गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

८ पक्षी जगत

पशु पक्षियों की स्मरण शक्ति
नरेन्द्र देवांगन
अमेरिका की एक मशहूर संस्था स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूट में कौआें की याददाश्त जानने के लिए कई प्रयोग किए गए । पता लगा कि कौए सात तक गिनती गिन सकते हैं । ये अपने प्रेमी और दुश्मनों को याद रखते हैं और दुश्मन पर हमला करने की फिराक में भी रहते हैं । हमारे देश में प्रख्यात कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण कौआें के अनन्य प्रेमी रहे हैं । उन्होंनें कौआें के हावभाव और व्यवहार का काफी अध्ययन किया है । उनके अनुसार घरेलू कौआें को घर में आने-जाने वालों की शक्ल याद रहती है। शायद कौए अपने दोस्त, नाते-रिश्तेदारों को भी पहचानते हैं, तभी तो शाम को उनके साथ बैठकर गपशप करते हैं । कहीं भोजन का ढेर मिलने पर उन्हें कांव- कांवर करके बुला भी लेते हैं । एक कहावत है कि हाथी कभी कुछ भूलता नहीं है । आधुनिक विज्ञान ने अब एक कदम और आगे बढ़कर ऐसे साक्ष्य ढूंढ निकाले हैं , जो यह बताते हैं कि न केवल विशालकाय हाथियों में , बल्कि अन्य प्राणियों में भी , यहां तक कि चहकने वाले पक्षियों में भी लंबे समय तक बनी रहने वाली याददाश्त होती है । अभी तक आमतौर पर माना जाता रहा है कि मनुष्य को छोड़कर शायद ही किसी अन्य जीव में लंबे समय तक बनी रहने वाली स्मरण शक्ति होती है । इस धारणा को मिथ्या सिद्ध करने वाले तथ्यों की खोज का श्रेय नार्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के मैसन फार्म बायोलॉजिकल रिज़र्व के शोधकर्ताआें को जाता है । इसमें रैनी गोहार्ड चिकित्सा विज्ञान के छात्र हैं और आर.हेवेन विले जीव विज्ञान के प्रोफेसर हैं । इन दोनों वैज्ञानिकों ने सुरीले स्वर वाली चिड़िया के संगीत को अलग-अलग चिन्हित सीमा रेखा के अंदर टेप रिकार्ड किया । उनकी स्वर लहरियां विशेष रूप से अलग-अलग सीमा क्षेत्र की द्योतक थीं ।जब पक्षी अपने शीतकालीन प्रवास के बाद वन में लौटे, तो उन्हें उनके गानों का टेप बजाकर सुनाया गया । जब ३१ पक्षियों को उनके सीमा क्षेत्र के बाहर के पक्षियों के गाने व बोलियों के टेप पुन: सुनाइ गए तो वे उत्तेजित हो गए और अपना गाना गाने लगे । उन्होंने अपना संगीत एक बार नहीं, बार बार गाया । इतने पर भी उनका आक्रोश शांत नहीं हुआ । उन्होंने स्पीकर पर झपट्टा भी मारा। पक्षियों की यह प्रतिक्रिया स्पष्ट करती है कि उन्हें अपने आसपास के क्षेत्रों के पक्षियों की आवाजें कई महीनों तक याद रहती है।