गुरुवार, 8 नवंबर 2007

११ कविता

जल है एक उपहार
राधेलाल `नवचक्र'
जल है तो जीवन सखा, वरना मृत्यु समान,
कितने दिन टिक सकोगे, बिन इसके श्रीमान ।
मंडरा रहा है भूपर, जल संकट सुबह शाम,
ऐसी नौबत क्यों आई, कुछ तो कह गुलफाम ।
क्या नहीं मालूम तुझे, जल है एक उपहार,
दिया है प्रकृति ने हमें, किया बड़ा उपकार ।
कभी सचेत नहीं रहे, हरदम लापरवाह,
इसीलिए आया संकट, अब क्यों करते आह,
की प्रकृति से छेड़-छाड़, होना था गुमराह ।
संकट और घिरा जल का, नहीं सूझती राह,
जल संरक्षण हेतु हमने, तनिक न दिया ध्यान ।
ना अचरज कुछ भी जरा, जल बिन निकले प्राण,
गलती अपनी मानकर, करें उसका सुधार ।
बिगड़ी बात बन सकती, बचा यही आधार,
हम अपने दायित्व को, कभी न भूलें यार ।
जल की महत्ता को समझ, कर उससे भी प्यार,
जा देख नई टिहरी, कैसेलड़ते लोग ।
पानी के बाल्टियां, झगड़ा करते लोग,
ऐसा भी था समय कभी, टिहरी के ही लोग,
सुबह भागीरथी में नहा, रहते मुक्त हो रोग ।
कैसा दुर्दिन आएगा, सब मिल करो विचार,
निज कंपनी के हाथों, चली जाए जल धार ।
लगा बिकने पानी अब, बन कंपनी कसाई,
कैसा समय आया है, सोचो सब मिल भाई ।
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