शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

वानिकी जगत
पेड़-पौधों पर वायु प्रदूषण का प्रभाव
डॉ. विजयकुमार उपाध्याय

    आम धारणा है कि वायु-प्रदूषण से सिर्फ जन्तु ही प्रभावित होते हैं, वनस्पतियों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता । लेकिन अध्ययनों से यह जानकारी प्राप्त् हुई है कि पेड़-पौधें भी वायु प्रदूषण से काफी प्रभावित होते हैं । सन् १९८० में बर्न हार्ड उलरिच नामक एक जर्मन वैज्ञानिक ने वायुमंडल में पहुंचने वाले मानव निर्मित चंद प्रदूषकों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया था । उलरिच विगत एक सदी से अम्ल वर्षा के कारण मिट्टी में आने वाले रासायनिक परिवर्तनों पर शोध कर रहे थे ।
    हालांकि अधिकांश वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि मिट्टी का ऑक्सीकरण मुख्य रूप से वर्षा जल में उपस्थित गंधकाम्ल तथा नाइट्रिक अम्ल की वजह से हुआ है, परन्तु कारण सिर्फ इतना नहीं है । 
      कुछ वैज्ञानिकोंका कहना है कि अम्ल वर्षा सीधे ही पत्तों को नुकसान पहुंचाती है । परन्तु इस विचार से अधिकांश वैज्ञानिक सहमत नहीं हैं । कुछ ऐसे प्रयोग भी किए गए जिनमेंपेड़-पौधों पर अम्लीय घोलों (जो प्राकृतिक अम्ल-वर्षा का प्रतिनिधित्व करते थे) का छिड़काव किया गया । इन प्रयोगों से पता चला कि यदि घोल की अम्लीयता बहुत अधिक न हो तो वनस्पतियों को अम्लीय वर्षा से कोई नुकसान नहीं होता । प्राय: रासायनिक परिवर्तन से प्रभावित मिट्टी वाले क्षेत्र में सामान्यत: जो अम्लीय वर्षा होती है वह साधारण है ।
    वर्षा को अम्लीय बनाने वाली प्रदूषक गैसों में शामिल हैं सल्फर डाईऑक्साइड तथा नाइट्रोजन के विभिन्न ऑक्साइड्स । अधिकांश परिस्थितियों में इंर्धनों को जलाने से ये ही दो प्रदूषक गैसें पैदा होती है । जलने के कारण तापमान बढ़ता है जिसके कारण नाइट्रोजन ऑक्साइड का परिमाण भी बढ़ जाता है । इंर्धनों के जलने के कारण नाइट्रोजन के जो ऑक्साइड्स पैदा होते है उनमें शामिल हैं नाइट्रिक ऑक्साइड तथा नाइट्रोजन ऑक्साइड ।
    मानवीय क्रिया-कलापों के कारण उत्पन्न होने वाले नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स के परिमाण में क्रमिक वृद्धि ही पिछली सदी के उत्तरार्द्ध मेंवायु-प्रदूषण का मुख्य कारण रही है । यह वृद्धि उन क्षेत्रों में भी जारी है जहां प्रदूषण नियंत्रण के सम्बंध मेंकदम उठाए जाने के फलस्वरूप उत्सर्जित होने वाली सल्फर डाईऑक्साइड के परिमााण मेंकुछ कमी दर्ज की गई है । इसका नतीजा यह हुआ है कि विगत तीन दशकोंमें वायुमंडल में सल्फर डाईऑक्साइड के सापेक्ष नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का परिमाण लगातार बढ़ता गया है । इसकी वजह से पेड़-पौधे अनेक प्रकार की बीमारियां से ग्रस्त हुए    हैं । नाइट्रोजन के ऑक्साइड्स स्वयं विर्षले होने के अलावा वायुमंडल में ओजोन पैदा करने में भी योगदान देते हैं ।
    ओजोन गैस वायुमंडल का एक ऐसा प्रदूषक है जो पेड़-पौधों तथा अन्य सभी जीवधारियों के लिए विषैला तथा हानिकारक साबित हुआ है । ओजोन का उत्पादन तीव्र प्रकाश तथा ऊंचे तापमान द्वारा उत्प्रेरित होता है । यही कारण है कि ओजोन प्रदूषण ग्रीष्म ऋतु में काफी अधिक बढ़ जाता है ।
    अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि नाइट्रोजन के विभिन्न ऑक्साइड्स किस प्रकार वायुमण्डल से निकलकर पेड़-पौधों में प्रवेश कर पाने में सफल होते है । अध्ययनों से पता चला है कि पेड-पौधों में नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का प्रवेश दो प्रकार से होता है । नाइट्रोजन ऑक्साइड्स का कुछ अंश वर्षा जल मेंघुलकर पहले मिट्टी में प्रवेश करता है, तथा वहां से फिर यह पेड़-पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है । इसके अलावा इसका कुछ अंश वायु के साथ मिलकर सीधे ही पेड़-पौधों द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है ।
