सोमवार, 23 जुलाई 2007

इस अंक में

पर्यावरण डाइजेस्ट के इस अंक में वर्षा एवं वनों पर विशेष सामग्री दी गयी है। पहले लेख वनों से बेदखल होते वन गुज्जर में अर्ची रस्तोगी ने वन गुज्जरों के सामने खड़े आजीविका के संकट की चर्चा की है । म.प्र. के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ. रामप्रताप गुप्त् के लेख असफल औषधि नीति और बढ़ती कीमतें में कहा गया है कि सरकार की औषधी मूल्य नियंत्रण नीति का लाभ दवा कंपनियों को मिल रहा है, इसकी कमियों के कारण ही दवाऔ की कीमते बढ़ती जा रही हैं । विभा वार्ष्णेय और सौरव मिश्रा के लेख पारंपरिक खाद्य तेल और सेहत में पारंपरिक खाद्य तेलों की महत्ता और आयातित तेलों से पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला गया है । दिल्ली स्थित वरिष्ठ लेखक / पत्रकार सुश्री रेशमा भारती के लेख दिल्ली के पेड़ों की व्यथा-कथा में दिल्ली में विकास योजनाऔ के नाम पर शहीद हो रहे पेड़ों की व्यथा कथा उन्ही के शब्दों में दी गयी है ।
इसके साथ ही मौसम के अनुकूल विमल श्रीवास्तव के लेख बादलों की दुनिया में लेख में बादलों और वर्षा के बारे में सभी तकनीकी पक्षों का विवरण देते हुए विस्तार से बताया गया है । थर्ड वर्ल्ड नेटवर्क से जुड़े ची योग हेआेंग के लेख छलावा है जीन युक्त चावल में एक अमेरिकी कम्पनी को मानव जीन युक्त चावल की खेती करने की स्वीकृति के बाद के परिणामों की विवेचना की गई है । सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक लेखक डॉ. वाय.पी. गुप्त के लेख पेट्रोलियम का उपयोग वरदान या अभिशाप में तेल परिवहन के दौरान होने वाले सागरीय प्रदूषण की गहराई से जांच पड़ताल की गई है । कविता में इस बार लखनऊ के सुप्रसिद्ध साहित्यकार कुंवर कुसुमेश की कविता जल दी गई है जो आपको रूचिकर लगेगी ।
पत्रिका स्थायी स्तंभ पर्यावरण परिक्रमा, ज्ञान विज्ञान एवं पर्यावरण समाचार में आप देश दुनिया में पर्यावरण और विज्ञान के क्षेत्र में चल रही हलचलों से अवगत होते है। पत्रिका के बारे में आपकी राय से अवगत करायें।
- कुमार सिद्धार्थ

कोई टिप्पणी नहीं: