शुक्रवार, 30 जनवरी 2009
४ तेल प्रदूषण
बुधवार, 28 जनवरी 2009
५ लोक चेतना
बस्तर की दुर्लभ जैव विविधता के लिए खतरा लैण्टाना कैमरा
छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल और दुनिया के दुर्लभ जैव विविधताआें वाले क्षेत्र के रूप में मशहूर बस्तर में एक खतरनाक खरपतवार पनपने लगा है । इस खरपतवार का नाम लैण्टाना कैमरा है । लैण्टाना-कैमरा के विनाश के लिये कृषि विभाग ने प्रभावी नियंत्रण नीति अख्तियार करने पर बल दिया है । यह नींदा खरपतवार .लाटा. बूटा के नाम से भी जाना जाता है । यह उद्यानिकी और कृषि वानिकी के साथ अवांछित रूप से उगकर फसलों को भयानक क्षति पहुंचाता है । लैण्टाना कैमरा एक ऐसा खतरनाक खरपतवार है जो फसल के साथ साथ जंगल, उद्यान, अभयारण्य, सरंक्षित वनों, पार्क, घर और स्कूलों के आसपास तेजी से फैलकर उन्हें नुकसान पहुंचाता है । यह खरपतवार इसलिये भी विनाशकारी है कि इसके अधिक फैलाव से बस्तर जैसे वनाच्छादित और समूद्ध जैवविविधता (बायोडायवर्सिटी) वाले क्षेत्रों में अनेक बहुपयोगी पौधों और जीव जन्तुआें के अस्तित्व के लिये खतरा बन गया है । गैर कृषि क्षेत्रों में यह खरपतवार हानिकारक जीव जन्तुआें जैसे सांप चूहे और अन्य कीट रोग जनकों के लिये भी शरण स्थल बन जाता है । बस्तर अंचल में हजारों हेक्टेयर भूमि में इसका फैलाव खतरनाक तरीके से बढ़ता जा रहा है । जिसे कृषि वैज्ञानिकोंने बेहद चिंता का विषय बताया है । गौरतलब है कि लाटा बूटा यानी लैण्टाना कैमरा एक बहुवर्षीय सदाबहार झाडी है जो बीच और वानस्पतिक अंगों द्वारा तेजी से फैलता है । यहीं नही इसके बीजों का फैलाव पक्षियों विशेषकर भारतीय मैना द्वारा किया जाता है । यह खरपतवार मूलत: मध्य अमेरिका से आया हुआ बताया जाता हैै । इस पौधे का बहुरंगीय फूलों के कारण बाडियों, हेज के रूप में उपयोग किया जाता था । परन्तु अन्य उपयोगी स्थानों में इसका विस्तृत फैलाव अब संकट का कारण बन गया है । इसलिये इसका प्रभावशील ढंग से नियंत्रण किया जाना अब अत्यंत आवश्यक हो गया है ।
६ प्रदेश चर्चा
धरती के लिए खतरा बन सकती है सौर सक्रियता ऐसे में जब धरती पर जीवन का शाश्वत स्रोत सूर्य अपनी सौर सक्रियता के ११ वर्षीय चक्र की शुरूआत करने जा रहा है, धरती पर इसके संभावित कुप्रभाव का आकलन करने वाले वैज्ञानिक चिंतित है । इस कुदरती घटना से धरती को खतरा पहुंच सकता है । यह तय हो चुका है कि सौर सक्रियता भी धरती पर जलवायु परिवर्तन की वजह रही है । जाहिर है, आगामी दशक में सौर सक्रियता के कारण धरती की मुश्किलें बढ़ सकती है । उल्लेखनीय है कि इंसान ने इस परिघटना का आकलन करने के लिए पहली बार ४४० वर्ष पहले उपकरण तैयार किए थे । इन उपकरणों से इसकी पुष्टि हुई कि धरती सिर्फ सूर्यग्रहण नामक सौर परिघटना से ही प्रभावित नहीं होता । सौर धब्बे और सौर सक्रियता आदि जैसी कुदरती परिघटनाएं भी धरती को