मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

१० सरोकार

विश्व बैंक : विनाश के लिए ऋण
रियाज. के. तैयब
विश्व बैंक मे २३ वर्ष सेवारत् रहे एक जाने-माने पर्यावरण वैज्ञानिक का मानना है कि विश्व बैंक अपनी योजनाआें और नीतियों के कारण मौसम में आ रहे परिवर्तनों के लिए सर्वाधिक उत्तरदायी है। यह परिवर्तन उसकी यातायात , ऊर्जा, औद्योगिक पशुपालन और अ-वनीकरण की नीतियों द्वारा ग्रीन हाउस गैस के बढ़ते उत्सर्जन का परिणाम है । यह विध्वंसकारी आलोचना तब सामने आई जबकि विश्व बैंक विकासशील देशों में मौसम परिवर्तन संबंधी मसलों के हल हेतु वैश्विक धन उपलब्ध करवाने का प्रमुख स्त्रोत बनने हेतु लालायित है । वह मौसम संबंधित ५ से १० अरब डॉलर का एक कोष स्थापित करना चाहता है । परंतु उसके इस कदम की विकासशील देशों ने संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन ढांचागत सम्मेलन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) में आलोचना की है । जी-७७ समूह और चीन ने मौसम संबंधित कार्यक्रमों को धन उपलब्धता के लिए विश्वबैंक की ओर मेाड़ने की बजाए स्वयं यू.एन.एफ. सी.सी.सी. के अंतर्गत बहुस्तरीय मौसम कोष की स्थापना की वकालत की है । पर्यावरण वैज्ञानिक राबर्ट गुडलेण्ड ने बैंक की नीतियों और कोष वितरण नीतियों का विश्लेषण करते हुए उन्हें पर्यावरण के लिए विध्वंसक बताया है । उनका कहना है कि बैंक को वास्तव में जो करना होता है वह कमोबेश उसके उलट ही करती है। गुडलेण्ड , जिन्होंने १९७८ से २००१ तक विश्व बैंक में काम किया है ने न केवल बैंक की पर्यावरण सुरक्षा नीतियों की संरचना की है बल्कि उन्होंने विश्व बांध आयोग की स्थापना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है । भारत की प्रसिद्ध पर्यावरण पत्रिका `डाउन टू अर्थ' में छपे अपने साक्षात्कार में उनका कहना है कि बैंक के अपने निगरानीकर्ताआें ने भी बैंक की नीतियों की आलोचना की है। साथ ही स्वतंत्र आकलन समूह (आई. ई.जी.) ने भी बैंक पर नकारात्मक टिप्पणी प्रकाशित करते हुए बताया है कि किस तरह बैंक टिकाऊ योजनाआें से दूर भाग रही है । अपनी टिप्पणी में कि बैंक के एक अनुषंग अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आई.एफ.सी.) तो `लाभों का निजीकरण' पर पर्यावरण हानि की लागत को समाज पर थोप रहा है । दूसरी ओर बैंक का दूसरा अनुषंग अंतर्राष्ट्रीय पुनसर्रचना का विकास बैंक (आई.बी.बार.डी.) पर्यावरण लागत को समाविष्ट करने की बात करता है । बैंक जो कि अपने कथन का ठीक विपरीत करती दिखाई पड़ती है को अपनी अधिकतम वृद्धि दर की रट को भी छोड़ना पड़ेगा । बैंक समूह में पारदर्शिता की कमी की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि बैंक ने यह बताने से इंकार कर दिया कि उसके द्वारा वित्तपोषित संस्थानों से कितनी ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जित होती है ? गुडलेण्ड का कहना है कि विश्व बैंक समूह में इस विषय की अनदेखी करना और सेंसरशीप एक प्रचलित प्रथा है । इसी वजह से बैंक के अध्यक्ष राबर्ट गोइलिक ने एक ऐसे व्यक्ति को अपना जनसंपर्क सलाहकार बनाया है जो कि मौसम परिवर्तन संबंधी वैज्ञानिक दृष्टिकोण को दबाने का जबरदस्त समर्थक है । यह नियुक्ति उन समाचारों के उजागर होने के बाद की गई है जिनमें बताया गया कि बैंक के वरिष्ट प्रबंधन ने मौसम परिवर्तन से संबंधित आंतरिक रिपोर्टोंा और पारम्परिक वनों में हो रही कटाई की रिपोर्ट को सेंसर कर दिया है । ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के हिसाब रखने संबंधी प्रक्रिया के विकास के संबंध में बैंक द्वारा किए गए दावों के बारे में गुडलेण्ड का कहना है कि इसमें अभी बरसों लगेंंगें । गुडलेण्ड कहते है कि जिस मात्रा में विश्व बैंक कोयला, पशुपालन और अ-वनीकरण के लिए धन दे रहा है उससे तो नहीं लगता कि वह जलवायु परिवर्तन को न्यूनतम करने का इच्छुक भी है । बैंक की ऊर्जा नीति पर उनका कहना है कि बैंक ने २००३ में दस वर्ष पूर्व बनाई अपनी उस नीति को पलट दिया है जिसमें कोयला आधारित ताप विद्युत गृहों को धन उपलब्ध कराने पर उसने प्रतिबंध लगाया था । यह प्रतिबंध तब लगाया गया था जबकि स्वतंत्र समीक्षा ने यह अनुशंसा की थी कि पांच वर्षों में इन्हें क्रमबद्ध तरीके से प्रचलन से बाहर किया जाना चाहिए । उन्होंने विकासशील देशों के ऐसे अनेक उदाहरण भी बताए जहां बैंक ने कोयला निर्यात इकाईयों को ऋण दिया है बैंक ने ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन के तीन अन्य प्रमुख स्त्रोतों हाई-वे, अ-वनीकरण और औद्योगिक पशुपालन को भी भरपूर धन उपलब्ध करवाया है । यातायात जो कि विश्व में कुल ग्रीन हाउस गैसों का २५ प्रतिशत उत्सर्जन करता है , में बैंक द्वारा उपलब्ध धन सर्वाधिक प्रश्न खड़े करता है । बैंक की एकतरफा नीति की ओर ध्यान दिलाते हुए उनका कहना है कि उसने इस क्षेत्र के लिए आरक्षित धन का ७५ प्रतिशत हाई-वे निर्माण हेतु उपलब्ध करवाया और रेल्वे को केवल ७ प्रतिशत ? बैंक की एक वर्ष पुरानी अमेजान रणनीति की गोपनीयता की चर्चा करते हुए उनका कहना है कि इसके माध्यम से वनों को जैविक इंर्धन और औद़्योगिक पशुपालन के क्षेत्र में बदला जा रहा है । उन्होंने दावा किया है कि आई.एफ.सी. ने हाल ही में औद्योगिक पशुपालन जो कि ग्रीन हाउस गैसों का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है के क्षेत्र में २ अरब डॉलर का निवेश किया है । गाय जो कि मिथेन की सबसे बड़ी और जेट जहाज जो कि काबन के सबसे बड़े उत्सर्जक हैं और इन दोेनों का वैश्विक खाद्य संकट और मौसम संबंधी जोखिमों में सर्वाधिक योगदान है से संबंधित योजनाआें से होने वाले उत्सर्जन की मात्रा का आकलन तक बैंक ने नहीं करवाया है । उन्होंनेे बैंक द्वारा जैविक इंर्धन उत्पादन संबंधी योजनाआें को अंधाधुंध मदद के तीन उदाहरण दिए हैं ये हैं -१. दक्षिण पूर्व एशिया में पाम - आईल हेतु वृक्षारोपण हेतु ऋण प्रदान करना यह अ-वनीकरण को बढ़ावा देता है जो कि जलवायु परिवर्तन में सर्वाधिक योगदान देता है ।२. अमेजान वनों में सोया उत्पादन की दो महाकाय योजनाआें को वित्त प्रदान करना । इससे प्राप्त् अधिकांश तेल का उपयोग बायो डीजल के रूप में होगा ।३. मार्च २००८ में अमेजन में ही चीनी-एथेनाल योजना को ऋण प्रदान करने के बाद निजी निवेशकों को भी इस दिशा में प्रोत्साहित करना । ***पर्यावरण के अनुकूल जैविक-शौचालय सुबह-सुबह सड़क के किनारे, रेल की पटरियों पर या धार्मिक स्थलों के आस-पास शौच करते लोग दिख ही जाते है । इसके कारण इन जगहों पर न सिर्फ गंदगी और बदबू फैलती है बल्कि पर्यावरण भी दूषित होता है । गंदे और बदबूदार सार्वजनिक शौचालयों से निजात दिलाने के लिए जापान की एक गैर सरकारी संस्था ने जैविक-शौचालय विकसित करने मेंसफलता हासिल की है । ये खास किस्म के शौचालय गंध-रहित तो हैं ही, पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित हैं । विकसित किया गया यह जैविक-शौचालय ऐसे सूक्ष्म कीटाणुआें को सक्रिय करता हैं, जो मल इत्यािदि को सड़ने में मदद करते हैं । इस प्रक्रिया के तहत मल सड़ने के बाद केवल नाइट्रोजन गैस और पानी ही शेष बचते हैं, जिसके बाद पानी को पुर्नचक्रित (री-साइकिल) कर शौचालयों में इस्तेमाल किया जा सकता है ।

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