का चलन-बदल गया है और यहां इस सुदूर इलाके में यह किसी चार लेन के राजमार्ग के बजाय किसी शांत से गांव की छोटी सी पगडडी अधिक दिखाता है । इस बदलाव का क्रांतिकारी महत्व है क्योंकि इसके चलते जापनी बंदरगाह योकोहामा तथा जर्मन के हेमबर्ग के बीच की यात्रा में लगने वाले समय में जहां ४० फीसदी की कमी आयी है वही ईधन पर खर्च भी २० फीसदी घट गया है ।
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