प्रभावित करती है । यहां तक कि इंसान के व्यवहार पर भी इनका असर पड़ता है । सौर विकिरण, सौर चुंबकीय तूफान या सौर प्रज्वलन जैसी रासायनिक क्रियाएं सौर सक्रियता के दायरे में आती है । ये परिघटनाए क्षीण या विनाशकारी दोनों हो सकती है । २८ अगस्त १८५९ को ध्रुवीय क्षेत्रों में अचानक सौर ताप बढ़ गया और शाम के वक्त पूरे अमेरिका महादेश में तेज धूप खिल उठी थी । कई लोगों को ऐसा महसूस हुआ जैसे उनके शहर में आग लग गई हो । शहर तेज धूप के कारण दहक उठे । इससे टेलीग्राप प्रणाली में गड़बड़ी पैदा हो गई । अगर आज के एटमी व अंतरिक्ष युग में ऐसा हो तो परिणाम भयावह होगा। रेडियो इलेक्ट्रानिक उपकरणों पर आज हम इतने निर्भर हो चुके हैकि अगर ऐसी घटना हुई तो पूरी दुनिया में जीवन-रक्षक प्रणालियां ध्वस्त हो जाएगी।
७ कृषि जगत
बढ़ते कचरे का संकट मनुष्य के लिए पेट भरने , तन ढंकने और सिर छिपाने लायक आच्छादन बनाने की समस्या अभी हल नहीं हो पाई थी कि बड़ी मात्रा में उत्पन्न होने वाले कचरे को ठिकाने लगाने की नई समस्या सामने आ गई । प्रकृति अपने उत्पादित कचरे को ठिकाने लगाती और उपयोगी बनाती रहती है । पशुआें के मल-मूत्र, पेड़ों से गिरे पत्ते आदि सड़ गल कर उपयोगी खाद बन जाते हैं और वनस्पति उत्पादन में काम आते हैं । मनुष्य का मल - मूत्र भी उतना ही उपयोगी है पर इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि उससे खाद न बनाकर नदी - नालों में बहा दिया जाता है और पेय जल को दूषित कर दिया जाता है । इससे दुहरी हानि है, खाद से वंचित रहना और कचरे को नदियों में फेंककर बीमारियों को आमन्त्रित करना । सरकारी तथा गैर सरकारी स्तरों पर किए जा रहे अनेक प्रयासों के बावजूद इन दिनों कचरे में भयानक वृद्धि हो रही है । हर वस्तु कागज, प्लास्टिक की थैली, पत्तल, दोना, डिब्बा आदि में बंद करके बेची जाती है । वस्तु का उपयोग होते ही वह पेकिंग कचरा बन जाती है और उसे जहां - तहां सड़कों, गलियों में फेंक दिया जाता है । इसकी सफाई पर ढेरों खर्च तो होता है, विशेष समस्या यह है कि उसे डाला कहां जाए ? आजकल शहरों के नजदीक जो उबड़ खाबड़ जमीनें होती हैं वे इस कचरे से भर जाती हैं ।
८ विशेष लेख
गुगल अर्थ की सामग्री पर विवाद मुंबई की हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह गूगल अर्थ सॉफ्टेवेयर से देश के सैटेलाइट चित्रों को हटाने के निर्देश दे । हाईकोर्ट ने यह याचिका स्वीकार कर ली है । मुंबई के अधिवक्ता अमित कारानी ने याचिका में अदालत से माँग की कि गूगल अर्थ सॉफ्टवेयर में आसानी से उपलब्ध देश के महत्वपूर्ण ठिकानों के चित्रों को हटाए जाने के निर्देश दिए जाएँ । श्री अमित ने गत दिनों मुंबई में आतंकी हमलों का हवाला देते हुए कहा-ऐसे तो हमारे यहाँ के परमाणु संयंत्र और रक्षा ठिकानों को भी निशाना बनाया जा सकता है । इतना ही नहीं, कई महत्वपूर्ण स्थानों व