बुधवार, 28 जनवरी 2009

८ विशेष लेख

पेड़ भी करते हैं तर्पण
डॉ. सुनील कुमार अग्रवाल
पुत्र प्रािप्त् की कामना हर दम्पत्ति को होती है । पितरों के तर्पण हेतु पुत्र का होना नितांत जरूरी है । पुत्र ही बुढ़ापे का सहारा बनता है । इसीलिए विवाहित से आशीर्वाद स्वरूप कहा जाता है ``दूधो नहाआें पूतो फलों'' जनाधिक्य की चिंता में परिवार नियोजन का संकल्प सामने आया तो ``छोटा परिवार सुखी परिवार''तथा `` बच्च्े एक-दो ही अच्छे'' जैसे नारे लगने लगे । शिक्षित और समझदार परिवारों ने परिवार नियोजन को अपनाया भी । संतान रूप में संतुलित रूप से एक पुत्र तथा एक पुत्री प्राप्त् हो जाये यह मात्र संयोग पर निर्भर है तथा नियति भरोसे हैं । अत: हर दम्पत्ति पुत्रवान नहीं होता । कुछ तो इस विवशता का स्वीकार कर परीक्षण कराने से गुरेज नहीं करते । इस प्रवृत्ति से समाज के अन्दर बुराइयों को जन्म दिया है । यूँ तो समाज में निजता एवं वैयक्तिता इस कदर हावी है कि एकल परिवारों में माता पिता की भूमिका नगण्य हो गई हैं परिवार की परिभाषा के अनुसार अपने जनक को मुखाग्नि देेने का अधिकार पुत्र का है पुत्र ही तर्पण करता है । शास्त्रों ने इस मोक्षगामी तर्पण हेतु ``तरूपत्रक'' का विधान दिया है और कहा है कि ``पेड़ भी कर सकते है तर्पण'' यदि पुत्र की इच्छा रखने वाले लोग तरूपत्रक की अवधारणा को अपना लें तो समाज में भ्रुण हत्या की आवृत्ति कम होगी ही साथ ही प्रकृति तथा पर्यावरण का बहुत बड़ा उपकार होगा । पदम पुराण (सृष्टि खण्ड) में लिखा है कि वृक्ष, पुत्रहीन पुरूष को पुत्रवान होने का फल देते हैं, इतना ही नहीं वे अधिदेवता रूप में तीर्थोंा में जाकर वृक्ष लगाने वालों को पिण्डदान भी देते हैं । अकेला पीपल का पेड़ हजार पुत्रों के बराबर फल देता है । पीपल की जड़ के पास बैठकर जो जप होम तर्पण आदि किया जाता है उसका फल लाखो करोड़ो गुना मिलता है । पीपल का पेड़ लगाने, रक्षा करने, स्पर्श करने तथा पूजा करने से क्रमश: धन पुत्र स्वर्ग और मोक्ष मिलता है। क्योंकि पीपल की जड़ में विष्णु तने में केशव शाखाआें में नारायण और पत्ते-पत्ते में श्री हरि का वास है । फलों में विभिन्न देव अच्युत निवास करते है । पद्म पुराण के उत्तर खण्ड में लिखा है कि ``वृक्ष लगाने वाला पुरूष अपने भूत कालीन पितरों तथा होने वाले वंशजो का भी उद्धार कर देता है इसलिए वृक्षों को अवश्य लगाना चाहिए । वृक्ष अपने फूलों से देवताआें का, पत्तो से पितरों का तथा छाया से समस्त अतिथियों का पूजन करते है ।'' मनीषियों की धारणा है कि जलाशय के समीप पीपल का वृक्ष लगाकर मनुष्य जिस फल को प्राप्त् करता है वह सेकड़ो यज्ञों से भी नहीं मिल सकता है । प्रत्येक पर्व में उसके जो पत्ते झड़ कर जल मे गिरते है वे पिण्ड के समान होकर पितरों को तृप्त् करते है । उस वृक्ष पर विश्राम करते हुए पक्षी अपनी इच्छानुसार जो फल खाते है उसका ब्राह्मण भोज के समान फल होता है । उस वृक्ष की शीतल छाया में जब ताप से आकुल-व्याकुल गऊ आदि विश्राम करते है तो पितरों को अक्षय स्वर्ग मिलता है । पीपल के अतिरिक्त बरगद, नीम, आम, बिल्व, अशोक आदि वृक्षों की पूजा का विधान शास्त्रों में दिया है । यूँ भी जहॉ पेड़ पौधे पल्लवित-पुष्पित रहते हैं वहाँ आह्लापूर्ण शीतलता और शांति होती है । पूर्णता एवं संतुष्टि का भाव रहता है । पेड़ो के पास रहने से कोई कामना शेष नहीं रहती और मन रमता है । महाभारत में महर्षि वेदव्यास ने कहा है कि फल-फूलों से समृद्ध वृक्ष मानव को इस लोक में तृप्त् करते हैं पर जो वृक्ष का दान करता है उसको वृक्ष पुत्र की तरह परलोक में तार देते हैं । पुष्पिता: फलवंतश्च तर्पयंतीह मानवान् वृक्षंद पुत्रवद वृक्षा स्तारयंति परत्र तु ।। श्री व्यास जी द्वारा उद्भाषित यह कथ्य आज और भी अधिक प्रासंगिक हैं। इस नश्वर संसार में अपने समान संतति उत्पन्न करने की अभिलाषा हर जड़-चेतन जीव की होती है । मनुष्य भी यही कामना करता है परन्तु इस कामना की पूर्ती सभी जनों के लिए समान रूप से नहीं होती है। अत: कामना की तुष्टि हेतु शास्त्रों में तरूपत्रक का प्रावधान है । तरू अर्थात वृक्ष एवं पुत्रक अर्थात संतान । अत: वृक्ष को संतान रूप में अपनाने एवं अंगीकार करने को तरूपत्रक संस्कार कहते है । आचार्योंा ने नि: सन्तान वर्ग को संतुष्ट करने हेतु सोलहवीं शताब्दी में उत्पन्न हुए उद्भट विद्वान, शास्त्रकार कमलाकर भट्ट के कमलाकर ग्रन्थ को संदर्भित किया है । जिसमें कार्मकाण्ड की विरल पद्धति निम्नलोकांगित में नीम को न काटने की प्रार्थना करते हुए कन्या अपने पिता से कहती है बाबा निभिया के पेड़ जिन काटहु निमिया, चिड़िया बसेरे सबरे चिरइया उढ़ी जई है रहि जैहे निमिया अकेलि बाबा बटियन के जनी दुख देहु बितियो चिरइया नाई सबरे बिटियवें जइहे सासर रहि जै है पूर्वी उत्तरप्रदेश में प्रचलित उस लोक गीत में वृक्ष और बेटी की व्यथा आत्मिय एवं एकाकार हो गई है। पेड़ तो परार्थ ही पेदा होता है । पुत्र कुपुत्र हो सकता है किंतु पेड़ कोई गलत काम नहीं करता । उसमें शिव तत्व होता है वह सदा कल्याण ही करता हैं । यदि तरूपुत्रक की आवधारणा को व्यापक समर्थन मिले तो वृक्षा रोपण की प्रवृति बढ़ेगी । धरती फिर से शस्य श्यामला होगी । एक पेड़ अनगिनत जीवों को आश्रय देता है । वह तो जीवन भर देता ही देता है और मरने के बाद भी हमारा उपकार ही करता है ।इस प्रकार एक पेड़ उद्धारक भी तारक भी और मोक्ष प्रदायक भी । **
गुगल अर्थ की सामग्री पर विवाद मुंबई की हाईकोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में अदालत से अनुरोध किया गया है कि वह गूगल अर्थ सॉफ्टेवेयर से देश के सैटेलाइट चित्रों को हटाने के निर्देश दे । हाईकोर्ट ने यह याचिका स्वीकार कर ली है । मुंबई के अधिवक्ता अमित कारानी ने याचिका में अदालत से माँग की कि गूगल अर्थ सॉफ्टवेयर में आसानी से उपलब्ध देश के महत्वपूर्ण ठिकानों के चित्रों को हटाए जाने के निर्देश दिए जाएँ । श्री अमित ने गत दिनों मुंबई में आतंकी हमलों का हवाला देते हुए कहा-ऐसे तो हमारे यहाँ के परमाणु संयंत्र और रक्षा ठिकानों को भी निशाना बनाया जा सकता है । इतना ही नहीं, कई महत्वपूर्ण स्थानों व संसाधनों कें भी सैटेलाइट चित्र सॉफ्टवेयर में आसानी से उपलब्ध है, जिनका कोई भी गलत इस्तेमाल कर सकता है । सुरक्षा की दृष्टि से ऐसे चित्र सॉफ्टवेयर से हटाए जाने चाहिए । गूगल अर्थ सॉफ्टवेयर प्रमुख इंटरनेट सर्च सेवा प्रदाता कंपनी गूगल ने बनाया है । इस कंपनी का मुख्यालय अमेरिका में है और इस पर सभी देशों के रक्षा मंत्रालय, विज्ञान एवं तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग देखें जा सकते हैं । गूूगल अर्थ सॉफ्टवेयर में वेबसाइट के माध्यम से दुनिया के किसी भी स्थान को देखा जा सकता है ।

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