ं । तभी तो वे यह समझ लेते हैं कि यह आवाज उनकी नहीं, अपितु उनके आसपास के क्षेत्रों के पक्षियों की है । कलनादी पक्षियों की याद रखने की यह विलक्षण क्षमता बताती है कि विभिन्न प्रजातियांे में स्मृति उनके विशिष्ट उद्देश्यों के अनुरूप विकसित होती है । उनकी स्मृति उनके प्रजनन को भी सुविधाजनक बनाती है । प्रोफेसर विले का कहना है कि जो पक्षी अपने पड़ोसियों को पहचानते हैं , वे उन पक्षियों की अपेक्षा प्रजनन में अधिक सफल होते हैं, जिनके चारों ओर अजनबी पक्षी होते हैं । इसका कारण यह है कि अजनबी पक्षियों से घिरे पक्षी अपना काफी समय अपने क्षेत्रों को चिन्हित करने और उसकी सुरक्षा करने में बिता देते हैं । कबूतर को लेकर याददाश्त के काफी प्रयोग किए गए हैं । पता लगा है कि कबूतर रंगों या चित्र आदि के किसी खास क्रम को याद रख सकते हैं । वे पे़़डों, मानव आकृतियों या झील, सागर आदि को भीयाद रखते हैं । एक प्रयोग में डॉ. हरबर्ट टैरेस ने कबूतरों को लाल, नीले, पीले और हरे रंग की चकतियां एक खास क्रम में दिखाई, फिर चारों चकतियों का एक साथ रखकर उन्हें दाना दियागया । कबूतरों ने जल्दी ही उस खास क्रम को को याद कर लिया । चकतियों के हर संभव उलटफेर के बावजूद कबूतरों ने भूल नहीं की । इसी तरह हावर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राबर्ट हेर्नस्टीन ने कबूतरों को ढेर सारी रंगीन स्लाइडें दिखाई और पेड़ वाली स्लाइड दिखने पर चकती पर चोंच मारने के लिए प्रशिक्षित किया । सही बताने पर उन्हें दाना खिलाया जाता था । जल्दी ही कबूतर इस कला में माहिर हो गए । वे मानव आकृतियों और झील आदि भी पहचानने लगे । पक्षियों में ऐसी याददाश्त केवल कबूतरों में ही देखी गई है । टेक्सास विश्वविद्यालय के डॉ. एंथनी राइट ने भी कबूतरों पर कुछ ऐसेे ही प्रयोग किए हैं । उनके अनुसार क्रम वगैरह को याद रखने की भूल प्रक्रिया मानव, बंदरों और कबूतरों की एक-सी ही है । पडर््यू विश्वविद्यालय की डॉ. आइकीन पेपरबर्ग ने एक अफ्रीकी तोते पर याददाश्त के कई प्रयोग किए । वे इसे प्यार से एलेक्स पुकारती थीं । यह तोता घरेलू इस्तेमाल की चालीस चीजों को उनके नाम से पहचानता था । यही नहीं, आकृति या रंग के हिसाब से उनका सही वर्गीकरण भी कर लेता था। जब - जब उसे हरा त्रिकोण दिखाकर पूछा गया कौन-सी आकृति ? जो उसने ८० फीसदी बार सही जवाब दिया । सही नतीजे रंग को लेकर भी मिले, वह लकड़ी या चमड़े से बनी चीजों में भी फर्क कर लेता था । तोते की याददाश्त ने वैज्ञानिकों को अचरज में डाल दिया है । जीव वैज्ञानिक रूप से पक्षियों की तुलना में बेहद कम विकसित मध्ुामक्खी की अनोखी याददाश्त प्रदर्शित करती है । डॉ. जेम्स गोल्ड उसे प्रयोगों से सिद्ध कर चुके हैं । उनकी राय में मधुमक्खियों के दिमाग में फूलों की आकृति या रंग उसी तरह अंकित रहते हैं, जैसे हमारे दिमाग में इस धारणा की जांच करने के लिए उन्होंने अलग-अलग बक्सो पर अलग-अलग फू्रलों के फोटो चिपकाए, मगर मधुमक्खियों का पसंदीदा मीठा सुक्रोज़ एक खास बक्से में था । बाद में बक्सा बदल देने पर भी मधुमक्खियां उसी बक्से पर भिनभिनाती थीं, जिस पर पहले वाला फोटो था । मखुमक्ख्यिों की इस स्मृति के पूरे रहस्य अभी नहीं खुले हैं । व्यवहार वैज्ञानिकों ने प्राणियों की याददाश्त क्षमता जानने के लिए ढेर सारे जीवों पर अध्ययन किए हैं । सबसे अधिक सफलता वानर यानी प्राइमेट