    वायुमण्डल के एक अन्य प्रदूषक ओजोन द्वारा पेड़-पौधों पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में अभी वैज्ञानिकों के पास ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है । परन्तु जड़ी-बूटियों को पहुंचने वाले नुकसान के संबंध में हाल ही में कुछ प्रमाण एकत्र किए गए हैं । ब्रिटेन में लंदन स्थित इम्पीरियल कॉलेज के डॉ. नीगेल बेल तथा उनके सहयोगियों द्वारा किए गए अध्ययनों एवं अनुसंधानों से जानकारी प्राप्त् हुई है कि यदि वायुमण्डल के प्रति एक अरब अणुआें में ओजोन का परिणाम एक सौ अणु से अधिक हो जाए तो पेड़-पौधों पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ता है और वे क्षतिग्रस्त होने लगते हैं । वैसे सामान्य तौर पर वायुमण्डल के प्रति एक अरब अणुआें में ओजोन के ४० अणु ही पाए जाते हैं । वायुमण्डल में ओजोन की इतनी मात्रा वनस्पतियों के लिए  हानिकारक नहीं है ।
    हालांकि वायुमण्डल में ओजोन प्रदूषण पेड़-पौधों की क्षति के लिए  जिम्मेदार पाया गया है, परन्तु अभी तक कोई भी ऐसा वैज्ञानिक प्रयोग विकसित नहीं किया जा सकता है जिसके द्वारा क्षतिग्रस्त पौधों की जांच कर निश्चित तौर पर यह बताया जा सके कि यह क्षति ओजोन प्रदूषण के कारण हुई है । ओजोन प्रदूषण को मापना या निर्धारित करना बहुत ही कठिन काम है क्योंकि  ओजोन शीघ्र ही विघटित होकर ऑक्सीजन में परिवर्तित हो जाती है तथा पौधों में अपनी उपस्थिति का कोई भी संकेत नहीं छोड़ती है ।
    पेड़-पौधों के सामान्य विकास में प्रकाश संश्लेषण विधि द्वारा पत्तों में पैदा होने वाले पोषक पदार्थ (शर्करा इत्यादि) पेड़-पौधों के अन्य भागोंमें वितरित होते रहते हैं । इस प्रकार का वितरण, जड़, धड़ तथा अन्य अंगों में उनकी आवश्यकता के अनुसार लगातार होता रहता है । कुछ समय पूर्व कुछ वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययनों एवं शोधों से जानकारी मिली है कि वायुमण्डल को प्रदूषित करने वाले सल्फर डाईऑक्साइड तथा ओजोन जैसे पदार्थ पौधों में शर्करा वितरण की क्रिया में व्यवधान पैदा करते हैं । इसके कारण पौधों के जमीन के नीचे वाले भाग (जड़ इत्यादि) में विकास की प्रक्रिया अवरूद्ध हो जाती है । इसके विपरीत पौधे के जमीन के ऊपर स्थित भाग (तना, पत्ता, फूल, फल इत्यादि) मेंविकास की गति तेज हो जाती है । जड़ के विकास की प्रक्रिया अवरूद्ध हो जाने के कारण पौधों को जमीन से आवश्यक मात्रा में पोषक पदार्थ उपलब्ध नहीं हो पाते । इसी वजह से पौधे धीरे-धीरे कमजोर होने लगते हैं, और अन्त में बहुत कम आयु में ही वे पूरी तरह सूख जाते हैं ।
    संयुक्त राज्य अमरीका के कृषि एवं खाद्य विभाग में कीट प्रबंधन विशेषज्ञ हीथर ग्रिफिथ नामक वैज्ञानिक द्वारा आेंटारियो क्षेत्र में फसलों पर प्रदूषित वायुमण्डल के प्रभावों का अध्ययन किया गया । इस अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषकों की उच्च् सांद्रता से युक्त वायु के सम्पर्क मेंरहने पर फसलों को कई प्रकार का नुकसान हो सकता है जिनमें शामिल हैं पत्तों पर धब्बे पड़ना, पत्तों का पीला होना, पौधों का विकास बाधित होना, उपज में कमी आना तथा समय से पूर्व पौधों का सूख जाना इत्यादि । फसलों को नुकसान सिर्फ वायुमण्डल में प्रदूषकों की मात्रा पर ही निर्भर नहीं होता बल्कि इस बात पर भी निर्भर करता है कि पौधे कितनी अवधि तक प्रदूषकों के सम्पर्क में रहते हैं तथा वे विकास की किस अवस्था में हैं । हीथर ग्रिफिथ के अनुसार  फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले प्रदूषकों में सर्वप्रमुख है ओजोन । पौधों पर इसका प्रभाव सर्वप्रथम सन् १९४४ में अमरीका के लॉस एंजेल्स में देखा गया । ऐसे अन्य प्रदूषकों में शामिल हैं सल्फर डाईऑक्साइड, फ्लोराइइ्स, अमोनिया तथा विभिन्न प्रकार के धूल कण ।

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