संसाधनों कें भी सैटेलाइट चित्र सॉफ्टवेयर में आसानी से उपलब्ध है, जिनका कोई भी गलत इस्तेमाल कर सकता है । सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे चित्र सॉफ्टवेयर से हटाए जाने चाहिए । गूगल अर्थ सॉफ्टवेयर प्रमुख इंटरनेट सर्च सेवा प्रदाता कंपनी गूगल ने बनाया है । इस कंपनी का मुख्यालय अमेरिका में है और इस पर सभी देशों के रक्षा मंत्रालय, विज्ञान एवं तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग देखें जा सकते हैं । गूूगल अर्थ सॉफ्टवेयर में वेबसाइट के माध्यम से दुनिया के किसी भी स्थान को देखा जा सकता है ।
९ पर्यावरण परिक्रमा
पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में हम पीछे है विश्व भर में हो रहे पर्यावरण के साथ खिलवाड़ से प्रकृति में विनाशकारी बदलाव आ रहे हैं । नतीजन दूर तक फैले हरे-भरे पहाड़ों व मैदानों का रेगिस्तान में बदल जाने का ग्राफ भी ऊपर जा रहा है । वह चौतरफा अप्राकृतिक बदलाव मानव जाति की भावी पीढ़ी के लिए एक भयानक खतरा बन सकता है । दुनिया भर में पर्यावरण को बचाने की दिशा में हो रहे प्रयासों का जिक्र करें तो भारत परिस्थिकीय संतुलन को बनाए रखने में अभी काफी पीछे है । देश में पर्यावरण को बचाने में काफी पीछे है । देश में पर्यावरण को एक तरफ कर महज आर्थिक विकास की गति का प्राथमिकता दी जा रही है । संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के हर भाग में शुष्क भूमि के हिस्से का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है । कुल भूमि का करीब ४० प्रतिशत हिस्सा शुष्क भूमि में तब्दील हो चुकाहै । सेंटर फॉर एनवायरमेंटल ला एंड पॉलिसी की एक रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण और परिस्थितिकी के संरक्षण से जुड़े प्रयासों में भारत का प्रदर्शन अपेक्षा से कहीं कम है । पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक (ई.पी.आई) में १३३ देशों के बीच भारत ११८ वें स्थान पर है जबकि चीन ९४ वें, श्रीलंका ६७ वें व पाकिस्तान १२३ वें स्थान पर है । रिपोर्ट के अनुसार न्यूजीलैंड, स्वीडन, फिनलैंड, चेक गणराज्य, ब्रिटेन व ऑस्टेलिया इस सूची मे शीर्ष पर आने वाले देशों में शमिल है । अमेरिका का स्थान २८ वां है । रिपोर्ट में सेंटर के निदेशक डॉ. डेनियल सी.एस्टी ने कहा है कि भारत पर्यावरण पर ध्यान दिए बिना आर्थिक विकास को तरजीह दे रहा है । उधर, वन विभाग के महानिदेशक जे.सी.काला का दावा है कि देश के वन क्षेत्र में कुछ वृद्धि हुई है । उन्होने देश में वनों के समुचित विकास के लिए वर्तमान में निर्धारित १६०० करोड़ रूपए का निवेश बढ़ाकर ८००० करोड़ करने की जरूरत बताई है ।
