प्रसंगवश
प्रजातियों का अनदेखा विलोप
इलिनॉय विश्वविघालय के पुराजीव वैज्ञानिक रॉय प्लॉटनिक एक अजीब विचार पर काम कर रहे हैं । आज हम जीवाश्म रिकॉर्ड के आधार पर जान पाते हैंकि कौन-सी प्रजातियां अतीत में पृथ्वी पर विचरती थी और कभी विलुप्त् हो गई । श्री प्लॉटनिक सोचने में लगे हैं कि आज जितनी प्रजातियां विलुप्त् हो रही है, उनमें से कितनी भविष्य में जीवाश्म रिकॉर्ड में नजर आएंगी ।
जब कोई जीव मरता है तो कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती है कि उसका शरीर सड़-गलकर पूरी तरह खत्म नहीं होता बल्कि अपनी कुछ छाप जोड़ जाता है । इस छाप को जीवाश्म कहते है । यह छाप कई रूपों में हो सकती है । विज्ञान इसी के आधार पर शोध को आगे बढ़ाता है ।
श्री प्लॉटनिक के मुताबिक हम इस वक्त प्रजातियों के छठे विलोप के युग में जी रहे हैं । यानी इससे पहले पांच बार प्रजातियों का महा-विलोप हो चुका है । श्री प्लॉटनिक ने अपना अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृतिसंरक्षण संघ की रेड लिस्ट के आधार पर किया है । यह रेड लिस्ट बताती है कि इस वक्त किन प्रजातियों के विलुप्त् होने का खतरा साफ नजर आ रहा है । इस लिस्ट में से भी उन्होनें सिर्फ स्तनधारियों पर ध्यान केन्द्रित किया । सूची में ७१५ स्तनधारी शामिल है ।
श्री प्लॉटनिक ने पाया कि इन ७१५ प्रजातियों में से मात्र ९० यानी १३ प्रतिशत ही जीवाश्म रिकॉर्ड में नजर आती है । इसका मतलब है कि शेष प्रजातियां बगैर कोई निशान छोड़े दुनिया से विदा हो रही है ।
जब उनसे पूछा गया कि वे जीवाश्म रिकॉर्ड की इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं, जबकि आजकल हम सारी प्रजातियों का इतना अच्छा रिकार्ड रखते हैं तो उनका कहना था कि इंसानों द्वारा रखे जाने वाले रिकार्ड बहुत विश्वसनीय नहीं हैं । उदाहरण के लिए उन्होनेंं पूछा आज फ्लॉपी डिस्क को कितने लोग पढ़ सकते हैं । उनके विचार में चट्टानों में बनी छाप कहीं अधिक मजबूत और भरोसेमंद होती है जिसे अनेक वर्षो बाद भी अध्ययन का आधार बनाया जा सकता है ।
प्रजातियों का अनदेखा विलोप
इलिनॉय विश्वविघालय के पुराजीव वैज्ञानिक रॉय प्लॉटनिक एक अजीब विचार पर काम कर रहे हैं । आज हम जीवाश्म रिकॉर्ड के आधार पर जान पाते हैंकि कौन-सी प्रजातियां अतीत में पृथ्वी पर विचरती थी और कभी विलुप्त् हो गई । श्री प्लॉटनिक सोचने में लगे हैं कि आज जितनी प्रजातियां विलुप्त् हो रही है, उनमें से कितनी भविष्य में जीवाश्म रिकॉर्ड में नजर आएंगी ।
जब कोई जीव मरता है तो कभी-कभी परिस्थितियां ऐसी होती है कि उसका शरीर सड़-गलकर पूरी तरह खत्म नहीं होता बल्कि अपनी कुछ छाप जोड़ जाता है । इस छाप को जीवाश्म कहते है । यह छाप कई रूपों में हो सकती है । विज्ञान इसी के आधार पर शोध को आगे बढ़ाता है ।
श्री प्लॉटनिक के मुताबिक हम इस वक्त प्रजातियों के छठे विलोप के युग में जी रहे हैं । यानी इससे पहले पांच बार प्रजातियों का महा-विलोप हो चुका है । श्री प्लॉटनिक ने अपना अध्ययन अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृतिसंरक्षण संघ की रेड लिस्ट के आधार पर किया है । यह रेड लिस्ट बताती है कि इस वक्त किन प्रजातियों के विलुप्त् होने का खतरा साफ नजर आ रहा है । इस लिस्ट में से भी उन्होनें सिर्फ स्तनधारियों पर ध्यान केन्द्रित किया । सूची में ७१५ स्तनधारी शामिल है ।
श्री प्लॉटनिक ने पाया कि इन ७१५ प्रजातियों में से मात्र ९० यानी १३ प्रतिशत ही जीवाश्म रिकॉर्ड में नजर आती है । इसका मतलब है कि शेष प्रजातियां बगैर कोई निशान छोड़े दुनिया से विदा हो रही है ।
जब उनसे पूछा गया कि वे जीवाश्म रिकॉर्ड की इतनी चिंता क्यों कर रहे हैं, जबकि आजकल हम सारी प्रजातियों का इतना अच्छा रिकार्ड रखते हैं तो उनका कहना था कि इंसानों द्वारा रखे जाने वाले रिकार्ड बहुत विश्वसनीय नहीं हैं । उदाहरण के लिए उन्होनेंं पूछा आज फ्लॉपी डिस्क को कितने लोग पढ़ सकते हैं । उनके विचार में चट्टानों में बनी छाप कहीं अधिक मजबूत और भरोसेमंद होती है जिसे अनेक वर्षो बाद भी अध्ययन का आधार बनाया जा सकता है ।