विज्ञान, हमारे आसपास
क्या रात को पेड़ के नीचे सोना ठीक है ?
डॉ. सुशील जोशी
हालांकि कुछ बातें ऐसी हैं जिनका पता वैज्ञानिकों ने एक-दो सदियों पहले ही लगा लिया था मगर लोक मानस में वे भ्रम पैदा करती रहती हैं । विज्ञान की पाठ्य पुस्तकें भी इन भ्रमों को दूर करने में कोई मदद नहीं करती । और तो और, कई बार तो पाठ्य पुस्तकें भ्रम को हवा देने का काम करती है । ऐसा ही एक मामला सांस लेने से संबंधित है ।
यह तो सब जानते है कि मनुष्य समेत सारे प्राणी श्वसन करते हैं । अधिकांश प्राणियों के श्वसन की क्रिया मेंशर्करा (मूलत: ग्लूकोज) और ऑक्सीजन की क्रिया होती है । इस क्रिया मेंकाफी सारी ऊर्जा मुक्त होती है जो प्राणी अपने कामकाज के लिए उपयोग करते हैं । इस क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड और पानी पैदा होते हैं । कार्बन डाईऑक्साइड को किसी न किसी तरह शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है । मनुष्य और कई अन्य प्राणियों में ऑक्सीजन प्राप्त् करने और कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर निकालने के लिए विशेष अंग पाए जाते हैं, जबकि कई प्राणियों में इस कार्य के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते ।
क्या रात को पेड़ के नीचे सोना ठीक है ?
डॉ. सुशील जोशी
हालांकि कुछ बातें ऐसी हैं जिनका पता वैज्ञानिकों ने एक-दो सदियों पहले ही लगा लिया था मगर लोक मानस में वे भ्रम पैदा करती रहती हैं । विज्ञान की पाठ्य पुस्तकें भी इन भ्रमों को दूर करने में कोई मदद नहीं करती । और तो और, कई बार तो पाठ्य पुस्तकें भ्रम को हवा देने का काम करती है । ऐसा ही एक मामला सांस लेने से संबंधित है ।
यह तो सब जानते है कि मनुष्य समेत सारे प्राणी श्वसन करते हैं । अधिकांश प्राणियों के श्वसन की क्रिया मेंशर्करा (मूलत: ग्लूकोज) और ऑक्सीजन की क्रिया होती है । इस क्रिया मेंकाफी सारी ऊर्जा मुक्त होती है जो प्राणी अपने कामकाज के लिए उपयोग करते हैं । इस क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड और पानी पैदा होते हैं । कार्बन डाईऑक्साइड को किसी न किसी तरह शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है । मनुष्य और कई अन्य प्राणियों में ऑक्सीजन प्राप्त् करने और कार्बन डाईऑक्साइड को बाहर निकालने के लिए विशेष अंग पाए जाते हैं, जबकि कई प्राणियों में इस कार्य के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते ।
प्राणियों के समान पेड-पौधे भी श्वसन की क्रियाकरते हैं, आखिर शरीर के कामकाज के लिए ऊर्जा तो उन्हेंभी चाहिए । पेड़-पौधों में भी श्वसन में शर्करा का उपयोग होता है, ऑक्सीजन से उसकी क्रिया होती है और कार्बन डाईऑक्साइड व पानी बनते हैं ।
चूंकि श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग होता है और कार्बन डाईऑक्साइड का निर्माण होता है, इसलिए हमारी अधिकांश पाठ्य पुस्तकें आपको बताएंगी कि श्वसन में हम ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते है । यह पहला भ्रम है । यह वक्तव्य देते हुए यह नहीं बताया जाता कि सांस लेना और छोड़ना श्वसन का एक अंश मात्र है । श्वसन के अन्तर्गत संास लेना व छोड़ना, ली गई सांस में से ऑक्सीजन को सोखकर कोशिकाआें तक पहुंचाना, कोशिकाआें में इस ऑक्सीजन की मदद से शर्करा का ऑक्सीकरण करना (आंतरिक अथवा कोशिकीय श्वसन), इस ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड को वापिस फेफड़ों तक पहुंचाना तथा अंतत: उसे शरीर से बाहर निकालना तक शामिल हैं ।