घटते जंगल और बढ़ती चिंताएं संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल धरती पर से एक प्रतिशत जंगल का सफाया किया जा रहा है जो पिछले दशक से पचास प्रतिशत ज्यादा है । शहरीकरण के दबाव, बढ़ती जनसंख्या और तीव्र विकास की लालसा ने हमें हरियाली से वंचित कर दिया है । घर के चौबारे में आम - नीम के पेड़ होना गुजरे वक्त की बात हो गई है । छोटे से फ्लैट में बोनसाई का एक पौधा लगाकर हम हरियाली को महसूस करने का भ्रम पालने लगे हैं । ऐसे समय में जब हमारे वैज्ञानिक हमें बार- बार ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से चेता रहे हैं ..... भयावह भविष्य का चेहरा दिखा रहे हैं ... यह आंंकड़ा दिल दहला देने के लिए काफी है । रूस, इंडोनेशिया, अफ्रीका, चीन, भारत के कई अनछुए माने वाले जंगल भी कटाई का शिकार हो चुके हैं । ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच को शुरू करने वाले डर्क ब्राएंट के अनुसार सिर्फ बीस सालों के अंदर दुनिया भर के ४० प्रतिशत जंगल काट दिए जाएंगें । दुनिया के सबसे बड़े जंगल के रूप में पहचाने जाने वाले ओकी- फिनोकी के जंगल भी इनसे जुदा नहीं । जितनी तेजी से जंगल कट रहे हैं उतनी ही तेजी से जीव-जंतुआें की कई प्रजातियां भी दुनिया से विलुप्त् होती जा रही हे । जंगलों के कटने से एक तरफ वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ रही है वही दूसरी ओर मिट्टी का कटाव भी तेजी से हो रहा है । भारतीय परिप्रेक्ष्य में बात करें तो तीसरी दुनिया से पहली दुनिया के देशोंमें शुमार होने को लालायित हमारे देश में जंगलों को तेजी से काटा जा रहा है । हिमालय पर्वत पर हो रही तेजी से कटाई के कारण भू-क्षरण तेजी से हो रहा है । एक शोध के मुताबिक हिमालयी क्षेत्र में भूक्षरण की दर प्रतिवर्ष सात मिमि तक पहुंच गई है । नतीजा कई बार ५०० से १००० प्रतिशत तक गाद घाटियों और झीलों में भर जाती है । जिसके कारण नदियों में जलभराव कम हो रहा है । भारत की जीवनरेखा कही जाने वाली कई नदियां गर्मियों में सूख जाती हैं , वहीं बारिश में इनमें बाढ़ आ जाती हैं । वनों की बेरहमी से हो रही कटाई कारण एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रही है वहीं दूसरी ओर प्रकृति का संतुलन भी बिगड़ रहा है । कई जीव हमारी धरती से लुप्त् हो चुके हैं। सही तरह से आंका जाए तो प्रलय का वक्त नजदीक आता नजर आ रहा है । इस प्रलय से बचने के लिए हमें तेजी से प्रयास करने होंगें । अब हर व्यक्ति को एक दो नहीं कम से कम दस पेड़ लगाने का वादा नहीं, बल्कि पक्का इरादा करना होगा । चिपको आंदोलन को दिल से अपनाना होगा, तभी हम वक्त से पहले आने वाले इस प्रलय से बच सकते हैं ।
