शनिवार, 20 जनवरी 2007

मीडिया का नैतिक दायित्व

भारतीय पत्रकारिता के स्थापना दिवस पर विशेष

-डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम

अब से लेकर सन् २०२० तक का कालखंड हमारे राष्ट्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। राष्ट्रीय प्रेस को एक अरब लोगों के प्रसार माध्यम के रुप में उभरना होगा। इससे भी बढ़कर, मीडिया को भारत के आर्थिक विकास में सहभागी के रुप में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करना है। आर्थिक विकास तथा हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत का मेल भारत को एक खुशहाल, संपन्न राष्ट्र बना देगा।

मीडिया को चाहिए कि वह किसानों, मछुआरों, श्रमिकों, शिक्षकों, ज्ञानकर्मिकों, स्वास्थ्यकर्मियों आदि का हमेशा स्मरण करें। राजनीति के दो घटक होते है : राजनीतिक राजनीति और विकास की राजनीति। अधिकांश मीडिया राजनीतिक राजनीति को ही अधिक महत्व देता है। जबकि देश को जरुरत है विकास की राजनीति की। इस क्षेत्र में मीडिया की रिपोर्टिंग महत्वपूर्ण है।

एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ग्रामीण युवाआें के माध्यम से ग्रामीण विकास हेतु क्षमता निर्माण गतिविधियों में रत है। कुछ समय पूर्व इस फाउंडेशन ने अपने राष्ट्रीय फैलो का सम्मेलन आयोजित किया था। आमतौर पर फैलो की उपाधि वैज्ञानिकों, इतिहासकारकों तथा अर्थशास्त्रीयों को दी जाती है। यहाँ जिन फैलो का जिक्र हो रहा है, वे किसान, मछुआरे और शिल्पकार हैं। विभिन्न क्षेत्रों से आए ये लोग देहात में रह रहे लोगों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं। पत्रकारों को इन जमीन से जुड़े समाज सुधारकों से मिलकर इनकी योग्यता, समर्पण तथा अनुभवों को जनता के सामने लाना चाहिए ताकि ये हमारे युवाआें के लिए आदर्श के रुप में उभरें।

मैं अब तक १२ राज्यों के विधान मंडलों को संबोधित कर चुका हँू। मेरा मुख्य संदेश यहीं रहता है कि संबंधित राज्य को कैसे उच्च मानव विकास सूचकांक के साथ और प्रति व्यक्ति आय बढ़ाई जा सकती है। इसके लिए मैं ८-१० मिशन भी बताता हँू। मेरा सुझाव है कि मीडिया इन मिशनों का अध्ययन करें, शोध एवं विश्लेषण करें तथा राज्यों के विकास हेतु नेताआें के समक्ष अपने सुझाव रखे। केरल विधानसभा में मेरे संबोधन के बाद वहाँ के मीडिया ने इस दिशा में प्रशंसनीय पहल की।

मीडिया को विकसित भारत २०२० पूरा (ग्रामीण क्षेत्रों में शहरी सुविधाएँ उपलब्ध कराना), भारत निर्माण आदि जैसे कार्यक्रमों एवं राष्ट्रीय मिशनों में सहभागी होना चाहिए। मीडिया को इनके सकारात्मक पहलुआें को प्रमुखता से उभारना चाहिए।

यह जरुरी है कि मीडियाकर्मी तैयार करने वाले अकादमिक संस्थानो में अनुसंधान शाखाएँ हों। इससे हमारे पत्रकार राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर मौलिक अनुसंधान कर मध्यम व दीर्घकालिक समस्याआें के समाधान उपलब्ध करा सकेंगे। अखबार मालिकों को चाहिए कि वे युवा रिपोर्टरों द्वारा स्नातकोत्तर अर्हता पाने हेतु किए जाने वाले शोधकार्य को प्रोत्साहित करें। इससे प्रिंट मीडिया की सामग्री की गुणवत्ता में भी सुधार आएगा।एक अनुसंधानपरक वातावरण में लगातार ज्ञान अर्जित करते रहना सभी मीडियाकर्मियों के लिए जरुरी है।

एक उदाहरण देखिए। विदेशी अखबारों में किसी विषय पर चर्चा करने से पहले उसे एक आंतरिक शोध समूह के पास भेजा जाता है यहाँ तमाम तथ्यों व आँकड़ों का अध्ययन किया जाता है, उनका प्रमाणीकरण किया जाता है और फिर प्रमाणिक समाचार तैयार कर प्रकाशन के लिए भेजा जाता है। जब भारत में आउटसोर्सिंग करने को लेकर एक आलोचनात्मक टिप्पणी की गई थी, तो एक अमेरिकी पत्रकार कुछ दिन भारत में रहा और पूरे मुद्दे का अध्ययन किया। उसने पाया कि जो कंपनियाँ बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग कर रही थीं, वे अमेरिका तथा योरप से आयातित उपकरणों का प्रयोग कर रही थीं। इस प्रकार यह तथ्य सामने आया कि बीपीओ उद्योग अमेरिका व योरप के हार्डवेयर उद्योग के लिए परोक्ष बाजार उपलब्ध कराते हैं।

इसी प्रकार डिस्कवरी चैनल का एक व्यक्ति सूचना प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति का अध्ययन करना चाहता था। थॉमस फ्राइडमैन भारत आकर एक माह तक रहे और बंगलोर तथा अन्य जगहों पर गए। अपने समाचार विश्लेषण के आधार पर उन्होंने एक पुस्तक लिखी : द वर्ल्ड इज फ्लैट । यह है अनुसांधन की ताकत। ***

(भारतीय प्रेस परिषद के एक समारोह में दिए गए भाषण से संक्षिप्त)

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