सवाल यह है कि यदि मनुष्य श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन लेकर कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते हैं, तो जरा सोचिए कि फिर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को कृत्रिम श्वसन देने की बात कैसे संभव है । दरअसल, आप जो हवा फेफड़ों में खींचते हैं और जो हवा फेफड़ों से छोड़ते है, यदि उनका विश्लेषण करें तो उनमें बहुत अंतर नहीं होता । जैसे जो हवा आप सांस में लेते हैं उसमें करीब ७९ प्रतिशत नाइट्रोजन, २० प्रतिशत ऑक्सीजन और १ प्रतिशत अन्य गैंसे होती है । अन्य गैसों में करीब ०.०३ प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड शामिल हैं । अब सांस में छोड़ी जाने वाली हवा गौर करे इसमें ७९ प्रतिशत नाइट्रोजन, करीब १६ प्रतिशत ऑक्सीजन और करीब ०.३ प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड होती है । आप देख ही सकते है कि इन दो हवाआें में कोई बड़ा अंतर नहीं है ।
अब सवाल पेड़-पौधों का । पेड़-पौधों में श्वसन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते । इनमें हवा का आदान-प्रदान मूलत: पत्तियों में उपस्थित छिद्रों के जरिए होता है । इन छिद्रों को स्टोमेटा कहते हैं । इनके अलावा तने पर भी कुछ छिद्र होते हैं और जड़े अपनी पूरी सतह से सांस लेती है । श्वसन की क्रिया में पेड़-पौधें भी ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड का निर्माण करते हैं ।
गौरतलब है कि सारे सजीव श्वसन करते हैं और चौबीसों घंटे करते हैं क्योंकि शरीर की किसी भी बुनियादी जीवन क्रिया या जरूरी हुआ तो हिलने-डुलने, चलने-फिरने के लिए जरूरी ऊर्जा श्वसन के जरिए ही मिलती है ।
मगर हम यह भी पढते आए हैं कि पेड़-पौधे ऑक्सीजन देते हैं । यहीं से अलग चक्कर शुरू होता है । वास्तव में अट्ठारवीं सदी में कई वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह स्पष्ट हो पाया था कि पेड़-पौधे हवा की मदद से एक क्रिया और करते हैं । उस क्रियाको प्रकाश संश्लेषण कहते हैं और उसमें पेड-पौधे कार्बन डाईऑक्साइड तथा पानी की क्रियासे शर्करा और ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं । काफी पापड़ बेलने के बाद इस क्रिया को भलीभांति समझा जा सका । जो बात यहां महत्वपूर्ण है, वह यह है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के पेड़-पौधों के सिर्फ उन भागों में होती है, जहां क्लोरोफिल होता है ।
इसके आधार पर दो बातें साफ हैं । प्रकाश संश्लेषण अधिकांश पौधों में सिर्फ पत्तियों तक सीमित होता है और रात मे नहीं होता । दूसरी ओर, श्वसन दिन-रात हर समय चौबीसों घंटे चलता रहता है । इसके साथ एक बात और ध्यान देने योग्य है । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बहुत तेज गति से होती है । सुबह होने के साथ ही तमाम पत्तियां कारखानों की तरह काम करना शुरू कर देती हैं और कार्बन डाईऑक्साइड और पानी कि क्रिया से शर्करा बनाने लगती हैं । इस शर्करा को कई अन्य पदार्थोंा में बदला जाता है । प्रकाश संश्लेषण की तेज रफ्तार का ही नतीजा है कि ये पदार्थ न सिर्फ पौधों के लिए बल्कि समस्त प्राणियों के लिए भी जीवन का आधार बन पाते हैं ।