वर्ग में देखने को मिली है । उल्लेखनीय है कि मानव भी इसी वर्ग का है । इसी वर्ग में सबसे ज़्यादा कुशलता भी देखी गई है । ऐसे कई प्रयोग दुनिया भर में मशहूर भी हुए हैं। सत्तर के दशक में नेवादा विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक गार्डनर दंपत्ति के वाशु नामक चिम्पैंजी ने उनके साथ बातचीत करके अंतर्राष्ट्रीय ख्यातति प्राप्त् की थी । उसे अंग्रेजी के ६० शब्दों का ज्ञान था और वह उनहें जोड़कर आसान वाक्य भी बना लेता था । पर वह शब्द उच्चरित नहीं करता था। संकेतों से बताता था ठीक वैसे ही जैसे बधिर लोग बातचीत करते हैं । वाशु ने यह सफलता २२ महीनों के प्रशिक्षण के बाद अर्जित की । वह अपने इस्तेमाल की चीज़ों को पहचानता था और ज़रूरत पड़ने पर सांकेतिक भाषा में उनकी मांग करता था। एक दिन गार्डनर दंपत्ति वाशु को प्रयोगशाला से घर ले आए ।सुबह उसने वाश बेसिन के पास खड़े होकर टूथ ब्रश की मांग की । वह खाना, पानी खालो, मैं , मेरे और तुम शब्दों का खूब इस्तेमाल करता था । गार्डनर दम्पत्ति ने यह भी देखा कि उसके शब्दों को याद रखने की क्षमता उपयोग के साथ बढ़ती ही गई । यानी हर चिपैंज़ी में याददाश्त की काफी क्षमता होती है, पर वे उनका सोचने-समझने में ज़्यादा इस्तेमाल नहंी कर सकते । प्रयोगों ने सिद्घ किया है कि जीव जगत में भी याददाश्त अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने में उपयोगी है । अगर मधुमक्खियों को ज़्यादा पराग वाले फूलों की शक्ल याद न रहे तो कितनी दिक्कत होगी ? अगर फुदकी अपने पड़ौसियों को न पहचाने तो कलह के मारे उसका जीवन दूभर हो जाएगा । चिम्पैंज़ी- गौरिला का सामाजिक जीवन सुचारू रूप से चलाने में भाषा का भारी हाथ है , पर उन्हें गिनती क्यों आती है यह बात अभी तक समझ में नहीं आई है । कबूतरों की याददाश्त की भूमिका उनके दूर-दूर के ठिकाने से वापस लौटने में हैं । मानव प्राणियों की इस अनोखी याददाश्त का इस्तेमाल करने का प्रयास कर रहा है । पर हमें यह नहीं मालूम हैं कि प्राणियों के दिमाग में सूचनाएं कैसे दऱ्ज होती हैं और ज़रूरत पडने पर वे इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं । खास तौर पर मधुमक्खी जैसे छोटे और अविकसित मस्तिष्क में तो यह बात किल्कुल ही समझ में नहीं आती । दरअसल हमें अपनी याददाश्त के बारे में ज़्यादा नहीं मालूम, हालांकि कोशिशें जारी हैं । जब यह गुत्थी सुलझेगी, तो प्राणियों की याददाश्त से भी पर्दा उठेगा । ***पक्षियों की आवाज वाली पीयू सीडी पक्षियों की चहचहाने की ध्वनियों से युक्त सीडी `पीयू' मध्यप्रदेश में खासी लोकप्रिय हो रही है । इस सीडी को अब तक ७०० प्रतियां लोगों के लिए उपलब्ध कराई जा चुकी है । इस सीडी को मध्यप्रदेश जैव विविधता बोर्ड ने भारतीय वन प्रबंधन संस्थान के सहयोग से कड़ी मेहनत के बाद तैयार किया है । इस सीडी में आमतौर पर पाए जाने वाले पक्षियों सहित दुर्लभ पक्षियों की चहचाहट संकलित है ।

कोई टिप्पणी नहीं: