मधुमक्खियाँ देती हैं खतरे का संदेश
अगर फूलों के आस- पास मंडराते समय मध्ुामक्खियों को खतरे का आभास होता है तो वे अपने ही अंदाज में अपने साथियेां को खतरे के प्रति आगाह कर देती हैं । खतरे से आगाह करने के लिए वे खास किस्म का डांस करती हैं । ये शोध एनिमल बिहेवियर पत्रिका में छपा है । वैज्ञानिकों को इस बात का तब पता चला जब उन्होंने कुछ फूलों के पास मरी हुई मधुमक्खियां रख दीं । फिर अध्ययन किया कि यहां आने वाली अन्य मधुमक्खियाँ खतरे के प्रति क्या प्रतिक्रिया देती हैं । अध्ययन से पता चला कि खतरे को भाँपते ही वे एक अनोखे नृत्य (विगल डांस) के जरिए दूसरी मधुमक्खियों तक संदेश पहुंचा देती हैं कि आगे खतरा है । जब मधुमक्खियाँ अपने छत्ते की ओर वापस आती हैं तो वे एक जटिल किस्म का नृत्य करती हैं। इसके बारे में ४० साल पहले पता लगाया गया था । वैज्ञानिकों ने एक नया प्रयोग किया। मधुमक्खियों को दो कृत्रिम फूलों के पास भेजा गया, इनमें एक समान खाना उपलब्ध था । एक फूल पर दो मरी हुई मधुमक्खियाँ भी रख दीं ताकि आने वाली मक्खियाँ इसे देख सकें । वैज्ञानिकों ने पाया कि जब मधुमक्खियाँ ऐसे फूलों के पास वापस आती हैं जहां से उन्हें भरपूर खाना मिलेगा तो वे २० से ३० बार ज्यादा डांस करती है जबकि, अगर उन्हें लगता है कि फूलों के आसपास मकड़ियों आदि के जाल में फँसने का खतरा है तो वे छत्ते पर लौटकर ऐसा नहीं करतीं । यानी मधुमक्खियाँ ये पता लगा लेती हैं कि कुछ फूूलों के पास जाना खतरनाक हो सकता है और वे खतरे का संदेश अपने विगल डांस के माध्यम से दूसरे साथियों को भी देती हैं ।
डीएनए जाँच में भी धोखाधड़ी संभव
वर्षोंा से आपराधिक जाँच में पुख्ता सबूत का काम करने वाले डीएनए परीक्षण की वैद्यता भी अब संदेह के घेरे में आ गई है । शोधकर्ताआें का कहना है कि डीएनए के साथ छेड़छाड़ करना संभव है और आपराधिक मामलों में इसका दुरूपयोग किया जा सकता है । शोधकर्ताआें ने रक्त के एक नमूने में मौजूद सभी डीएनए, नष्ट कर उनके स्थान पर एक अन्य व्यक्ति के जीन सफलतापूर्वक मिला दिए । ऐसे में बड़ी आसानी से वह व्यक्ति दोषी ठहराया जा सकता है जिसके जीन मिलाए गए हैं भले ही उसका अपराध से दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं हो । इजराइली वैज्ञानिकों द्वारा किया गया यह प्रयोग इतना सफल रहा कि अमेरिकी न्यायालयों में डीएनए फिंगरप्रिटिंग करने वाले फोंरेंसिक वैज्ञानिक भी धोखा खा गए । इस शोध के बाद इस बात की आशंका बढ़ी है कि अपराधी घटनास्थल पर मासूम लोगों के रक्त नमूने छोड़ दें और उन्हें एनकिए अपराध के लिए दोषी ठहरा दिया जाए । इस तरह आपराधिक गुत्थियों को सुलझाने वाली इस महत्वपूर्ण तकनीक का आपराधिक मानसिकता वाले लोग दुरूपयोग कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि ब्रिटेन समेत दुनिया भर के अनेक देशों में सैकड़ों अपराधों को सुलझान में यह तकनीक निर्णायक साबित होती है । शोध का नेतृत्व करने वाले डॉक्टर डान फ्रुंकिन के मुताबिक अगर किसी स्थान पर रक्त, थूंक अथवा किसी ऊतक को बदल दिया जाए तो किसी भी अपराध के स्थान को बदला जा सकता है । डीएनए दरअसल डीऑक्सीरीबोन्यूक्लिक एसिड का संक्षिप्त् नाम है जो सभी जीवित प्राणियों की जीन संबंधी संरचना की सारी जानकारियों को एकत्रित रखता है । फोरेंसिक शोधकर्ता किसी घटनास्थल पर रक्त, शुक्राणु, त्वचा, थूंक अथवा बालों में मौजूद डीएनए का अन्य व्यक्तियों से मिलान कर अपराधी की पहचान करते हैं । इस प्रक्रिया को डीएनए परीक्षण अथवा जेनेटिक फिंगरप्रिंटिंग कहा जाता है ।
खुजलाने से खुजली मिट क्यों जाती है ?