ध्यान दें कि दिन उगने के बाद भी श्वसन की क्रिया चल रही है । मगर पेड़-पौधों में श्वसन की क्रिया धीमी होती है । उन्हें हिलना-डुलना, चलना-फिरना, धड़कना तो है नहीं । इसलिए उनकी ऊर्जा की जरूरत भी कम होती है और श्वसन की रफ्तार भी । श्वसन की क्रिया मेंजो कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, वह पत्तियों के अंदर ही खाली स्थानों में पहुंचती है । इन्हीं पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रियाभी चल रही है । इस प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए हवा में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग किया जाता है । इसके अलावा श्वसन क्रिया मेंबनी कार्बन डाईऑक्साइड भी इसी में खप जाती है । इसलिए कुल मिलाकर लगता है कि दिन में पौधे कार्बन डाईऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते है । वैसे ध्यान दें कि स्टोमेटा में से जो हवा अंदर जाती है उसमें भी २० प्रतिशत ऑक्सीजन, ७९ प्रतिशत नाइट्रोजन और अल्प मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड व अन्य गैसें होती हैं । स्टोमेटा से बाहर आने वाली हवा में कार्बन डाईऑक्साइड नहीं होती जबकि ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और नाइट्रोजन उतनी ही रहती है ।
दिन के समय भी श्वसन तो बदस्तूर जारी रहता है और इस क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है । मगर होता यह है कि श्वसन में उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कर लिया जाता है । लिहाजा दिन के समय पत्तियों से नेट ऑक्सीजन बाहर निकलती है ।
अब आई रात । प्रकाश संश्लेषण तो हो गया बंद, मगर श्वसन चलता रहा । यानी रात को ऑक्सीजन निर्माण नहीं हो रहा है । श्वसन के कारण ऑक्सीजन खर्च हो रही है और कार्बन डाईऑक्साइड बन रही है । दिन का टाइम होता, तो इस कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग हो जाता मगर ये न थी हमारी किस्मत ।
यानी पौधे रात में कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ेंगे । और मनुष्य सहित सारे प्राणी तो दिन में यही कर रहे थे और रात में यही करेंगे । इसके आधार पर कहा जाता है कि रात में यदि आप पेड़ के नीचे सोए, तो आपकी खैर नहीं क्योंकि रात में आपको ऑक्सीजन के लिए पेड़ के साथ प्रतिर्स्पधा करनी होगी । साथ ही साथ पेड़ जो कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ेगा वह आपके फेफड़ों में घुस जाएगी और आपका दम घोट देगी । इसे मेरा मित्र मनोहर बहुत ही रोचक ढंग से बयान किया करता था । वह कहता था कि रात में पेड़ भी ऑक्सीजन खींच रहे हैं और आप भी । अब पेड़ तो इतना बड़ा है, इसलिए उसकी ऑक्सीजन खींचने की ताकत भी बहुत ज्यादा है । तो वह आसपास की हवा की सारी ऑक्सीजन खींच लेगा । जब हवा में ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी, तो वह आपके फेफड़ों के अंदर से भी ऑक्सीजन खींचेगा । ऑक्सीजन के साथ-साथ फेफड़ें भी खींचकर बाहर आ जाएंगे - ठीक उसी तरह जैसे किसी खाली थैली को खाली करते वक्त हम उसे उलट देते हैं । हकीकत इससे कहीं अधिक रोचक है । पेड़ हालांकि बहुत बड़े होते हैं मगर प्राणियों और पेड़-पौधों का एक अंतर बच्च-बच्च जानता है । पेड़-पौधे चलते-फिरते नहीं, हिलते-डुलते नहीं । इसलिए उनकी ऊर्जा की जरूरत प्राणियों की अपेक्षा बहुत कम होती है । इस वजह से उनकी श्वसन दर भी बहुत कम होती है । एक मनुष्य औसतन प्रतिदिन करीब ५०० ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ता है । यह दिन भर का औसत है, यदि दिन और रात को अलग-अलग करके देखेंगे तो रात में कम कार्बन डाइऑक्साईड छोड़ी जाएगी क्योंकि उस समय अधिकांश मनुष्य सोते हैं और उनकी श्वसन दर काफी कम हो जाती है । संभवत: रात भर में मनुष्य करीब १००-१५० ग्राम कार्बन डाईऑक्-साइड छोड़ेगा । पेड़ों की श्वसन दर निकालना मुश्किल काम है । फिर भी मौटे तौर पर १० टन वजन का एक बड़ा पेड़ रात भर में करीब १० ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ेगा ।