राष्ट्रपति भवन के प्रकृति पथ का उद्घाटन राष्ट्रपति भवन को जनता के करीब लाने के मकसद से पिछले दिनों जनता के लिए प्रकृति पथ सैर करने के लिए खोल दिया गया । ढाई किलोमीटर लंबा यह पथ तीन सौ एकड़ के विशाल भूभाग में फैला है । राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने इस प्रकृति पथ का उद्घाटन किया और भरोसा जताया कि आम जनता इस पथ पर सैर करके प्रकृति से रूबरू हो सकेगी। इससे पहले श्रीमती पाटिल ने हर शनिवार को चेंज ऑफ गार्ड के लिए होने वाले समरोेह को जनता के दर्शनार्थ खेलने का आदेश दिया था । वैसे तो राष्ट्रपति भवन का प्रसिद्ध मुगल गार्डन हर साल फरवरी में कुछ दिनों के लिए जनता के लिए खुलता है जिसकी खूबसूरती जनता का मन मोहने के साथ अखबारों की सुर्खी बनती रही है । अब सामान्यजन पूरे साल हर शनिवार को प्रकृति पथ पर चलकर राष्ट्रपति भवन के पीछे फैले वन क्षेत्र में बटर फ्लाई पार्क का आनंद उठा सकेगें जहाँ कई सौ तरह की तितलियाँ देखने को मिलेगी। इस पथ से गुजरते हुए आप पीकॉक प्वाइंर्ट, ग्रेपवाईन यार्ड, अमरूद और संतरे के बगीचे, कटहल के पेड़ सहित जैव विविधता को दर्शाने वाले प्राकृतिक माहौल से रूबरू हो सकते हैं । राष्ट्रपति भवन की प्रवक्ता अर्चना दत्ता के अनुसार राष्ट्रपति चाहती हैं कि राष्ट्रपति भवन को आम जनता के करीब लाया जाए । उनके ही प्रयासों से दिल्ली सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग की मदद से प्रकृति पथ तैयार कराया गया है । उनके अनुसार प्रसीडेंट एस्टेट को एक हरित क्षेत्र, ऊर्जा की बचत और बिना कचरे वाले टाउनशिप के रूप में विकसित किया जा रहा है । ***
सोमवार, 26 जनवरी 2009
१० आवरण कथा
११ ज्ञान विज्ञान
खतरनाक हैं भूरे बादल चीन और भारत पर भूरे बादलों का प्रभाव कुछ ज्यादा ही देखने को मिल रहा है । संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण शाखा के लिए की गई एक शोध में साबित होता है कि एशियाई शहर खतरनाक भूरे बादलों की चपेट में आते जा रहे हैं । एनवायरमेंट न्यूज नेटवर्क की इस शोध से पता चला है कि अधिकतर एशियाई शहरों में सूरज की २५ प्रतिशत किरणें धरती तक पहुंच ही नहीं पाती हैं, क्योंकि प्रदूषण की वजह से बने भूरे बादल उन्हें आकाश में ही रोक देते हैं । ये बादल कभी - कभी तो ३ किलोमीटर गहरे होते हैं । इससे सबसे अधिक प्रभावित शहर चीन का ग्वानजाउ है, जो १९७० से ही धुएं के बादलों से घिरा हुआ है । इसके अलावा जिन शहरों पर सबसे अधिक खतरा है , वे हैं बैंकका, बीजिंग, ढाका, कराची, कोलकाता, मुम्बई, दिल्ली, सिओल, शंघाई, शेनजाउ और तेहरान । इस रिपोर्ट के अनुसार इन बादलों में मौजूद टॉक्सिक पदार्थोंा की वजह से चीन में प्रतिवर्ष ३,४०,००० लोग मारे जाते हैं । ये टॉक्सिक पदार्थ हिन्दूकुश और हिमालय पर्वत श्रृंखला के लिए भी खतरा हैं । इससे यहां के ग्लेशियर तेजी से पिघलते जा रहे हैं । ऐसा खतरा यूरोपीय और अमरीकी महाद्वीप के देशों पर भी है , परंतु वहां होने वाली शीतकालीन वर्षा और बर्फ की वर्षा इन बादलों को मिटा देती है लेकिन एशियाई शहरों में बर्फीली वर्षा नहीं होती है और वहां भूरे बादलों का खतरा लगातार बढ़ रहा है ।