आपने भी यह जरूर महसूस किया होगा कि जब शरीर के किसी भाग पर खुजाल चलती है जो खुजलाने से राहत मिलती है । सवाल है कि यह राहत क्यों मिलती है ? इस सम्बंध में शोधकर्ताआें ने कम से कम बंदरों में उन तंत्रिकाआें को खोज निकाला है जो खुजलाने की प्रक्रिया से शांत हो जाती हैं । यानी उनकी मस्तिष्क को संकेत भेजने की गति धीमी पड़ जाती है । आशा है, बंदरों पर किए गए प्रयोगों से इन्सानों को राहत दिलाने में कुछ मदद मिलेगी । वैसे खुजली होती ही क्यों है ? ऐसा लगता है कि कई सारे ऐसे उद्दीपन होते हैं जो संवेदी तंत्रिकाओ को उत्तेजित करते हैं कि वे स्पाइनोथेलेकि ट्रेक्ट से मस्तिष्क को संदेश भेजें । ये संदेश खुजली की अनुभूमि पैदा करते हैं । इस संदर्भ में हिस्टेमीन एक पदार्थ है जो तंत्रिकाआें को उत्तेजित करता है । मिनेसोटा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता देखना चाहते थे कि इन तमाम तंत्रिकाआें में से कौन - सी खुजलाने पर शांत हो जाती है । इसके लिए उन्होंने कुछ मैकॉक बंदर लिए और उन्हें बेहोश कर दिया। इनके स्पाइनल ट्रेक्ट में कुछ इलेक्ट्रॉड वगैरह लगा दिए गए । इब इन बंदरों की टांग में हिस्टेमीन का इंजेक्शन लगाया गया । हिस्टेमीन का इंजेक्शन लगते ही इनकी स्पाइनोथेलेमिक ट्रेक्ट की तंत्रिकाएं उत्तेजित होकर संदेश भेजने लगीं, मगर उस स्थान की चमड़ी को खुजलाने से कुछ तंत्रिकाआें द्वारा भेजे जाने वाले संदेशो में कमी आई। इसका मतलब यह हुआ कि खुजलाने का असर इन्हीं वाइनोथेलेमिक तंत्रिकाआें पर हुआ था। यह तो हुई बंदरों की बात । शोधकर्ता अब उन्हीं तंत्रिकाआें जैसी तंत्रिकाएं इन्सानों में भी खोजना चाहते हैं एक बार ये तंत्रिकाएं पता लग जाने पर उनके बारे में कुछ कर पाने की संभावना बनेगी । खास तौर से कुछ बीमारियों में बहुत ज़्यादा खुजली की समस्या होती है उनमें राहत पहुंचाने का रास्ता इससे निकल सकता है । फिलहाल जो दवाईयां उपलब्ध हैं वे बहुत कम राहत देती हैं और खुजलाने से चमड़ी को नुकसान पहुंचने का खतरा तो रहता ही है तो उम्मीद है कि बेहतर दवाईयां सामने आएगी ।
बैक्टीरिया संक्रमण के इलाज मंे वायरस
प्रकृति मेंऐसे वायरस मौजूद हैं जो बैक्टीरिया का भक्षण करते हैं । इन्हें बैक्टीरिया भक्षी या बैक्टीरिायेफेज कहते हैं । अब युनिवर्सिटी कॉलेज लंदन ईयर इंस्टीट्यूट के एण्ड््रयू राइट और उनके सहयोगियों ने इन बैक्टीरियाभक्षी का उपयोग संकमण के इलाज में करने का सफल अध्ययन किया है । पिछले कुछ वर्षांे में निमोनिया, टायफॉइड जैसी सामान्य बीमारियां फैलाने वाले बैक्टीरिया एण्टीबायोटिक औषधि के प्रतिरोधी होते गए हैं और यह एक प्रमुख समस्या बन गई है । नई तकनीक ऐसे प्रतिरोधी बैक्टीरिया के खिलाफ विशेष तौर पर कारगर साबित होने की उममीद है । प्रथम क्लिनिकल ट्रायल में यह काफी सफल भी रही है । राइट व साथियों ने उक्त परीक्षण कान के संक्रमण से पीड़ित रोगियों पर किया। इन सबको स्यूडोमोनास एरूजिनोसा नामक बैक्टीरिया का प्रतिरोधी किस्म का संक्रमण था । ये बैक्टीरिया अपनी कोशिका के आसपास एक जैव - झिल्ली बना लेते हैं जिसके चलते ये एण्टीबायोटिक के प्रतिरोधी हो जाते हैं । ऐसे २४ लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया था। इनमें से आधे लोगों को एक बैक्टीरियाभक्षी बायोफेज-२४ दिया गाय जबकि शेष आधे लोगों को एक प्लेसिबो दिया गया । अध्ययन में देखा गया कि सभी लोागें में दर्द, मवाद तथा सूजन में कमी आई मगर बायोफेज का सेवन कर चुके लोगों में यह कमी दुगुनी थी । इसके अलावा इन लोगों के कान में उक्त बैक्टीरिया की संख्या में बहुत कमी आई । छ: सप्तह परीक्षण के अंत तक ये लोग संक्रमण से पूरी तरह मुक्त हो चुके थे । वैसे तो पूर्वी यूरोप के कई देशों में बैक्टीरियाफेज का उपयोग काफी समय से हेता रहा है । मगर यह बेतरतीब ढंग से होता था । इन देशों से इस इलाज की सफलता की कई घटनाएं सुनने में बाती रही हें मगर इस बार यह अध्ययन काफी व्यवस्थित रूप से हुआ है । बैक्टीरियाभक्षी चिकित्सा के कई फायदे हैं । एक तो यह प्रतिरोधी संक्रमण का मुकाबला कर सकता है ।दूसरे, इसकी एक ही खुराक लेनी होती है। एण्टीबायोटिक दवाईयों की खुराक कई दिनों तक लेनी होती है और यदि बीच में छोड़ दिया तो प्रतिरोध बढ़ने की आशंका होती है । इसके अलावा एण्टीबायोटिक दवाइयों के साइड प्रभाव भी चिंता का विषय है । सभी सहमत हैं कि उक्त अध्ययन ने संकमण के इलाज की नई राह दिखलाई है मगर अभी कई अवरोध पार करना शेष हैं ।***
1 टिप्पणी:
hey very good
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