अब आसानी से देखा जा सकता है कि एक पेड़ के नीचे सोने और एक व्यक्ति के साथ कमरे मेंसोने के बीच क्या अंतर है । जाहिर है, एक और व्यक्ति के साथ सोना ज्यादा घातक साबित हो सकता है । पेड़ के नीचे सोने के खतरे की बात एक और कारण से भी बेतुकी है । किसी भी स्थान की हवा को एक स्थिर आयतन मानना कदापि ठीक नहीं है । आपके आसपास की हवा लगातार बदलती रहती है । खास तौर से तब जब आप खुले में सो रहे हैं । इतने सारे पक्षी, प्राणी पेड़ों पर ही रहते हैं । यदि वे सब ऑक्सीजन के लिए पेड़ों से प्रतिस्पर्धा करें तो उपरोक्त अधकचरे तर्क के आधार पर सब के सब, रातों रात मर जाने चाहिए । इसी प्रकार से, जाड़े के दिनों में ट्रेन के किसी खचाखच भरे डिब्बे में हमें किसी के बचने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि जाड़ों में खिड़कियां बंद रहती हैं ।
पेड़ के नीचे सोने का खतरा, दरअसल, अधूरी वैज्ञानिक जानकारी के अधकचरे उपयोग का नतीजा है । जो वास्तविक खतरे हो सकते हैं, उनमें पेड़ की शाखा का गिरना और किसी पक्षी द्वारा बीट किया जाना वगैरह गिनाए जा सकते हैं । लेकिन इनका सम्बंध ऑक्सीजन से कदापि नहीं है ।
चूंकि श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन का उपयोग होता है और कार्बन डाईऑक्साइड का निर्माण होता है, इसलिए हमारी अधिकांश पाठ्य पुस्तकें आपको बताएंगी कि श्वसन में हम ऑक्सीजन लेते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते है । यह पहला भ्रम है । यह वक्तव्य देते हुए यह नहीं बताया जाता कि सांस लेना और छोड़ना श्वसन का एक अंश मात्र है । श्वसन के अन्तर्गत संास लेना व छोड़ना, ली गई सांस में से ऑक्सीजन को सोखकर कोशिकाआें तक पहुंचाना, कोशिकाआें में इस ऑक्सीजन की मदद से शर्करा का ऑक्सीकरण करना (आंतरिक अथवा कोशिकीय श्वसन), इस ऑक्सीकरण के दौरान उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड को वापिस फेफड़ों तक पहुंचाना तथा अंतत: उसे शरीर से बाहर निकालना तक शामिल हैं ।
सवाल यह है कि यदि मनुष्य श्वसन की क्रिया में ऑक्सीजन लेकर कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते हैं, तो जरा सोचिए कि फिर एक व्यक्ति द्वारा दूसरे को कृत्रिम श्वसन देने की बात कैसे संभव है । दरअसल, आप जो हवा फेफड़ों में खींचते हैं और जो हवा फेफड़ों से छोड़ते है, यदि उनका विश्लेषण करें तो उनमें बहुत अंतर नहीं होता । जैसे जो हवा आप सांस में लेते हैं उसमें करीब ७९ प्रतिशत नाइट्रोजन, २० प्रतिशत ऑक्सीजन और १ प्रतिशत अन्य गैंसे होती है । अन्य गैसों में करीब ०.०३ प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड शामिल हैं । अब सांस में छोड़ी जाने वाली हवा गौर करे इसमें ७९ प्रतिशत नाइट्रोजन, करीब १६ प्रतिशत ऑक्सीजन और करीब ०.३ प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड होती है । आप देख ही सकते है कि इन दो हवाआें में कोई बड़ा अंतर नहीं है ।
अब सवाल पेड़-पौधों का । पेड़-पौधों में श्वसन के लिए कोई विशेष अंग नहीं होते । इनमें हवा का आदान-प्रदान मूलत: पत्तियों में उपस्थित छिद्रों के जरिए होता है । इन छिद्रों को स्टोमेटा कहते हैं । इनके अलावा तने पर भी कुछ छिद्र होते हैं और जड़े अपनी पूरी सतह से सांस लेती है । श्वसन की क्रिया में पेड़-पौधें भी ऑक्सीजन का उपयोग करते हैं और कार्बन डाईऑक्साइड का निर्माण करते हैं ।
