शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

प्रसंगवश
बाघ संरक्षण में पिछड़ता मध्यप्रदेश

डॉ. महेश परिमल 
    पिछले एक साल में मध्यप्रदेश में एक दर्जन बाघों की मौत हुई है । बाघों की संख्या को देखते हुए पहले मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट कहा जाता था । इन दिनों मध्यप्रदेश सरकार को बाघों की कम और बाघों को देखने आने वाले पर्यटकों की चिंता अधिक है । इसलिए पर्यटकों के लिए लगातार सुविधाआें का विस्तार किया जा रहा है, पर बाघों का शिकार करने वाले अभी तक कानून की पहुंच से दूर हैं ।
    पिछले एक साल में जिस तरह से शिकारियों द्वारा बाघों का शिकार किया गया है, उससे यही लगता है कि बाघों का शिकार इलेक्ट्रिक तार में करंट देकर किया गया है । सभी मामलों में शिकारी इतने चालाक दिखाई दिए कि वन विभाग का अमला मृत बाघ तक पहुंचे, इसके पहले बाघ के तमाम अवशेष गायब कर दिए जाते हैं । देश में कुल ४० टाइगर रिजर्व में से अधिक ५ मध्यप्रदेश में ही हैं । पिछले एक दशक में मध्यप्रदेश के विभिन्न अभयारण्यों में कुल ४५३ बाघ कम हुए हैं । इसमें बाघों की प्राकृतिक मौत के अलावा उनके शिकार भी शामिल हैं । इनमें से अभी तक केवलदो व्यक्तियों पर ही बाघ की हत्या के मामले में सजा हुई है । इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि बाघों की सुरक्षा को लेकर मध्यप्रदेश सरकार कितनी चितिंत है ?
    आंकड़े सरकार की बेबसी को दर्शाते हैं । २००१-०२ में मध्यप्रदेश के ६ नेशलन पार्क में कुल ७१० बाघ थे । जब २०११ में गिनती हुई तब बाघों की संख्या कम होकर २५७ रह गई । अब इसमें लगातार कमी आ रही है । वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले दो दशक में ९८६ बाघों की हत्या हुई है । ये आंकड़े केवलहत्या के हैं । कई बाघ प्राकृतिक तौर पर मृत्यु को प्राप्त् होते है । इनकी संख्या भी काफी अधिक है । बाघों की मौत के संबंध में मध्यप्रदेश पूरे देश में आगे है । यहां अभी तक बाघों के संरक्षण के लिए कोइ ठोस नीति नहीं बन पाई है और न ही बाघों की मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर किसी तरह की कठोर कार्यवाही हुई है । जो शिकारी पकड़े गए है, उन्हें भी मामूली सजा हुई है । इससे शिकारियों में किसी प्रकार की दहशत नहीं है । इससे यह सवाल बना हुआ है कि राज्य में बाघों का संरक्षण कैसे होगा                   

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