पक्षियों का प्रेम गीत कुछ मनुष्य असीम आनंद पाने के लिए दवाइयों और अल्कोहल का सहारा लेते हैं । उसी तरह नर चिड़िया किसी मादा चिड़िया को रिझाने के लिए गाना गाते समय जिस आनंद की अनुभूति करती है, वह उसे शायद अकेले गाते हुए कभी प्राप्त् नहंी हेाता । जेब्रा फ्रिंच एक गाने वाली चिड़िया है, जो समूह में रहती है ।जापान के राइकेन ब्रेन साइन्स इंस्टीट्यूट के नील हेसलर और या-चुन हांग ने अपने अध्ययन में पाया कि जब नर जेब्रा फिंच किसी मनचाही संगिनी के लिए गाता है तो उसके दिमाग के एक विशेष हिस्से की तंत्रिकाएं सक्रिय हो जाती हैं । इस हिस्से को वीटीए कहते हैं । मानव मस्तिष्क का इसी के समतुल्य हिस्सा तब सक्रिय होता है जब वे कोकेन जैसी नशीली दवाईयों का सेवन करते हैं ।इससे दिमाग डोपामीन नामक एक पदार्थ बनाकर स्रावित करता है जिसे मस्तिष्क का पारितोषिक रसायन भी कहते हैं । फ्रिंच के मस्तिष्क में डोपामीन के स्रवण से वह क्षेत्र सक्रिय हो जाता है जो गायन और सीखने की प्रक्रिया का समन्वयन करता है ।दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि ऐसी स्थिति में गाना फिं्रच के लिए पारितोषिक की अनुभूति प्रदान करता है जिसके फलस्वरूप फिं्रच और गाने के लिए प्रोत्साहित होता है । हेसलर कहते हैं कि यह एक प्रत्यक्ष प्रमाण है कि मादा चिड़िया के लिए गीत गाना नर चिड़िया के लिए पारितोषिक पा लेने की भावना जगाता है। इसके साथ ही वह जोड़ते हैं कि यह कोई आश्चर्यजनक बात नहंी है क्योंकि पक्षियों में इस तरह की प्रणय प्रार्थना प्रजनन के समय बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । नार्थ कैरोलिना के ड्यूक विश्वविद्यालय के पक्षी तंत्रिका विज्ञानी एरिक जारविस के अनुसर इस अध्ययन से पता चलता है कि नर पक्षी का गायन उसके तंत्रिका संचानर और वी.टी.ए. में स्थाय परिवर्तन कर सकता है । जारविस का मानना है कि अभी यह कहना कठिन है कि नर का मस्तिष्क क्या वाकई में ज़्यादा खुश होता है । दूमसरी ओर , हेसलर सोच रहे हैं कि इसी प्रकार के प्रयोग मादा फिंच के साथ करके यहदेखें कि इस प्रकार की प्रणय ' नप्रक्रिया क्या मादा को भी समान रूप से आनंदित करती है ।
उड़ान में सुविधा देते हैं ड्रेगन फ्लाई के पंख ड्रेगन फ्लाय को बच्च्े हेलिकॉप्टर कीड़े के नाम से भी जानते हैं। यह बिल्कुल हेलिकॉप्टर की तरह दिखता है । हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाया कि इसकी उड़ान थोड़ी अनोखी है । इसके पंख लगभग पारदर्शी और काफी सख्त होते हैं । जॉर्ज वाशिंगटन विश्वविद्यालय के उड़ान इंजीनियर अबेल वर्गास और उनके सहयोगियों का विार है कि ड्रेगन फ्लाई के पंखों की अनोखी रचना उन्हें उड़ने मे विशेष सुविधा प्रदान करती है । दरअसल ड्रेगन फ्लाई के पंख ऐसे बिल्कुल नहीं दिखते कि वेउड़ान के लिए ज़रूरी स्ट्रीमलाइन्ड सांचे में ढले हैं जिसका उपयोग हवाईजहाज उद्योग बरसों से करता आ रहा है । ड्रेगन फ्लाई के पंख कोरूगेटेड