गौरतलब है कि सारे सजीव श्वसन करते हैं और चौबीसों घंटे करते हैं क्योंकि शरीर की किसी भी बुनियादी जीवन क्रिया या जरूरी हुआ तो हिलने-डुलने, चलने-फिरने के लिए जरूरी ऊर्जा श्वसन के जरिए ही मिलती है ।
मगर हम यह भी पढते आए हैं कि पेड़-पौधे ऑक्सीजन देते हैं । यहीं से अलग चक्कर शुरू होता है । वास्तव में अट्ठारवीं सदी में कई वैज्ञानिकों के प्रयासों से यह स्पष्ट हो पाया था कि पेड़-पौधे हवा की मदद से एक क्रिया और करते हैं । उस क्रियाको प्रकाश संश्लेषण कहते हैं और उसमें पेड-पौधे कार्बन डाईऑक्साइड तथा पानी की क्रियासे शर्करा और ऑक्सीजन का निर्माण करते हैं । काफी पापड़ बेलने के बाद इस क्रिया को भलीभांति समझा जा सका । जो बात यहां महत्वपूर्ण है, वह यह है कि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के पेड़-पौधों के सिर्फ उन भागों में होती है, जहां क्लोरोफिल होता है ।
इसके आधार पर दो बातें साफ हैं । प्रकाश संश्लेषण अधिकांश पौधों में सिर्फ पत्तियों तक सीमित होता है और रात मे नहीं होता । दूसरी ओर, श्वसन दिन-रात हर समय चौबीसों घंटे चलता रहता है । इसके साथ एक बात और ध्यान देने योग्य है । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बहुत तेज गति से होती है । सुबह होने के साथ ही तमाम पत्तियां कारखानों की तरह काम करना शुरू कर देती हैं और कार्बन डाईऑक्साइड और पानी कि क्रिया से शर्करा बनाने लगती हैं । इस शर्करा को कई अन्य पदार्थोंा में बदला जाता है । प्रकाश संश्लेषण की तेज रफ्तार का ही नतीजा है कि ये पदार्थ न सिर्फ पौधों के लिए बल्कि समस्त प्राणियों के लिए भी जीवन का आधार बन पाते हैं ।
ध्यान दें कि दिन उगने के बाद भी श्वसन की क्रिया चल रही है । मगर पेड़-पौधों में श्वसन की क्रिया धीमी होती है । उन्हें हिलना-डुलना, चलना-फिरना, धड़कना तो है नहीं । इसलिए उनकी ऊर्जा की जरूरत भी कम होती है और श्वसन की रफ्तार भी । श्वसन की क्रिया मेंजो कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है, वह पत्तियों के अंदर ही खाली स्थानों में पहुंचती है । इन्हीं पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रियाभी चल रही है । इस प्रकाश संश्लेषण क्रिया के लिए हवा में मौजूद कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग किया जाता है । इसके अलावा श्वसन क्रिया मेंबनी कार्बन डाईऑक्साइड भी इसी में खप जाती है । इसलिए कुल मिलाकर लगता है कि दिन में पौधे कार्बन डाईऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते है । वैसे ध्यान दें कि स्टोमेटा में से जो हवा अंदर जाती है उसमें भी २० प्रतिशत ऑक्सीजन, ७९ प्रतिशत नाइट्रोजन और अल्प मात्रा में कार्बन डाईऑक्साइड व अन्य गैसें होती हैं । स्टोमेटा से बाहर आने वाली हवा में कार्बन डाईऑक्साइड नहीं होती जबकि ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है और नाइट्रोजन उतनी ही रहती है ।
दिन के समय भी श्वसन तो बदस्तूर जारी रहता है और इस क्रिया में कार्बन डाईऑक्साइड पैदा होती है । मगर होता यह है कि श्वसन में उत्पन्न कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में कर लिया जाता है । लिहाजा दिन के समय पत्तियों से नेट ऑक्सीजन बाहर निकलती है ।
अब आई रात । प्रकाश संश्लेषण तो हो गया बंद, मगर श्वसन चलता रहा । यानी रात को ऑक्सीजन निर्माण नहीं हो रहा है । श्वसन के कारण ऑक्सीजन खर्च हो रही है और कार्बन डाईऑक्साइड बन रही है । दिन का टाइम होता, तो इस कार्बन डाईऑक्साइड का उपयोग हो जाता मगर ये न थी हमारी किस्मत ।
यानी पौधे रात में कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ेंगे । और मनुष्य सहित सारे प्राणी तो दिन में यही कर रहे थे और रात में यही करेंगे । इसके आधार पर कहा जाता है कि रात में यदि आप पेड़ के नीचे सोए, तो आपकी खैर नहीं क्योंकि रात में आपको ऑक्सीजन के लिए पेड़ के साथ प्रतिर्स्पधा करनी होगी । साथ ही साथ पेड़ जो कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ेगा वह आपके फेफड़ों में घुस जाएगी और आपका दम घोट देगी । इसे मेरा मित्र मनोहर बहुत ही रोचक ढंग से बयान किया करता था । वह कहता था कि रात में पेड़ भी ऑक्सीजन खींच रहे हैं और आप भी । अब पेड़ तो इतना बड़ा है, इसलिए उसकी ऑक्सीजन खींचने की ताकत भी बहुत ज्यादा है । तो वह आसपास की हवा की सारी ऑक्सीजन खींच लेगा । जब हवा में ऑक्सीजन खत्म हो जाएगी, तो वह आपके फेफड़ों के अंदर से भी ऑक्सीजन खींचेगा । ऑक्सीजन के साथ-साथ फेफड़ें भी खींचकर बाहर आ जाएंगे - ठीक उसी तरह जैसे किसी खाली थैली को खाली करते वक्त हम उसे उलट देते हैं । हकीकत इससे कहीं अधिक रोचक है । पेड़ हालांकि बहुत बड़े होते हैं मगर प्राणियों और पेड़-पौधों का एक अंतर बच्च-बच्च जानता है । पेड़-पौधे चलते-फिरते नहीं, हिलते-डुलते नहीं । इसलिए उनकी ऊर्जा की जरूरत प्राणियों की अपेक्षा बहुत कम होती है । इस वजह से उनकी श्वसन दर भी बहुत कम होती है । एक मनुष्य औसतन प्रतिदिन करीब ५०० ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ता है । यह दिन भर का औसत है, यदि दिन और रात को अलग-अलग करके देखेंगे तो रात में कम कार्बन डाइऑक्साईड छोड़ी जाएगी क्योंकि उस समय अधिकांश मनुष्य सोते हैं और उनकी श्वसन दर काफी कम हो जाती है । संभवत: रात भर में मनुष्य करीब १००-१५० ग्राम कार्बन डाईऑक्-साइड छोड़ेगा । पेड़ों की श्वसन दर निकालना मुश्किल काम है । फिर भी मौटे तौर पर १० टन वजन का एक बड़ा पेड़ रात भर में करीब १० ग्राम कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ेगा ।
अब आसानी से देखा जा सकता है कि एक पेड़ के नीचे सोने और एक व्यक्ति के साथ कमरे मेंसोने के बीच क्या अंतर है । जाहिर है, एक और व्यक्ति के साथ सोना ज्यादा घातक साबित हो सकता है । पेड़ के नीचे सोने के खतरे की बात एक और कारण से भी बेतुकी है । किसी भी स्थान की हवा को एक स्थिर आयतन मानना कदापि ठीक नहीं है । आपके आसपास की हवा लगातार बदलती रहती है । खास तौर से तब जब आप खुले में सो रहे हैं । इतने सारे पक्षी, प्राणी पेड़ों पर ही रहते हैं । यदि वे सब ऑक्सीजन के लिए पेड़ों से प्रतिस्पर्धा करें तो उपरोक्त अधकचरे तर्क के आधार पर सब के सब, रातों रात मर जाने चाहिए । इसी प्रकार से, जाड़े के दिनों में ट्रेन के किसी खचाखच भरे डिब्बे में हमें किसी के बचने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि जाड़ों में खिड़कियां बंद रहती हैं ।
पेड़ के नीचे सोने का खतरा, दरअसल, अधूरी वैज्ञानिक जानकारी के अधकचरे उपयोग का नतीजा है । जो वास्तविक खतरे हो सकते हैं, उनमें पेड़ की शाखा का गिरना और किसी पक्षी द्वारा बीट किया जाना वगैरह गिनाए जा सकते हैं । लेकिन इनका सम्बंध ऑक्सीजन से कदापि नहीं है ।
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