मंगलवार, 27 फ़रवरी 2007

पर्यावरण समाचार


भारत ब्रह्मांड के रहस्यमय कणों की खोज करेगा

ब्रह्मांड की रचना कैसे और कब हुई है इस विषय पर लगातार खोज होती रही है और शायद आगे भी होती रहेगी। कारण इसका साफ है क्योंकि केवल ब्रह्मांड को जानने की लालसा युग-युगांतर से सबके मन में बनी हुई है।

इसी लालसा में फिर कुछ तथ्य जोड़ने और जानने के लिए ब्रह्मांड की रचना करने वाले कणों के रहस्यों का पता लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल करते हुए भारत सरकार ने एक भूमिगत वेधशाला स्थापित करने की योजना बनाई है। इस पर 670 करोड़ रुपए के खर्च का अनुमान है। ब्रह्मांड का निर्माण करने वाले मौलिक कणों में न्यूट्रिनों नामक कण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन्हीं कणों के अध्ययन के लिए मैसूर से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित पठानी सिंगारा गाँव में वेधशाला बनाई जा रही हैं। इस वेधशाला के भूमिगत होने के कारण वहाँ कॉस्मिक किरणों की उपस्थिति काफी घट जाएगी क्योंकि इन किरणों को जमीन के पत्थरों द्वारा अवशोषित कर लिया जाएगा।

न्यूट्रिनो के बारे में अभी वैज्ञानिकों को बहुत कम पता है। इन्हें इलेक्ट्रान के समान माना जाता है। इन दोनों के बीच एक मुख्य अंतर यह ळे कि इलेक्ट्रान पर विद्युत जैसा आवेश होता है जबकि न्यूट्रिनो पर कोई आवेश नहीं होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार न्यूट्रिनो के अनावेशित होने के कारण यह वैद्युत चुम्बकीय तरंगों, इलेक्ट्रो मैग्नेटिक, तरंगों से प्रभावित नहीं होता है। यह केवल इलेक्ट्रान की तरह काम करने वाले निर्बल उप परमाण्विक बलों से प्रभावित होता है, इसलिए यह किसी भी पदार्थ के भीतर बहुत गहराई तक आसानी से प्रवेश कर जाता है।

अभी तक ज्ञात बलों की तुलना में इसका गुरुत्वाकार्षण बल सबसे कम होता है। अभी तक तीन तरह के न्यूट्रिनो का पता चला है। इस बात के कोई पक्के प्रमाण नहीं मिले है कि इनके अलावा और भी न्यूट्रिनो का अस्तित्व है। हर किस्म के न्यूटिनो किसी अवेशित कण से संबंधित होते हैं।

भारतीय न्यूटिनो वेधशाला से संबध्द नोवामंडल के अनुसार न्यूटिनो का पता लगाना अत्यंत मुश्किल काम है क्योंकि इनकी किसी भी पदार्थ के साथ किसी तरह की प्रतिक्रिया ही नहीं होती है। इन्हें पता लगाने के लिए वैसे स्थान पर विशाल डिटेक्टर लगाने की जरुरत पड़ती है जहां अन्य कणों की पहुँच नहीं हो सके। यही कारण है कि न्यूट्रिनो डिटेक्टर जमीन के भीतर, दक्षिणी ध्रुव के नीचे या समुद्र की गहराई में लगाए जाते हैं। ***

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