होते हैं यानी इन पर उभरी हुई धारियां होती हैं । इन्हीं धारियों की वजह से इन पंखों को लंबाई में बिल्कुल मोड़ा नहीं जा सकता । यह बात को काफी समय से पता थी मगर यह किसी ने नहीं सोचा था कि इस तरह की रचना से उड़ान में क्या मदद मिलती होगी । यही पता करने के लिए अबेल वर्गास व साथियों ने ड्रेगन फ्लाई ईश्चना साएनिया के मॉडल तैयार किए । ये मॉडल कम्प्यूटर मॉडल थे । इन मॉडल्स को तरल गति साइमुलेटर में उड़ाया गया । यह एक ऐसा उपकरण होता है जिसमें तरल पदार्थोंा की गति की अनुकृति बनाई जा सकती है । ऐसा करने पर उन्होंने देखा कि ड्रेगन फ्लाई के पंख की धारियां उसे बढ़िया उठाव यानी लिफ्ट प्रदान करती हैं । आम तौर पर ग्लाइडिंग उड़ान भरते समय इतना उठाव नहीं मिलता । इन धारियों वाले पंखों में जितन उठाव मिलता है वह सामान्य स्ट्रीमलाइन्ड पंखों से भी बेहतर पाया गया। वर्गास का मत है कि इसका कारण यह है कि जब हवा इन पंखों पर गुजरती है , तो वह धारियों के बीच धंसे हुए हिस्सों में बहती है । इसका परिणाम यह होता है कि न्यूनतम ड्रेग वाले हिस्से बन जाते हैं जो उठाव को बढ़ावा देते हैं । ड्रेग वह बल है जो चीज़ों को पीछे की ओर धकेलता है । इस खोज से शोधकर्ता इतने उत्साहित है कि उनका कहना है कि छोटे साईज़ (यानी हाथ की साईज़) के टोही विमानों में इस तरह की संरचना का उपयोग करके उनकी उड़ान क्षमता बढ़ाई जा सकती है और उन्हें अधिक शक्तिशाली भी बनाया जा सकता है । ***
१२ कवितापर्यावरण
पर्यावरण सही
ए.बी.सिंह
पर्यावरण सही रहे, दुख कम हो तत्काल ।सुख से कटती जिन्दगी, ऐसे सालों साल ।।जब तक रहता सन्तुलन , प्रकृति दे सके साथ।पर्यावरण बिगाड़ कर , नहीं कटाओ हाथ ।।जीव जन्तु पलते रहें, पेड़ रहें हर ओर ।पर्यावरण तभी सही, जाये कोई छोर ।।पर्यावरण अगर सही, अच्छी हो बरसात ।दिन अच्छा कटने लगे, बीते अच्छी रात ।।धरती अच्छी दिख सके, जल रोके हर ओर ।पर्यावरण भला बने, मन में बढ़ता जोर ।।पर्यावरण जहां सही, बसते जा कर लोग ।उसी जगह जा कर लगे, मेला चलता भोर ।।रोग भगाने के लिये, रखो स्वच्छता ध्यान ।पर्यावरण सही रहे ,नहीं पड़े व्यवधान ।।पर्यावरण सभी तरह, यह देता है ज्ञान ।इसका जब नुकसान हो, सब का हो नुकसान ।।जहां जीव जल वन रहें, जीवों की भरमार ।पर्यावरण समझ सही, सब का जीवन पार ।।पर्यावरण सही रहे, अगर लगाओ पेड़ ।ऐसा होना चाहिये, हर खेतों की मेड़ ।।पर्यावरण सही अगर, प्रकृति न हो नाराज ।नहीं सुनामी का कभी, आ सकता तब राज ।।सब का तब अच्छा रहे, जग आचार विचार ।जब अच्छा पर्यावरण, हो अच्छी बौछार ।।सामाजिक जब चेतना, सब का हो तब ध्यान ।तब जग पर्यावरण की, राह सही आसान ।।परत सदा रखना सही, जो रहती ओजोन ।गलत जहां पर्यावरण, इसे बचाये कौन ।।शुद्ध मिले पानी हवा, घर का हो आटा दाल ।नहीं दिखावे में कभी , हरियाली को काट ।।
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