वन महोत्सव पर विशेष
वन जीवन का आधार
चंदनसिंह नेगी
वन हमारे जीवन का मूल आधार है । प्राणी मात्र का जीवन चक्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनोंऔर वृक्षों पर ही निर्भर है । वृक्षों से ईधन, चारा, प्राणवायु, गोंद, शहद, छाया, नमी, औषधियाँ और जीवनोपयोगी अनेक योग्य चीजे मिलती है । वन और वृक्ष औषधि का अमिट भण्डार है । मन को प्रसन्नता देने वाली हरियाली वनो पर ही आश्रित है । वर्षा चक्र में वनों की महत्ता को कोई कैसे नकार सकता है । आधुनिकता के दौर मेंवनों की उपेक्षा के कारण वनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है ।
विश्व भर के वैज्ञानिको की सबसे बड़ी चिंता जलवायु परिवर्तन से धरती पर हो रहे बदलावों को लेकर है । अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व भर के देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा हरियाली बढ़ाने को चित्तिंत है । वर्ष १९७२ में स्वीडन में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया । इसमें विश्व के ११९ देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की । इसके बाद ब्राजील के रियो द जिनेटियों में प्रध्वी बचाने के लिए १७२ देशों ने चितांए व्यक्त करते हुए धरती को बचाने का संकल्प लिया । इसी क्रम में १९९७, २००७ और २००९ में भी विश्व स्तर पर ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को कम करने के लिए विचार विमर्श किया गया ।
वन जीवन का आधार
चंदनसिंह नेगी
वन हमारे जीवन का मूल आधार है । प्राणी मात्र का जीवन चक्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वनोंऔर वृक्षों पर ही निर्भर है । वृक्षों से ईधन, चारा, प्राणवायु, गोंद, शहद, छाया, नमी, औषधियाँ और जीवनोपयोगी अनेक योग्य चीजे मिलती है । वन और वृक्ष औषधि का अमिट भण्डार है । मन को प्रसन्नता देने वाली हरियाली वनो पर ही आश्रित है । वर्षा चक्र में वनों की महत्ता को कोई कैसे नकार सकता है । आधुनिकता के दौर मेंवनों की उपेक्षा के कारण वनों की भूमिका महत्वपूर्ण हो गयी है ।
विश्व भर के वैज्ञानिको की सबसे बड़ी चिंता जलवायु परिवर्तन से धरती पर हो रहे बदलावों को लेकर है । अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व भर के देश कार्बन उत्सर्जन को कम करने तथा हरियाली बढ़ाने को चित्तिंत है । वर्ष १९७२ में स्वीडन में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन किया गया । इसमें विश्व के ११९ देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की । इसके बाद ब्राजील के रियो द जिनेटियों में प्रध्वी बचाने के लिए १७२ देशों ने चितांए व्यक्त करते हुए धरती को बचाने का संकल्प लिया । इसी क्रम में १९९७, २००७ और २००९ में भी विश्व स्तर पर ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन को कम करने के लिए विचार विमर्श किया गया ।
विकसित देशों में कार्बन उत्सर्जन में कमी को लेकर चित्तांए तो कायम है परन्तु धरातल पर अभी तक वह नही हो पाया है जिसकी जरूरत महसूस की जा रही है । भारत में बड़ी आबादी के कारण यहां पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अधिक है । धरती पर बढ़ती गर्मी से भारत की कृषि पर विपरीत असर पड़ सकता है । साथ ही खेती में परम्परागत तौर तरीके से काम ने होने से भी कृषि उपज पर प्रभाव पड़ना निश्चित है । रासायनिक खेती के कारण खेतों में अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है ।
विश्व भर में यद्यपि हानिकारक गैसो के उत्सर्जन में कमी आयी है परन्तु धरती को बचाने के लिए विषैली गैसो के उत्सर्जन को समाप्त् करने के स्तर पर प्रयास करने होगे । २०-२० तक ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में २० से ३० प्रतिशत कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । यह तभी संभव है जब पेट्रोल डीजल पर आधारित ऊर्जा की खपत कम हो, औद्योगिक प्रदूषण में कमी लायी जाए और धरती पर सघन वनों का क्षेत्रफल बढ़े । भारत में वनों की सघनता पर सरकारे ही अधिक भूमिका निभा सकती है परन्तु शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में पौधारोपण कर पर्यावरण को बचाए रखने में हर जागरूक भारतीय अपना योगदान अवश्य दे सकता है ।
घरेलू गैस को हर चूल्हे तक पहुंचाने से वृक्षों के कटाव पर तो एक सीमा तक कमी आयी है परन्तु बढ़ते औद्योगिकरण और रियल स्टेट कारोबार के तेजी से बढ़ने के कारण शहरी क्षेत्रोंके आसपास पेडो और बगीचो का कत्ल किया जा रहा है । यह चिंता का विषय है यद्यपि पौधारोपण के लिए समाज में एक वातावरण तैयार हुआ है परन्तु जब तक शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की हर खाली जमीन पर पौधे नहीं लगाए जाते हम ग्लोबल वार्मिग पर जीत हासिल नहीं कर सकते । पेड लगेगे प्रदूषण कम होगा, धरती पर नमी बढ़ेगी, ग्रीन हाउस गैसो का अवशोषण होगा इसलिए पौधे लगाए और उसे बचाए तभी धरती को बचाने में हमारी भूमिका निर्णायक हो सकती है ।
विश्व भर में यद्यपि हानिकारक गैसो के उत्सर्जन में कमी आयी है परन्तु धरती को बचाने के लिए विषैली गैसो के उत्सर्जन को समाप्त् करने के स्तर पर प्रयास करने होगे । २०-२० तक ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में २० से ३० प्रतिशत कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है । यह तभी संभव है जब पेट्रोल डीजल पर आधारित ऊर्जा की खपत कम हो, औद्योगिक प्रदूषण में कमी लायी जाए और धरती पर सघन वनों का क्षेत्रफल बढ़े । भारत में वनों की सघनता पर सरकारे ही अधिक भूमिका निभा सकती है परन्तु शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में पौधारोपण कर पर्यावरण को बचाए रखने में हर जागरूक भारतीय अपना योगदान अवश्य दे सकता है ।
घरेलू गैस को हर चूल्हे तक पहुंचाने से वृक्षों के कटाव पर तो एक सीमा तक कमी आयी है परन्तु बढ़ते औद्योगिकरण और रियल स्टेट कारोबार के तेजी से बढ़ने के कारण शहरी क्षेत्रोंके आसपास पेडो और बगीचो का कत्ल किया जा रहा है । यह चिंता का विषय है यद्यपि पौधारोपण के लिए समाज में एक वातावरण तैयार हुआ है परन्तु जब तक शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों की हर खाली जमीन पर पौधे नहीं लगाए जाते हम ग्लोबल वार्मिग पर जीत हासिल नहीं कर सकते । पेड लगेगे प्रदूषण कम होगा, धरती पर नमी बढ़ेगी, ग्रीन हाउस गैसो का अवशोषण होगा इसलिए पौधे लगाए और उसे बचाए तभी धरती को बचाने में हमारी भूमिका निर्णायक हो सकती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें